शब्द गुरू अमर दास जी
Shabad Guru Amar Das Ji

1. बहु भेख करि भरमाईऐ

बहु भेख करि भरमाईऐ मनि हिरदै कपटु कमाइ ॥
हरि का महलु न पावई मरि विसटा माहि समाइ ॥१॥
मन रे ग्रिह ही माहि उदासु ॥
सचु संजमु करणी सो करे गुरमुखि होइ परगासु ॥१॥ रहाउ ॥
गुर कै सबदि मनु जीतिआ गति मुकति घरै महि पाइ ॥
हरि का नामु धिआईऐ सतसंगति मेलि मिलाइ ॥२॥
जे लख इसतरीआ भोग करहि नव खंड राजु कमाहि ॥
बिनु सतगुर सुखु न पावई फिरि फिरि जोनी पाहि ॥३॥
हरि हारु कंठि जिनी पहिरिआ गुर चरणी चितु लाइ ॥
तिना पिछै रिधि सिधि फिरै ओना तिलु न तमाइ ॥४॥
जो प्रभ भावै सो थीऐ अवरु न करणा जाइ ॥
जनु नानकु जीवै नामु लै हरि देवहु सहजि सुभाइ ॥੫॥੨॥੩੫॥੨੬॥

2. गोविदु गुणी निधानु है

गोविदु गुणी निधानु है अंतु न पाइआ जाइ ॥
कथनी बदनी न पाईऐ हउमै विचहु जाइ ॥॥
सतगुरि मिलिऐ सद भै रचै आपि वसै मनि आइ ॥१॥
भाई रे गुरमुखि बूझै कोइ ॥
बिनु बूझे करम कमावणे जनमु पदारथु खोइ ॥१॥ रहाउ ॥
जिनी चाखिआ तिनी सादु पाइआ बिनु चाखे भरमि भुलाइ ॥
अम्रितु साचा नामु है कहणा कछू न जाइ ॥
पीवत हू परवाणु भइआ पूरै सबदि समाइ ॥२॥
आपे देइ त पाईऐ होरु करणा किछू न जाइ ॥
देवण वाले कै हथि दाति है गुरू दुआरै पाइ ॥
जेहा कीतोनु तेहा होआ जेहे करम कमाइ ॥३॥
जतु सतु संजमु नामु है विणु नावै निरमलु न होइ ॥
पूरै भागि नामु मनि वसै सबदि मिलावा होइ ॥
नानक सहजे ही रंगि वरतदा हरि गुण पावै सोइ ॥੪॥੧੭॥੫੦॥੩੨॥

3. कांइआ साधै उरध तपु करै

कांइआ साधै उरध तपु करै विचहु हउमै न जाइ ॥
अधिआतम करम जे करे नामु न कब ही पाइ ॥
गुर कै सबदि जीवतु मरै हरि नामु वसै मनि आइ ॥१॥
सुणि मन मेरे भजु सतगुर सरणा ॥
गुर परसादी छुटीऐ बिखु भवजलु सबदि गुर तरणा ॥१॥ रहाउ ॥
त्रै गुण सभा धातु है दूजा भाउ विकारु ॥
पंडितु पड़ै बंधन मोह बाधा नह बूझै बिखिआ पिआरि ॥
सतगुरि मिलिऐ त्रिकुटी छूटै चउथै पदि मुकति दुआरु ॥२॥
गुर ते मारगु पाईऐ चूकै मोहु गुबारु ॥
सबदि मरै ता उधरै पाए मोख दुआरु ॥
गुर परसादी मिलि रहै सचु नामु करतारु ॥३॥
इहु मनूआ अति सबल है छडे न कितै उपाइ ॥
दूजै भाइ दुखु लाइदा बहुती देइ सजाइ ॥
नानक नामि लगे से उबरे हउमै सबदि गवाइ ॥੪॥੧੮॥੫੧॥੩੩॥

4. इको आपि फिरै परछंना

इको आपि फिरै परछंना ॥
गुरमुखि वेखा ता इहु मनु भिंना ॥
त्रिसना तजि सहज सुखु पाइआ एको मंनि वसावणिआ ॥१॥
हउ वारी जीउ वारी इकसु सिउ चितु लावणिआ ॥
गुरमती मनु इकतु घरि आइआ सचै रंगि रंगावणिआ ॥१॥ रहाउ ॥
इहु जगु भूला तैं आपि भुलाइआ ॥
इकु विसारि दूजै लोभाइआ ॥
अनदिनु सदा फिरै भ्रमि भूला बिनु नावै दुखु पावणिआ ॥२॥
जो रंगि राते करम बिधाते ॥
गुर सेवा ते जुग चारे जाते ॥
जिस नो आपि देइ वडिआई हरि कै नामि समावणिआ ॥३॥
माइआ मोहि हरि चेतै नाही ॥
जमपुरि बधा दुख सहाही ॥
अंना बोला किछु नदरि न आवै मनमुख पापि पचावणिआ ॥४॥
इकि रंगि राते जो तुधु आपि लिव लाए ॥
भाइ भगति तेरै मनि भाए ॥
सतिगुरु सेवनि सदा सुखदाता सभ इछा आपि पुजावणिआ ॥५॥
हरि जीउ तेरी सदा सरणाई ॥
आपे बखसिहि दे वडिआई ॥
जमकालु तिसु नेड़ि न आवै जो हरि हरि नामु धिआवणिआ ॥६॥
अनदिनु राते जो हरि भाए ॥
मेरै प्रभि मेले मेलि मिलाए ॥
सदा सदा सचे तेरी सरणाई तूं आपे सचु बुझावणिआ ॥७॥
जिन सचु जाता से सचि समाणे ॥
हरि गुण गावहि सचु वखाणे ॥
नानक नामि रते बैरागी निज घरि ताड़ी लावणिआ ॥੮॥੩॥੪॥੧੧੧॥

5. ऐथै साचे सु आगै साचे

ऐथै साचे सु आगै साचे ॥
मनु सचा सचै सबदि राचे ॥
सचा सेवहि सचु कमावहि सचो सचु कमावणिआ ॥१॥
हउ वारी जीउ वारी सचा नामु मंनि वसावणिआ ॥
सचे सेवहि सचि समावहि सचे के गुण गावणिआ ॥१॥ रहाउ ॥
पंडित पड़हि सादु न पावहि ॥
दूजै भाइ माइआ मनु भरमावहि ॥
माइआ मोहि सभ सुधि गवाई करि अवगण पछोतावणिआ ॥२॥
सतिगुरु मिलै ता ततु पाए ॥
हरि का नामु मंनि वसाए ॥
सबदि मरै मनु मारै अपुना मुकती का दरु पावणिआ ॥३॥
किलविख काटै क्रोधु निवारे ॥
गुर का सबदु रखै उर धारे ॥
सचि रते सदा बैरागी हउमै मारि मिलावणिआ ॥४॥
अंतरि रतनु मिलै मिलाइआ ॥
त्रिबिधि मनसा त्रिबिधि माइआ ॥
पड़ि पड़ि पंडित मोनी थके चउथे पद की सार न पावणिआ ॥५॥
आपे रंगे रंगु चड़ाए ॥
से जन राते गुर सबदि रंगाए ॥
हरि रंगु चड़िआ अति अपारा हरि रसि रसि गुण गावणिआ ॥६॥
गुरमुखि रिधि सिधि सचु संजमु सोई ॥
गुरमुखि गिआनु नामि मुकति होई ॥
गुरमुखि कार सचु कमावहि सचे सचि समावणिआ ॥७॥
गुरमुखि थापे थापि उथापे ॥
गुरमुखि जाति पति सभु आपे ॥
नानक गुरमुखि नामु धिआए नामे नामि समावणिआ ॥੮॥੧੨॥੧੩॥੧੧੬॥

6. मनमुख पड़हि पंडित कहावहि

मनमुख पड़हि पंडित कहावहि ॥
दूजै भाइ महा दुखु पावहि ॥
बिखिआ माते किछु सूझै नाही फिरि फिरि जूनी आवणिआ ॥१॥
हउ वारी जीउ वारी हउमै मारि मिलावणिआ ॥
गुर सेवा ते हरि मनि वसिआ हरि रसु सहजि पीआवणिआ ॥१॥ रहाउ ॥
वेदु पड़हि हरि रसु नही आइआ ॥
वादु वखाणहि मोहे माइआ ॥
अगिआनमती सदा अंधिआरा गुरमुखि बूझि हरि गावणिआ ॥२॥
अकथो कथीऐ सबदि सुहावै ॥
गुरमती मनि सचो भावै ॥
सचो सचु रवहि दिनु राती इहु मनु सचि रंगावणिआ ॥३॥
जो सचि रते तिन सचो भावै ॥
आपे देइ न पछोतावै ॥
गुर कै सबदि सदा सचु जाता मिलि सचे सुखु पावणिआ ॥४॥
कूड़ु कुसतु तिना मैलु न लागै ॥
गुर परसादी अनदिनु जागै ॥
निरमल नामु वसै घट भीतरि जोती जोति मिलावणिआ ॥५॥
त्रै गुण पड़हि हरि ततु न जाणहि ॥
मूलहु भुले गुर सबदु न पछाणहि ॥
मोह बिआपे किछु सूझै नाही गुर सबदी हरि पावणिआ ॥६॥
वेदु पुकारै त्रिबिधि माइआ ॥
मनमुख न बूझहि दूजै भाइआ ॥
त्रै गुण पड़हि हरि एकु न जाणहि बिनु बूझे दुखु पावणिआ ॥७॥
जा तिसु भावै ता आपि मिलाए ॥
गुर सबदी सहसा दूखु चुकाए ॥
नानक नावै की सची वडिआई नामो मंनि सुखु पावणिआ ॥੮॥੩੦॥੩੧॥੧੨੮॥

7. इकि गावत रहे मनि सादु न पाइ

इकि गावत रहे मनि सादु न पाइ ॥
हउमै विचि गावहि बिरथा जाइ ॥
गावणि गावहि जिन नाम पिआरु ॥
साची बाणी सबद बीचारु ॥१॥
गावत रहै जे सतिगुर भावै ॥
मनु तनु राता नामि सुहावै ॥१॥ रहाउ ॥
इकि गावहि इकि भगति करेहि ॥
नामु न पावहि बिनु असनेह ॥
सची भगति गुर सबद पिआरि ॥
अपना पिरु राखिआ सदा उरि धारि ॥੨॥
भगति करहि मूरख आपु जणावहि ॥
नचि नचि टपहि बहुतु दुखु पावहि ॥
नचिऐ टपिऐ भगति न होइ ॥
सबदि मरै भगति पाए जनु सोइ ॥३॥
भगति वछलु भगति कराए सोइ ॥
सची भगति विचहु आपु खोइ ॥
मेरा प्रभु साचा सभ बिधि जाणै ॥
नानक बखसे नामु पछाणै ॥੪॥੪॥੨੪॥੧੫੮॥

8. मन का सूतकु दूजा भाउ

मन का सूतकु दूजा भाउ ॥
भरमे भूले आवउ जाउ ॥१॥
मनमुखि सूतकु कबहि न जाइ ॥
जिचरु सबदि न भीजै हरि कै नाइ ॥१॥ रहाउ ॥
सभो सूतकु जेता मोहु आकारु ॥
मरि मरि जमै वारो वार ॥२॥
सूतकु अगनि पउणै पाणी माहि ॥
सूतकु भोजनु जेता किछु खाहि ॥३॥
सूतकि करम न पूजा होइ ॥
नामि रते मनु निरमलु होइ ॥४॥
सतिगुरु सेविऐ सूतकु जाइ ॥
मरै न जनमै कालु न खाइ ॥५॥
सासत सिम्रिति सोधि देखहु कोइ ॥
विणु नावै को मुकति न होइ ॥६॥
जुग चारे नामु उतमु सबदु बीचारि ॥
कलि महि गुरमुखि उतरसि पारि ॥७॥
साचा मरै न आवै जाइ ॥
नानक गुरमुखि रहै समाइ ॥੮॥੧॥੨੨੯॥

9. सबदि मरै तिसु सदा अनंद

सबदि मरै तिसु सदा अनंद ॥
सतिगुर भेटे गुर गोबिंद ॥
ना फिरि मरै न आवै जाइ ॥
पूरे गुर ते साचि समाइ ॥१॥
जिन्ह कउ नामु लिखिआ धुरि लेखु ॥
ते अनदिनु नामु सदा धिआवहि गुर पूरे ते भगति विसेखु ॥१॥ रहाउ ॥
जिन्ह कउ हरि प्रभु लए मिलाइ ॥
तिन्ह की गहण गति कही न जाइ ॥
पूरै सतिगुर दिती वडिआई ॥
ऊतम पदवी हरि नामि समाई ॥२॥
जो किछु करे सु आपे आपि ॥
एक घड़ी महि थापि उथापि ॥
कहि कहि कहणा आखि सुणाए ॥
जे सउ घाले थाइ न पाए ॥३॥
जिन्ह कै पोतै पुंनु तिन्हा गुरू मिलाए ॥
सचु बाणी गुरु सबदु सुणाए ॥
जहां सबदु वसै तहां दुखु जाए ॥
गिआनि रतनि साचै सहजि समाए ॥४॥
नावै जेवडु होरु धनु नाही कोइ ॥
जिस नो बखसे साचा सोइ ॥
पूरै सबदि मंनि वसाए ॥
नानक नामि रते सुखु पाए ॥੫॥੧੧॥੫੦॥੩੬੪॥

10. निरति करे बहु वाजे वजाए

निरति करे बहु वाजे वजाए ॥
इहु मनु अंधा बोला है किसु आखि सुणाए ॥
अंतरि लोभु भरमु अनल वाउ ॥
दीवा बलै न सोझी पाइ ॥१॥
गुरमुखि भगति घटि चानणु होइ ॥
आपु पछाणि मिलै प्रभु सोइ ॥१॥ रहाउ ॥
गुरमुखि निरति हरि लागै भाउ ॥
पूरे ताल विचहु आपु गवाइ ॥
मेरा प्रभु साचा आपे जाणु ॥
गुर कै सबदि अंतरि ब्रहमु पछाणु ॥२॥
गुरमुखि भगति अंतरि प्रीति पिआरु ॥
गुर का सबदु सहजि वीचारु ॥
गुरमुखि भगति जुगति सचु सोइ ॥
पाखंडि भगति निरति दुखु होइ ॥३॥
एहा भगति जनु जीवत मरै ॥
गुर परसादी भवजलु तरै ॥
गुर कै बचनि भगति थाइ पाइ ॥
हरि जीउ आपि वसै मनि आइ ॥४॥
हरि क्रिपा करे सतिगुरू मिलाए ॥
निहचल भगति हरि सिउ चितु लाए ॥
भगति रते तिन्ह सची सोइ ॥
नानक नामि रते सुखु होइ ॥੫॥੧੨॥੫੧॥੩੬੪॥

11. अतुलु किउ तोलिआ जाइ

अतुलु किउ तोलिआ जाइ ॥
दूजा होइ त सोझी पाइ ॥
तिस ते दूजा नाही कोइ ॥
तिस दी कीमति किकू होइ ॥१॥
गुर परसादि वसै मनि आइ ॥
ता को जाणै दुबिधा जाइ ॥१॥ रहाउ ॥
आपि सराफु कसवटी लाए ॥
आपे परखे आपि चलाए ॥
आपे तोले पूरा होइ ॥
आपे जाणै एको सोइ ॥२॥
माइआ का रूपु सभु तिस ते होइ ॥
जिस नो मेले सु निरमलु होइ ॥
जिस नो लाए लगै तिसु आइ ॥
सभु सचु दिखाले ता सचि समाइ ॥३॥
आपे लिव धातु है आपे ॥
आपि बुझाए आपे जापे ॥
आपे सतिगुरु सबदु है आपे ॥
नानक आखि सुणाए आपे ॥੪॥੨॥੭੯੭॥

12. वाजे पंच सबद तितु घरि सभागै

वाजे पंच सबद तितु घरि सभागै ॥
घरि सभागै सबद वाजे कला जितु घरि धारीआ ॥
पंच दूत तुधु वसि कीते कालु कंटकु मारिआ ॥
धुरि करमि पाइआ तुधु जिन कउ सि नामि हरि कै लागे ॥
कहै नानकु तह सुखु होआ तितु घरि अनहद वाजे ॥੫॥੯੧੭॥

13. बाबा जिसु तू देहि सोई जनु पावै

बाबा जिसु तू देहि सोई जनु पावै ॥
पावै त सो जनु देहि जिस नो होरि किआ करहि वेचारिआ ॥
इकि भरमि भूले फिरहि दह दिसि इकि नामि लागि सवारिआ ॥
गुर परसादी मनु भइआ निरमलु जिना भाणा भावए ॥
कहै नानकु जिसु देहि पिआरे सोई जनु पावए ॥੮॥੯੧੮॥

14. ए मन पिआरिआ तू सदा सचु समाले

ए मन पिआरिआ तू सदा सचु समाले ॥
एहु कुट्मबु तू जि देखदा चलै नाही तेरै नाले ॥
साथि तेरै चलै नाही तिसु नालि किउ चितु लाईऐ ॥
ऐसा कमु मूले न कीचै जितु अंति पछोताईऐ ॥
सतिगुरू का उपदेसु सुणि तू होवै तेरै नाले ॥
कहै नानकु मन पिआरे तू सदा सचु समाले ॥੧੧॥੯੧੮॥

15. भगता की चाल निराली

भगता की चाल निराली ॥
चाला निराली भगताह केरी बिखम मारगि चलणा ॥
लबु लोभु अहंकारु तजि त्रिसना बहुतु नाही बोलणा ॥
खंनिअहु तिखी वालहु निकी एतु मारगि जाणा ॥
गुर परसादी जिनी आपु तजिआ हरि वासना समाणी ॥
कहै नानकु चाल भगता जुगहु जुगु निराली ॥੧੪॥੯੧੮-੯੧੯॥

16. करमी सहजु न ऊपजै

करमी सहजु न ऊपजै विणु सहजै सहसा न जाइ ॥
नह जाइ सहसा कितै संजमि रहे करम कमाए ॥
सहसै जीउ मलीणु है कितु संजमि धोता जाए ॥
मंनु धोवहु सबदि लागहु हरि सिउ रहहु चितु लाइ ॥
कहै नानकु गुर परसादी सहजु उपजै इहु सहसा इव जाइ ॥੧੮॥੯੧੯॥

17. जीअहु मैले बाहरहु निरमल

जीअहु मैले बाहरहु निरमल ॥
बाहरहु निरमल जीअहु त मैले तिनी जनमु जूऐ हारिआ ॥
एह तिसना वडा रोगु लगा मरणु मनहु विसारिआ ॥
वेदा महि नामु उतमु सो सुणहि नाही फिरहि जिउ बेतालिआ ॥
कहै नानकु जिन सचु तजिआ कूड़े लागे तिनी जनमु जूऐ हारिआ ॥੧੯॥੯੧੯॥

18. जीअहु निरमल बाहरहु निरमल

जीअहु निरमल बाहरहु निरमल ॥
बाहरहु त निरमल जीअहु निरमल सतिगुर ते करणी कमाणी ॥
कूड़ की सोइ पहुचै नाही मनसा सचि समाणी ॥
जनमु रतनु जिनी खटिआ भले से वणजारे ॥
कहै नानकु जिन मंनु निरमलु सदा रहहि गुर नाले ॥੨੦॥੯੧੯॥

19. आवहु सिख सतिगुरू के पिआरिहो

आवहु सिख सतिगुरू के पिआरिहो गावहु सची बाणी ॥
बाणी त गावहु गुरू केरी बाणीआ सिरि बाणी ॥
जिन कउ नदरि करमु होवै हिरदै तिना समाणी ॥
पीवहु अम्रितु सदा रहहु हरि रंगि जपिहु सारिगपाणी ॥
कहै नानकु सदा गावहु एह सची बाणी ॥੨੩॥੯੨੦॥

20. सिम्रिति सासत्र पुंन पाप बीचारदे

सिम्रिति सासत्र पुंन पाप बीचारदे ततै सार न जाणी ॥
ततै सार न जाणी गुरू बाझहु ततै सार न जाणी ॥
तिही गुणी संसारु भ्रमि सुता सुतिआ रैणि विहाणी ॥
गुर किरपा ते से जन जागे जिना हरि मनि वसिआ बोलहि अम्रित बाणी ॥
कहै नानकु सो ततु पाए जिस नो अनदिनु हरि लिव लागै जागत रैणि विहाणी ॥੨੭॥੯੨੦॥

21. हरि आपि अमुलकु है

हरि आपि अमुलकु है मुलि न पाइआ जाइ ॥
मुलि न पाइआ जाइ किसै विटहु रहे लोक विललाइ ॥
ऐसा सतिगुरु जे मिलै तिस नो सिरु सउपीऐ विचहु आपु जाइ ॥
जिस दा जीउ तिसु मिलि रहै हरि वसै मनि आइ ॥
हरि आपि अमुलकु है भाग तिना के नानका जिन हरि पलै पाइ ॥੩੦॥੯੨੧॥

22. ए रसना तू अन रसि राचि रही

ए रसना तू अन रसि राचि रही तेरी पिआस न जाइ ॥
पिआस न जाइ होरतु कितै जिचरु हरि रसु पलै न पाइ ॥
हरि रसु पाइ पलै पीऐ हरि रसु बहुड़ि न त्रिसना लागै आइ ॥
एहु हरि रसु करमी पाईऐ सतिगुरु मिलै जिसु आइ ॥
कहै नानकु होरि अन रस सभि वीसरे जा हरि वसै मनि आइ ॥੩੨॥੯੨੧॥

23. ए नेत्रहु मेरिहो

ए नेत्रहु मेरिहो हरि तुम महि जोति धरी हरि बिनु अवरु न देखहु कोई ॥
हरि बिनु अवरु न देखहु कोई नदरी हरि निहालिआ ॥
एहु विसु संसारु तुम देखदे एहु हरि का रूपु है हरि रूपु नदरी आइआ ॥
गुर परसादी बुझिआ जा वेखा हरि इकु है हरि बिनु अवरु न कोई ॥
कहै नानकु एहि नेत्र अंध से सतिगुरि मिलिऐ दिब द्रिसटि होई ॥੩੬॥੯੨੨॥

24. ए स्रवणहु मेरिहो

ए स्रवणहु मेरिहो साचै सुनणै नो पठाए ॥
साचै सुनणै नो पठाए सरीरि लाए सुणहु सति बाणी ॥
जितु सुणी मनु तनु हरिआ होआ रसना रसि समाणी ॥
सचु अलख विडाणी ता की गति कही न जाए ॥
कहै नानकु अम्रित नामु सुणहु पवित्र होवहु साचै सुनणै नो पठाए ॥੩੭॥੯੨੨॥

25. अनदु सुणहु वडभागीहो

अनदु सुणहु वडभागीहो सगल मनोरथ पूरे ॥
पारब्रहमु प्रभु पाइआ उतरे सगल विसूरे ॥
दूख रोग संताप उतरे सुणी सची बाणी ॥
संत साजन भए सरसे पूरे गुर ते जाणी ॥
सुणते पुनीत कहते पवितु सतिगुरु रहिआ भरपूरे ॥
बिनवंति नानकु गुर चरण लागे वाजे अनहद तूरे ॥੪੦॥੧॥੯੨੨॥

26. जह बैसालहि तह बैसा सुआमी

जह बैसालहि तह बैसा सुआमी जह भेजहि तह जावा ॥
सभ नगरी महि एको राजा सभे पवितु हहि थावा ॥१॥
बाबा देहि वसा सच गावा ॥
जा ते सहजे सहजि समावा ॥१॥ रहाउ ॥
बुरा भला किछु आपस ते जानिआ एई सगल विकारा ॥
इहु फुरमाइआ खसम का होआ वरतै इहु संसारा ॥२॥
इंद्री धातु सबल कहीअत है इंद्री किस ते होई ॥
आपे खेल करै सभि करता ऐसा बूझै कोई ॥३॥
गुर परसादी एक लिव लागी दुबिधा तदे बिनासी ॥
जो तिसु भाणा सो सति करि मानिआ काटी जम की फासी ॥४॥
भणति नानकु लेखा मागै कवना जा चूका मनि अभिमाना ॥
तासु तासु धरम राइ जपतु है पए सचे की सरना ॥੫॥੧॥੯੯੩॥

27. आपे आपु उपाइ उपंना

आपे आपु उपाइ उपंना ॥
सभ महि वरतै एकु परछंना ॥
सभना सार करे जगजीवनु जिनि अपणा आपु पछाता हे ॥१॥
जिनि ब्रहमा बिसनु महेसु उपाए ॥
सिरि सिरि धंधै आपे लाए ॥
जिसु भावै तिसु आपे मेले जिनि गुरमुखि एको जाता हे ॥२॥
आवा गउणु है संसारा ॥
माइआ मोहु बहु चितै बिकारा ॥
थिरु साचा सालाही सद ही जिनि गुर का सबदु पछाता हे ॥३॥
इकि मूलि लगे ओनी सुखु पाइआ ॥
डाली लागे तिनी जनमु गवाइआ ॥
अम्रित फल तिन जन कउ लागे जो बोलहि अम्रित बाता हे ॥४॥
हम गुण नाही किआ बोलह बोल ॥
तू सभना देखहि तोलहि तोल ॥
जिउ भावै तिउ राखहि रहणा गुरमुखि एको जाता हे ॥५॥
जा तुधु भाणा ता सची कारै लाए ॥
अवगण छोडि गुण माहि समाए ॥
गुण महि एको निरमलु साचा गुर कै सबदि पछाता हे ॥६॥
जह देखा तह एको सोई ॥
दूजी दुरमति सबदे खोई ॥
एकसु महि प्रभु एकु समाणा अपणै रंगि सद राता हे ॥७॥
काइआ कमलु है कुमलाणा ॥
मनमुखु सबदु न बुझै इआणा ॥
गुर परसादी काइआ खोजे पाए जगजीवनु दाता हे ॥८॥
कोट गही के पाप निवारे ॥
सदा हरि जीउ राखै उर धारे ॥
जो इछे सोई फलु पाए जिउ रंगु मजीठै राता हे ॥९॥
मनमुखु गिआनु कथे न होई ॥
फिरि फिरि आवै ठउर न कोई ॥
गुरमुखि गिआनु सदा सालाहे जुगि जुगि एको जाता हे ॥१०॥
मनमुखु कार करे सभि दुख सबाए ॥
अंतरि सबदु नाही किउ दरि जाए ॥
गुरमुखि सबदु वसै मनि साचा सद सेवे सुखदाता हे ॥११॥
जह देखा तू सभनी थाई ॥
पूरै गुरि सभ सोझी पाई ॥
नामो नामु धिआईऐ सदा सद इहु मनु नामे राता हे ॥१२॥
नामे राता पवितु सरीरा ॥
बिनु नावै डूबि मुए बिनु नीरा ॥
आवहि जावहि नामु नही बूझहि इकना गुरमुखि सबदु पछाता हे ॥१३॥
पूरै सतिगुरि बूझ बुझाई ॥
विणु नावै मुकति किनै न पाई ॥
नामे नामि मिलै वडिआई सहजि रहै रंगि राता हे ॥१४॥
काइआ नगरु ढहै ढहि ढेरी ॥
बिनु सबदै चूकै नही फेरी ॥
साचु सलाहे साचि समावै जिनि गुरमुखि एको जाता हे ॥१५॥
जिस नो नदरि करे सो पाए ॥
साचा सबदु वसै मनि आए ॥
नानक नामि रते निरंकारी दरि साचै साचु पछाता हे ॥१६॥੮॥੧੦੫੧॥

28. जाति का गरबु न करीअहु कोई

जाति का गरबु न करीअहु कोई ॥
ब्रहमु बिंदे सो ब्राहमणु होई ॥१॥
जाति का गरबु न करि मूरख गवारा ॥
इसु गरब ते चलहि बहुतु विकारा ॥१॥ रहाउ ॥
चारे वरन आखै सभु कोई ॥
ब्रहमु बिंद ते सभ ओपति होई ॥२॥
माटी एक सगल संसारा ॥
बहु बिधि भांडे घड़ै कुम्हारा ॥३॥
पंच ततु मिलि देही का आकारा ॥
घटि वधि को करै बीचारा ॥४॥
कहतु नानक इहु जीउ करम बंधु होई ॥
बिनु सतिगुर भेटे मुकति न होई ॥੫॥੧॥੧੧੨੭-੧੧੨੮॥

29. आपे दैत लाइ दिते संत जना कउ

आपे दैत लाइ दिते संत जना कउ आपे राखा सोई ॥
जो तेरी सदा सरणाई तिन मनि दुखु न होई ॥१॥
जुगि जुगि भगता की रखदा आइआ ॥
दैत पुत्रु प्रहलादु गाइत्री तरपणु किछू न जाणै सबदे मेलि मिलाइआ ॥१॥ रहाउ ॥
अनदिनु भगति करहि दिन राती दुबिधा सबदे खोई ॥
सदा निरमल है जो सचि राते सचु वसिआ मनि सोई ॥२॥
मूरख दुबिधा पड़्हहि मूलु न पछाणहि बिरथा जनमु गवाइआ ॥
संत जना की निंदा करहि दुसटु दैतु चिड़ाइआ ॥३॥
प्रहलादु दुबिधा न पड़ै हरि नामु न छोडै डरै न किसै दा डराइआ ॥
संत जना का हरि जीउ राखा दैतै कालु नेड़ा आइआ ॥४॥
आपणी पैज आपे राखै भगतां देइ वडिआई ॥
नानक हरणाखसु नखी बिदारिआ अंधै दर की खबरि न पाई ॥੫॥੧੧॥੨੧॥੧੧੩੩॥