श्लोक गुरू राम दास जी
Salok Guru Ram Das Ji in Hindi

1. जिस दै अंदरि सचु है

जिस दै अंदरि सचु है सो सचा नामु मुखि सचु अलाए ॥
ओहु हरि मारगि आपि चलदा होरना नो हरि मारगि पाए ॥
जे अगै तीरथु होइ ता मलु लहै छपड़ि नातै सगवी मलु लाए ॥
तीरथु पूरा सतिगुरू जो अनदिनु हरि हरि नामु धिआए ॥
ओहु आपि छुटा कुट्मब सिउ दे हरि हरि नामु सभ स्रिसटि छडाए ॥
जन नानक तिसु बलिहारणै जो आपि जपै अवरा नामु जपाए ॥2॥140॥

2. परहरि काम क्रोधु झूठु निंदा

परहरि काम क्रोधु झूठु निंदा तजि माइआ अहंकारु चुकावै ॥
तजि कामु कामिनी मोहु तजै ता अंजन माहि निरंजनु पावै ॥
तजि मानु अभिमानु प्रीति सुत दारा तजि पिआस आस राम लिव लावै ॥
नानक साचा मनि वसै साच सबदि हरि नामि समावै ॥2॥141॥

3. सतिगुरु पुरखु दइआलु है

सतिगुरु पुरखु दइआलु है जिस नो समतु सभु कोइ ॥
एक द्रिसटि करि देखदा मन भावनी ते सिधि होइ ॥
सतिगुर विचि अम्रितु है हरि उतमु हरि पदु सोइ ॥
नानक किरपा ते हरि धिआईऐ गुरमुखि पावै कोइ ॥1॥300॥

4. हउमै माइआ सभ बिखु है

हउमै माइआ सभ बिखु है नित जगि तोटा संसारि ॥
लाहा हरि धनु खटिआ गुरमुखि सबदु वीचारि ॥
हउमै मैलु बिखु उतरै हरि अम्रितु हरि उर धारि ॥
सभि कारज तिन के सिधि हहि जिन गुरमुखि किरपा धारि ॥
नानक जो धुरि मिले से मिलि रहे हरि मेले सिरजणहारि ॥2॥300॥

5. विणु नावै होरु सलाहणा

विणु नावै होरु सलाहणा सभु बोलणु फिका सादु ॥
मनमुख अहंकारु सलाहदे हउमै ममता वादु ॥
जिन सालाहनि से मरहि खपि जावै सभु अपवादु ॥
जन नानक गुरमुखि उबरे जपि हरि हरि परमानादु ॥1॥301॥

6. सतिगुर हरि प्रभु दसि

सतिगुर हरि प्रभु दसि नामु धिआई मनि हरी ॥
नानक नामु पवितु हरि मुखि बोली सभि दुख परहरी ॥2॥301॥

7. मन अंतरि हउमै रोगु है

मन अंतरि हउमै रोगु है भ्रमि भूले मनमुख दुरजना ॥
नानक रोगु गवाइ मिलि सतिगुर साधू सजना ॥1॥301॥

8. मनु तनु रता रंग सिउ

मनु तनु रता रंग सिउ गुरमुखि हरि गुणतासु ॥
जन नानक हरि सरणागती हरि मेले गुर साबासि ॥2॥301॥

9. मै मनि तनि प्रेमु पिरम का

मै मनि तनि प्रेमु पिरम का अठे पहर लगंनि ॥
जन नानक किरपा धारि प्रभ सतिगुर सुखि वसंनि ॥1॥301॥

10. जिन अंदरि प्रीति पिरम की

जिन अंदरि प्रीति पिरम की जिउ बोलनि तिवै सोहंनि ॥
नानक हरि आपे जाणदा जिनि लाई प्रीति पिरंनि ॥2॥301॥

11. सुणि साजन प्रेम संदेसरा

सुणि साजन प्रेम संदेसरा अखी तार लगंनि ॥
गुरि तुठै सजणु मेलिआ जन नानक सुखि सवंनि ॥1॥302॥

12. सतिगुरु दाता दइआलु है

सतिगुरु दाता दइआलु है जिस नो दइआ सदा होइ ॥
सतिगुरु अंदरहु निरवैरु है सभु देखै ब्रहमु इकु सोइ ॥
निरवैरा नालि जि वैरु चलाइदे तिन विचहु तिसटिआ न कोइ ॥
सतिगुरु सभना दा भला मनाइदा तिस दा बुरा किउ होइ ॥
सतिगुर नो जेहा को इछदा तेहा फलु पाए कोइ ॥
नानक करता सभु किछु जाणदा जिदू किछु गुझा न होइ ॥2॥302॥

13. हरि सति निरंजन अमरु है

हरि सति निरंजन अमरु है निरभउ निरवैरु निरंकारु ॥
जिन जपिआ इक मनि इक चिति तिन लथा हउमै भारु ॥
जिन गुरमुखि हरि आराधिआ तिन संत जना जैकारु ॥
कोई निंदा करे पूरे सतिगुरू की तिस नो फिटु फिटु कहै सभु संसारु ॥
सतिगुर विचि आपि वरतदा हरि आपे रखणहारु ॥
धनु धंनु गुरू गुण गावदा तिस नो सदा सदा नमसकारु ॥
जन नानक तिन कउ वारिआ जिन जपिआ सिरजणहारु ॥1॥302॥

14. आपे धरती साजीअनु

आपे धरती साजीअनु आपे आकासु ॥
विचि आपे जंत उपाइअनु मुखि आपे देइ गिरासु ॥
सभु आपे आपि वरतदा आपे ही गुणतासु ॥
जन नानक नामु धिआइ तू सभि किलविख कटे तासु ॥2॥302॥

15. सतिगुरु धरती धरम है

सतिगुरु धरती धरम है तिसु विचि जेहा को बीजे तेहा फलु पाए ॥
गुरसिखी अम्रितु बीजिआ तिन अम्रित फलु हरि पाए ॥
ओना हलति पलति मुख उजले ओइ हरि दरगह सची पैनाए ॥
इकन्हा अंदरि खोटु नित खोटु कमावहि ओहु जेहा बीजे तेहा फलु खाए ॥
जा सतिगुरु सराफु नदरि करि देखै सुआवगीर सभि उघड़ि आए ॥
ओइ जेहा चितवहि नित तेहा पाइनि ओइ तेहो जेहे दयि वजाए ॥
नानक दुही सिरी खसमु आपे वरतै नित करि करि देखै चलत सबाए ॥1॥302॥

16. इकु मनु इकु वरतदा

इकु मनु इकु वरतदा जितु लगै सो थाइ पाइ ॥
कोई गला करे घनेरीआ जि घरि वथु होवै साई खाइ ॥
बिनु सतिगुर सोझी ना पवै अहंकारु न विचहु जाइ ॥
अहंकारीआ नो दुख भुख है हथु तडहि घरि घरि मंगाइ ॥
कूड़ु ठगी गुझी ना रहै मुलमा पाजु लहि जाइ ॥
जिसु होवै पूरबि लिखिआ तिसु सतिगुरु मिलै प्रभु आइ ॥
जिउ लोहा पारसि भेटीऐ मिलि संगति सुवरनु होइ जाइ ॥
जन नानक के प्रभ तू धणी जिउ भावै तिवै चलाइ ॥2॥303॥

17. सतिगुर विचि वडी वडिआई

सतिगुर विचि वडी वडिआई जो अनदिनु हरि हरि नामु धिआवै ॥
हरि हरि नामु रमत सुच संजमु हरि नामे ही त्रिपतावै ॥
हरि नामु ताणु हरि नामु दीबाणु हरि नामो रख करावै ॥
जो चितु लाइ पूजे गुर मूरति सो मन इछे फल पावै ॥
जो निंदा करे सतिगुर पूरे की तिसु करता मार दिवावै ॥
फेरि ओह वेला ओसु हथि न आवै ओहु आपणा बीजिआ आपे खावै ॥
नरकि घोरि मुहि कालै खड़िआ जिउ तसकरु पाइ गलावै ॥
फिरि सतिगुर की सरणी पवै ता उबरै जा हरि हरि नामु धिआवै ॥
हरि बाता आखि सुणाए नानकु हरि करते एवै भावै ॥1॥303॥

18. पूरे गुर का हुकमु न मंनै

पूरे गुर का हुकमु न मंनै ओहु मनमुखु अगिआनु मुठा बिखु माइआ ॥
ओसु अंदरि कूड़ु कूड़ो करि बुझै अणहोदे झगड़े दयि ओस दै गलि पाइआ ॥
ओहु गल फरोसी करे बहुतेरी ओस दा बोलिआ किसै न भाइआ ॥
ओहु घरि घरि हंढै जिउ रंन दोहागणि ओसु नालि मुहु जोड़े ओसु भी लछणु लाइआ ॥
गुरमुखि होइ सु अलिपतो वरतै ओस दा पासु छडि गुर पासि बहि जाइआ ॥
जो गुरु गोपे आपणा सु भला नाही पंचहु ओनि लाहा मूलु सभु गवाइआ ॥
पहिला आगमु निगमु नानकु आखि सुणाए पूरे गुर का बचनु उपरि आइआ ॥
गुरसिखा वडिआई भावै गुर पूरे की मनमुखा ओह वेला हथि न आइआ ॥303॥

19. हरि प्रभ का सभु खेतु है

हरि प्रभ का सभु खेतु है हरि आपि किरसाणी लाइआ ॥
गुरमुखि बखसि जमाईअनु मनमुखी मूलु गवाइआ ॥
सभु को बीजे आपणे भले नो हरि भावै सो खेतु जमाइआ ॥
गुरसिखी हरि अम्रितु बीजिआ हरि अम्रित नामु फलु अम्रितु पाइआ ॥
जमु चूहा किरस नित कुरकदा हरि करतै मारि कढाइआ ॥
किरसाणी जमी भाउ करि हरि बोहल बखस जमाइआ ॥
तिन का काड़ा अंदेसा सभु लाहिओनु जिनी सतिगुरु पुरखु धिआइआ ॥
जन नानक नामु अराधिआ आपि तरिआ सभु जगतु तराइआ ॥1॥304॥

20. सारा दिनु लालचि अटिआ

सारा दिनु लालचि अटिआ मनमुखि होरे गला ॥
राती ऊघै दबिआ नवे सोत सभि ढिला ॥
मनमुखा दै सिरि जोरा अमरु है नित देवहि भला ॥
जोरा दा आखिआ पुरख कमावदे से अपवित अमेध खला ॥
कामि विआपे कुसुध नर से जोरा पुछि चला ॥
सतिगुर कै आखिऐ जो चलै सो सति पुरखु भल भला ॥
जोरा पुरख सभि आपि उपाइअनु हरि खेल सभि खिला ॥
सभ तेरी बणत बणावणी नानक भल भला ॥2॥304॥

21. सतिगुर की सेवा निरमली

सतिगुर की सेवा निरमली निरमल जनु होइ सु सेवा घाले ॥
जिन अंदरि कपटु विकारु झूठु ओइ आपे सचै वखि कढे जजमाले ॥
सचिआर सिख बहि सतिगुर पासि घालनि कूड़िआर न लभनी कितै थाइ भाले ॥
जिना सतिगुर का आखिआ सुखावै नाही तिना मुह भलेरे फिरहि दयि गाले ॥
जिन अंदरि प्रीति नही हरि केरी से किचरकु वेराईअनि मनमुख बेताले ॥
सतिगुर नो मिलै सु आपणा मनु थाइ रखै ओहु आपि वरतै आपणी वथु नाले ॥
जन नानक इकना गुरु मेलि सुखु देवै इकि आपे वखि कढै ठगवाले ॥1॥305॥

22. जिना अंदरि नामु निधानु

जिना अंदरि नामु निधानु हरि तिन के काज दयि आदे रासि ॥
तिन चूकी मुहताजी लोकन की हरि प्रभु अंगु करि बैठा पासि ॥
जां करता वलि ता सभु को वलि सभि दरसनु देखि करहि साबासि ॥
साहु पातिसाहु सभु हरि का कीआ सभि जन कउ आइ करहि रहरासि ॥
गुर पूरे की वडी वडिआई हरि वडा सेवि अतुलु सुखु पाइआ ॥
गुरि पूरै दानु दीआ हरि निहचलु नित बखसे चड़ै सवाइआ ॥
कोई निंदकु वडिआई देखि न सकै सो करतै आपि पचाइआ ॥
जनु नानकु गुण बोलै करते के भगता नो सदा रखदा आइआ ॥2॥305॥

23. अगो दे सत भाउ न दिचै

अगो दे सत भाउ न दिचै पिछो दे आखिआ कमि न आवै ॥
अध विचि फिरै मनमुखु वेचारा गली किउ सुखु पावै ॥
जिसु अंदरि प्रीति नही सतिगुर की सु कूड़ी आवै कूड़ी जावै ॥
जे क्रिपा करे मेरा हरि प्रभु करता तां सतिगुरु पारब्रहमु नदरी आवै ॥
ता अपिउ पीवै सबदु गुर केरा सभु काड़ा अंदेसा भरमु चुकावै ॥
सदा अनंदि रहै दिनु राती जन नानक अनदिनु हरि गुण गावै ॥1॥305॥

24. गुर सतिगुर का जो सिखु अखाए

गुर सतिगुर का जो सिखु अखाए सु भलके उठि हरि नामु धिआवै ॥
उदमु करे भलके परभाती इसनानु करे अम्रित सरि नावै ॥
उपदेसि गुरू हरि हरि जपु जापै सभि किलविख पाप दोख लहि जावै ॥
फिरि चड़ै दिवसु गुरबाणी गावै बहदिआ उठदिआ हरि नामु धिआवै ॥
जो सासि गिरासि धिआए मेरा हरि हरि सो गुरसिखु गुरू मनि भावै ॥
जिस नो दइआलु होवै मेरा सुआमी तिसु गुरसिख गुरू उपदेसु सुणावै ॥
जनु नानकु धूड़ि मंगै तिसु गुरसिख की जो आपि जपै अवरह नामु जपावै ॥2॥305॥

25. मलु जूई भरिआ नीला काला खिधोलड़ा

मलु जूई भरिआ नीला काला खिधोलड़ा तिनि वेमुखि वेमुखै नो पाइआ ॥
पासि न देई कोई बहणि जगत महि गूह पड़ि सगवी मलु लाइ मनमुखु आइआ ॥
पराई जो निंदा चुगली नो वेमुखु करि कै भेजिआ ओथै भी मुहु काला दुहा वेमुखा दा कराइआ ॥
तड़ सुणिआ सभतु जगत विचि भाई वेमुखु सणै नफरै पउली पउदी फावा होइ कै उठि घरि आइआ ॥
अगै संगती कुड़मी वेमुखु रलणा न मिलै ता वहुटी भतीजीं फिरि आणि घरि पाइआ ॥
हलतु पलतु दोवै गए नित भुखा कूके तिहाइआ ॥
धनु धनु सुआमी करता पुरखु है जिनि निआउ सचु बहि आपि कराइआ ॥
जो निंदा करे सतिगुर पूरे की सो साचै मारि पचाइआ ॥
एहु अखरु तिनि आखिआ जिनि जगतु सभु उपाइआ ॥1॥306॥

26. साहिबु जिस का नंगा भुखा होवै

साहिबु जिस का नंगा भुखा होवै तिस दा नफरु किथहु रजि खाए ॥
जि साहिब कै घरि वथु होवै सु नफरै हथि आवै अणहोदी किथहु पाए ॥
जिस दी सेवा कीती फिरि लेखा मंगीऐ सा सेवा अउखी होई ॥
नानक सेवा करहु हरि गुर सफल दरसन की फिरि लेखा मंगै न कोई ॥2॥306॥

27. अंतरि हरि गुरू धिआइदा

अंतरि हरि गुरू धिआइदा वडी वडिआई ॥
तुसि दिती पूरै सतिगुरू घटै नाही इकु तिलु किसै दी घटाई ॥
सचु साहिबु सतिगुरू कै वलि है तां झखि झखि मरै सभ लोकाई ॥
निंदका के मुह काले करे हरि करतै आपि वधाई ॥
जिउ जिउ निंदक निंद करहि तिउ तिउ नित नित चड़ै सवाई ॥
जन नानक हरि आराधिआ तिनि पैरी आणि सभ पाई ॥1॥307॥

28. सतिगुर सेती गणत जि रखै

सतिगुर सेती गणत जि रखै हलतु पलतु सभु तिस का गइआ ॥
नित झहीआ पाए झगू सुटे झखदा झखदा झड़ि पइआ ॥
नित उपाव करै माइआ धन कारणि अगला धनु भी उडि गइआ ॥
किआ ओहु खटे किआ ओहु खावै जिसु अंदरि सहसा दुखु पइआ ॥
निरवैरै नालि जि वैरु रचाए सभु पापु जगतै का तिनि सिरि लइआ ॥
ओसु अगै पिछै ढोई नाही जिसु अंदरि निंदा मुहि अम्बु पइआ ॥
जे सुइने नो ओहु हथु पाए ता खेहू सेती रलि गइआ ॥
जे गुर की सरणी फिरि ओहु आवै ता पिछले अउगण बखसि लइआ ॥
जन नानक अनदिनु नामु धिआइआ हरि सिमरत किलविख पाप गइआ ॥2॥307॥

29. धुरि मारे पूरै सतिगुरू

धुरि मारे पूरै सतिगुरू सेई हुणि सतिगुरि मारे ॥
जे मेलण नो बहुतेरा लोचीऐ न देई मिलण करतारे ॥
सतसंगति ढोई ना लहनि विचि संगति गुरि वीचारे ॥
कोई जाइ मिलै हुणि ओना नो तिसु मारे जमु जंदारे ॥
गुरि बाबै फिटके से फिटे गुरि अंगदि कीते कूड़िआरे ॥
गुरि तीजी पीड़ी वीचारिआ किआ हथि एना वेचारे ॥
गुरु चउथी पीड़ी टिकिआ तिनि निंदक दुसट सभि तारे ॥
कोई पुतु सिखु सेवा करे सतिगुरू की तिसु कारज सभि सवारे ॥
जो इछै सो फलु पाइसी पुतु धनु लखमी खड़ि मेले हरि निसतारे ॥
सभि निधान सतिगुरू विचि जिसु अंदरि हरि उर धारे ॥
सो पाए पूरा सतिगुरू जिसु लिखिआ लिखतु लिलारे ॥
जनु नानकु मागै धूड़ि तिन जो गुरसिख मित पिआरे ॥1॥307॥

30. जिन कउ आपि देइ वडिआई

जिन कउ आपि देइ वडिआई जगतु भी आपे आणि तिन कउ पैरी पाए ॥
डरीऐ तां जे किछु आप दू कीचै सभु करता आपणी कला वधाए ॥
देखहु भाई एहु अखाड़ा हरि प्रीतम सचे का जिनि आपणै जोरि सभि आणि निवाए ॥
आपणिआ भगता की रख करे हरि सुआमी निंदका दुसटा के मुह काले कराए ॥
सतिगुर की वडिआई नित चड़ै सवाई हरि कीरति भगति नित आपि कराए ॥
अनदिनु नामु जपहु गुरसिखहु हरि करता सतिगुरु घरी वसाए ॥
सतिगुर की बाणी सति सति करि जाणहु गुरसिखहु हरि करता आपि मुहहु कढाए ॥
गुरसिखा के मुह उजले करे हरि पिआरा गुर का जैकारु संसारि सभतु कराए ॥
जनु नानकु हरि का दासु है हरि दासन की हरि पैज रखाए ॥2॥308॥

31. जिसु अंदरि ताति पराई होवै

जिसु अंदरि ताति पराई होवै तिस दा कदे न होवी भला ॥
ओस दै आखिऐ कोई न लगै नित ओजाड़ी पूकारे खला ॥
जिसु अंदरि चुगली चुगलो वजै कीता करतिआ ओस दा सभु गइआ ॥
नित चुगली करे अणहोदी पराई मुहु कढि न सकै ओस दा काला भइआ ॥
करम धरती सरीरु कलिजुग विचि जेहा को बीजे तेहा को खाए ॥
गला उपरि तपावसु न होई विसु खाधी ततकाल मरि जाए ॥
भाई वेखहु निआउ सचु करते का जेहा कोई करे तेहा कोई पाए ॥
जन नानक कउ सभ सोझी पाई हरि दर कीआ बाता आखि सुणाए ॥1॥308॥

32. होदै परतखि गुरू जो विछुड़े

होदै परतखि गुरू जो विछुड़े तिन कउ दरि ढोई नाही ॥
कोई जाइ मिलै तिन निंदका मुह फिके थुक थुक मुहि पाही ॥
जो सतिगुरि फिटके से सभ जगति फिटके नित भ्मभल भूसे खाही ॥
जिन गुरु गोपिआ आपणा से लैदे ढहा फिराही ॥
तिन की भुख कदे न उतरै नित भुखा भुख कूकाही ॥
ओना दा आखिआ को ना सुणै नित हउले हउलि मराही ॥
सतिगुर की वडिआई वेखि न सकनी ओना अगै पिछै थाउ नाही ॥
जो सतिगुरि मारे तिन जाइ मिलहि रहदी खुहदी सभ पति गवाही ॥
ओइ अगै कुसटी गुर के फिटके जि ओसु मिलै तिसु कुसटु उठाही ॥
हरि तिन का दरसनु ना करहु जो दूजै भाइ चितु लाही ॥
धुरि करतै आपि लिखि पाइआ तिसु नालि किहु चारा नाही ॥
जन नानक नामु अराधि तू तिसु अपड़ि को न सकाही ॥
नावै की वडिआई वडी है नित सवाई चड़ै चड़ाही ॥2॥308॥

33. जि होंदै गुरू बहि टिकिआ

जि होंदै गुरू बहि टिकिआ तिसु जन की वडिआई वडी होई ॥
तिसु कउ जगतु निविआ सभु पैरी पइआ जसु वरतिआ लोई ॥
तिस कउ खंड ब्रहमंड नमसकारु करहि जिस कै मसतकि हथु धरिआ गुरि पूरै सो पूरा होई ॥
गुर की वडिआई नित चड़ै सवाई अपड़ि को न सकोई ॥
जनु नानकु हरि करतै आपि बहि टिकिआ आपे पैज रखै प्रभु सोई ॥3॥309॥

34. जो निंदा करे सतिगुर पूरे की

जो निंदा करे सतिगुर पूरे की सु अउखा जग महि होइआ ॥
नरक घोरु दुख खूहु है ओथै पकड़ि ओहु ढोइआ ॥
कूक पुकार को न सुणे ओहु अउखा होइ होइ रोइआ ॥
ओनि हलतु पलतु सभु गवाइआ लाहा मूलु सभु खोइआ ॥
ओहु तेली संदा बलदु करि नित भलके उठि प्रभि जोइआ ॥
हरि वेखै सुणै नित सभु किछु तिदू किछु गुझा न होइआ ॥
जैसा बीजे सो लुणै जेहा पुरबि किनै बोइआ ॥
जिसु क्रिपा करे प्रभु आपणी तिसु सतिगुर के चरण धोइआ ॥
गुर सतिगुर पिछै तरि गइआ जिउ लोहा काठ संगोइआ ॥
जन नानक नामु धिआइ तू जपि हरि हरि नामि सुखु होइआ ॥1॥309॥

35. वडभागीआ सोहागणी

वडभागीआ सोहागणी जिना गुरमुखि मिलिआ हरि राइ ॥
अंतर जोति प्रगासीआ नानक नामि समाइ ॥2॥309॥

36. सभि रस तिन कै रिदै हहि

सभि रस तिन कै रिदै हहि जिन हरि वसिआ मन माहि ॥
हरि दरगहि ते मुख उजले तिन कउ सभि देखण जाहि ॥
जिन निरभउ नामु धिआइआ तिन कउ भउ कोई नाहि ॥
हरि उतमु तिनी सरेविआ जिन कउ धुरि लिखिआ आहि ॥
ते हरि दरगहि पैनाईअहि जिन हरि वुठा मन माहि ॥
ओइ आपि तरे सभ कुट्मब सिउ तिन पिछै सभु जगतु छडाहि ॥
जन नानक कउ हरि मेलि जन तिन वेखि वेखि हम जीवाहि ॥1॥310॥

37. सा धरती भई हरीआवली

सा धरती भई हरीआवली जिथै मेरा सतिगुरु बैठा आइ ॥
से जंत भए हरीआवले जिनी मेरा सतिगुरु देखिआ जाइ ॥
धनु धंनु पिता धनु धंनु कुलु धनु धनु सु जननी जिनि गुरू जणिआ माइ ॥
धनु धंनु गुरू जिनि नामु अराधिआ आपि तरिआ जिनी डिठा तिना लए छडाइ ॥
हरि सतिगुरु मेलहु दइआ करि जनु नानकु धोवै पाइ ॥2॥310॥

38. करि किरपा सतिगुरु मेलिओनु

करि किरपा सतिगुरु मेलिओनु मुखि गुरमुखि नामु धिआइसी ॥
सो करे जि सतिगुर भावसी गुरु पूरा घरी वसाइसी ॥
जिन अंदरि नामु निधानु है तिन का भउ सभु गवाइसी ॥
जिन रखण कउ हरि आपि होइ होर केती झखि झखि जाइसी ॥
जन नानक नामु धिआइ तू हरि हलति पलति छोडाइसी ॥1॥310॥

39. गुरसिखा कै मनि भावदी

गुरसिखा कै मनि भावदी गुर सतिगुर की वडिआई ॥
हरि राखहु पैज सतिगुरू की नित चड़ै सवाई ॥
गुर सतिगुर कै मनि पारब्रहमु है पारब्रहमु छडाई ॥
गुर सतिगुर ताणु दीबाणु हरि तिनि सभ आणि निवाई ॥
जिनी डिठा मेरा सतिगुरु भाउ करि तिन के सभि पाप गवाई ॥
हरि दरगह ते मुख उजले बहु सोभा पाई ॥
जनु नानकु मंगै धूड़ि तिन जो गुर के सिख मेरे भाई ॥2॥310॥

40. जिना अंदरि उमरथल

जिना अंदरि उमरथल सेई जाणनि सूलीआ ॥
हरि जाणहि सेई बिरहु हउ तिन विटहु सद घुमि घोलीआ ॥
हरि मेलहु सजणु पुरखु मेरा सिरु तिन विटहु तल रोलीआ ॥
जो सिख गुर कार कमावहि हउ गुलमु तिना का गोलीआ ॥
हरि रंगि चलूलै जो रते तिन भिनी हरि रंगि चोलीआ ॥
करि किरपा नानक मेलि गुर पहि सिरु वेचिआ मोलीआ ॥1॥311॥

41. अउगणी भरिआ सरीरु है

अउगणी भरिआ सरीरु है किउ संतहु निरमलु होइ ॥
गुरमुखि गुण वेहाझीअहि मलु हउमै कढै धोइ ॥
सचु वणंजहि रंग सिउ सचु सउदा होइ ॥
तोटा मूलि न आवई लाहा हरि भावै सोइ ॥
नानक तिन सचु वणंजिआ जिना धुरि लिखिआ परापति होइ ॥2॥311॥

42. सतसंगति महि हरि उसतति है

सतसंगति महि हरि उसतति है संगि साधू मिले पिआरिआ ॥
ओइ पुरख प्राणी धंनि जन हहि उपदेसु करहि परउपकारिआ ॥
हरि नामु द्रिड़ावहि हरि नामु सुणावहि हरि नामे जगु निसतारिआ ॥
गुर वेखण कउ सभु कोई लोचै नव खंड जगति नमसकारिआ ॥
तुधु आपे आपु रखिआ सतिगुर विचि गुरु आपे तुधु सवारिआ ॥
तू आपे पूजहि पूज करावहि सतिगुर कउ सिरजणहारिआ ॥
कोई विछुड़ि जाइ सतिगुरू पासहु तिसु काला मुहु जमि मारिआ ॥
तिसु अगै पिछै ढोई नाही गुरसिखी मनि वीचारिआ ॥
सतिगुरू नो मिले सेई जन उबरे जिन हिरदै नामु समारिआ ॥
जन नानक के गुरसिख पुतहहु हरि जपिअहु हरि निसतारिआ ॥2॥311॥

43. साकत जाइ निवहि गुर आगै

साकत जाइ निवहि गुर आगै मनि खोटे कूड़ि कूड़िआरे ॥
जा गुरु कहै उठहु मेरे भाई बहि जाहि घुसरि बगुलारे ॥
गुरसिखा अंदरि सतिगुरु वरतै चुणि कढे लधोवारे ॥
ओइ अगै पिछै बहि मुहु छपाइनि न रलनी खोटेआरे ॥
ओना दा भखु सु ओथै नाही जाइ कूड़ु लहनि भेडारे ॥
जे साकतु नरु खावाईऐ लोचीऐ बिखु कढै मुखि उगलारे ॥
हरि साकत सेती संगु न करीअहु ओइ मारे सिरजणहारे ॥
जिस का इहु खेलु सोई करि वेखै जन नानक नामु समारे ॥1॥312॥

44. सतिगुरु पुरखु अगमु है

सतिगुरु पुरखु अगमु है जिसु अंदरि हरि उरि धारिआ ॥
सतिगुरू नो अपड़ि कोइ न सकई जिसु वलि सिरजणहारिआ ॥
सतिगुरू का खड़गु संजोउ हरि भगति है जितु कालु कंटकु मारि विडारिआ ॥
सतिगुरू का रखणहारा हरि आपि है सतिगुरू कै पिछै हरि सभि उबारिआ ॥
जो मंदा चितवै पूरे सतिगुरू का सो आपि उपावणहारै मारिआ ॥
एह गल होवै हरि दरगह सचे की जन नानक अगमु वीचारिआ ॥2॥312॥

45. किआ सवणा किआ जागणा

किआ सवणा किआ जागणा गुरमुखि ते परवाणु ॥
जिना सासि गिरासि न विसरै से पूरे पुरख परधान ॥
करमी सतिगुरु पाईऐ अनदिनु लगै धिआनु ॥
तिन की संगति मिलि रहा दरगह पाई मानु ॥
सउदे वाहु वाहु उचरहि उठदे भी वाहु करेनि ॥
नानक ते मुख उजले जि नित उठि समालेनि ॥1॥313॥

46. सतिगुरु सेवीऐ आपणा

सतिगुरु सेवीऐ आपणा पाईऐ नामु अपारु ॥
भउजलि डुबदिआ कढि लए हरि दाति करे दातारु ॥
धंनु धंनु से साह है जि नामि करहि वापारु ॥
वणजारे सिख आवदे सबदि लघावणहारु ॥
जन नानक जिन कउ क्रिपा भई तिन सेविआ सिरजणहारु ॥2॥313॥

47. मनमुखु प्राणी मुगधु है

मनमुखु प्राणी मुगधु है नामहीण भरमाइ ॥
बिनु गुर मनूआ ना टिकै फिरि फिरि जूनी पाइ ॥
हरि प्रभु आपि दइआल होहि तां सतिगुरु मिलिआ आइ ॥
जन नानक नामु सलाहि तू जनम मरण दुखु जाइ ॥1॥313॥

48. गुरु सालाही आपणा

गुरु सालाही आपणा बहु बिधि रंगि सुभाइ ॥
सतिगुर सेती मनु रता रखिआ बणत बणाइ ॥
जिहवा सालाहि न रजई हरि प्रीतम चितु लाइ ॥
नानक नावै की मनि भुख है मनु त्रिपतै हरि रसु खाइ ॥2॥313॥

49. मै मनु तनु खोजि खोजेदिआ

मै मनु तनु खोजि खोजेदिआ सो प्रभु लधा लोड़ि ॥
विसटु गुरू मै पाइआ जिनि हरि प्रभु दिता जोड़ि ॥1॥313॥

50. इहु मनूआ द्रिड़ु करि रखीऐ

इहु मनूआ द्रिड़ु करि रखीऐ गुरमुखि लाईऐ चितु ॥
किउ सासि गिरासि विसारीऐ बहदिआ उठदिआ नित ॥
मरण जीवण की चिंता गई इहु जीअड़ा हरि प्रभ वसि ॥
जिउ भावै तिउ रखु तू जन नानक नामु बखसि ॥1॥314॥

51. तपा न होवै अंद्रहु लोभी

तपा न होवै अंद्रहु लोभी नित माइआ नो फिरै जजमालिआ ॥
अगो दे सदिआ सतै दी भिखिआ लए नाही पिछो दे पछुताइ कै आणि तपै पुतु विचि बहालिआ ॥
पंच लोग सभि हसण लगे तपा लोभि लहरि है गालिआ ॥
जिथै थोड़ा धनु वेखै तिथै तपा भिटै नाही धनि बहुतै डिठै तपै धरमु हारिआ ॥
भाई एहु तपा न होवी बगुला है बहि साध जना वीचारिआ ॥
सत पुरख की तपा निंदा करै संसारै की उसतती विचि होवै एतु दोखै तपा दयि मारिआ ॥
महा पुरखां की निंदा का वेखु जि तपे नो फलु लगा सभु गइआ तपे का घालिआ ॥
बाहरि बहै पंचा विचि तपा सदाए ॥
अंदरि बहै तपा पाप कमाए ॥
हरि अंदरला पापु पंचा नो उघा करि वेखालिआ ॥
धरम राइ जमकंकरा नो आखि छडिआ एसु तपे नो तिथै खड़ि पाइहु जिथै महा महां हतिआरिआ ॥
फिरि एसु तपे दै मुहि कोई लगहु नाही एहु सतिगुरि है फिटकारिआ ॥
हरि कै दरि वरतिआ सु नानकि आखि सुणाइआ ॥
सो बूझै जु दयि सवारिआ ॥1॥315॥

52. हरि भगतां हरि आराधिआ

हरि भगतां हरि आराधिआ हरि की वडिआई ॥
हरि कीरतनु भगत नित गांवदे हरि नामु सुखदाई ॥
हरि भगतां नो नित नावै दी वडिआई बखसीअनु नित चड़ै सवाई ॥
हरि भगतां नो थिरु घरी बहालिअनु अपणी पैज रखाई ॥
निंदकां पासहु हरि लेखा मंगसी बहु देइ सजाई ॥
जेहा निंदक अपणै जीइ कमावदे तेहो फलु पाई ॥
अंदरि कमाणा सरपर उघड़ै भावै कोई बहि धरती विचि कमाई ॥
जन नानकु देखि विगसिआ हरि की वडिआई ॥2॥316॥

53. मनमुख मूलहु भुलिआ

मनमुख मूलहु भुलिआ विचि लबु लोभु अहंकारु ॥
झगड़ा करदिआ अनदिनु गुदरै सबदि न करहि वीचारु ॥
सुधि मति करतै सभ हिरि लई बोलनि सभु विकारु ॥
दितै कितै न संतोखीअहि अंतरि तिसना बहु अगिआनु अंध्यारु ॥
नानक मनमुखा नालो तुटी भली जिन माइआ मोह पिआरु ॥1॥316॥

54. जिना अंदरि दूजा भाउ है

जिना अंदरि दूजा भाउ है तिन्हा गुरमुखि प्रीति न होइ ॥
ओहु आवै जाइ भवाईऐ सुपनै सुखु न कोइ ॥
कूड़ु कमावै कूड़ु उचरै कूड़ि लगिआ कूड़ु होइ ॥
माइआ मोहु सभु दुखु है दुखि बिनसै दुखु रोइ ॥
नानक धातु लिवै जोड़ु न आवई जे लोचै सभु कोइ ॥
जिन कउ पोतै पुंनु पइआ तिना गुर सबदी सुखु होइ ॥2॥316॥

55. सतिगुर के जीअ की सार न जापै

सतिगुर के जीअ की सार न जापै कि पूरै सतिगुर भावै ॥
गुरसिखां अंदरि सतिगुरू वरतै जो सिखां नो लोचै सो गुर खुसी आवै ॥
सतिगुरु आखै सु कार कमावनि सु जपु कमावहि गुरसिखां की घाल सचा थाइ पावै ॥
विणु सतिगुर के हुकमै जि गुरसिखां पासहु कमु कराइआ लोड़े तिसु गुरसिखु फिरि नेड़ि न आवै ॥
गुर सतिगुर अगै को जीउ लाइ घालै तिसु अगै गुरसिखु कार कमावै ॥
जि ठगी आवै ठगी उठि जाइ तिसु नेड़ै गुरसिखु मूलि न आवै ॥
ब्रहमु बीचारु नानकु आखि सुणावै ॥
जि विणु सतिगुर के मनु मंने कमु कराए सो जंतु महा दुखु पावै ॥2॥317॥

56. अंधे चानणु ता थीऐ

अंधे चानणु ता थीऐ जा सतिगुरु मिलै रजाइ ॥
बंधन तोड़ै सचि वसै अगिआनु अधेरा जाइ ॥
सभु किछु देखै तिसै का जिनि कीआ तनु साजि ॥
नानक सरणि करतार की करता राखै लाज ॥2॥551॥

57. बिनु सतिगुर सेवे जीअ के बंधना

बिनु सतिगुर सेवे जीअ के बंधना जेते करम कमाहि ॥
बिनु सतिगुर सेवे ठवर न पावही मरि जमहि आवहि जाहि ॥
बिनु सतिगुर सेवे फिका बोलणा नामु न वसै मनि आइ ॥
नानक बिनु सतिगुर सेवे जम पुरि बधे मारीअहि मुहि कालै उठि जाहि ॥1॥552॥