शब्द गुरू नानक देव जी
Shabad Guru Nanak Dev Ji in Hindi

1. हुकमी होवनि आकार हुकमु न कहिआ जाई

हुकमी होवनि आकार हुकमु न कहिआ जाई ॥
हुकमी होवनि जीअ हुकमि मिलै वडिआई ॥
हुकमी उतमु नीचु हुकमि लिखि दुख सुख पाईअहि ॥
इकना हुकमी बखसीस इकि हुकमी सदा भवाईअहि ॥
हुकमै अंदरि सभु को बाहरि हुकम न कोइ ॥
नानक हुकमै जे बुझै त हउमै कहै न कोइ ॥२॥(1)॥

2. भरीऐ हथु पैरु तनु देह

भरीऐ हथु पैरु तनु देह ॥
पाणी धोतै उतरसु खेह ॥
मूत पलीती कपड़ु होइ ॥
दे साबूणु लईऐ ओहु धोइ ॥
भरीऐ मति पापा कै संगि ॥
ओहु धोपै नावै कै रंगि ॥
पुंनी पापी आखणु नाहि ॥
करि करि करणा लिखि लै जाहु ॥
आपे बीजि आपे ही खाहु ॥
नानक हुकमी आवहु जाहु ॥२०॥(4)॥

3. मुंदा संतोखु सरमु पतु झोली धिआन की करहि बिभूति

मुंदा संतोखु सरमु पतु झोली धिआन की करहि बिभूति ॥
खिंथा कालु कुआरी काइआ जुगति डंडा परतीति ॥
आई पंथी सगल जमाती मनि जीतै जगु जीतु ॥
आदेसु तिसै आदेसु ॥
आदि अनीलु अनादि अनाहति जुगु जुगु एको वेसु ॥२८॥(6)॥

4. गगन मै थालु रवि चंदु दीपक बने तारिका मंडल जनक मोती

गगन मै थालु रवि चंदु दीपक बने तारिका मंडल जनक मोती ॥
धूपु मलआनलो पवणु चवरो करे सगल बनराइ फूलंत जोती ॥१॥
कैसी आरती होइ ॥
भव खंडना तेरी आरती ॥
अनहता सबद वाजंत भेरी ॥१॥ रहाउ ॥
सहस तव नैन नन नैन हहि तोहि कउ सहस मूरति नना एक तोही ॥
सहस पद बिमल नन एक पद गंध बिनु सहस तव गंध इव चलत मोही ॥२॥
सभ महि जोति जोति है सोइ ॥
तिस दै चानणि सभ महि चानणु होइ ॥
गुर साखी जोति परगटु होइ ॥
जो तिसु भावै सु आरती होइ ॥३॥
हरि चरण कवल मकरंद लोभित मनो अनदिनो मोहि आही पिआसा ॥
क्रिपा जलु देहि नानक सारिंग कउ होइ जा ते तेरै नाइ वासा ॥४॥३॥(13)॥

5. मोती त मंदर ऊसरहि रतनी त होहि जड़ाउ

मोती त मंदर ऊसरहि रतनी त होहि जड़ाउ ॥
कसतूरि कुंगू अगरि चंदनि लीपि आवै चाउ ॥
मतु देखि भूला वीसरै तेरा चिति न आवै नाउ ॥१॥
हरि बिनु जीउ जलि बलि जाउ ॥
मै आपणा गुरु पूछि देखिआ अवरु नाही थाउ ॥१॥ रहाउ ॥
धरती त हीरे लाल जड़ती पलघि लाल जड़ाउ ॥
मोहणी मुखि मणी सोहै करे रंगि पसाउ ॥
मतु देखि भूला वीसरै तेरा चिति न आवै नाउ ॥२॥
सिधु होवा सिधि लाई रिधि आखा आउ ॥
गुपतु परगटु होइ बैसा लोकु राखै भाउ ॥
मतु देखि भूला वीसरै तेरा चिति न आवै नाउ ॥३॥
सुलतानु होवा मेलि लसकर तखति राखा पाउ ॥
हुकमु हासलु करी बैठा नानका सभ वाउ ॥
मतु देखि भूला वीसरै तेरा चिति न आवै नाउ ॥४॥१॥(14)॥

6. कोटि कोटी मेरी आरजा पवणु पीअणु अपिआउ

कोटि कोटी मेरी आरजा पवणु पीअणु अपिआउ ॥
चंदु सूरजु दुइ गुफै न देखा सुपनै सउण न थाउ ॥
भी तेरी कीमति ना पवै हउ केवडु आखा नाउ ॥१॥
साचा निरंकारु निज थाइ ॥
सुणि सुणि आखणु आखणा जे भावै करे तमाइ ॥१॥ रहाउ ॥
कुसा कटीआ वार वार पीसणि पीसा पाइ ॥
अगी सेती जालीआ भसम सेती रलि जाउ ॥
भी तेरी कीमति ना पवै हउ केवडु आखा नाउ ॥२॥
पंखी होइ कै जे भवा सै असमानी जाउ ॥
नदरी किसै न आवऊ ना किछु पीआ न खाउ ॥
भी तेरी कीमति ना पवै हउ केवडु आखा नाउ ॥३॥
नानक कागद लख मणा पड़ि पड़ि कीचै भाउ ॥
मसू तोटि न आवई लेखणि पउणु चलाउ ॥
भी तेरी कीमति ना पवै हउ केवडु आखा नाउ ॥४॥२॥(14)॥

7. लेखै बोलणु बोलणा लेखै खाणा खाउ

लेखै बोलणु बोलणा लेखै खाणा खाउ ॥
लेखै वाट चलाईआ लेखै सुणि वेखाउ ॥
लेखै साह लवाईअहि पड़े कि पुछण जाउ ॥१॥
बाबा माइआ रचना धोहु ॥
अंधै नामु विसारिआ ना तिसु एह न ओहु ॥१॥ रहाउ ॥
जीवण मरणा जाइ कै एथै खाजै कालि ॥
जिथै बहि समझाईऐ तिथै कोइ न चलिओ नालि ॥
रोवण वाले जेतड़े सभि बंनहि पंड परालि ॥२॥
सभु को आखै बहुतु बहुतु घटि न आखै कोइ ॥
कीमति किनै न पाईआ कहणि न वडा होइ ॥
साचा साहबु एकु तू होरि जीआ केते लोअ ॥३॥
नीचा अंदरि नीच जाति नीची हू अति नीचु ॥
नानकु तिन कै संगि साथि वडिआ सिउ किआ रीस ॥
जिथै नीच समालीअनि तिथै नदरि तेरी बखसीस ॥४॥३॥(15)॥

8. लबु कुता कूड़ु चूहड़ा ठगि खाधा मुरदारु

लबु कुता कूड़ु चूहड़ा ठगि खाधा मुरदारु ॥
पर निंदा पर मलु मुख सुधी अगनि क्रोधु चंडालु ॥
रस कस आपु सलाहणा ए करम मेरे करतार ॥१॥
बाबा बोलीऐ पति होइ ॥
ऊतम से दरि ऊतम कहीअहि नीच करम बहि रोइ ॥१॥ रहाउ ॥
रसु सुइना रसु रुपा कामणि रसु परमल की वासु ॥
रसु घोड़े रसु सेजा मंदर रसु मीठा रसु मासु ॥
एते रस सरीर के कै घटि नाम निवासु ॥२॥
जितु बोलिऐ पति पाईऐ सो बोलिआ परवाणु ॥
फिका बोलि विगुचणा सुणि मूरख मन अजाण ॥
जो तिसु भावहि से भले होरि कि कहण वखाण ॥३॥
तिन मति तिन पति तिन धनु पलै जिन हिरदै रहिआ समाइ ॥
तिन का किआ सालाहणा अवर सुआलिउ काइ ॥
नानक नदरी बाहरे राचहि दानि न नाइ ॥४॥४॥(15)॥

9. अमलु गलोला कूड़ का दिता देवणहारि

अमलु गलोला कूड़ का दिता देवणहारि ॥
मती मरणु विसारिआ खुसी कीती दिन चारि ॥
सचु मिलिआ तिन सोफीआ राखण कउ दरवारु ॥१॥
नानक साचे कउ सचु जाणु ॥
जितु सेविऐ सुखु पाईऐ तेरी दरगह चलै माणु ॥१॥ रहाउ ॥
सचु सरा गुड़ बाहरा जिसु विचि सचा नाउ ॥
सुणहि वखाणहि जेतड़े हउ तिन बलिहारै जाउ ॥
ता मनु खीवा जाणीऐ जा महली पाए थाउ ॥२॥
नाउ नीरु चंगिआईआ सतु परमलु तनि वासु ॥
ता मुखु होवै उजला लख दाती इक दाति ॥
दूख तिसै पहि आखीअहि सूख जिसै ही पासि ॥३॥
सो किउ मनहु विसारीऐ जा के जीअ पराण ॥
तिसु विणु सभु अपवित्रु है जेता पैनणु खाणु ॥
होरि गलां सभि कूड़ीआ तुधु भावै परवाणु ॥४॥५॥(15)॥

10. जालि मोहु घसि मसु करि मति कागदु करि सारु

जालि मोहु घसि मसु करि मति कागदु करि सारु ॥
भाउ कलम करि चितु लेखारी गुर पुछि लिखु बीचारु ॥
लिखु नामु सालाह लिखु लिखु अंतु न पारावारु ॥१॥
बाबा एहु लेखा लिखि जाणु ॥
जिथै लेखा मंगीऐ तिथै होइ सचा नीसाणु ॥१॥ रहाउ ॥
जिथै मिलहि वडिआईआ सद खुसीआ सद चाउ ॥
तिन मुखि टिके निकलहि जिन मनि सचा नाउ ॥
करमि मिलै ता पाईऐ नाही गली वाउ दुआउ ॥२॥
इकि आवहि इकि जाहि उठि रखीअहि नाव सलार ॥
इकि उपाए मंगते इकना वडे दरवार ॥
अगै गइआ जाणीऐ विणु नावै वेकार ॥३॥
भै तेरै डरु अगला खपि खपि छिजै देह ॥
नाव जिना सुलतान खान होदे डिठे खेह ॥
नानक उठी चलिआ सभि कूड़े तुटे नेह ॥४॥६॥(16)॥

11. सभि रस मिठे मंनिऐ सुणिऐ सालोणे

सभि रस मिठे मंनिऐ सुणिऐ सालोणे ॥
खट तुरसी मुखि बोलणा मारण नाद कीए ॥
छतीह अम्रित भाउ एकु जा कउ नदरि करेइ ॥१॥
बाबा होरु खाणा खुसी खुआरु ॥
जितु खाधै तनु पीड़ीऐ मन महि चलहि विकार ॥१॥ रहाउ ॥
रता पैनणु मनु रता सुपेदी सतु दानु ॥
नीली सिआही कदा करणी पहिरणु पैर धिआनु ॥
कमरबंदु संतोख का धनु जोबनु तेरा नामु ॥२॥
बाबा होरु पैनणु खुसी खुआरु ॥
जितु पैधै तनु पीड़ीऐ मन महि चलहि विकार ॥१॥ रहाउ ॥
घोड़े पाखर सुइने साखति बूझणु तेरी वाट ॥
तरकस तीर कमाण सांग तेगबंद गुण धातु ॥
वाजा नेजा पति सिउ परगटु करमु तेरा मेरी जाति ॥३॥
बाबा होरु चड़णा खुसी खुआरु ॥
जितु चड़िऐ तनु पीड़ीऐ मन महि चलहि विकार ॥१॥ रहाउ ॥
घर मंदर खुसी नाम की नदरि तेरी परवारु ॥
हुकमु सोई तुधु भावसी होरु आखणु बहुतु अपारु ॥
नानक सचा पातिसाहु पूछि न करे बीचारु ॥४॥
बाबा होरु सउणा खुसी खुआरु ॥
जितु सुतै तनु पीड़ीऐ मन महि चलहि विकार ॥१॥ रहाउ ॥४॥७॥(16)॥

12. कुंगू की कांइआ रतना की ललिता

कुंगू की कांइआ रतना की ललिता अगरि वासु तनि सासु ॥
अठसठि तीरथ का मुखि टिका तितु घटि मति विगासु ॥
ओतु मती सालाहणा सचु नामु गुणतासु ॥१॥
बाबा होर मति होर होर ॥
जे सउ वेर कमाईऐ कूड़ै कूड़ा जोरु ॥१॥ रहाउ ॥
पूज लगै पीरु आखीऐ सभु मिलै संसारु ॥
नाउ सदाए आपणा होवै सिधु सुमारु ॥
जा पति लेखै ना पवै सभा पूज खुआरु ॥२॥
जिन कउ सतिगुरि थापिआ तिन मेटि न सकै कोइ ॥
ओना अंदरि नामु निधानु है नामो परगटु होइ ॥
नाउ पूजीऐ नाउ मंनीऐ अखंडु सदा सचु सोइ ॥३॥
खेहू खेह रलाईऐ ता जीउ केहा होइ ॥
जलीआ सभि सिआणपा उठी चलिआ रोइ ॥
नानक नामि विसारिऐ दरि गइआ किआ होइ ॥४॥८॥(17)॥

13. गुणवंती गुण वीथरै अउगुणवंती झूरि

गुणवंती गुण वीथरै अउगुणवंती झूरि ॥
जे लोड़हि वरु कामणी नह मिलीऐ पिर कूरि ॥
ना बेड़ी ना तुलहड़ा ना पाईऐ पिरु दूरि ॥१॥
मेरे ठाकुर पूरै तखति अडोलु ॥
गुरमुखि पूरा जे करे पाईऐ साचु अतोलु ॥१॥ रहाउ ॥
प्रभु हरिमंदरु सोहणा तिसु महि माणक लाल ॥
मोती हीरा निरमला कंचन कोट रीसाल ॥
बिनु पउड़ी गड़ि किउ चड़उ गुर हरि धिआन निहाल ॥२॥
गुरु पउड़ी बेड़ी गुरू गुरु तुलहा हरि नाउ ॥
गुरु सरु सागरु बोहिथो गुरु तीरथु दरीआउ ॥
जे तिसु भावै ऊजली सत सरि नावण जाउ ॥३॥
पूरो पूरो आखीऐ पूरै तखति निवास ॥
पूरै थानि सुहावणै पूरै आस निरास ॥
नानक पूरा जे मिलै किउ घाटै गुण तास ॥४॥९॥(17)॥

14. आवहु भैणे गलि मिलह अंकि सहेलड़ीआह

आवहु भैणे गलि मिलह अंकि सहेलड़ीआह ॥
मिलि कै करह कहाणीआ सम्रथ कंत कीआह ॥
साचे साहिब सभि गुण अउगण सभि असाह ॥१॥
करता सभु को तेरै जोरि ॥
एकु सबदु बीचारीऐ जा तू ता किआ होरि ॥१॥ रहाउ ॥
जाइ पुछहु सोहागणी तुसी राविआ किनी गुणीं ॥
सहजि संतोखि सीगारीआ मिठा बोलणी ॥
पिरु रीसालू ता मिलै जा गुर का सबदु सुणी ॥२॥
केतीआ तेरीआ कुदरती केवड तेरी दाति ॥
केते तेरे जीअ जंत सिफति करहि दिनु राति ॥
केते तेरे रूप रंग केते जाति अजाति ॥३॥
सचु मिलै सचु ऊपजै सच महि साचि समाइ ॥
सुरति होवै पति ऊगवै गुरबचनी भउ खाइ ॥
नानक सचा पातिसाहु आपे लए मिलाइ ॥४॥१०॥(17)॥

15. भली सरी जि उबरी हउमै मुई घराहु

भली सरी जि उबरी हउमै मुई घराहु ॥
दूत लगे फिरि चाकरी सतिगुर का वेसाहु ॥
कलप तिआगी बादि है सचा वेपरवाहु ॥१॥
मन रे सचु मिलै भउ जाइ ॥
भै बिनु निरभउ किउ थीऐ गुरमुखि सबदि समाइ ॥१॥ रहाउ ॥
केता आखणु आखीऐ आखणि तोटि न होइ ॥
मंगण वाले केतड़े दाता एको सोइ ॥
जिस के जीअ पराण है मनि वसिऐ सुखु होइ ॥२॥
जगु सुपना बाजी बनी खिन महि खेलु खेलाइ ॥
संजोगी मिलि एकसे विजोगी उठि जाइ ॥
जो तिसु भाणा सो थीऐ अवरु न करणा जाइ ॥३॥
गुरमुखि वसतु वेसाहीऐ सचु वखरु सचु रासि ॥
जिनी सचु वणंजिआ गुर पूरे साबासि ॥
नानक वसतु पछाणसी सचु सउदा जिसु पासि ॥४॥११॥(18)॥

16. धातु मिलै फुनि धातु कउ सिफती सिफति समाइ

धातु मिलै फुनि धातु कउ सिफती सिफति समाइ ॥
लालु गुलालु गहबरा सचा रंगु चड़ाउ ॥
सचु मिलै संतोखीआ हरि जपि एकै भाइ ॥१॥
भाई रे संत जना की रेणु ॥
संत सभा गुरु पाईऐ मुकति पदारथु धेणु ॥१॥ रहाउ ॥
ऊचउ थानु सुहावणा ऊपरि महलु मुरारि ॥
सचु करणी दे पाईऐ दरु घरु महलु पिआरि ॥
गुरमुखि मनु समझाईऐ आतम रामु बीचारि ॥२॥
त्रिबिधि करम कमाईअहि आस अंदेसा होइ ॥
किउ गुर बिनु त्रिकुटी छुटसी सहजि मिलिऐ सुखु होइ ॥
निज घरि महलु पछाणीऐ नदरि करे मलु धोइ ॥३॥
बिनु गुर मैलु न उतरै बिनु हरि किउ घर वासु ॥
एको सबदु वीचारीऐ अवर तिआगै आस ॥
नानक देखि दिखाईऐ हउ सद बलिहारै जासु ॥४॥१२॥(18)॥

17. ध्रिगु जीवणु दोहागणी मुठी दूजै भाइ

ध्रिगु जीवणु दोहागणी मुठी दूजै भाइ ॥
कलर केरी कंध जिउ अहिनिसि किरि ढहि पाइ ॥
बिनु सबदै सुखु ना थीऐ पिर बिनु दूखु न जाइ ॥१॥
मुंधे पिर बिनु किआ सीगारु ॥
दरि घरि ढोई न लहै दरगह झूठु खुआरु ॥१॥ रहाउ ॥
आपि सुजाणु न भुलई सचा वड किरसाणु ॥
पहिला धरती साधि कै सचु नामु दे दाणु ॥
नउ निधि उपजै नामु एकु करमि पवै नीसाणु ॥२॥
गुर कउ जाणि न जाणई किआ तिसु चजु अचारु ॥
अंधुलै नामु विसारिआ मनमुखि अंध गुबारु ॥
आवणु जाणु न चुकई मरि जनमै होइ खुआरु ॥३॥
चंदनु मोलि अणाइआ कुंगू मांग संधूरु ॥
चोआ चंदनु बहु घणा पाना नालि कपूरु ॥
जे धन कंति न भावई त सभि अड्मबर कूड़ु ॥४॥
सभि रस भोगण बादि हहि सभि सीगार विकार ॥
जब लगु सबदि न भेदीऐ किउ सोहै गुरदुआरि ॥
नानक धंनु सुहागणी जिन सह नालि पिआरु ॥५॥१३॥(18)॥

18. सुंञी देह डरावणी जा जीउ विचहु जाइ

सुंञी देह डरावणी जा जीउ विचहु जाइ ॥
भाहि बलंदी विझवी धूउ न निकसिओ काइ ॥
पंचे रुंने दुखि भरे बिनसे दूजै भाइ ॥१॥
मूड़े रामु जपहु गुण सारि ॥
हउमै ममता मोहणी सभ मुठी अहंकारि ॥१॥ रहाउ ॥
जिनी नामु विसारिआ दूजी कारै लगि ॥
दुबिधा लागे पचि मुए अंतरि त्रिसना अगि ॥
गुरि राखे से उबरे होरि मुठी धंधै ठगि ॥२॥
मुई परीति पिआरु गइआ मुआ वैरु विरोधु ॥
धंधा थका हउ मुई ममता माइआ क्रोधु ॥
करमि मिलै सचु पाईऐ गुरमुखि सदा निरोधु ॥३॥
सची कारै सचु मिलै गुरमति पलै पाइ ॥
सो नरु जमै ना मरै ना आवै ना जाइ ॥
नानक दरि परधानु सो दरगहि पैधा जाइ ॥४॥१४॥(19)॥

19. तनु जलि बलि माटी भइआ मनु माइआ मोहि मनूरु

तनु जलि बलि माटी भइआ मनु माइआ मोहि मनूरु ॥
अउगण फिरि लागू भए कूरि वजावै तूरु ॥
बिनु सबदै भरमाईऐ दुबिधा डोबे पूरु ॥१॥
मन रे सबदि तरहु चितु लाइ ॥
जिनि गुरमुखि नामु न बूझिआ मरि जनमै आवै जाइ ॥१॥ रहाउ ॥
तनु सूचा सो आखीऐ जिसु महि साचा नाउ ॥
भै सचि राती देहुरी जिहवा सचु सुआउ ॥
सची नदरि निहालीऐ बहुड़ि न पावै ताउ ॥२॥
साचे ते पवना भइआ पवनै ते जलु होइ ॥
जल ते त्रिभवणु साजिआ घटि घटि जोति समोइ ॥
निरमलु मैला ना थीऐ सबदि रते पति होइ ॥३॥
इहु मनु साचि संतोखिआ नदरि करे तिसु माहि ॥
पंच भूत सचि भै रते जोति सची मन माहि ॥
नानक अउगण वीसरे गुरि राखे पति ताहि ॥४॥१५॥(19)॥

20. नानक बेड़ी सच की तरीऐ गुर वीचारि

नानक बेड़ी सच की तरीऐ गुर वीचारि ॥
इकि आवहि इकि जावही पूरि भरे अहंकारि ॥
मनहठि मती बूडीऐ गुरमुखि सचु सु तारि ॥१॥
गुर बिनु किउ तरीऐ सुखु होइ ॥
जिउ भावै तिउ राखु तू मै अवरु न दूजा कोइ ॥१॥ रहाउ ॥
आगै देखउ डउ जलै पाछै हरिओ अंगूरु ॥
जिस ते उपजै तिस ते बिनसै घटि घटि सचु भरपूरि ॥
आपे मेलि मिलावही साचै महलि हदूरि ॥२॥
साहि साहि तुझु समला कदे न विसारेउ ॥
जिउ जिउ साहबु मनि वसै गुरमुखि अम्रितु पेउ ॥
मनु तनु तेरा तू धणी गरबु निवारि समेउ ॥३॥
जिनि एहु जगतु उपाइआ त्रिभवणु करि आकारु ॥
गुरमुखि चानणु जाणीऐ मनमुखि मुगधु गुबारु ॥
घटि घटि जोति निरंतरी बूझै गुरमति सारु ॥४॥
गुरमुखि जिनी जाणिआ तिन कीचै साबासि ॥
सचे सेती रलि मिले सचे गुण परगासि ॥
नानक नामि संतोखीआ जीउ पिंडु प्रभ पासि ॥५॥१६॥(20)॥

21. सुणि मन मित्र पिआरिआ मिलु वेला है एह

सुणि मन मित्र पिआरिआ मिलु वेला है एह ॥
जब लगु जोबनि सासु है तब लगु इहु तनु देह ॥
बिनु गुण कामि न आवई ढहि ढेरी तनु खेह ॥१॥
मेरे मन लै लाहा घरि जाहि ॥
गुरमुखि नामु सलाहीऐ हउमै निवरी भाहि ॥१॥ रहाउ ॥
सुणि सुणि गंढणु गंढीऐ लिखि पड़ि बुझहि भारु ॥
त्रिसना अहिनिसि अगली हउमै रोगु विकारु ॥
ओहु वेपरवाहु अतोलवा गुरमति कीमति सारु ॥२॥
लख सिआणप जे करी लख सिउ प्रीति मिलापु ॥
बिनु संगति साध न ध्रापीआ बिनु नावै दूख संतापु ॥
हरि जपि जीअरे छुटीऐ गुरमुखि चीनै आपु ॥३॥
तनु मनु गुर पहि वेचिआ मनु दीआ सिरु नालि ॥
त्रिभवणु खोजि ढंढोलिआ गुरमुखि खोजि निहालि ॥
सतगुरि मेलि मिलाइआ नानक सो प्रभु नालि ॥४॥१७॥(20)॥

22. मरणै की चिंता नही जीवण की नही आस

मरणै की चिंता नही जीवण की नही आस ॥
तू सरब जीआ प्रतिपालही लेखै सास गिरास ॥
अंतरि गुरमुखि तू वसहि जिउ भावै तिउ निरजासि ॥१॥
जीअरे राम जपत मनु मानु ॥
अंतरि लागी जलि बुझी पाइआ गुरमुखि गिआनु ॥१॥ रहाउ ॥
अंतर की गति जाणीऐ गुर मिलीऐ संक उतारि ॥
मुइआ जितु घरि जाईऐ तितु जीवदिआ मरु मारि ॥
अनहद सबदि सुहावणे पाईऐ गुर वीचारि ॥२॥
अनहद बाणी पाईऐ तह हउमै होइ बिनासु ॥
सतगुरु सेवे आपणा हउ सद कुरबाणै तासु ॥
खड़ि दरगह पैनाईऐ मुखि हरि नाम निवासु ॥३॥
जह देखा तह रवि रहे सिव सकती का मेलु ॥
त्रिहु गुण बंधी देहुरी जो आइआ जगि सो खेलु ॥
विजोगी दुखि विछुड़े मनमुखि लहहि न मेलु ॥४॥
मनु बैरागी घरि वसै सच भै राता होइ ॥
गिआन महारसु भोगवै बाहुड़ि भूख न होइ ॥
नानक इहु मनु मारि मिलु भी फिरि दुखु न होइ ॥५॥१८॥(20)॥

23. एहु मनो मूरखु लोभीआ लोभे लगा लोभानु

एहु मनो मूरखु लोभीआ लोभे लगा लोभानु ॥
सबदि न भीजै साकता दुरमति आवनु जानु ॥
साधू सतगुरु जे मिलै ता पाईऐ गुणी निधानु ॥१॥
मन रे हउमै छोडि गुमानु ॥
हरि गुरु सरवरु सेवि तू पावहि दरगह मानु ॥१॥ रहाउ ॥
राम नामु जपि दिनसु राति गुरमुखि हरि धनु जानु ॥
सभि सुख हरि रस भोगणे संत सभा मिलि गिआनु ॥
निति अहिनिसि हरि प्रभु सेविआ सतगुरि दीआ नामु ॥२॥
कूकर कूड़ु कमाईऐ गुर निंदा पचै पचानु ॥
भरमे भूला दुखु घणो जमु मारि करै खुलहानु ॥
मनमुखि सुखु न पाईऐ गुरमुखि सुखु सुभानु ॥३॥
ऐथै धंधु पिटाईऐ सचु लिखतु परवानु ॥
हरि सजणु गुरु सेवदा गुर करणी परधानु ॥
नानक नामु न वीसरै करमि सचै नीसाणु ॥४॥१९॥(21)॥

24. इकु तिलु पिआरा वीसरै रोगु वडा मन माहि

इकु तिलु पिआरा वीसरै रोगु वडा मन माहि ॥
किउ दरगह पति पाईऐ जा हरि न वसै मन माहि ॥
गुरि मिलिऐ सुखु पाईऐ अगनि मरै गुण माहि ॥१॥
मन रे अहिनिसि हरि गुण सारि ॥
जिन खिनु पलु नामु न वीसरै ते जन विरले संसारि ॥१॥ रहाउ ॥
जोती जोति मिलाईऐ सुरती सुरति संजोगु ॥
हिंसा हउमै गतु गए नाही सहसा सोगु ॥
गुरमुखि जिसु हरि मनि वसै तिसु मेले गुरु संजोगु ॥२॥
काइआ कामणि जे करी भोगे भोगणहारु ॥
तिसु सिउ नेहु न कीजई जो दीसै चलणहारु ॥
गुरमुखि रवहि सोहागणी सो प्रभु सेज भतारु ॥३॥
चारे अगनि निवारि मरु गुरमुखि हरि जलु पाइ ॥
अंतरि कमलु प्रगासिआ अम्रितु भरिआ अघाइ ॥
नानक सतगुरु मीतु करि सचु पावहि दरगह जाइ ॥४॥२०॥(21)॥

25. धनु जोबनु अरु फुलड़ा नाठीअड़े दिन चारि

धनु जोबनु अरु फुलड़ा नाठीअड़े दिन चारि ॥
पबणि केरे पत जिउ ढलि ढुलि जुमणहार ॥१॥
रंगु माणि लै पिआरिआ जा जोबनु नउ हुला ॥
दिन थोड़ड़े थके भइआ पुराणा चोला ॥१॥ रहाउ ॥
सजण मेरे रंगुले जाइ सुते जीराणि ॥
हं भी वंञा डुमणी रोवा झीणी बाणि ॥२॥
की न सुणेही गोरीए आपण कंनी सोइ ॥
लगी आवहि साहुरै नित न पेईआ होइ ॥३॥
नानक सुती पेईऐ जाणु विरती संनि ॥
गुणा गवाई गंठड़ी अवगण चली बंनि ॥४॥२४॥(23)॥

26. अरबद नरबद धुंधूकारा

अरबद नरबद धुंधूकारा ॥
धरणि न गगना हुकमु अपारा ॥
ना दिनु रैनि न चंदु न सूरजु सुंन समाधि लगाइदा ॥१॥
खाणी न बाणी पउण न पाणी ॥
ओपति खपति न आवण जाणी ॥
खंड पताल सपत नही सागर नदी न नीरु वहाइदा ॥२॥
ना तदि सुरगु मछु पइआला ॥
दोजकु भिसतु नही खै काला ॥
नरकु सुरगु नही जमणु मरणा ना को आइ न जाइदा ॥३॥
ब्रहमा बिसनु महेसु न कोई ॥
अवरु न दीसै एको सोई ॥
नारि पुरखु नही जाति न जनमा ना को दुखु सुखु पाइदा ॥४॥
ना तदि जती सती बनवासी ॥
ना तदि सिध साधिक सुखवासी ॥
जोगी जंगम भेखु न कोई ना को नाथु कहाइदा ॥५॥
जप तप संजम ना ब्रत पूजा ॥
ना को आखि वखाणै दूजा ॥
आपे आपि उपाइ विगसै आपे कीमति पाइदा ॥६॥
ना सुचि संजमु तुलसी माला ॥
गोपी कानु न गऊ गोआला ॥
तंतु मंतु पाखंडु न कोई ना को वंसु वजाइदा ॥७॥
करम धरम नही माइआ माखी ॥
जाति जनमु नही दीसै आखी ॥
ममता जालु कालु नही माथै ना को किसै धिआइदा ॥८॥
निंदु बिंदु नही जीउ न जिंदो ॥
ना तदि गोरखु ना माछिंदो ॥
ना तदि गिआनु धिआनु कुल ओपति ना को गणत गणाइदा ॥९॥
वरन भेख नही ब्रहमण खत्री ॥
देउ न देहुरा गऊ गाइत्री ॥
होम जग नही तीरथि नावणु ना को पूजा लाइदा ॥१०॥
ना को मुला ना को काजी ॥
ना को सेखु मसाइकु हाजी ॥
रईअति राउ न हउमै दुनीआ ना को कहणु कहाइदा ॥११॥
भाउ न भगती ना सिव सकती ॥
साजनु मीतु बिंदु नही रकती ॥
आपे साहु आपे वणजारा साचे एहो भाइदा ॥१२॥
बेद कतेब न सिम्रिति सासत ॥
पाठ पुराण उदै नही आसत ॥
कहता बकता आपि अगोचरु आपे अलखु लखाइदा ॥१३॥
जा तिसु भाणा ता जगतु उपाइआ ॥
बाझु कला आडाणु रहाइआ ॥
ब्रहमा बिसनु महेसु उपाए माइआ मोहु वधाइदा ॥१४॥
विरले कउ गुरि सबदु सुणाइआ ॥
करि करि देखै हुकमु सबाइआ ॥
खंड ब्रहमंड पाताल अर्मभे गुपतहु परगटी आइदा ॥१५॥
ता का अंतु न जाणै कोई ॥
पूरे गुर ते सोझी होई ॥
नानक साचि रते बिसमादी बिसम भए गुण गाइदा ॥१६॥३॥१५॥(1035)॥

27. हम आदमी हां इक दमी मुहलति मुहतु न जाणा

हम आदमी हां इक दमी मुहलति मुहतु न जाणा ॥
नानकु बिनवै तिसै सरेवहु जा के जीअ पराणा ॥१॥
अंधे जीवना वीचारि देखि केते के दिना ॥१॥ रहाउ ॥
सासु मासु सभु जीउ तुमारा तू मै खरा पिआरा ॥
नानकु साइरु एव कहतु है सचे परवदगारा ॥२॥
जे तू किसै न देही मेरे साहिबा किआ को कढै गहणा ॥
नानकु बिनवै सो किछु पाईऐ पुरबि लिखे का लहणा ॥३॥
नामु खसम का चिति न कीआ कपटी कपटु कमाणा ॥
जम दुआरि जा पकड़ि चलाइआ ता चलदा पछुताणा ॥४॥
जब लगु दुनीआ रहीऐ नानक किछु सुणीऐ किछु कहीऐ ॥
भालि रहे हम रहणु न पाइआ जीवतिआ मरि रहीऐ ॥५॥२॥(660)॥

28. हरणी होवा बनि बसा कंद मूल चुणि खाउ

हरणी होवा बनि बसा कंद मूल चुणि खाउ ॥
गुर परसादी मेरा सहु मिलै वारि वारि हउ जाउ जीउ ॥१॥
मै बनजारनि राम की ॥
तेरा नामु वखरु वापारु जी ॥१॥ रहाउ ॥
कोकिल होवा अम्बि बसा सहजि सबद बीचारु ॥
सहजि सुभाइ मेरा सहु मिलै दरसनि रूपि अपारु ॥२॥
मछुली होवा जलि बसा जीअ जंत सभि सारि ॥
उरवारि पारि मेरा सहु वसै हउ मिलउगी बाह पसारि ॥३॥
नागनि होवा धर वसा सबदु वसै भउ जाइ ॥
नानक सदा सोहागणी जिन जोती जोति समाइ ॥४॥२॥१९॥(157)॥

29. जैसी मै आवै खसम की बाणी तैसड़ा करी गिआनु वे लालो

जैसी मै आवै खसम की बाणी तैसड़ा करी गिआनु वे लालो ॥
पाप की जंञ लै काबलहु धाइआ जोरी मंगै दानु वे लालो ॥
सरमु धरमु दुइ छपि खलोए कूड़ु फिरै परधानु वे लालो ॥
काजीआ बामणा की गल थकी अगदु पड़ै सैतानु वे लालो ॥
मुसलमानीआ पड़हि कतेबा कसट महि करहि खुदाइ वे लालो ॥
जाति सनाती होरि हिदवाणीआ एहि भी लेखै लाइ वे लालो ॥
खून के सोहिले गावीअहि नानक रतु का कुंगू पाइ वे लालो ॥१॥
साहिब के गुण नानकु गावै मास पुरी विचि आखु मसोला ॥
जिनि उपाई रंगि रवाई बैठा वेखै वखि इकेला ॥
सचा सो साहिबु सचु तपावसु सचड़ा निआउ करेगु मसोला ॥
काइआ कपड़ु टुकु टुकु होसी हिदुसतानु समालसी बोला ॥
आवनि अठतरै जानि सतानवै होरु भी उठसी मरद का चेला ॥
सच की बाणी नानकु आखै सचु सुणाइसी सच की बेला ॥२॥३॥५॥(722)॥

30. खुरासान खसमाना कीआ हिंदुसतानु डराइआ

खुरासान खसमाना कीआ हिंदुसतानु डराइआ ॥
आपै दोसु न देई करता जमु करि मुगलु चड़ाइआ ॥
एती मार पई करलाणे तैं की दरदु न आइआ ॥१॥
करता तूं सभना का सोई ॥
जे सकता सकते कउ मारे ता मनि रोसु न होई ॥१॥ रहाउ ॥
सकता सीहु मारे पै वगै खसमै सा पुरसाई ॥
रतन विगाड़ि विगोए कुतीं मुइआ सार न काई ॥
आपे जोड़ि विछोड़े आपे वेखु तेरी वडिआई ॥२॥
जे को नाउ धराए वडा साद करे मनि भाणे ॥
खसमै नदरी कीड़ा आवै जेते चुगै दाणे ॥
मरि मरि जीवै ता किछु पाए नानक नामु वखाणे ॥३॥५॥३९॥(360)॥

31. जिन सिरि सोहनि पटीआ मांगी पाइ संधूरु

जिन सिरि सोहनि पटीआ मांगी पाइ संधूरु ॥
से सिर काती मुंनीअन्हि गल विचि आवै धूड़ि ॥
महला अंदरि होदीआ हुणि बहणि न मिलन्हि हदूरि ॥१॥
आदेसु बाबा आदेसु ॥
आदि पुरख तेरा अंतु न पाइआ करि करि देखहि वेस ॥१॥ रहाउ ॥
जदहु सीआ वीआहीआ लाड़े सोहनि पासि ॥
हीडोली चड़ि आईआ दंद खंड कीते रासि ॥
उपरहु पाणी वारीऐ झले झिमकनि पासि ॥२॥
इकु लखु लहन्हि बहिठीआ लखु लहन्हि खड़ीआ ॥
गरी छुहारे खांदीआ माणन्हि सेजड़ीआ ॥
तिन्ह गलि सिलका पाईआ तुटन्हि मोतसरीआ ॥३॥
धनु जोबनु दुइ वैरी होए जिन्ही रखे रंगु लाइ ॥
दूता नो फुरमाइआ लै चले पति गवाइ ॥
जे तिसु भावै दे वडिआई जे भावै देइ सजाइ ॥४॥
अगो दे जे चेतीऐ तां काइतु मिलै सजाइ ॥
साहां सुरति गवाईआ रंगि तमासै चाइ ॥
बाबरवाणी फिरि गई कुइरु न रोटी खाइ ॥५॥
इकना वखत खुआईअहि इकन्हा पूजा जाइ ॥
चउके विणु हिंदवाणीआ किउ टिके कढहि नाइ ॥
रामु न कबहू चेतिओ हुणि कहणि न मिलै खुदाइ ॥६॥
इकि घरि आवहि आपणै इकि मिलि मिलि पुछहि सुख ॥
इकन्हा एहो लिखिआ बहि बहि रोवहि दुख ॥
जो तिसु भावै सो थीऐ नानक किआ मानुख ॥७॥११॥(417)॥

32. कहा सु खेल तबेला घोड़े कहा भेरी सहनाई

कहा सु खेल तबेला घोड़े कहा भेरी सहनाई ॥
कहा सु तेगबंद गाडेरड़ि कहा सु लाल कवाई ॥
कहा सु आरसीआ मुह बंके ऐथै दिसहि नाही ॥१॥
इहु जगु तेरा तू गोसाई ॥
एक घड़ी महि थापि उथापे जरु वंडि देवै भांई ॥१॥ रहाउ ॥
कहां सु घर दर मंडप महला कहा सु बंक सराई ॥
कहां सु सेज सुखाली कामणि जिसु वेखि नीद न पाई ॥
कहा सु पान त्मबोली हरमा होईआ छाई माई ॥२॥
इसु जर कारणि घणी विगुती इनि जर घणी खुआई ॥
पापा बाझहु होवै नाही मुइआ साथि न जाई ॥
जिस नो आपि खुआए करता खुसि लए चंगिआई ॥३॥
कोटी हू पीर वरजि रहाए जा मीरु सुणिआ धाइआ ॥
थान मुकाम जले बिज मंदर मुछि मुछि कुइर रुलाइआ ॥
कोई मुगलु न होआ अंधा किनै न परचा लाइआ ॥४॥
मुगल पठाणा भई लड़ाई रण महि तेग वगाई ॥
ओन्ही तुपक ताणि चलाई ओन्ही हसति चिड़ाई ॥
जिन्ह की चीरी दरगह पाटी तिन्हा मरणा भाई ॥५॥
इक हिंदवाणी अवर तुरकाणी भटिआणी ठकुराणी ॥
इकन्हा पेरण सिर खुर पाटे इकन्हा वासु मसाणी ॥
जिन्ह के बंके घरी न आइआ तिन्ह किउ रैणि विहाणी ॥६॥
आपे करे कराए करता किस नो आखि सुणाईऐ ॥
दुखु सुखु तेरै भाणै होवै किस थै जाइ रूआईऐ ॥
हुकमी हुकमि चलाए विगसै नानक लिखिआ पाईऐ ॥७॥१२॥(417)॥

33. जोगु न खिंथा जोगु न डंडै जोगु न भसम चड़ाईऐ

जोगु न खिंथा जोगु न डंडै जोगु न भसम चड़ाईऐ ॥
जोगु न मुंदी मूंडि मुडाइऐ जोगु न सिंङी वाईऐ ॥
अंजन माहि निरंजनि रहीऐ जोग जुगति इव पाईऐ ॥१॥
गली जोगु न होई ॥
एक द्रिसटि करि समसरि जाणै जोगी कहीऐ सोई ॥१॥ रहाउ ॥
जोगु न बाहरि मड़ी मसाणी जोगु न ताड़ी लाईऐ ॥
जोगु न देसि दिसंतरि भविऐ जोगु न तीरथि नाईऐ ॥
अंजन माहि निरंजनि रहीऐ जोग जुगति इव पाईऐ ॥२॥
सतिगुरु भेटै ता सहसा तूटै धावतु वरजि रहाईऐ ॥
निझरु झरै सहज धुनि लागै घर ही परचा पाईऐ ॥
अंजन माहि निरंजनि रहीऐ जोग जुगति इव पाईऐ ॥३॥
नानक जीवतिआ मरि रहीऐ ऐसा जोगु कमाईऐ ॥
वाजे बाझहु सिंङी वाजै तउ निरभउ पदु पाईऐ ॥
अंजन माहि निरंजनि रहीऐ जोग जुगति तउ पाईऐ ॥४॥१॥८॥(730)॥

34. कत की माई बापु कत केरा किदू थावहु हम आए

कत की माई बापु कत केरा किदू थावहु हम आए ॥
अगनि बि्मब जल भीतरि निपजे काहे कमि उपाए ॥१॥
मेरे साहिबा कउणु जाणै गुण तेरे ॥
कहे न जानी अउगण मेरे ॥१॥ रहाउ ॥
केते रुख बिरख हम चीने केते पसू उपाए ॥
केते नाग कुली महि आए केते पंख उडाए ॥२॥
हट पटण बिज मंदर भंनै करि चोरी घरि आवै ॥
अगहु देखै पिछहु देखै तुझ ते कहा छपावै ॥३॥
तट तीरथ हम नव खंड देखे हट पटण बाजारा ॥
लै कै तकड़ी तोलणि लागा घट ही महि वणजारा ॥४॥
जेता समुंदु सागरु नीरि भरिआ तेते अउगण हमारे ॥
दइआ करहु किछु मिहर उपावहु डुबदे पथर तारे ॥५॥
जीअड़ा अगनि बराबरि तपै भीतरि वगै काती ॥
प्रणवति नानकु हुकमु पछाणै सुखु होवै दिनु राती ॥६॥५॥१७॥(156)॥

35. कोई आखै भूतना को कहै बेताला

कोई आखै भूतना को कहै बेताला ॥
कोई आखै आदमी नानकु वेचारा ॥१॥
भइआ दिवाना साह का नानकु बउराना ॥
हउ हरि बिनु अवरु न जाना ॥१॥ रहाउ ॥
तउ देवाना जाणीऐ जा भै देवाना होइ ॥
एकी साहिब बाहरा दूजा अवरु न जाणै कोइ ॥२॥
तउ देवाना जाणीऐ जा एका कार कमाइ ॥
हुकमु पछाणै खसम का दूजी अवर सिआणप काइ ॥३॥
तउ देवाना जाणीऐ जा साहिब धरे पिआरु ॥
मंदा जाणै आप कउ अवरु भला संसारु ॥४॥७॥(991)॥

36. माहा माह मुमारखी चड़िआ सदा बसंतु

माहा माह मुमारखी चड़िआ सदा बसंतु ॥
परफड़ु चित समालि सोइ सदा सदा गोबिंदु ॥१॥
भोलिआ हउमै सुरति विसारि ॥
हउमै मारि बीचारि मन गुण विचि गुणु लै सारि ॥१॥ रहाउ ॥
करम पेडु साखा हरी धरमु फुलु फलु गिआनु ॥
पत परापति छाव घणी चूका मन अभिमानु ॥२॥
अखी कुदरति कंनी बाणी मुखि आखणु सचु नामु ॥
पति का धनु पूरा होआ लागा सहजि धिआनु ॥३॥
माहा रुती आवणा वेखहु करम कमाइ ॥
नानक हरे न सूकही जि गुरमुखि रहे समाइ ॥४॥१॥(1168)॥

37. मनु हाली किरसाणी करणी सरमु पाणी तनु खेतु

मनु हाली किरसाणी करणी सरमु पाणी तनु खेतु ॥
नामु बीजु संतोखु सुहागा रखु गरीबी वेसु ॥
भाउ करम करि जमसी से घर भागठ देखु ॥१॥
बाबा माइआ साथि न होइ ॥
इनि माइआ जगु मोहिआ विरला बूझै कोइ ॥ रहाउ ॥
हाणु हटु करि आरजा सचु नामु करि वथु ॥
सुरति सोच करि भांडसाल तिसु विचि तिस नो रखु ॥
वणजारिआ सिउ वणजु करि लै लाहा मन हसु ॥२॥
सुणि सासत सउदागरी सतु घोड़े लै चलु ॥
खरचु बंनु चंगिआईआ मतु मन जाणहि कलु ॥
निरंकार कै देसि जाहि ता सुखि लहहि महलु ॥३॥
लाइ चितु करि चाकरी मंनि नामु करि कमु ॥
बंनु बदीआ करि धावणी ता को आखै धंनु ॥
नानक वेखै नदरि करि चड़ै चवगण वंनु ॥४॥२॥(595)॥

38. मोहु कुट्मबु मोहु सभ कार

मोहु कुट्मबु मोहु सभ कार ॥
मोहु तुम तजहु सगल वेकार ॥१॥
मोहु अरु भरमु तजहु तुम्ह बीर ॥
साचु नामु रिदे रवै सरीर ॥१॥ रहाउ ॥
सचु नामु जा नव निधि पाई ॥
रोवै पूतु न कलपै माई ॥२॥
एतु मोहि डूबा संसारु ॥
गुरमुखि कोई उतरै पारि ॥३॥
एतु मोहि फिरि जूनी पाहि ॥
मोहे लागा जम पुरि जाहि ॥४॥
गुर दीखिआ ले जपु तपु कमाहि ॥
ना मोहु तूटै ना थाइ पाहि ॥५॥
नदरि करे ता एहु मोहु जाइ ॥
नानक हरि सिउ रहै समाइ ॥६॥२३॥(356)॥

39. सुणि वडा आखै सभ कोई

सुणि वडा आखै सभ कोई ॥
केवडु वडा डीठा होई ॥
कीमति पाइ न कहिआ जाइ ॥
कहणै वाले तेरे रहे समाइ ॥१॥
वडे मेरे साहिबा गहिर ग्मभीरा गुणी गहीरा ॥
कोई न जाणै तेरा केता केवडु चीरा ॥१॥ रहाउ ॥
सभि सुरती मिलि सुरति कमाई ॥
सभ कीमति मिलि कीमति पाई ॥
गिआनी धिआनी गुर गुर हाई ॥
कहणु न जाई तेरी तिलु वडिआई ॥२॥
सभि सत सभि तप सभि चंगिआईआ ॥
सिधा पुरखा कीआ वडिआईआं ॥
तुधु विणु सिधी किनै न पाईआ ॥
करमि मिलै नाही ठाकि रहाईआ ॥३॥
आखण वाला किआ बेचारा ॥
सिफती भरे तेरे भंडारा ॥
जिसु तूं देहि तिसै किआ चारा ॥
नानक सचु सवारणहारा ॥४॥१॥(348)॥

40. उजलु कैहा चिलकणा घोटिम कालड़ी मसु

उजलु कैहा चिलकणा घोटिम कालड़ी मसु ॥
धोतिआ जूठि न उतरै जे सउ धोवा तिसु ॥१॥
सजण सेई नालि मै चलदिआ नालि चलंन्हि ॥
जिथै लेखा मंगीऐ तिथै खड़े दिसंनि ॥१॥ रहाउ ॥
कोठे मंडप माड़ीआ पासहु चितवीआहा ॥
ढठीआ कमि न आवन्ही विचहु सखणीआहा ॥२॥
बगा बगे कपड़े तीरथ मंझि वसंन्हि ॥
घुटि घुटि जीआ खावणे बगे ना कहीअन्हि ॥३॥
सिमल रुखु सरीरु मै मैजन देखि भुलंन्हि ॥
से फल कमि न आवन्ही ते गुण मै तनि हंन्हि ॥४॥
अंधुलै भारु उठाइआ डूगर वाट बहुतु ॥
अखी लोड़ी ना लहा हउ चड़ि लंघा कितु ॥५॥
चाकरीआ चंगिआईआ अवर सिआणप कितु ॥
नानक नामु समालि तूं बधा छुटहि जितु ॥६॥१॥३॥(729)॥

41. विदिआ वीचारी तां परउपकारी

विदिआ वीचारी तां परउपकारी ॥
जां पंच रासी तां तीरथ वासी ॥१॥
घुंघरू वाजै जे मनु लागै ॥
तउ जमु कहा करे मो सिउ आगै ॥१॥ रहाउ ॥
आस निरासी तउ संनिआसी ॥
जां जतु जोगी तां काइआ भोगी ॥२॥
दइआ दिग्मबरु देह बीचारी ॥
आपि मरै अवरा नह मारी ॥३॥
एकु तू होरि वेस बहुतेरे ॥
नानकु जाणै चोज न तेरे ॥४॥२५॥(356)॥