सजीवन का अंग : संत दादू दयाल जी

Sajivan Ka Ang : Sant Dadu Dayal Ji

दादू नमो नमो निरंजनं, नमस्कार गुरु देवत:।
वन्दनं सर्व साधावा, प्रणामं, पारंगत:।1।
दादू जे तूं योगी गुरुमुखी, तो लेना तत्तव विचार।
गहि आयुधा गुरु ज्ञान का, काल पुरुष को मार।2।
नाद बिन्दु सौं घट भरे, सो योगी जीवे।
दादू काहै को मरे, राम रस पीवे।3।
साधु जन की वासना, शब्द रहै संसार।
दादू आत्म ले मिले, अमर उपावणहार।4।
राम सरीखे ह्नै रहै, यहु नाँहीं उणहार।
दादू साधु अमर है, विनशे सब संसार।5।
जे कोई सेवे राम को, तो राम सरीखा होय।
दादू नाम कबीर ज्यों, साखी बोले सोय।6।
अर्थ न आया सो गया, आया सो क्यों जाय।
दादू तन-मन जीवतां, आपा ठौर लगाय।7।
जे जन बेधो प्रीति सौं, ते जन सदा सजीव।
उलट समाने आप मैं, अन्तर नाँहीं पीव।8।
दादू कहै सब रँग तेरे तैं रँगे, तूं ही सब रँगमाँहिं।
सब रँग तेरे तैं किये, दूजा कोई नाँहिं।9।
छूटे द्वन्द्व तो लागे बंद, लागे बंद तो अमर कंद।
अमर कंद दादू आनंद।10।

(प्रश्न) कहाँ जम जौरा भंजिये, कहाँ काल को दंड।
कहाँ मीच को मारिये, कहाँ जरा सत खंड।11।
(उत्तर) अमरठौरअविनाशी आसण, तहाँ निरंजन लाग रहे।
दादू योगी युग-युग जीवे, काल व्याल सब सहज गये।12।
रोम-रोम लै लाइ धवनि, ऐसे सदा अखंड।
दादू अविनाशी मिले, तो जम को दीजे दंड।13।
दादू जरा काल जामण मरण, जहाँ-जहाँ जिव जाय।
भक्ति परायण लीन मन, ताको काल न खाय।14।
मरणा भागा मरण तैं, दु:खैं नाठा दु:ख।
दादू भय सौं भय गया, सु:खैं छूटा सु:ख।15।
जीवित मिले सो जीविते, मूये मिल मर जाय।
दादू दोन्यों देखकर, जहँ जाणे तहँ लाय।16।
दादू साधान सब किया, जब उनमन लागा मन्न।
दादू सुस्थिर आतमा, यों युग-युग जीवै जन्न।17।
रहते सेती लाग रहु, तो अजरावर होय।
दादू देख विचार कर, जुदा न जीवे कोय।18।
जेती करणी काल की, तेती परिहर प्राण।
दादू आत्म राम सौं, जे तूं खरा सुजाण।19।
विष अमृत घट में बसे, बिरला जाणे कोइ।
जिन विष खाया ते मुये, अमर अमी सौं होइ।20।

दादू सब ही मर रहे, जीवै नाँहीं कोय।
सोई कहिए, जीविता, जे कलि अजरावर होय।21।
दादू तज संसार सब, रहै निराला होय।
अविनाशी के आसरे, काल न लागे कोय।22।
जागहु लागहु राम सौं, रैणि बिहाणी जाय।
सुमिर सनेही आपणा, दादू काल न खाय।23।
दादू जागहु लागहु राम सौं, छाड़हु विषय विकार।
जीवहु पीवहु राम रस, आतम साधान सार।24।
मरे तो पावे पीव को, जीवत बंचे काल।
दादू निर्भय नाम ले, दोनों हाथ दयाल।25।
दादू मरणे को चल्या, सजीवन के साथ।
दादू लाहा मूल सौं, दोन्यों आये हाथ।26।
दादू जाता देखिए, लाहा मूल गमाय।
साहिब की गति अगम है, सो कुछ लखी न जाय।27।
साहिब मिले तो जीविए, नहीं तो जीवैं नाँहिं।
भावै अनंत उपाय कर, दादू मूवों माँहिं।28।
संजीवनी साधो नहीं, तातै मर-मर जाय।
दादू पीवे राम रस, सुख में रहे समाय।29।
दिन-दिन लहुड़े होंहि सब, कहै मोटा होता जाय।
दादू दिन-दिन ते बढै, जे रहै राम ल्यौ लाय।30।

दादू जीवित छूटे देह गुण, जीवित मुक्ता होय।
जीवित काटे कर्म सब, मुक्ति कहावे सोय।31।
जीवित ही दुस्तर तिरे, जीवित लंघे पार।
जीवित पाया जगद्गुरु, दादू ज्ञान विचार।32।
जीवित जगपति को मिले, जीवित आतम राम।
जीवित दर्शन देखिए, दादू मन विश्राम।33।
जीवित पाया प्रेम रस, जीवित पिया अघाय।
जीवित पाया स्वाद सुख, दादू रहे समाय।34।
जीवित भागे भरम सब, छूटे कर्म अनेक।
जीवित मुक्त सद्गति भये, दादू दर्शन एक।35।
जीवित मेला ना भया, जीवित परस न होय।
जीवित जगपति ना मिले, दादू बूडे सोय।36।
जीवित दुस्तर ना तिरे, जीवित न लंघे पार।
जीवित निर्भर ना भये, दादू ते संसार।37।
जीवित परगट ना भया, जीवित परिचय नाँहिं।
जीवित न पाया पीव को, बूडे भव जल माँहिं।38।
जीवित पद पाया नहीं, जीवित मिले न जाय।
जीवित जे छूटे नहीं, दादू गये बिलाय।39।
दादू छूटे जीवतां, मूवाँ छूटे नाँहिं।
मूवां पीछे छूटिये, तो सब आये उस माँहिं।40।

मूवां पीछे मुक्ति बतावैं, मूवां पीछे मेला।
मूवां पीछे अमर अभय पद, दादू भूले गहला।41।
मूवां पीछे बैकुंठ बासा, मूवां स्वर्ग पठावै।
मूवां पीछे मुक्ति बतावै, दादू जग बोरावै।42।
मूवां पीछे पद पहुँचावै, मूवां पीछे तारै।
मूवां पीछे सद्गति होवे, दादू जीवित मारै।43।
मूवां पीछे भक्ति बतावै, मूवां पीछे सेवा।
मूवां पीछे संयम राखै, दादू दोजख देवा।44।
दादू धारती क्या साधान किया, अंबर कौण अभ्यास।
रवि शशि किस आरंभ से, अमर भये निज दास।45।
साहिब मारे ते मुये, कोई जीवे नाँहिं।
साहिब राखे ते रहे, दादू निज घर माँहिं।46।
जे जन राखे रामजी, अपणे अंग लगाय।
दादू कुछ व्यापे नहीं, जे कोटि काल झख जाय।47।

।इति सजीवन का अंग सम्पूर्ण।

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