शहीद भगत सिंह की कविता

Poetry of Shaheed Bhagat Singh

उसे यह फ़िक्र है हरदम, नया तर्जे-जफ़ा क्या है

उसे यह फ़िक्र है हरदम, नया तर्जे-जफ़ा क्या है?
हमें यह शौक देखें, सितम की इंतहा क्या है?

दहर से क्यों खफ़ा रहे, चर्ख का क्यों गिला करें,
सारा जहाँ अदू सही, आओ मुकाबला करें।

कोई दम का मेहमान हूँ, ए-अहले-महफ़िल,
चरागे सहर हूँ, बुझा चाहता हूँ।

मेरी हवाओं में रहेगी, ख़यालों की बिजली,
यह मुश्त-ए-ख़ाक है फ़ानी, रहे रहे न रहे।

(उपरोक्त चार शेयर शहीद सरदार भगत
सिंह की अपने छोटे भाई कुलतार को ३ मार्च
को लिखी चिट्ठी में से लिए गए हैं। बहुत से
लोग इसको उनकी अपनी रचना मानते हैं।
ध्यानपूर्वक पढ़ने से चारों शेयर भिन्न-भिन्न
रचनायों में से मालूम पड़ते हैं। हम यह नहीं
कहते कि उन्होंने कविता नहीं लिखी होगी।
परन्तु यह रचना विद्वान लोगों का ध्यान
मांगती है। इस रचना का तीसरा शेयर डा
मुहम्मद इकबाल की मशहूर रचना में से है
और पहला और चौथा शेयर बृज नारायण
चकबस्त की रचनायों में से हैं। नीचे पाठकों
की जानकारी के लिये पूरी रचनाएं दी गई हैं। )

तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ

तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ
मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ

सितम हो कि हो वादा-ए-बेहिजाबी
कोई बात सब्र-आज़मा चाहता हूँ

ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को
कि मैं आपका सामना चाहता हूँ

कोई दम का मेहमाँ हूँ ऐ अहले-महफ़िल
चिराग़े-सहर हूँ बुझा चाहता हूँ

भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी
बड़ा बे-अदब हूँ सज़ा चाहता हूँ

(डा अल्लामा मुहम्मद इकबाल)

(वादा-ए-बेहिजाबी=पर्दादारी हटाने का वादा,
सब्र-आज़मा=धैर्य की परीक्षा लेने वाली,
ज़ाहिदों=संयम से रहने वालों को,
चिराग़े-सहर=भोर का दीया, राज़=भेद,
बे-अदब=असभ्य)

उसे यह फ़िक्र है हरदम, नया तर्जे-जफ़ा क्या है?

उन्हें ये फ़िक्र है हर दम नई तर्ज़-ए-जफ़ा क्या है
हमें ये शौक़ है देखें सितम की इंतिहा क्या है

(पाठांतर)
उसे यह फ़िक्र है हरदम, नया तर्जे-जफ़ा क्या है?
हमें यह शौक देखें, सितम की इंतहा क्या है?

गुनह-गारों में शामिल हैं गुनाहों से नहीं वाक़िफ़
सज़ा को जानते हैं हम ख़ुदा जाने ख़ता क्या है

ये रंग-ए-बे-कसी रंग-ए-जुनूँ बन जाएगा ग़ाफ़िल
समझ ले यास-ओ-हिरमाँ के मरज़ की इंतिहा क्या है

नया बिस्मिल हूँ मैं वाक़िफ़ नहीं रस्म-ए-शहादत से
बता दे तू ही ऐ ज़ालिम तड़पने की अदा क्या है

चमकता है शहीदों का लहू पर्दे में क़ुदरत के
शफ़क़ का हुस्न क्या है शोख़ी-ए-रंग-ए-हिना क्या है

उमीदें मिल गईं मिट्टी में दौर-ए-ज़ब्त-ए-आख़िर है
सदा-ए-ग़ैब बतला दे हमें हुक्म-ए-ख़ुदा क्या है

मेरी हवाओं में रहेगी, ख़यालों की बिजली

फ़ना नहीं है मुहब्बत के रंगो बू के लिए
बहार आलमे-फ़ानी रहे रहे न रहे ।

जुनूने हुब्बे वतन का मज़ा शबाब में है
लहू में फिर ये रवानी रहे रहे न रहे ।

रहेगी आबो-हवा में ख़याल की बिजली
ये मुश्ते-ख़ाक है फ़ानी रहे रहे न रहे ।

जो दिल में ज़ख़्म लगे हैं वो ख़ुद पुकारेंगे
ज़बाँ की सैफ़ बयानी रहे रहे न रहे ।

मिटा रहा है ज़माना वतन के मन्दिर को
ये मर मिटों की निशानी रहे रहे न रहे ।

दिलों में आग लगे ये वफ़ा का जौहर है
ये जमाँ ख़र्च ज़बानी रहे रहे न रहे ।

जो माँगना हो अभी माँग लो वतन के लिए
ये आरज़ू की जवानी रहे रहे न रहे ।

(फ़ना=मृत्यु, आलमे-फ़ानी=नाशवान संसार,
जुनूने हुब्बे वतन=स्वदेश प्रेम का उन्माद,
शबाब=जवानी, आबो-हवा=जलवायु,
मुश्ते-ख़ाक=मुट्ठी भर मिट्टी)
(इस रचना पर काम जारी है)

  • मुख्य पृष्ठ : शहीद सरदार भगत सिंह
  • मुख्य पृष्ठ : हिन्दी कविता वेबसाइट (hindi-kavita.com)