शब्द राग बसन्त : संत दादू दयाल जी

Shabd Raag Basant : Sant Dadu Dayal Ji

शब्द राग बसन्त संत दादू दयाल जी
(गायन समय प्रभात 3 से 6 तथा बसन्त ऋतु)

1 मल्लिका मोद ताल

निर्मल नाम न लीयो जाइ, जाके भाग बड़े सोई फल खाइ।टेक।
मन माया मोह मद माते, कर्म कठिन ता माँहिं परे।
विषय विकार मान मन माँहीं, सकल मनोरथ स्वाद खरे।1।
काम-क्रोधा ये काल कल्पना, मैं मैं मेरी अति अहंकार।
तृष्णा तृप्ति न माने कबहूँ, सदा कुसंगी पंच विकार।2।
अनेक जोधा रहै रखवाले, दुर्लभ दूर फल अगम अपार।
जाके भाग बड़े सोई फल पावे, दादू दाता सिरजनहार।3।

2 धीमा ताल

तूं घर आवने म्हारे रे, हूँ जाउँ वारणे ताहरे रे।टेक।
रैन दिवस मूने निरखताँ जाये, वेलो थई घर आवे रे वाहला आकुल थाये।1।
तिल तिल हूँ तो तारी वाटड़ी जोऊँ, एने रे ऑंसूड़े वाहला मुखड़ो धोऊँ।2।
ताहरी दया करि घर आवे रे वाहला, दादू तो ताहरो छे रे मा कर टाला।3।

3 तेवरा ताल

मोहन दुख दीरघ तूं निवार, मोहि सतावे बारंबार।टेक।
काम कठिन घट रहै माँहिं, ताथैं ज्ञान धयान दोउ उदय नाँहिं।
गति मति मोहन विकल मोर, ताथैं, चित्ता न आवे नाम तोर।1।
पांचों द्वन्द्वर देह पूरि, ताथैं सहज शील सत रहैं दूरि।
शुध्द बुध्दि मेरी गई भाज, ताथैं तुम विसरे (हो) महाराज।2।
क्रोधा न कबहूँ तजे संग, ताथैं भाव भजन का होइ भंग।
समझि न काई मन मंझारि, ताथैं चरण विमुख भये श्री मुरारि।3।
अन्तरयामी कर सहाइ, तेरो दीन दुखित भयो जन्म जाइ।
त्रााहि-त्रााहि प्रभु तूं दयाल, कहै दादू हरि कर सँभाल।4।

4 एक ताल

मेरे मोहन मूरति राख मोहि, निश वासर गुण रमूँ तोहि।टेक।
मन मीन होइ ज्यों स्वाद खाइ, लालच लागो जल थैं जाइ।
मन हस्ती मातो अपार, काम अंधा गज लहे न सार।1।
मन पतंग पावक परे, अग्नि न देखे ज्यों जरे।
मन मृगा ज्यों सुने नाद, प्राण तजे यूँ जाइ बाद।2।
मन मधाुकर जैसे लुब्धा वास, कमल बँधावे होइ नास।
मनसा वाचा शरण तोर, दादू का राखो गोविन्द मोर।3।

5 एक ताल

बहुरि न कीजे कपट काम, हृदय जपिये राम नाम।टेक।
हरि पाखें नहिं कहूँ ठाम, पीव बिन खड़भड़ गाँव-गाँव।
तुम राखो जियरा अपनी माँम, अनत जिन जाय रहो विश्राम।1।
कपट काम नहिं कीजे हांम, रहु चरण कमल कहु राम नाम।
जब अंतरजामी रहै जांम, तब अक्षय पद जन दादू प्राम।2।

6 कड्ड़ुक ताल

तहँ खेलूँ पीव सूँ नितही फाग, देख सखीरी मेरे भाग।टेक।
तहँ दिन-दिन अति आनन्द होइ, प्रेम पिलावे आप सोइ।
संगियन सेती रमूँ रास, तहँ पूजा-अरचा, चरण पास।1।
तहँ वचन अमोलक सब ही सार, तहँ बरते लीला अति अपार।
उमंग देइ तब मेरे भाग, तिहिं तरुवर फल अमर लाग।2।
अलख देव कोई जाणे भेव, तहँ अलख देव की कीजे सेव।
दादू बलि-बलि बारंबार, तहँ आप निरंजन निराधार।3।

7 षड्ताल

मोहन माली सहज समाना, कोई जाणे साधु सुजाना।टेक।
काया बाड़ी माँहीं माली, तहाँ रास बनाया।
सेवक सौं स्वामी खेलन को, आप दया कर आया।1।
बाहर-भीतर सर्व निरंतर, सब में रह्या समाई।
परकट गुप्त गुप्त पुनि परकट, अविगत लख्या न जाई।2।
ता माली की अकथ कहाणी, कहत कही नहिं आवे।
अगम अगोचर करत अनंदा, दादू यह यश गावे।3।

8 षड्ताल

मन मोहन मेरे मनहिं माँहिं, कीजे सेवा अति तहाँ।टेक।
तहँ पायो देव निरंजना, परकट भयो हरि इहिं तना।
नैनन हीं देखूँ अघाइ, प्रकटयो है हरि मेरे भाइ।1।
मोहि कर नैनन की सैन देइ, प्राण मूँस हरि मोर लेइ।
तब उपजे मोकों इहैं बाणि, निज निरखत हूँ सारंग प्राणि।2।
अंकुर आदैं प्रकटयो सोइ, बैन बाण ताथैं लागे मोहि।
शरणे दादू रह्यो जाइ, हरि चरण दिखावे आप आइ।3।

9 मदन ताल

मतिवाले पंचूं प्रेम पूर, निमष न इत-उत जाँहिं दूर।टेक।
हरि रस माते दया दीन, राम रमत ह्नै रहे लीन।
उलट अपूठे भये थीर, अमृत धारा पीवहिं नीर।1।
सहज समाधि तज विकार, अविनाशी रस पीवहिं सार।
थकित भये मिल महल माँहिं, मनसा वाचा आन नाँहिं।2।
मन मतवाला राम रंग, मिल आसन बैठे एक संग।
सुस्थिर दादू एक अंग, प्राणनाथ तहँ परमानन्द।3।

।इति राग बसन्त सम्पूर्ण।

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