Rishu Priya
रिशु प्रिया

रिशु प्रिया की कविताएँ

1. गले लगा लो दो घड़ी के लिए

सोने चाँदी की थाली जरूरी नहीं
दिल का दीपक बहुत है आरती के लिए

ऊब जाएं ज्यादा न हम कहीं खुशी से
ग़म भी जरूरी है ज़िन्दगी के लिए

तुम हवा को पकड़ना छोड़ दो
वक्त रुकता नहीं किसी के लिए

सब ग़लतफहमियाँ दूर हो जाएंगी अपनों से
हंस मिल लो गले लगा लो दो घड़ी के लिए ।

2. ज़िन्दगी है हज़ार ग़म का नाम

जब्र को इख़्तियार कौन करे
तुम से ज़ालिम को प्यार कौन करे

ज़िंदगी है हज़ार ग़म का नाम
इस समुंदर को पार कौन करे

आप का वादा आप का दीदार
हश्र तक इंतिज़ार कौन करे

अपना दिल अपनी जान का दुश्मन
ग़ैर का ऐतबार कौन करे

हम जिलाए गए हैं मरने को
इस करम की सहार कौन करे

आदमी बुलबुला है पानी का
ज़ीस्त का ऐतबार कौन करे ।।

3. जा न सके

दरिया की कश्ती थे
जो सागर तक जा न सके

तुमसे मिलना मुक़द्दर था
और बिछड़ना क़िस्मत

इसलिए शिक़ायत कभी
होंठों तक ला न सके ।।

4. ज़िन्दगी ने जो दिया

इस तरह आइना गर्दिश की नज़र करते रहे...
ज़िन्दगी ने जो दिया हँस के गुज़र करते रहे।

हर शजर देता रहा धोखा हमें इक छाँव का...
और हम सहराओं का तपता सफ़र करते रहे।