श्लोक गुरू अमर दास जी
Salok Guru Amar Das Ji

1. रागा विचि स्रीरागु है

रागा विचि स्रीरागु है जे सचि धरे पिआरु ॥
सदा हरि सचु मनि वसै निहचल मति अपारु ॥
रतनु अमोलकु पाइआ गुर का सबदु बीचारु ॥
जिहवा सची मनु सचा सचा सरीर अकारु ॥
नानक सचै सतिगुरि सेविऐ सदा सचु वापारु ॥1॥83॥

2. होरु बिरहा सभ धातु है

होरु बिरहा सभ धातु है जब लगु साहिब प्रीति न होइ ॥
इहु मनु माइआ मोहिआ वेखणु सुनणु न होइ ॥
सह देखे बिनु प्रीति न ऊपजै अंधा किआ करेइ ॥
नानक जिनि अखी लीतीआ सोई सचा देइ ॥2॥83॥

3. गुर सभा एव न पाईऐ

गुर सभा एव न पाईऐ ना नेड़ै ना दूरि ॥
नानक सतिगुरु तां मिलै जा मनु रहै हदूरि ॥2॥84॥

4. कलउ मसाजनी किआ सदाईऐ

कलउ मसाजनी किआ सदाईऐ हिरदै ही लिखि लेहु ॥
सदा साहिब कै रंगि रहै कबहूं न तूटसि नेहु ॥
कलउ मसाजनी जाइसी लिखिआ भी नाले जाइ ॥
नानक सह प्रीति न जाइसी जो धुरि छोडी सचै पाइ ॥1॥84॥

5. नदरी आवदा नालि न चलई

नदरी आवदा नालि न चलई वेखहु को विउपाइ ॥
सतिगुरि सचु द्रिड़ाइआ सचि रहहु लिव लाइ ॥
नानक सबदी सचु है करमी पलै पाइ ॥2॥84॥

6. कलम जलउ सणु मसवाणीऐ

कलम जलउ सणु मसवाणीऐ कागदु भी जलि जाउ ॥
लिखण वाला जलि बलउ जिनि लिखिआ दूजा भाउ ॥
नानक पूरबि लिखिआ कमावणा अवरु न करणा जाइ ॥1॥84॥

7. होरु कूड़ु पड़णा कूड़ु बोलणा

होरु कूड़ु पड़णा कूड़ु बोलणा माइआ नालि पिआरु ॥
नानक विणु नावै को थिरु नही पड़ि पड़ि होइ खुआरु ॥2॥84॥

8. हउ हउ करती सभ मुई

हउ हउ करती सभ मुई स्मपउ किसै न नालि ॥
दूजै भाइ दुखु पाइआ सभ जोही जमकालि ॥
नानक गुरमुखि उबरे साचा नामु समालि ॥1॥84॥

9. हुकमु न जाणै बहुता रोवै

हुकमु न जाणै बहुता रोवै ॥
अंदरि धोखा नीद न सोवै ॥
जे धन खसमै चलै रजाई ॥
दरि घरि सोभा महलि बुलाई ॥
नानक करमी इह मति पाई ॥
गुर परसादी सचि समाई ॥1॥85॥

10. मनमुख नाम विहूणिआ

मनमुख नाम विहूणिआ रंगु कसु्मभा देखि न भुलु ॥
इस का रंगु दिन थोड़िआ छोछा इस दा मुलु ॥
दूजै लगे पचि मुए मूरख अंध गवार ॥
बिसटा अंदरि कीट से पइ पचहि वारो वार ॥
नानक नाम रते से रंगुले गुर कै सहजि सुभाइ ॥
भगती रंगु न उतरै सहजे रहै समाइ ॥2॥85॥

11. पड़ि पड़ि पंडित बेद वखाणहि

पड़ि पड़ि पंडित बेद वखाणहि माइआ मोह सुआइ ॥
दूजै भाइ हरि नामु विसारिआ मन मूरख मिलै सजाइ ॥
जिनि जीउ पिंडु दिता तिसु कबहूं न चेतै जो देंदा रिजकु स्मबाहि ॥
जम का फाहा गलहु न कटीऐ फिरि फिरि आवै जाइ ॥
मनमुखि किछू न सूझै अंधुले पूरबि लिखिआ कमाइ ॥
पूरै भागि सतिगुरु मिलै सुखदाता नामु वसै मनि आइ ॥
सुखु माणहि सुखु पैनणा सुखे सुखि विहाइ ॥
नानक सो नाउ मनहु न विसारीऐ जितु दरि सचै सोभा पाइ ॥1॥86॥

12. सतिगुरु सेवि सुखु पाइआ

सतिगुरु सेवि सुखु पाइआ सचु नामु गुणतासु ॥
गुरमती आपु पछाणिआ राम नाम परगासु ॥
सचो सचु कमावणा वडिआई वडे पासि ॥
जीउ पिंडु सभु तिस का सिफति करे अरदासि ॥
सचै सबदि सालाहणा सुखे सुखि निवासु ॥
जपु तपु संजमु मनै माहि बिनु नावै ध्रिगु जीवासु ॥
गुरमती नाउ पाईऐ मनमुख मोहि विणासु ॥
जिउ भावै तिउ राखु तूं नानकु तेरा दासु ॥2॥86॥

13. पंडितु पड़ि पड़ि उचा

पंडितु पड़ि पड़ि उचा कूकदा माइआ मोहि पिआरु ॥
अंतरि ब्रहमु न चीनई मनि मूरखु गावारु ॥
दूजै भाइ जगतु परबोधदा ना बूझै बीचारु ॥
बिरथा जनमु गवाइआ मरि जमै वारो वार ॥1॥86॥

14. जिनी सतिगुरु सेविआ तिनी नाउ पाइआ

जिनी सतिगुरु सेविआ तिनी नाउ पाइआ बूझहु करि बीचारु ॥
सदा सांति सुखु मनि वसै चूकै कूक पुकार ॥
आपै नो आपु खाइ मनु निरमलु होवै गुर सबदी वीचारु ॥
नानक सबदि रते से मुकतु है हरि जीउ हेति पिआरु ॥2॥86॥

15. नानक सो सूरा वरीआमु

नानक सो सूरा वरीआमु जिनि विचहु दुसटु अहंकरणु मारिआ ॥
गुरमुखि नामु सालाहि जनमु सवारिआ ॥
आपि होआ सदा मुकतु सभु कुलु निसतारिआ ॥
सोहनि सचि दुआरि नामु पिआरिआ ॥
मनमुख मरहि अहंकारि मरणु विगाड़िआ ॥
सभो वरतै हुकमु किआ करहि विचारिआ ॥
आपहु दूजै लगि खसमु विसारिआ ॥
नानक बिनु नावै सभु दुखु सुखु विसारिआ ॥1॥86॥

16. गुरि पूरै हरि नामु दिड़ाइआ

गुरि पूरै हरि नामु दिड़ाइआ तिनि विचहु भरमु चुकाइआ ॥
राम नामु हरि कीरति गाई करि चानणु मगु दिखाइआ ॥
हउमै मारि एक लिव लागी अंतरि नामु वसाइआ ॥
गुरमती जमु जोहि न साकै साचै नामि समाइआ ॥
सभु आपे आपि वरतै करता जो भावै सो नाइ लाइआ ॥
जन नानकु नामु लए ता जीवै बिनु नावै खिनु मरि जाइआ ॥2॥86-87॥

17. आतमा देउ पूजीऐ

आतमा देउ पूजीऐ गुर कै सहजि सुभाइ ॥
आतमे नो आतमे दी प्रतीति होइ ता घर ही परचा पाइ ॥
आतमा अडोलु न डोलई गुर कै भाइ सुभाइ ॥
गुर विणु सहजु न आवई लोभु मैलु न विचहु जाइ ॥
खिनु पलु हरि नामु मनि वसै सभ अठसठि तीरथ नाइ ॥
सचे मैलु न लगई मलु लागै दूजै भाइ ॥
धोती मूलि न उतरै जे अठसठि तीरथ नाइ ॥
मनमुख करम करे अहंकारी सभु दुखो दुखु कमाइ ॥
नानक मैला ऊजलु ता थीऐ जा सतिगुर माहि समाइ ॥1॥87॥

18. मनमुखु लोकु समझाईऐ

मनमुखु लोकु समझाईऐ कदहु समझाइआ जाइ ॥
मनमुखु रलाइआ ना रलै पइऐ किरति फिराइ ॥
लिव धातु दुइ राह है हुकमी कार कमाइ ॥
गुरमुखि आपणा मनु मारिआ सबदि कसवटी लाइ ॥
मन ही नालि झगड़ा मन ही नालि सथ मन ही मंझि समाइ ॥
मनु जो इछे सो लहै सचै सबदि सुभाइ ॥
अम्रित नामु सद भुंचीऐ गुरमुखि कार कमाइ ॥
विणु मनै जि होरी नालि लुझणा जासी जनमु गवाइ ॥
मनमुखी मनहठि हारिआ कूड़ु कुसतु कमाइ ॥
गुर परसादी मनु जिणै हरि सेती लिव लाइ ॥
नानक गुरमुखि सचु कमावै मनमुखि आवै जाइ ॥2॥87॥

19. सतिगुरु सेवे आपणा

सतिगुरु सेवे आपणा सो सिरु लेखै लाइ ॥
विचहु आपु गवाइ कै रहनि सचि लिव लाइ ॥
सतिगुरु जिनी न सेविओ तिना बिरथा जनमु गवाइ ॥
नानक जो तिसु भावै सो करे कहणा किछू न जाइ ॥1॥88॥

20. मनु वेकारी वेड़िआ

मनु वेकारी वेड़िआ वेकारा करम कमाइ ॥
दूजै भाइ अगिआनी पूजदे दरगह मिलै सजाइ ॥
आतम देउ पूजीऐ बिनु सतिगुर बूझ न पाइ ॥
जपु तपु संजमु भाणा सतिगुरू का करमी पलै पाइ ॥
नानक सेवा सुरति कमावणी जो हरि भावै सो थाइ पाइ ॥2॥88॥

21. सतिगुरु जिनी न सेविओ

सतिगुरु जिनी न सेविओ सबदि न कीतो वीचारु ॥
अंतरि गिआनु न आइओ मिरतकु है संसारि ॥
लख चउरासीह फेरु पइआ मरि जमै होइ खुआरु ॥
सतिगुर की सेवा सो करे जिस नो आपि कराए सोइ ॥
सतिगुर विचि नामु निधानु है करमि परापति होइ ॥
सचि रते गुर सबद सिउ तिन सची सदा लिव होइ ॥
नानक जिस नो मेले न विछुड़ै सहजि समावै सोइ ॥1॥88॥

22. सो भगउती जो भगवंतै जाणै

सो भगउती जो भगवंतै जाणै ॥
गुर परसादी आपु पछाणै ॥
धावतु राखै इकतु घरि आणै ॥
जीवतु मरै हरि नामु वखाणै ॥
ऐसा भगउती उतमु होइ ॥
नानक सचि समावै सोइ ॥2॥88॥

23. अंतरि कपटु भगउती कहाए

अंतरि कपटु भगउती कहाए ॥
पाखंडि पारब्रहमु कदे न पाए ॥
पर निंदा करे अंतरि मलु लाए ॥
बाहरि मलु धोवै मन की जूठि न जाए ॥
सतसंगति सिउ बादु रचाए ॥
अनदिनु दुखीआ दूजै भाइ रचाए ॥
हरि नामु न चेतै बहु करम कमाए ॥
पूरब लिखिआ सु मेटणा न जाए ॥
नानक बिनु सतिगुर सेवे मोखु न पाए ॥3॥88॥

24. वेस करे कुरूपि कुलखणी

वेस करे कुरूपि कुलखणी मनि खोटै कूड़िआरि ॥
पिर कै भाणै ना चलै हुकमु करे गावारि ॥
गुर कै भाणै जो चलै सभि दुख निवारणहारि ॥
लिखिआ मेटि न सकीऐ जो धुरि लिखिआ करतारि ॥
मनु तनु सउपे कंत कउ सबदे धरे पिआरु ॥
बिनु नावै किनै न पाइआ देखहु रिदै बीचारि ॥
नानक सा सुआलिओ सुलखणी जि रावी सिरजनहारि ॥1॥89॥

25. माइआ मोहु गुबारु है

माइआ मोहु गुबारु है तिस दा न दिसै उरवारु न पारु ॥
मनमुख अगिआनी महा दुखु पाइदे डुबे हरि नामु विसारि ॥
भलके उठि बहु करम कमावहि दूजै भाइ पिआरु ॥
सतिगुरु सेवहि आपणा भउजलु उतरे पारि ॥
नानक गुरमुखि सचि समावहि सचु नामु उर धारि ॥2॥89॥

26. मनमुख मैली कामणी

मनमुख मैली कामणी कुलखणी कुनारि ॥
पिरु छोडिआ घरि आपणा पर पुरखै नालि पिआरु ॥
त्रिसना कदे न चुकई जलदी करे पूकार ॥
नानक बिनु नावै कुरूपि कुसोहणी परहरि छोडी भतारि ॥1॥89॥

27. सबदि रती सोहागणी

सबदि रती सोहागणी सतिगुर कै भाइ पिआरि ॥
सदा रावे पिरु आपणा सचै प्रेमि पिआरि ॥
अति सुआलिउ सुंदरी सोभावंती नारि ॥
नानक नामि सोहागणी मेली मेलणहारि ॥2॥90॥

28. सतिगुर कै भाणै जो चलै

सतिगुर कै भाणै जो चलै तिसु वडिआई वडी होइ ॥
हरि का नामु उतमु मनि वसै मेटि न सकै कोइ ॥
किरपा करे जिसु आपणी तिसु करमि परापति होइ ॥
नानक कारणु करते वसि है गुरमुखि बूझै कोइ ॥1॥90॥

29. नानक हरि नामु जिनी आराधिआ

नानक हरि नामु जिनी आराधिआ अनदिनु हरि लिव तार ॥
माइआ बंदी खसम की तिन अगै कमावै कार ॥
पूरै पूरा करि छोडिआ हुकमि सवारणहार ॥
गुर परसादी जिनि बुझिआ तिनि पाइआ मोख दुआरु ॥
मनमुख हुकमु न जाणनी तिन मारे जम जंदारु ॥
गुरमुखि जिनी अराधिआ तिनी तरिआ भउजलु संसारु ॥
सभि अउगण गुणी मिटाइआ गुरु आपे बखसणहारु ॥2॥90॥

30. आपणे प्रीतम मिलि रहा

आपणे प्रीतम मिलि रहा अंतरि रखा उरि धारि ॥
सालाही सो प्रभ सदा सदा गुर कै हेति पिआरि ॥
नानक जिसु नदरि करे तिसु मेलि लए साई सुहागणि नारि ॥1॥90॥

31. गुर सेवा ते हरि पाईऐ

गुर सेवा ते हरि पाईऐ जा कउ नदरि करेइ ॥
माणस ते देवते भए धिआइआ नामु हरे ॥
हउमै मारि मिलाइअनु गुर कै सबदि तरे ॥
नानक सहजि समाइअनु हरि आपणी क्रिपा करे ॥2॥90॥

32. जीउ पिंडु सभु तिस का

जीउ पिंडु सभु तिस का सभसै देइ अधारु ॥
नानक गुरमुखि सेवीऐ सदा सदा दातारु ॥
हउ बलिहारी तिन कउ जिनि धिआइआ हरि निरंकारु ॥
ओना के मुख सद उजले ओना नो सभु जगतु करे नमसकारु ॥1॥91॥

33. सतिगुर मिलिऐ उलटी भई

सतिगुर मिलिऐ उलटी भई नव निधि खरचिउ खाउ ॥
अठारह सिधी पिछै लगीआ फिरनि निज घरि वसै निज थाइ ॥
अनहद धुनी सद वजदे उनमनि हरि लिव लाइ ॥
नानक हरि भगति तिना कै मनि वसै जिन मसतकि लिखिआ धुरि पाइ ॥2॥91॥

34. कलि कीरति परगटु चानणु संसारि

कलि कीरति परगटु चानणु संसारि ॥
गुरमुखि कोई उतरै पारि ॥
जिस नो नदरि करे तिसु देवै ॥
नानक गुरमुखि रतनु सो लेवै ॥2॥145॥

35. भै विचि जमै भै मरै

भै विचि जमै भै मरै भी भउ मन महि होइ ॥
नानक भै विचि जे मरै सहिला आइआ सोइ ॥1॥149॥

36. भै विणु जीवै बहुतु बहुतु

भै विणु जीवै बहुतु बहुतु खुसीआ खुसी कमाइ ॥
नानक भै विणु जे मरै मुहि कालै उठि जाइ ॥2॥149॥

37. गउड़ी रागि सुलखणी

गउड़ी रागि सुलखणी जे खसमै चिति करेइ ॥
भाणै चलै सतिगुरू कै ऐसा सीगारु करेइ ॥
सचा सबदु भतारु है सदा सदा रावेइ ॥
जिउ उबली मजीठै रंगु गहगहा तिउ सचे नो जीउ देइ ॥
रंगि चलूलै अति रती सचे सिउ लगा नेहु ॥
कूड़ु ठगी गुझी ना रहै कूड़ु मुलमा पलेटि धरेहु ॥
कूड़ी करनि वडाईआ कूड़े सिउ लगा नेहु ॥
नानक सचा आपि है आपे नदरि करेइ ॥1॥311॥

38. हउमै जगतु भुलाइआ

हउमै जगतु भुलाइआ दुरमति बिखिआ बिकार ॥
सतिगुरु मिलै त नदरि होइ मनमुख अंध अंधिआर ॥
नानक आपे मेलि लए जिस नो सबदि लाए पिआरु ॥3॥312॥

39. माइआधारी अति अंना बोला

माइआधारी अति अंना बोला ॥
सबदु न सुणई बहु रोल घचोला ॥
गुरमुखि जापै सबदि लिव लाइ ॥
हरि नामु सुणि मंने हरि नामि समाइ ॥
जो तिसु भावै सु करे कराइआ ॥
नानक वजदा जंतु वजाइआ ॥2॥313॥

40. मनमुखु अहंकारी महलु न जाणै

मनमुखु अहंकारी महलु न जाणै खिनु आगै खिनु पीछै ॥
सदा बुलाईऐ महलि न आवै किउ करि दरगह सीझै ॥
सतिगुर का महलु विरला जाणै सदा रहै कर जोड़ि ॥
आपणी क्रिपा करे हरि मेरा नानक लए बहोड़ि ॥2॥314॥

41. जिनि गुरु गोपिआ आपणा

जिनि गुरु गोपिआ आपणा तिसु ठउर न ठाउ ॥
हलतु पलतु दोवै गए दरगह नाही थाउ ॥
ओह वेला हथि न आवई फिरि सतिगुर लगहि पाइ ॥
सतिगुर की गणतै घुसीऐ दुखे दुखि विहाइ ॥
सतिगुरु पुरखु निरवैरु है आपे लए जिसु लाइ ॥
नानक दरसनु जिना वेखालिओनु तिना दरगह लए छडाइ ॥1॥314॥

42. मनमुखु अगिआनु दुरमति अहंकारी

मनमुखु अगिआनु दुरमति अहंकारी ॥
अंतरि क्रोधु जूऐ मति हारी ॥
कूड़ु कुसतु ओहु पाप कमावै ॥
किआ ओहु सुणै किआ आखि सुणावै ॥
अंना बोला खुइ उझड़ि पाइ ॥
मनमुखु अंधा आवै जाइ ॥
बिनु सतिगुर भेटे थाइ न पाइ ॥
नानक पूरबि लिखिआ कमाइ ॥2॥314॥

43. गुरमुखि गिआनु बिबेक बुधि होइ

गुरमुखि गिआनु बिबेक बुधि होइ ॥
हरि गुण गावै हिरदै हारु परोइ ॥
पवितु पावनु परम बीचारी ॥
जि ओसु मिलै तिसु पारि उतारी ॥
अंतरि हरि नामु बासना समाणी ॥
हरि दरि सोभा महा उतम बाणी ॥
जि पुरखु सुणै सु होइ निहालु ॥
नानक सतिगुर मिलिऐ पाइआ नामु धनु मालु ॥1॥317॥

44. इहु जगतु ममता मुआ

इहु जगतु ममता मुआ जीवण की बिधि नाहि ॥
गुर कै भाणै जो चलै तां जीवण पदवी पाहि ॥
ओइ सदा सदा जन जीवते जो हरि चरणी चितु लाहि ॥
नानक नदरी मनि वसै गुरमुखि सहजि समाहि ॥1॥508॥

45. अंदरि सहसा दुखु है

अंदरि सहसा दुखु है आपै सिरि धंधै मार ॥
दूजै भाइ सुते कबहि न जागहि माइआ मोह पिआर ॥
नामु न चेतहि सबदु न वीचारहि इहु मनमुख का आचारु ॥
हरि नामु न पाइआ जनमु बिरथा गवाइआ नानक जमु मारि करे खुआर ॥2॥508॥

46. साहिबु मेरा सदा है

साहिबु मेरा सदा है दिसै सबदु कमाइ ॥
ओहु अउहाणी कदे नाहि ना आवै ना जाइ ॥
सदा सदा सो सेवीऐ जो सभ महि रहै समाइ ॥
अवरु दूजा किउ सेवीऐ जमै तै मरि जाइ ॥
निहफलु तिन का जीविआ जि खसमु न जाणहि आपणा अवरी कउ चितु लाइ ॥
नानक एव न जापई करता केती देइ सजाइ ॥1॥509॥

47. सचा नामु धिआईऐ

सचा नामु धिआईऐ सभो वरतै सचु ॥
नानक हुकमु बुझि परवाणु होइ ता फलु पावै सचु ॥
कथनी बदनी करता फिरै हुकमै मूलि न बुझई अंधा कचु निकचु ॥2॥509॥

48. सो जपु सो तपु

सो जपु सो तपु जि सतिगुर भावै ॥
सतिगुर कै भाणै वडिआई पावै ॥
नानक आपु छोडि गुर माहि समावै ॥1॥509॥

49. गुर की सिख को विरला लेवै

गुर की सिख को विरला लेवै ॥
नानक जिसु आपि वडिआई देवै ॥2॥509॥

50. नानक मुकति दुआरा अति नीका

नानक मुकति दुआरा अति नीका नान्हा होइ सु जाइ ॥
हउमै मनु असथूलु है किउ करि विचु दे जाइ ॥
सतिगुर मिलिऐ हउमै गई जोति रही सभ आइ ॥
इहु जीउ सदा मुकतु है सहजे रहिआ समाइ ॥2॥509॥

51. सतिगुर सिउ चितु न लाइओ

सतिगुर सिउ चितु न लाइओ नामु न वसिओ मनि आइ ॥
ध्रिगु इवेहा जीविआ किआ जुग महि पाइआ आइ ॥
माइआ खोटी रासि है एक चसे महि पाजु लहि जाइ ॥
हथहु छुड़की तनु सिआहु होइ बदनु जाइ कुमलाइ ॥
जिन सतिगुर सिउ चितु लाइआ तिन्ह सुखु वसिआ मनि आइ ॥
हरि नामु धिआवहि रंग सिउ हरि नामि रहे लिव लाइ ॥
नानक सतिगुर सो धनु सउपिआ जि जीअ महि रहिआ समाइ ॥
रंगु तिसै कउ अगला वंनी चड़ै चड़ाइ ॥1॥510॥

52. माइआ होई नागनी

माइआ होई नागनी जगति रही लपटाइ ॥
इस की सेवा जो करे तिस ही कउ फिरि खाइ ॥
गुरमुखि कोई गारड़ू तिनि मलि दलि लाई पाइ ॥
नानक सेई उबरे जि सचि रहे लिव लाइ ॥2॥510॥

53. सभना का सहु एकु है

सभना का सहु एकु है सद ही रहै हजूरि ॥
नानक हुकमु न मंनई ता घर ही अंदरि दूरि ॥
हुकमु भी तिन्हा मनाइसी जिन्ह कउ नदरि करेइ ॥
हुकमु मंनि सुखु पाइआ प्रेम सुहागणि होइ ॥1॥510॥

54. रैणि सबाई जलि मुई

रैणि सबाई जलि मुई कंत न लाइओ भाउ ॥
नानक सुखि वसनि सोहागणी जिन्ह पिआरा पुरखु हरि राउ ॥2॥510॥

55. काइआ हंस किआ प्रीति है

काइआ हंस किआ प्रीति है जि पइआ ही छडि जाइ ॥
एस नो कूड़ु बोलि कि खवालीऐ जि चलदिआ नालि न जाइ ॥
काइआ मिटी अंधु है पउणै पुछहु जाइ ॥
हउ ता माइआ मोहिआ फिरि फिरि आवा जाइ ॥
नानक हुकमु न जातो खसम का जि रहा सचि समाइ ॥1॥510-511॥

56. एको निहचल नाम धनु

एको निहचल नाम धनु होरु धनु आवै जाइ ॥
इसु धन कउ तसकरु जोहि न सकई ना ओचका लै जाइ ॥
इहु हरि धनु जीऐ सेती रवि रहिआ जीऐ नाले जाइ ॥
पूरे गुर ते पाईऐ मनमुखि पलै न पाइ ॥
धनु वापारी नानका जिन्हा नाम धनु खटिआ आइ ॥2॥511॥

57. ध्रिगु तिन्हा दा जीविआ

ध्रिगु तिन्हा दा जीविआ जो हरि सुखु परहरि तिआगदे दुखु हउमै पाप कमाइ ॥
मनमुख अगिआनी माइआ मोहि विआपे तिन्ह बूझ न काई पाइ ॥
हलति पलति ओइ सुखु न पावहि अंति गए पछुताइ ॥
गुर परसादी को नामु धिआए तिसु हउमै विचहु जाइ ॥
नानक जिसु पूरबि होवै लिखिआ सो गुर चरणी आइ पाइ ॥1॥511॥

58. मनमुखु ऊधा कउलु है

मनमुखु ऊधा कउलु है ना तिसु भगति न नाउ ॥
सकती अंदरि वरतदा कूड़ु तिस का है उपाउ ॥
तिस का अंदरु चितु न भिजई मुखि फीका आलाउ ॥
ओइ धरमि रलाए ना रलन्हि ओना अंदरि कूड़ु सुआउ ॥
नानक करतै बणत बणाई मनमुख कूड़ु बोलि बोलि डुबे गुरमुखि तरे जपि हरि नाउ ॥2॥511॥

59. जि सतिगुरु सेवे आपणा

जि सतिगुरु सेवे आपणा तिस नो पूजे सभु कोइ ॥
सभना उपावा सिरि उपाउ है हरि नामु परापति होइ ॥
अंतरि सीतल साति वसै जपि हिरदै सदा सुखु होइ ॥
अम्रितु खाणा अम्रितु पैनणा नानक नामु वडाई होइ ॥1॥511॥

60. ए मन गुर की सिख सुणि

ए मन गुर की सिख सुणि हरि पावहि गुणी निधानु ॥
हरि सुखदाता मनि वसै हउमै जाइ गुमानु ॥
नानक नदरी पाईऐ ता अनदिनु लागै धिआनु ॥2॥512॥