रुबाइयाँ : नज़ीर अकबराबादी

Rubaiyan : Nazeer Akbarabadi

रुबाइयाँ

1
आईना जो हाथ उस के ने ता-देर लिया
इस देर से ख़जलत ने हमें घेर लिया
जब हम ने कहा क्या यही आशिक़ है मियाँ
ये सुनते ही आईने से मुँह फेर लिया
2
उस ज़ुल्फ़ ने हम से ले के दिल बस्ता किया
अबरू ने कजी के ढब को पैवस्ता किया
आँखों ने निगह ने और मिज़ा ने क्या किया
कैफ़ी किया दीवाना किया ख़स्ता किया
3
उस शोख़ को हम ने जिस घड़ी जा देखा
मुखड़े में अजब हुस्न का नक़्शा देखा
एक आन दिखाई हमें हँस कर ऐसी
जिस आन में क्या कहें कि क्या क्या देखा
4
ऐ दिल जो ये आँख आज लड़ाई उस ने
और पल में लड़ा के फिर झुकाई उस ने
अपनी बेबाकी और हया की ख़ूबी
थी हम को दिखानी सो दिखाई उस ने
5
कूचे में तुम्हारे हम जो टुक आते हैं
और दिल को ज़रा बैठ के बहलाते हैं
हो तुम जो दिल-आराम तो हम देख तुम्हें
इक दम रुख़-ए-आराम को तक जाते हैं
6
क्या हाल अब उस से अपने दिल का कहिए
मंज़ूर नहीं ये भी कि बे-जा कहिए
मुश्किल है महीनों में न जावे जो कहा
फिर मिलिए जो एक दम तो क्या क्या कहिए
7
गर यार से हर रोज़ मुलाक़ात नहीं
और हो भी गई तो फिर मुदारात नहीं
दिल दे चुके अब क़द्र हो या बे-क़दरी
जो कुछ हो सो हो बस की तो कुछ बात नहीं
8
दिल देख उसे जिस घड़ी बे-ताब हुआ
और चाह-ए-ज़क़न से मिस्ल-ए-गिर्दाब हुआ
की अर्ज़ कि बे-क़रार दिल है तो कहा
अब दिल न कहो उसे जो सीमाब हुआ
9
नासेह न सुना सुख़न मुझे जिस-तिस के
जो तू ने कहा ये आवे जी में किस के
क्यूँ-कर न मिलूँ भला जी में उस से आह
दिल रह न सके बग़ैर देखे जिस के
10
पान उस के लबों पे इस क़दर है ज़ेबा
हो रंग पे जिस के सुर्ख़ी-ए-लाल फ़िदा
हर फ़ुंदुक़-ए-अंगुश्त से उस दस्त को गर
गुल-दस्ता-ए-बाग़-ए-हुस्न कहिए तो बजा
11
महबूब ने पैरहन में जब इत्र मला
और पान चबा के अपने घर से वो चला
हम ने ये कहा न जाओ बाहर ऐ जाँ
है शाम क़रीब हँस दिया कह के भला
12
याद आती हैं जब हमें वो पहली चाहें
अफ़सोस करे है दिल में क्या क्या राहें
थे शोर जो क़हक़ह के सो उन के बदले
अब शोर मचा रही हैं जी में आहें
13
रखती है जो ख़ुश चाह तुम्हारी हम को
और करती है शाद बारी बारी हम को
कुछ देर जो कि थी हम ने दिल देते वक़्त
अब तक है उसी की सरशारी हम को
14
रखते हैं जो हम चाह तुम्हारी दिल में
आराम की है उमीद-वारी दिल में
तुम हुक्म क़रार को न दोगे जब तक
अलबत्ता रहेगी बे-क़रारी दिल में
15
साक़ी से जो हम ने मय का इक जाम लिया
पीते ही नशे का ये सर-अंजाम लिया
मालूम नहीं झुक गए या बैठे रहे
या गिर पड़े या किसी ने फिर थाम लिया
16
हम उस की जफ़ा से जी में हो कर दिल-गीर
रुक बैठे तो हैं वले करें क्या तक़रीर
दिल हाथ से जाता है बग़ैर उस से मिले
अब जो न पड़ें पाँव तो फिर क्या तदबीर
17
हम दिल से जो चाहते हैं ऐ जान तुम्हें
बे-कल हूँ अगर न देखें एक आन तुम्हें
तुम पास बिठाओ तो ज़रा बैठें हम
मुश्किल है हमें तो और है आसान तुम्हें
18
हम देख के तुम से रुख़-ए-आराम मियाँ
ख़ुश रहते हैं दिल में सहर ओ शाम मियाँ
दीवाने तुम्हारे जब अदा के ठहरे
फिर हुस्न-ए-परी से हमें क्या काम मियाँ
19
है चाह ने उस की जब से की जा दिल में
क्या क्या कहिए जो है मुहय्या दिल में
जाती है जिधर निगाह अल्लाह अल्लाह
आता है नज़र अजब तमाशा दिल में
20
हों क्यूँ न बुतों की हम को दिल से चाहें
हैं नाज़-ओ-अदा में उन को क्या क्या राहें
दिल लेने को सीने से लिपट कर क्या किया
डाले हैं गले में पतली पतली बा

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