शब्द गुरू राम दास जी
Shabad Guru Ram Das Ji

1. दिनसु चड़ै फिरि आथवै

दिनसु चड़ै फिरि आथवै रैणि सबाई जाइ ॥
आव घटै नरु ना बुझै निति मूसा लाजु टुकाइ ॥
गुड़ु मिठा माइआ पसरिआ मनमुखु लगि माखी पचै पचाइ ॥१॥
भाई रे मै मीतु सखा प्रभु सोइ ॥
पुतु कलतु मोहु बिखु है अंति बेली कोइ न होइ ॥१॥ रहाउ ॥
गुरमति हरि लिव उबरे अलिपतु रहे सरणाइ ॥
ओनी चलणु सदा निहालिआ हरि खरचु लीआ पति पाइ ॥
गुरमुखि दरगह मंनीअहि हरि आपि लए गलि लाइ ॥२॥
गुरमुखा नो पंथु परगटा दरि ठाक न कोई पाइ ॥
हरि नामु सलाहनि नामु मनि नामि रहनि लिव लाइ ॥
अनहद धुनी दरि वजदे दरि सचै सोभा पाइ ॥३॥
जिनी गुरमुखि नामु सलाहिआ तिना सभ को कहै साबासि ॥
तिन की संगति देहि प्रभ मै जाचिक की अरदासि ॥
नानक भाग वडे तिना गुरमुखा जिन अंतरि नामु परगासि ॥੪॥੩੩॥੩੧॥੬॥੭੦॥੪੧॥

2. आवहु भैणे तुसी मिलहु पिआरीआ

आवहु भैणे तुसी मिलहु पिआरीआ ॥
जो मेरा प्रीतमु दसे तिस कै हउ वारीआ ॥
मिलि सतसंगति लधा हरि सजणु हउ सतिगुर विटहु घुमाईआ जीउ ॥१॥
जह जह देखा तह तह सुआमी ॥
तू घटि घटि रविआ अंतरजामी ॥
गुरि पूरै हरि नालि दिखालिआ हउ सतिगुर विटहु सद वारिआ जीउ ॥२॥
एको पवणु माटी सभ एका सभ एका जोति सबाईआ ॥
सभ इका जोति वरतै भिनि भिनि न रलई किसै दी रलाईआ ॥
गुर परसादी इकु नदरी आइआ हउ सतिगुर विटहु वताइआ जीउ ॥३॥
जनु नानकु बोलै अम्रित बाणी ॥
गुरसिखां कै मनि पिआरी भाणी ॥
उपदेसु करे गुरु सतिगुरु पूरा गुरु सतिगुरु परउपकारीआ जीउ ॥੪॥੭॥੯੬॥

3. माता प्रीति करे पुतु खाइ

माता प्रीति करे पुतु खाइ ॥
मीने प्रीति भई जलि नाइ ॥
सतिगुर प्रीति गुरसिख मुखि पाइ ॥१॥
ते हरि जन हरि मेलहु हम पिआरे ॥
जिन मिलिआ दुख जाहि हमारे ॥१॥ रहाउ ॥
जिउ मिलि बछरे गऊ प्रीति लगावै ॥
कामनि प्रीति जा पिरु घरि आवै ॥
हरि जन प्रीति जा हरि जसु गावै ॥२॥
सारिंग प्रीति बसै जल धारा ॥
नरपति प्रीति माइआ देखि पसारा ॥
हरि जन प्रीति जपै निरंकारा ॥३॥
नर प्राणी प्रीति माइआ धनु खाटे ॥
गुरसिख प्रीति गुरु मिलै गलाटे ॥
जन नानक प्रीति साध पग चाटे ॥੪॥੩॥੪੧॥੧੬੪॥

4. जिउ जननी सुतु जणि पालती

जिउ जननी सुतु जणि पालती राखै नदरि मझारि ॥
अंतरि बाहरि मुखि दे गिरासु खिनु खिनु पोचारि ॥
तिउ सतिगुरु गुरसिख राखता हरि प्रीति पिआरि ॥१॥
मेरे राम हम बारिक हरि प्रभ के है इआणे ॥
धंनु धंनु गुरू गुरु सतिगुरु पाधा जिनि हरि उपदेसु दे कीए सिआणे ॥१॥ रहाउ ॥
जैसी गगनि फिरंती ऊडती कपरे बागे वाली ॥
ओह राखै चीतु पीछै बिचि बचरे नित हिरदै सारि समाली ॥
तिउ सतिगुर सिख प्रीति हरि हरि की गुरु सिख रखै जीअ नाली ॥२॥
जैसे काती तीस बतीस है विचि राखै रसना मास रतु केरी ॥
कोई जाणहु मास काती कै किछु हाथि है सभ वसगति है हरि केरी ॥
तिउ संत जना की नर निंदा करहि हरि राखै पैज जन केरी ॥३॥
भाई मत कोई जाणहु किसी कै किछु हाथि है सभ करे कराइआ ॥
जरा मरा तापु सिरति सापु सभु हरि कै वसि है कोई लागि न सकै बिनु हरि का लाइआ ॥
ऐसा हरि नामु मनि चिति निति धिआवहु जन नानक जो अंती अउसरि लए छडाइआ ॥੪॥੭॥੧੩॥੫੧॥੧੬੮॥

5. कामि करोधि नगरु बहु भरिआ

कामि करोधि नगरु बहु भरिआ मिलि साधू खंडल खंडा हे ॥
पूरबि लिखत लिखे गुरु पाइआ मनि हरि लिव मंडल मंडा हे ॥१॥
करि साधू अंजुली पुंनु वडा हे ॥
करि डंडउत पुनु वडा हे ॥१॥ रहाउ ॥
साकत हरि रस सादु न जानिआ तिन अंतरि हउमै कंडा हे ॥
जिउ जिउ चलहि चुभै दुखु पावहि जमकालु सहहि सिरि डंडा हे ॥२॥
हरि जन हरि हरि नामि समाणे दुखु जनम मरण भव खंडा हे ॥
अबिनासी पुरखु पाइआ परमेसरु बहु सोभ खंड ब्रहमंडा हे ॥३॥
हम गरीब मसकीन प्रभ तेरे हरि राखु राखु वड वडा हे ॥
जन नानक नामु अधारु टेक है हरि नामे ही सुखु मंडा हे ॥੪॥੮॥੨੨॥੬੦॥੧੭੧॥

6. चोजी मेरे गोविंदा चोजी मेरे पिआरिआ

चोजी मेरे गोविंदा चोजी मेरे पिआरिआ हरि प्रभु मेरा चोजी जीउ ॥
हरि आपे कान्हु उपाइदा मेरे गोविदा हरि आपे गोपी खोजी जीउ ॥
हरि आपे सभ घट भोगदा मेरे गोविंदा आपे रसीआ भोगी जीउ ॥
हरि सुजाणु न भुलई मेरे गोविंदा आपे सतिगुरु जोगी जीउ ॥१॥
आपे जगतु उपाइदा मेरे गोविदा हरि आपि खेलै बहु रंगी जीउ ॥
इकना भोग भोगाइदा मेरे गोविंदा इकि नगन फिरहि नंग नंगी जीउ ॥
आपे जगतु उपाइदा मेरे गोविदा हरि दानु देवै सभ मंगी जीउ ॥
भगता नामु आधारु है मेरे गोविंदा हरि कथा मंगहि हरि चंगी जीउ ॥२॥
हरि आपे भगति कराइदा मेरे गोविंदा हरि भगता लोच मनि पूरी जीउ ॥
आपे जलि थलि वरतदा मेरे गोविदा रवि रहिआ नही दूरी जीउ ॥
हरि अंतरि बाहरि आपि है मेरे गोविदा हरि आपि रहिआ भरपूरी जीउ ॥
हरि आतम रामु पसारिआ मेरे गोविंदा हरि वेखै आपि हदूरी जीउ ॥३॥
हरि अंतरि वाजा पउणु है मेरे गोविंदा हरि आपि वजाए तिउ वाजै जीउ ॥
हरि अंतरि नामु निधानु है मेरे गोविंदा गुर सबदी हरि प्रभु गाजै जीउ ॥
आपे सरणि पवाइदा मेरे गोविंदा हरि भगत जना राखु लाजै जीउ ॥
वडभागी मिलु संगती मेरे गोविंदा जन नानक नाम सिधि काजै जीउ ॥੪॥੪॥੩੦॥੬੮॥੧੭੪॥

7. तूं करता सचिआरु मैडा सांई

तूं करता सचिआरु मैडा सांई ॥
जो तउ भावै सोई थीसी जो तूं देहि सोई हउ पाई ॥१॥ रहाउ ॥
सभ तेरी तूं सभनी धिआइआ ॥
जिस नो क्रिपा करहि तिनि नाम रतनु पाइआ ॥
गुरमुखि लाधा मनमुखि गवाइआ ॥
तुधु आपि विछोड़िआ आपि मिलाइआ ॥१॥
तूं दरीआउ सभ तुझ ही माहि ॥
तुझ बिनु दूजा कोई नाहि ॥
जीअ जंत सभि तेरा खेलु ॥
विजोगि मिलि विछुड़िआ संजोगी मेलु ॥२॥
जिस नो तू जाणाइहि सोई जनु जाणै ॥
हरि गुण सद ही आखि वखाणै ॥
जिनि हरि सेविआ तिनि सुखु पाइआ ॥
सहजे ही हरि नामि समाइआ ॥३॥
तू आपे करता तेरा कीआ सभु होइ ॥
तुधु बिनु दूजा अवरु न कोइ ॥
तू करि करि वेखहि जाणहि सोइ ॥
जन नानक गुरमुखि परगटु होइ ॥੪॥੧॥੫੩॥੩੬੫॥

8. कब को भालै घुंघरू ताला

कब को भालै घुंघरू ताला कब को बजावै रबाबु ॥
आवत जात बार खिनु लागै हउ तब लगु समारउ नामु ॥१॥
मेरै मनि ऐसी भगति बनि आई ॥
हउ हरि बिनु खिनु पलु रहि न सकउ जैसे जल बिनु मीनु मरि जाई ॥१॥ रहाउ ॥
कब कोऊ मेलै पंच सत गाइण कब को राग धुनि उठावै ॥
मेलत चुनत खिनु पलु चसा लागै तब लगु मेरा मनु राम गुन गावै ॥२॥
कब को नाचै पाव पसारै कब को हाथ पसारै ॥
हाथ पाव पसारत बिलमु तिलु लागै तब लगु मेरा मनु राम सम्हारै ॥३॥
कब कोऊ लोगन कउ पतीआवै लोकि पतीणै ना पति होइ ॥
जन नानक हरि हिरदै सद धिआवहु ता जै जै करे सभु कोइ ॥੪॥੧੦॥੬੨॥੩੬੮॥

9. अब हम चली ठाकुर पहि हारि

अब हम चली ठाकुर पहि हारि ॥
जब हम सरणि प्रभू की आई राखु प्रभू भावै मारि ॥१॥ रहाउ ॥
लोकन की चतुराई उपमा ते बैसंतरि जारि ॥
कोई भला कहउ भावै बुरा कहउ हम तनु दीओ है ढारि ॥१॥
जो आवत सरणि ठाकुर प्रभु तुमरी तिसु राखहु किरपा धारि ॥
जन नानक सरणि तुमारी हरि जीउ राखहु लाज मुरारि ॥੨॥੪॥੫੨੭॥

10. आपे आपि वरतदा पिआरा

आपे आपि वरतदा पिआरा आपे आपि अपाहु ॥
वणजारा जगु आपि है पिआरा आपे साचा साहु ॥
आपे वणजु वापारीआ पिआरा आपे सचु वेसाहु ॥१॥
जपि मन हरि हरि नामु सलाह ॥
गुर किरपा ते पाईऐ पिआरा अम्रितु अगम अथाह ॥ रहाउ ॥
आपे सुणि सभ वेखदा पिआरा मुखि बोले आपि मुहाहु ॥
आपे उझड़ि पाइदा पिआरा आपि विखाले राहु ॥
आपे ही सभु आपि है पिआरा आपे वेपरवाहु ॥२॥
आपे आपि उपाइदा पिआरा सिरि आपे धंधड़ै लाहु ॥
आपि कराए साखती पिआरा आपि मारे मरि जाहु ॥
आपे पतणु पातणी पिआरा आपे पारि लंघाहु ॥३॥
आपे सागरु बोहिथा पिआरा गुरु खेवटु आपि चलाहु ॥
आपे ही चड़ि लंघदा पिआरा करि चोज वेखै पातिसाहु ॥
आपे आपि दइआलु है पिआरा जन नानक बखसि मिलाहु ॥੪॥੧॥੬੦੪॥

11. आपे कंडा आपि तराजी

आपे कंडा आपि तराजी प्रभि आपे तोलि तोलाइआ ॥
आपे साहु आपे वणजारा आपे वणजु कराइआ ॥
आपे धरती साजीअनु पिआरै पिछै टंकु चड़ाइआ ॥१॥
मेरे मन हरि हरि धिआइ सुखु पाइआ ॥
हरि हरि नामु निधानु है पिआरा गुरि पूरै मीठा लाइआ ॥ रहाउ ॥
आपे धरती आपि जलु पिआरा आपे करे कराइआ ॥
आपे हुकमि वरतदा पिआरा जलु माटी बंधि रखाइआ ॥
आपे ही भउ पाइदा पिआरा बंनि बकरी सीहु हढाइआ ॥੨॥
आपे कासट आपि हरि पिआरा विचि कासट अगनि रखाइआ ॥
आपे ही आपि वरतदा पिआरा भै अगनि न सकै जलाइआ ॥
आपे मारि जीवाइदा पिआरा साह लैदे सभि लवाइआ ॥३॥
आपे ताणु दीबाणु है पिआरा आपे कारै लाइआ ॥
जिउ आपि चलाए तिउ चलीऐ पिआरे जिउ हरि प्रभ मेरे भाइआ ॥
आपे जंती जंतु है पिआरा जन नानक वजहि वजाइआ ॥੪॥੪॥੬੦੫-੬੦੬॥

12. आपे स्रिसटि उपाइदा पिआरा

आपे स्रिसटि उपाइदा पिआरा करि सूरजु चंदु चानाणु ॥
आपि निताणिआ ताणु है पिआरा आपि निमाणिआ माणु ॥
आपि दइआ करि रखदा पिआरा आपे सुघड़ु सुजाणु ॥१॥
मेरे मन जपि राम नामु नीसाणु ॥
सतसंगति मिलि धिआइ तू हरि हरि बहुड़ि न आवण जाणु ॥ रहाउ ॥
आपे ही गुण वरतदा पिआरा आपे ही परवाणु ॥
आपे बखस कराइदा पिआरा आपे सचु नीसाणु ॥
आपे हुकमि वरतदा पिआरा आपे ही फुरमाणु ॥२॥
आपे भगति भंडार है पिआरा आपे देवै दाणु ॥
आपे सेव कराइदा पिआरा आपि दिवावै माणु ॥
आपे ताड़ी लाइदा पिआरा आपे गुणी निधानु ॥३॥
आपे वडा आपि है पिआरा आपे ही परधाणु ॥
आपे कीमति पाइदा पिआरा आपे तुलु परवाणु ॥
आपे अतुलु तुलाइदा पिआरा जन नानक सद कुरबाणु ॥੪॥੫॥੬੦੬॥

13. तेरे कवन कवन गुण कहि कहि गावा

तेरे कवन कवन गुण कहि कहि गावा तू साहिब गुणी निधाना ॥
तुमरी महिमा बरनि न साकउ तूं ठाकुर ऊच भगवाना ॥१॥
मै हरि हरि नामु धर सोई ॥
जिउ भावै तिउ राखु मेरे साहिब मै तुझ बिनु अवरु न कोई ॥१॥ रहाउ ॥
मै ताणु दीबाणु तूहै मेरे सुआमी मै तुधु आगै अरदासि ॥
मै होरु थाउ नाही जिसु पहि करउ बेनंती मेरा दुखु सुखु तुझ ही पासि ॥२॥
विचे धरती विचे पाणी विचि कासट अगनि धरीजै ॥
बकरी सिंघु इकतै थाइ राखे मन हरि जपि भ्रमु भउ दूरि कीजै ॥३॥
हरि की वडिआई देखहु संतहु हरि निमाणिआ माणु देवाए ॥
जिउ धरती चरण तले ते ऊपरि आवै तिउ नानक साध जना जगतु आणि सभु पैरी पाए ॥੪॥੧॥੧੨॥੭੩੫॥

14. कोई आणि मिलावै मेरा प्रीतमु पिआरा

कोई आणि मिलावै मेरा प्रीतमु पिआरा हउ तिसु पहि आपु वेचाई ॥१॥
दरसनु हरि देखण कै ताई ॥
क्रिपा करहि ता सतिगुरु मेलहि हरि हरि नामु धिआई ॥१॥ रहाउ ॥
जे सुखु देहि त तुझहि अराधी दुखि भी तुझै धिआई ॥२॥
जे भुख देहि त इत ही राजा दुख विचि सूख मनाई ॥३॥
तनु मनु काटि काटि सभु अरपी विचि अगनी आपु जलाई ॥४॥
पखा फेरी पाणी ढोवा जो देवहि सो खाई ॥५॥
नानकु गरीबु ढहि पइआ दुआरै हरि मेलि लैहु वडिआई ॥६॥
अखी काढि धरी चरणा तलि सभ धरती फिरि मत पाई ॥७॥
जे पासि बहालहि ता तुझहि अराधी जे मारि कढहि भी धिआई ॥८॥
जे लोकु सलाहे ता तेरी उपमा जे निंदै त छोडि न जाई ॥९॥
जे तुधु वलि रहै ता कोई किहु आखउ तुधु विसरिऐ मरि जाई ॥१०॥
वारि वारि जाई गुर ऊपरि पै पैरी संत मनाई ॥११॥
नानकु विचारा भइआ दिवाना हरि तउ दरसन कै ताई ॥१२॥
झखड़ु झागी मीहु वरसै भी गुरु देखण जाई ॥१३॥
समुंदु सागरु होवै बहु खारा गुरसिखु लंघि गुर पहि जाई ॥१४॥
जिउ प्राणी जल बिनु है मरता तिउ सिखु गुर बिनु मरि जाई ॥੧੫॥
जिउ धरती सोभ करे जलु बरसै तिउ सिखु गुर मिलि बिगसाई ॥१६॥
सेवक का होइ सेवकु वरता करि करि बिनउ बुलाई ॥१७॥
नानक की बेनंती हरि पहि गुर मिलि गुर सुखु पाई ॥१८॥
तू आपे गुरु चेला है आपे गुर विचु दे तुझहि धिआई ॥१९॥
जो तुधु सेवहि सो तूहै होवहि तुधु सेवक पैज रखाई ॥२०॥
भंडार भरे भगती हरि तेरे जिसु भावै तिसु देवाई ॥२१॥
जिसु तूं देहि सोई जनु पाए होर निहफल सभ चतुराई ॥२२॥
सिमरि सिमरि सिमरि गुरु अपुना सोइआ मनु जागाई ॥२३॥
इकु दानु मंगै नानकु वेचारा हरि दासनि दासु कराई ॥२४॥
जे गुरु झिड़के त मीठा लागै जे बखसे त गुर वडिआई ॥२५॥
गुरमुखि बोलहि सो थाइ पाए मनमुखि किछु थाइ न पाई ॥२६॥
पाला ककरु वरफ वरसै गुरसिखु गुर देखण जाई ॥२७॥
सभु दिनसु रैणि देखउ गुरु अपुना विचि अखी गुर पैर धराई ॥२८॥
अनेक उपाव करी गुर कारणि गुर भावै सो थाइ पाई ॥२९॥
रैणि दिनसु गुर चरण अराधी दइआ करहु मेरे साई ॥३०॥
नानक का जीउ पिंडु गुरू है गुर मिलि त्रिपति अघाई ॥३१॥
नानक का प्रभु पूरि रहिओ है जत कत तत गोसाई ॥੩੨॥੧॥੭੫੭॥

15. उदम मति प्रभ अंतरजामी

उदम मति प्रभ अंतरजामी जिउ प्रेरे तिउ करना ॥
जिउ नटूआ तंतु वजाए तंती तिउ वाजहि जंत जना ॥੧॥
जपि मन राम नामु रसना ॥
मसतकि लिखत लिखे गुरु पाइआ हरि हिरदै हरि बसना ॥१॥ रहाउ ॥
माइआ गिरसति भ्रमतु है प्रानी रखि लेवहु जनु अपना ॥
जिउ प्रहिलादु हरणाखसि ग्रसिओ हरि राखिओ हरि सरना ॥२॥
कवन कवन की गति मिति कहीऐ हरि कीए पतित पवंना ॥
ओहु ढोवै ढोर हाथि चमु चमरे हरि उधरिओ परिओ सरना ॥३॥
प्रभ दीन दइआल भगत भव तारन हम पापी राखु पपना ॥
हरि दासन दास दास हम करीअहु जन नानक दास दासंना ॥੪॥੧॥੭੯੮॥

16. अंतरि पिआस उठी प्रभ केरी

अंतरि पिआस उठी प्रभ केरी सुणि गुर बचन मनि तीर लगईआ ॥
मन की बिरथा मन ही जाणै अवरु कि जाणै को पीर परईआ ॥१॥
राम गुरि मोहनि मोहि मनु लईआ ॥
हउ आकल बिकल भई गुर देखे हउ लोट पोट होइ पईआ ॥१॥ रहाउ ॥
हउ निरखत फिरउ सभि देस दिसंतर मै प्रभ देखन को बहुतु मनि चईआ ॥
मनु तनु काटि देउ गुर आगै जिनि हरि प्रभ मारगु पंथु दिखईआ ॥२॥
कोई आणि सदेसा देइ प्रभ केरा रिद अंतरि मनि तनि मीठ लगईआ ॥
मसतकु काटि देउ चरणा तलि जो हरि प्रभु मेले मेलि मिलईआ ॥३॥
चलु चलु सखी हम प्रभु परबोधह गुण कामण करि हरि प्रभु लहीआ ॥
भगति वछलु उआ को नामु कहीअतु है सरणि प्रभू तिसु पाछै पईआ ॥४॥
खिमा सीगार करे प्रभ खुसीआ मनि दीपक गुर गिआनु बलईआ ॥
रसि रसि भोग करे प्रभु मेरा हम तिसु आगै जीउ कटि कटि पईआ ॥५॥
हरि हरि हारु कंठि है बनिआ मनु मोतीचूरु वड गहन गहनईआ ॥
हरि हरि सरधा सेज विछाई प्रभु छोडि न सकै बहुतु मनि भईआ ॥६॥
कहै प्रभु अवरु अवरु किछु कीजै सभु बादि सीगारु फोकट फोकटईआ ॥
कीओ सीगारु मिलण कै ताई प्रभु लीओ सुहागनि थूक मुखि पईआ ॥७॥
हम चेरी तू अगम गुसाई किआ हम करह तेरै वसि पईआ ॥
दइआ दीन करहु रखि लेवहु नानक हरि गुर सरणि समईआ ॥੮॥੫॥੮॥੮੩੫॥

17. हरि दरसन कउ मेरा मनु बहु तपतै

हरि दरसन कउ मेरा मनु बहु तपतै जिउ त्रिखावंतु बिनु नीर ॥१॥
मेरै मनि प्रेमु लगो हरि तीर ॥
हमरी बेदन हरि प्रभु जानै मेरे मन अंतर की पीर ॥१॥ रहाउ ॥
मेरे हरि प्रीतम की कोई बात सुनावै सो भाई सो मेरा बीर ॥२॥
मिलु मिलु सखी गुण कहु मेरे प्रभ के ले सतिगुर की मति धीर ॥३॥
जन नानक की हरि आस पुजावहु हरि दरसनि सांति सरीर ॥੪॥੬॥छका १॥੮੬੧॥

18. जिउ पसरी सूरज किरणि जोति

जिउ पसरी सूरज किरणि जोति ॥
तिउ घटि घटि रमईआ ओति पोति ॥१॥
एको हरि रविआ स्रब थाइ ॥
गुर सबदी मिलीऐ मेरी माइ ॥१॥ रहाउ ॥
घटि घटि अंतरि एको हरि सोइ ॥
गुरि मिलिऐ इकु प्रगटु होइ ॥२॥
एको एकु रहिआ भरपूरि ॥
साकत नर लोभी जाणहि दूरि ॥३॥
एको एकु वरतै हरि लोइ ॥
नानक हरि एको करे सु होइ ॥੪॥੧॥੧੧੭੭॥

19. रैणि दिनसु दुइ सदे पए

रैणि दिनसु दुइ सदे पए ॥
मन हरि सिमरहु अंति सदा रखि लए ॥१॥
हरि हरि चेति सदा मन मेरे ॥
सभु आलसु दूख भंजि प्रभु पाइआ गुरमति गावहु गुण प्रभ केरे ॥१॥ रहाउ ॥
मनमुख फिरि फिरि हउमै मुए ॥
कालि दैति संघारे जम पुरि गए ॥२॥
गुरमुखि हरि हरि हरि लिव लागे ॥
जनम मरण दोऊ दुख भागे ॥३॥
भगत जना कउ हरि किरपा धारी ॥
गुरु नानकु तुठा मिलिआ बनवारी ॥੪॥੨॥੧੧੭੭॥

20. मेरा इकु खिनु मनूआ रहि न सकै

मेरा इकु खिनु मनूआ रहि न सकै नित हरि हरि नाम रसि गीधे ॥
जिउ बारिकु रसकि परिओ थनि माता थनि काढे बिलल बिलीधे ॥१॥
गोबिंद जीउ मेरे मन तन नाम हरि बीधे ॥
वडै भागि गुरु सतिगुरु पाइआ विचि काइआ नगर हरि सीधे ॥१॥ रहाउ ॥
जन के सास सास है जेते हरि बिरहि प्रभू हरि बीधे ॥
जिउ जल कमल प्रीति अति भारी बिनु जल देखे सुकलीधे ॥२॥
जन जपिओ नामु निरंजनु नरहरि उपदेसि गुरू हरि प्रीधे ॥
जनम जनम की हउमै मलु निकसी हरि अम्रिति हरि जलि नीधे ॥३॥
हमरे करम न बिचरहु ठाकुर तुम्ह पैज रखहु अपनीधे ॥
हरि भावै सुणि बिनउ बेनती जन नानक सरणि पवीधे ॥੪॥੩॥੫॥੧੧੭੮॥

21. काहे पूत झगरत हउ संगि बाप

काहे पूत झगरत हउ संगि बाप ॥
जिन के जणे बडीरे तुम हउ तिन सिउ झगरत पाप ॥१॥ रहाउ ॥
जिसु धन का तुम गरबु करत हउ सो धनु किसहि न आप ॥
खिन महि छोडि जाइ बिखिआ रसु तउ लागै पछुताप ॥१॥
जो तुमरे प्रभ होते सुआमी हरि तिन के जापहु जाप ॥
उपदेसु करत नानक जन तुम कउ जउ सुनहु तउ जाइ संताप ॥੨॥੧॥੭॥੧੨੦੦॥

22. जपि मन राम नामु सुखु पावैगो

जपि मन राम नामु सुखु पावैगो ॥
जिउ जिउ जपै तिवै सुखु पावै सतिगुरु सेवि समावैगो ॥१॥ रहाउ ॥
भगत जनां की खिनु खिनु लोचा नामु जपत सुखु पावैगो ॥
अन रस साद गए सभ नीकरि बिनु नावै किछु न सुखावैगो ॥१॥
गुरमति हरि हरि मीठा लागा गुरु मीठे बचन कढावैगो ॥
सतिगुर बाणी पुरखु पुरखोतम बाणी सिउ चितु लावैगो ॥२॥
गुरबाणी सुनत मेरा मनु द्रविआ मनु भीना निज घरि आवैगो ॥
तह अनहत धुनी बाजहि नित बाजे नीझर धार चुआवैगो ॥३॥
राम नामु इकु तिल तिल गावै मनु गुरमति नामि समावैगो ॥
नामु सुणै नामो मनि भावै नामे ही त्रिपतावैगो ॥४॥
कनिक कनिक पहिरे बहु कंगना कापरु भांति बनावैगो ॥
नाम बिना सभि फीक फिकाने जनमि मरै फिरि आवैगो ॥५॥
माइआ पटल पटल है भारी घरु घूमनि घेरि घुलावैगो ॥
पाप बिकार मनूर सभि भारे बिखु दुतरु तरिओ न जावैगो ॥६॥
भउ बैरागु भइआ है बोहिथु गुरु खेवटु सबदि तरावैगो ॥
राम नामु हरि भेटीऐ हरि रामै नामि समावैगो ॥७॥
अगिआनि लाइ सवालिआ गुर गिआनै लाइ जगावैगो ॥
नानक भाणै आपणै जिउ भावै तिवै चलावैगो ॥੮॥੧॥੧੩੦੮॥

23. प्रभ कीजै क्रिपा निधान

प्रभ कीजै क्रिपा निधान हम हरि गुन गावहगे ॥
हउ तुमरी करउ नित आस प्रभ मोहि कब गलि लावहिगे ॥१॥ रहाउ ॥
हम बारिक मुगध इआन पिता समझावहिगे ॥
सुतु खिनु खिनु भूलि बिगारि जगत पित भावहिगे ॥१॥
जो हरि सुआमी तुम देहु सोई हम पावहगे ॥
मोहि दूजी नाही ठउर जिसु पहि हम जावहगे ॥२॥
जो हरि भावहि भगत तिना हरि भावहिगे ॥
जोती जोति मिलाइ जोति रलि जावहगे ॥३॥
हरि आपे होइ क्रिपालु आपि लिव लावहिगे ॥
जनु नानकु सरनि दुआरि हरि लाज रखावहिगे ॥४॥६॥ छका १ ॥੧੩੨੧॥