शब्द का अंग : संत दादू दयाल जी

Shabd Ka Ang : Sant Dadu Dayal Ji

दादू नमो नमो निरंजनं, नमस्कार गुरु देवत:।
वन्दनं सर्व साधावा, प्रणामं पारंगत:।1।
दादू शब्दैं बंधया सब रहै, शब्दैं ही सब जाय।
शब्दैं ही सब ऊपजे, शब्दैं सबै समाय।2।
दादू शब्दैं ही सचु पाइये, शब्दैं ही संतोष।
शब्दैं ही सुस्थिर भया, शब्दैं भागा शोक।3।
दादू शब्दैं ही सूक्ष्म भया, शब्दैं सहज समान।
शब्दैं ही निर्गुण मिले, शब्दैं निर्मल ज्ञान।4।
दादू शब्दैं ही मुक्ता भया, शब्दैं समझे प्राण।
शब्दैं ही सूझे सबै, शब्दैं सुरझे जाण।5।
दादू ओंकार तैं ऊपजे, अरस-परस संयोग।
अंकुर बीज द्वै पाप-पुण्य, इहिं विधि योग रु भोग।6।
ओंकार तैं ऊपजे, विनशे बहुत विकार।
भाव भक्ति लै थिर रहै, दादू आत्मा सार।7।
पहली कीया आप तैं, उत्पत्तिा ओंकार।
ओंकार तैं ऊपजे, पंच तत्तव आकार।8।
पंच तत्तव तें घट भया, बहु विधि सब विस्तार।
दादू घट तें ऊपजे, मैं तैं वरण विचार।9।
एक शब्द सब कुछ किया, ऐसा समर्थ सोइ।
आगे-पीछे तो करे, जे बल हीणा होइ।10।

निरंजन निराकार है, ओंकार आकार।
दादू सब रँग रूप सब, सब विधि सब विस्तार।11।
आदि शब्द ओंकार है, बोले सब घट माँहिं।
दादू माया विस्तरी, परम तत्तव यहु नाँहिं।12।
दादू एक शब्द सौं ऊनवे, वर्षण लागे आय।
एक शब्द सौं बीखरे, आप आप को जाय।13।
दादू साधु शब्द सौं मिल रहै, मन राखे बिलमाइ।
साधु शब्द बिन क्यों रहै, तब ही बीखर जाइ।14।
दादू शब्द जरे सो मिल रहै, एक रस पूरा।
कायर भाजे जीव ले, पग मांडे शूरा।15।
शब्द विचारे करणी करे, राम नाम निज हिरदै धारे।
काया माँहीं शोधो सार, दादू कहै लहै सो पार।16।
दादू काहे कोटी खर्चिये, जे पैके सीझे काम।
शब्दों कारज सिधा भया, तो श्रम ना दीजे राम।17।
दादू राम हृदय रस भेलि कर, को साधु शब्द सुणाय।
जाणो कर दीपक दिया, भरम तिमर सब जाय।18।
दादू वाणी प्रेम की, कमल विगासे होइ।
साधु शब्द माता कहै, नित शब्दों मोह्या मोहि।99।
दादू हरि भुरकी वाणी साधु की, सो परियो मेरे शीश।
छूटे माया मोह तैं, प्रेम भजन जगदीश।20।

दादू भुरकी राम है, शब्द कहै गुरु ज्ञान।
तिन शब्दों मन मोहिया, उन मन लागा धयान।21।
शब्दों माँहीं राम धान, जे कोई लेइ विचार।
दादू इस संसार में, कबहुँ न आवे हार।22।
दादू राम रसायन भर धारया, साधान शब्द मंझार।
कोई पारिख पीवे प्रीति सौं, समझे शब्द विचार।23।
शब्द सरोवर सूभर भरया, हरि जल निर्मल नीर।
दादू पीवे प्रीति सौं, तिन के अखिल शरीर।24।
शब्दों माँहैं राम-रस, साधाौं भर दीया।
आदि-अन्त सब सन्त मिल, यों दादू पीया।25।
कारज को सीझै नहीं, मीठा बोले वीर।
दादू साँचे शब्द बिन, कटे न तन की पीर।26।
दादू गुण तज निर्गुण बोलिये, तेता बोल अबोल।
गण गह आपा बोलिये, तेता, कहिये बोल।27।
साँचा शब्द कबीर का, मीठा लागे मोहि।
दादू सुणतां परम सुख, कता आनँद होइ।28।

।इति शब्द का अंग सम्पूर्ण।

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