शब्द राग कान्हड़ा : संत दादू दयाल जी

Shabd Raag Kanhada : Sant Dadu Dayal Ji

शब्द राग कान्हड़ा संत दादू दयाल जी
(गायन समय रात्रि 12 से 3)

1 वर्ण भिन्नताल

दे दर्शन देखन तेरा, तो जिय जक पावे मेरा।टेक।
पीव तूं मेरी वेद न जाणे, हौं कहा दुराऊँ छाने,
मेरा तुम देखे मन माने।1।
पीव करक कलेजे माँहीं, सो क्यों ही निकसे नाँहीं,
पीव पकर हमारी बाँही।2।
पीव रोम-रोम दु:ख सालै, इन पीरों पिंजर जालै,
जीव जाता क्यों ही बालै।3।
पीय सेज अकेली मेरी, मुझ आरति मिलणे तेरी,
धान दादू वारी फेरी।4।

2 ताल

आव सलौने देखन देरे, बलि-बलि जाऊँ बलिहारी तेरी।टेक।
आव पिया तूं सेज हमारी, निश दिन देखूँ बाट तुम्हारी।1।
सब गुण तेरे अवगुण मेरे, पीव हमारी आह न ले रे।2।
सब गुणवन्ता साहिब मेरा, लाड गहेला दादू केरा।3।

3 पंचम ताल

आव पियारे मींत हमारे, निशि दिन देखूँ पाँव तुम्हारे।टेक।
सेज हमारी पीव सँवारी, दासी तुम्हारी सो धान वारी।1।
जे तुझ पाऊँ अंग लगाऊँ, क्यों समझाऊँ वारणे जाऊँ।2।
पंथ निहारूँ बाट सँवारूँ, दादू तारूँ तन-मन वारूँ।3।

4 पंजाबी भाषा पंचम ताल

आव वे सजण आव, शिर पर धार पाँव।
जाँनी मैंडा जिन्द असाडे, तूं रावैंदा राववे, सजण आव।टेक।
इत्थां उत्थां जित्थां कित्थां, हूँ जीवाँ तो नाल वे।
मीयाँ मैंडा आव असाडे, तू लालों शिर लाल वे, सजण आव।1।
तल भी डेवाँ मन भी डेवाँ, डेवाँ पिंड पराण वे।
सच्चा सांईं मिल इत्थांई, जिन्द करां कुरबाण वे, सजण आव।2।
तू पाकों शिर पाक वे सजण, तूं खूबों शिर खूब।
दादू भावे सजण आवे, तूं मिट्ठा महबूब वे, सजण आव।3।

5 राज विद्याधार ताल

दयाल अपने चरनन मेरा चित्ता लगावहु, नीकैं ही करी।टेक।
नख-शिख सुरति शरीर, तूं नाम रहो भरी।1।
मैं अजाण मति हींण, जम की फाँसीं तैं रहत हूँ डरी।2।
सबै दोष दादू के दूर कर, तुम ही रहो हरी।3।

6 राज विद्याधार ताल

मन मति हींण धरे,
मूरख मन कछु समझत नाँहीं, ऐसे जाइ जरे ।टेक।
नाम विसार अवर चित राखे, कूड़े काज करे।
सेवा हरि की मन हूँ न आणे, मूरख बहुरि मरे।1।
नाम संगम कर लीजे प्राणी, जम तैं कहा डरे।
दादू रे जे राम सँभारे, सागर तीर तिरे।2।

7 राजमृगांक ताल

पीव तैं अपणे काज सँवारे,
कोई दुष्ट दीन को मारण, सोई गह तैं मारे।टेक।
मेरु समान ताप तन व्यापै, सहजैं ही सो टारे।
संतन की सुखदाई माधाव, विन पावक फँद जारे।1।
तुम तैं होइ सबै विधि समर्थ, आगम सबै विचारे।
संत उबार दुष्ट दुख दीन्हा, अंधा कूप में डारे।2।
ऐसा है शिर खसम हमारे, तुम जीते खल हारे।
दादू सौं ऐसे निर्बहिये, प्रेम प्रीति पिव प्यारे।3।

8 मल्लिका मोद ताल

काहू तेरा मरम न जाना रे, सब भये दीवाना रे।टेक।
माया के रस राते माते, जगत् भुलाना रे।
को काहू का कह्या न माने, भये अयाना रे।1।
माया मोहे मुदित मगन, खान खाना रे।
विषिया रस अरस परस, साच ठाना रे।2।
आदि अंत जीव जन्तु, किया पयाना रे।
दादू सब भरम भूले, देख दाना रे।3।

9 मल्लिका मोद ताल

तूं ही तूं गुरु देव हमारा, सब कुछ मेरे नाम तुम्हारा।टेक।
तुम हीं पूजा तुम हीं सेवा, तुम हीं पाती तुम हीं देवा।1।
योग यज्ञ तूं साधान जापं, तुम हीं मेरे आपै आपं।2।
तप तीरथ तूं व्रत स्नाना, तुम हीं ज्ञाना तुम हीं धयाना।3।
वेद भेद तूं पाठ पुराणा, दादू के तुम पिंड पराणा।4।

10 गजताल

तूं ही तूं आधार हमारे, सेवक सुत हम राम तुम्हारे।टेक।
माइ-बाप तूं साहिब मेरा, भक्ति हीण मैं सेवक तेरा।1।
मात-पिता तूं बान्धाव भाई, तुम हीं मेरे सजन सहाई।2।
तुम हीं तातं तुम ही मातं, तुम हीं जातं तुम हीं न्यातं।3।
कुल कुटुम्ब तूं सब परिवारा, दादू का तूं तारणहारा।4।

11 भंगताल

नर नैन भर देखण दीजे, अमी महारस भर-भर पीजे।टेक।
अमृतधारा वार न पारा, निर्मल सारा तेज तुम्हारा।1।
अजर जरन्ता अमी झरन्ता, तार अनन्ता बहु गुणवन्ता।2।
झिलमिल सांईं ज्योति गुसांईं, दादू माँहीं नूर रहांईं।3।

12 भंगताल

ऐन एक सो मीठा लागे, ज्योति स्वरूपी ठाड़ा आगे।टेक।
झिलमिल करणा, अजरा जरणा, नीझर झरणा, तहँ मन धारणा।1।
निज निरधारं, निर्मल सारं, तेज अपारं, प्राण अधारं।2।
अगहा गहणा, अकहा कहणा, अलहा लहणा, तहँ मिल रहणा।3।
निरसँधा नूरं, सकल भरपूरं, सदा हजूरं, दादू सूरं।4।

13 प्रतिताल

तो काहे की परवाह हमारे, राते माते नाम तुम्हारे।टेक।
झिलमिल झिलमिल तेज तुम्हारा, परकट खेले प्राण हमारा।1।
नूर तुम्हारा नैनों माँहीं, तन-मन लागा छूटे नाँहीं।2।
सुख का सागर वार न पारा, अमी महारस पीवनहारा।3।
प्रेम मगन मतवाला माता, रंग तुम्हारे दादू राता।4।

।इति राग कान्हडा सम्पूर्ण।

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