शब्द राग देवगांधार : संत दादू दयाल जी

Shabd Raag Devgandhar : Sant Dadu Dayal Ji

शब्द राग देवगांधार संत दादू दयाल जी
(गायन समय प्रात: 6 से 9)

1 त्रिताल

शरण तुम्हारी आइ परे,
जहाँ-तहाँ हम सब फिर आये, राखि-राखि हम दुखित खरे।टेक।
कस-कस काया तप व्रत कर कर, भ्रमत-भ्रमत हम भूल परे।
कहुँ शीतल कहुँ तप्त दहे तन, कहुँ हम करवत शीश धारे।1।
कहुँ वन तीरथ फिर-फिर थाके, कहँ गिरि पर्वत जाइ चढ़े।
कहुँ शिखर चढ परे धारणि पर, कहुँ हति आपा प्राण हरे।2।
अंधा भये हम निकट न सूझे, तातैं तुम तजि जाइ जरे।
हा-हा हरि अब दीन लीन कर, दादू बहु अपराधा भरे।3।

2 त्रिताल

बौरी तूं बार-बार बौरानी,
सखीसुहाग न पावे ऐसे, कैसे भरम भुलानी।टेक।
चरणों चेरी चित नहिं राख्यो, पतिव्रत नाहिं न जान्यों।
सुन्दरि सेज संग नहिं जानैं, पीव सौं मन नहिं मान्यों।1।
तन-मन सबै शरीर न सौंप्यो, शीश नाइ नहिं ठाढी।
इक रस प्रीति रही नहिं कबहुँ, प्रेम उमंग न बाढी।2।
प्रीतम अपणों परम सनेही, नैन निरख न अघानी।
निशि वासर आनि उर अंतर, परम पूज्य नहिं जानी।3।
पतिव्रत आगे जिन-जिन पाल्यो, सुन्दरि तिन सब छाजे।
दादू पिव बिन और न जानैं, ताहि सुहाग विराजै।4।

3 रंगताल

मन मूरखा! तैं योंही जन्म गमायो,
सांई केरी सेवा न कीन्हीं, इहि कलि काहे का आयो।टेक।
जिन बातन तेरा छूटक नाँहीं, सोइ मन तेरे भायो।
कामी ह्नै विषया संग लागो, रोम-रोम लपटायो।1।
कुछ इक चेत विचारी देखो, कहा पाप जिय लायो।
दादू दास भजन कर लीजे, स्वप्ने जग डहकायो।2।

।इति राग देवगांधार सम्पूर्ण।

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