गुरू गोबिन्द सिंह जी की रचनाएँ
Poetry of Guru Gobind Singh Ji in Hindi

1. रामकली

रे मन ऐसो करि संनिआसा ॥
बन से सदन सभै करि समझहु मन ही माहि उदासा ॥१॥ रहाउ ॥
जत की जटा जोग को म्जनु नेम के नखन बढाओ ॥
गयान गुरू आतम उपदेशहु नाम बिभूत लगाओ ॥१॥
अलप अहार सुलाप सी निंद्रा दया छिमा तन प्रीति ॥
सील संतोख सदा निरबाहिबो ह्वैबो त्रिगुण अतीति ॥२॥
काम क्रोध हंकार लोभ हठ मोह न मन सो लयावै ॥
तब ही आतम तत को दरसे परम पुरख कह पावै ॥३॥१॥

2. रामकली

रे मन इहि बिधि जोगु कमाओ ॥
सिंङी साच अकपट कंठला धिआन बिभूत चड़्हाओ ॥१॥ रहाउ ॥
ताती गहु आतम बसि कर की भि्छा नाम अधारं ॥
उघटै तान तरंग रंगि अति गयान गीत बंधानं ॥
चकि चकि रहे देव दानव मुनि छकि छकि बयोम बिवानं ॥२॥
आतम उपदेश भेसु संजम को जापु सु अजपा जापे ॥
सदा रहै कंचन सी काया काल न कबहूं बयापे ॥३॥२॥

3. रामकली

प्रानी परम पुरख पख लागो ॥
सोवत कहा मोह निंद्रा मै कबहूं सुचित ह्वै जागो ॥१॥ रहाउ ॥
औरन कह उपदेशत है पसु तोहि प्रबोध न लागो ॥
सिंचत कहा परे बिखियन कह कबहु बिखै रस तयागो ॥१॥
केवल करम भरम से चीनहु धरम करम अनुरागो ॥
संग्रहि करो सदा सिमरन को परम पाप तजि भागो ॥२॥
जा ते दूख पाप नहि भेटै काल जाल ते तागो ॥
जौ सुख चाहो सदा सभन कौ तौ हरि के रस पागो ॥३॥३॥

4. रागु सोरठि

प्रभजू तोकहि लाज हमारी ॥
नलि कंठ नरहरि नाराइण नील बसन बनवारी ॥१॥रहाउ ॥
परम पुरख परमेश्वर सुआमी पावन पउन अहारी ॥
माधव महा जोति मधु मरदन मान मुकंद मुरारी ॥१॥
निरबिकार निरजुर निंद्राबिनु निरबिख नरक निवारी ॥
क्रिपासिंध काल त्रै दरसी कुक्रित प्रनासनकारी ॥२॥
धनुरपान ध्रित मान धराधर अनि बिकार असि धारी ॥
हौ मति मंद चरन शरनागति करि गहि लेहु उबारी ॥३॥१॥

5. रागु कलिआन

बिन करतार न किरतम मानो ॥
आदि अजोनि अजै अबिनाशी तिह परमेशर जानो ॥१॥ रहाउ ॥
कहा भयो जो आनि जगत मै दसकु असुर हरि घाए ॥
अधिक प्रपंच दिखाइ सभन कह आपहि ब्रहमु कहाए ॥१॥
भंजन गड़्हन समरथ सदा प्रभ सो किम जात गिनायो ॥
ता ते सरब काल के असि को घाइ बचाइ न आयो ॥२॥
कैसे तोहि तारि है सुनि जड़ आप डुबयो भव सागर ॥
छुटिहो काल फास ते तब ही गहो शरनि जगतागर ॥३॥१॥

6. तिलंग काफी

केवल काल ई करतार ॥
आदि अंत अनंति मूरत गड़्हन भंजनहार ॥१॥ रहाउ ॥
निंद उसतत जउन के सम श्त्रु मित्र न कोइ ॥
कउन बाट परी तिसै पथ सारथी रथ होइ ॥१॥
तात मात न जात जाकर पुत्र पौत्र मुकंद ॥
कउन काज कहाहिंगे ते आनि देवकि नंद ॥२॥
देव दैत दिसा विसा जिह कीन सरब पसार ॥
कउन उपमा तउन को मुख लेत नामु मुरार ॥३॥१॥

7. रागु बिलावल

सो किम मानस रूप कहाए ॥
सि्ध समाध साध कर हारे कयौहूं न देखन पाए ॥१॥ रहाउ ॥
नारद बिआस परासर ध्रुअ से धयावत धयान लगाए ॥
बेद पुरान हार हठ छाडिओ तदपि धयान न आए ॥१॥
दानव देव पिसाच प्रेत ते नेतहि नेति कहाए ॥
सूछम ते सूछम कर चीने बि्रधन बि्रध बताए ॥२॥
भूम अकाश पताल सभौ सजि एक अनेक सदाए ॥
सो नर काल फास ते बाचे जो हरि शरण सिधाए ॥३॥१॥

8. रागु देवगंधारी

इक बिन दूसर सो न चिनार ॥
भंजन गड़्हन समरथ सदा प्रभ जानत है करतार ॥१॥ रहाउ ॥
कहा भइओ जो अति हित चित कर बहुबिधि सिला पुजाई ॥
पान थके पाहिन क्ह परसत कछु कर सि्ध न आई ॥१॥
अछत धूप दीप अरपत है पाहन कछू न खै है ॥
ता मै कहां सि्ध है रे जड़ तोहि कछू बर दै है ॥२॥
जौ जिय होत देत कछु तुहि कर मन बच करम बिचार ॥
केवल एक शरणि सुआमी बिन यौ नहि कतहि उधार ॥३॥१॥

9. रागु देवगंधारी

बिन हरि नाम न बाचन पै है ॥
चौदह लोक जाहि बसि कीने ता ते कहां पलै है ॥१॥ रहाउ ॥
राम रहीम उबार न सकि है जा कर नाम रटै है ॥
ब्रहमा बिशन रुद्र सूरह ससि ते बसि काल सभै है ॥१
बेद पुरान कुरान सभै मत जाकह नेति कहै है ॥
इंद्र फनिंद्र मुनिंद्र कलप बहु धयावत धयान न ऐ है ॥२॥
जा कर रूप रंग नहि जनियत सो किम सयाम कहै है ॥
छुटहो काल जाल ते तब ही ताहि चरन लपटै है ॥३॥२॥

10. खिआल

मित्र पिआरे नूं हाल मुरीदां दा कहिणा ॥
तुधु बिनु रोगु रजाईआं दा ओढण नाग निवासां दे रहिणा ॥
सूल सुराही खंजरु पिआला बिंग कसाईआं दा सहिणा ॥
यारड़े दा सानूं स्थरु चंगा भ्ठ खेड़िआं दा रहिणा ॥१॥१॥

11. जागति जोत जपै निस बासुर

जागति जोत जपै निस बासुर एक बिना मन नैक न आनै ॥
पूरन प्रेम प्रतीत सजै ब्रत गोर मड़ी मट भूल न मानै ॥
तीरथ दान दइआ तप संजम एक बिना नह एक पछानै ॥
पूरन जोत जगै घट मै तब खालस ताहि नखालस जानै ॥१॥

12. काहे कउ पूजत पाहन कउ

काहे कउ पूजत पाहन कउ कछु पाहन मै परमेसुर नाही ॥
ताही को पूज प्रभू करि कै जिह पूजत ही अघ ओघ मिटाही ॥
आधि बिआधि के बंधन जेतक नाम के लेत सभै छुटि जाही ॥
ताही को धयानु प्रमान सदा इन फोकट धरम करे फलु नाही ॥२०॥

13. जु्ध जिते इन ही के प्रसादि

जु्ध जिते इन ही के प्रसादि इन ही के प्रसादि सु दान करे ॥
अघ अउघ टरै इन ही के प्रसादि इन ही क्रिपा फुन धाम भरे ॥
इन ही के प्रसादि सु बि्दिआ लई इन ही की क्रिपा सभ श्त्रु मरे ॥
इन ही की क्रिपा के सजे हम हैं नही मोसो गरीब करोर परे ॥२॥

14. सेव करी इन ही की भावत

सेव करी इन ही की भावत अउर की सेव सुहात न जीको ॥
दान दयो इन ही को भलो अरु आन को दान न लागत नीको ॥
आगै फलै इन ही को दयो जग मै जसु अउर दयो सभ फीको ॥
मो ग्रहि मै मन ते तन ते सिर लउ धन है सभ ही इन ही को ॥३॥

15. कहा भयो जो दोउ लोचन मूंद कै

कहा भयो जो दोउ लोचन मूंद कै बैठि रहिओ बक धिआन लगाइओ ॥
न्हात फिरिओ लीए सात समुद्रनि लोक गयो परलोक गवाइओ ॥
बास कीओ बिखिआन सो बैठ कै ऐसे ही ऐसे सु बैस बिताइओ ॥
साचु कहों सुन लेहु सभै जिन प्रेम कीओ तिन ही प्रभ पाइओ ॥९॥२९॥

16. काहू लै पाहन पूज धरयो सिर

काहू लै पाहन पूज धरयो सिर काहू लै लिंग गरे लटकाइओ ॥
काहू लखिओ हरि अवाची दिसा महि काहू पछाह को सीसु निवाइओ ॥
कोउ बुतान को पूजत है पसु कोउ म्रितान को पूजन धाइओ ॥
कूर क्रिआ उरिझओ सभ ही जग स्री भगवान को भेदु न पाइओ ॥१०॥३०॥

17. नाचत फिरत मोर बादर करत घोर

नाचत फिरत मोर बादर करत घोर दामनी अनेक भाउ करिओ ई करत है ॥
चंद्रमा ते सीतल न सूरज ते तपत तेज इंद्र सो न राजा भव भूम को भरत है ॥
सिव से तपसी आदि ब्रहमा से न बेदचारी सनत कुमार सी तप्सिआ न अनत है ॥
गिआन के बिहीन काल फास के अधीन सदा जुगन की चउकरी फिराए ई फिरत है ॥६॥७६॥

18. कोऊ भइओ मुंडीआ संनिआसी कोऊ

कोऊ भइओ मुंडीआ संनिआसी कोऊ जोगी भइओ कोऊ ब्रहमचारी कोऊ जती अनुमानबो ॥
हिंदू तुरक कोऊ राफजी इमाम साफी मानस की जाति सबै एकै पहिचानबो ॥
करता करीम सोई राजक रहीम ओई दूसरो न भेद कोई भूलि भ्रम मानबो ॥
एक ही की सेव सभ ही को गुरदेव एक एक ही सरूप सबै एकै जोत जानबो ॥१५॥८५॥

19. देहरा मसीत सोई पूजा औ निवाज ओई

देहरा मसीत सोई पूजा औ निवाज ओई मानस सबै एक पै अनेक को भ्रमाउ है ॥
देवता अदेव ज्छ गंध्रब तुरक हिंदू निआरे निआरे देसन के भेस को प्रभाउ है ॥
एकै नैन एकै कान एकै देह एकै बान खाक बाद आतिस औ आब को रलाउ है ॥
अलह अभेख सोई पुरान अउ कुरान ओई एक ही सरूप सभै एक ही बनाउ है ॥१६॥८६॥

20. जैसे एक आग ते कनूका कोटि आग उठै

जैसे एक आग ते कनूका कोटि आग उठै निआरे निआरे हुइ कै फेरि आग मै मिलाहिंगे ॥
जैसे एक धूरि ते अनेक धूरि पूरत है धूरि के कनूका फेर धूरि हि समाहिंगे ॥
जैसे एक नद ते तंरग कोटि उपजत हैं पानि के तरंग सबै पानि ही कहाहिंगे ॥
केते कछ मछ केते उन कउ करत भछ केते अछ बछ हुइ सप्छ उड जाहिंगे ॥
केते नभ बीच अछ पछ कउ करैंगे भछ केतक प्रतछ हुइ पचाइ खाइ जाहिंगे ॥
जल कहा थल कहा गगन के गउन कहा काल के बनाइ सबै काल ही चबाहिंगे ॥
तेज जिउ अतेज मै अतेज जैसे तेज लीन ताही ते उपज सबै ताही मै समाहिंगे ॥१८॥८८॥

21. कूकत फिरत केते रोवत मरत केते

कूकत फिरत केते रोवत मरत केते जल मै डुबत केते आग मै जरत हैं॥
केते गंग बासी केते मदीना मका निवासी केतक उदासी के भ्रमाए ई फिरत हैं ॥
करवत सहत केते भूमि मै गडत केते सूआ पै चड़्हत केते दुख कउ भरत हैं ॥
गैन मैं उडत केते जल मैं रहत केते गिआन के बिहीन जक जारे ई मरत हैं ॥१९॥८९॥

22. दीनिन की प्रतिपाल करै

दीनिन की प्रतिपाल करै नित संत उबार गनीमन गारै ॥
प्छ पसू नग नाग नराधिप सरब समै सभ को प्रतिपारै ॥
पोखत है जल मै थल मै पल मै कलि के नहीं करम बिचारै ॥
दीन दइआल दइआ निधि दोखन देखत है पर देत न हारै ॥१॥२४३॥

23. दाहत है दुख दोखन कौ

दाहत है दुख दोखन कौ दल दु्जन के पल मै दल डारै ॥
खंड अखंड प्रचंड प्रहारन पूरन प्रेम की प्रीत स्मभारै ॥
पार न पाइ सकै पदमापति बेद कतेब अभेद उचारै ॥
रोजी ही राज बिलोकत राजक रोख रूहान की रोजी न टारै ॥२॥२४४॥

24. कीट पतंग कुरंग भुजंगम

कीट पतंग कुरंग भुजंगम भूत भवि्ख भवान बनाए ॥
देव अदेव खपे अहमेव न भेव लखिओ भ्रम सिओ भरमाए ॥
बेद पुरान कतेब कुरान हसेब थके कर हाथि न आए ॥
पूरन प्रेम प्रभाउ बिना पति सिउ किन स्री पदमापति पाए ॥३॥२४५॥

25. आदि अनंत अगाध अद्वैख

आदि अनंत अगाध अद्वैख सु भूत भवि्ख भवान अभै है ॥
अंति बिहीन अनातम आप अदाग अदोख अछि्द्र अछै है ॥
लोगन के करता हरता जल मै थल मै भरता प्रभ वै है ॥
दीन दइआल दइआ कर स्रीपति सुंदर स्री पदमापति ए है ॥४॥२४६॥

26. काम न क्रोध न लोभ न

काम न क्रोध न लोभ न मोह न रोग न सोग न भोग न भै है ॥
देह बिहीन सनेह सभो तन नेह बिरकत अगेह अछै है ॥
जान को देत अजान को देत जमीन को देत जमान को दै है ॥
काहे को डोलत है तुमरी सुध सुंदर स्री पदमापति लैहै ॥५॥२४७॥

27. रोगन ते अर सोगन ते

रोगन ते अर सोगन ते जल जोगन ते बहु भांति बचावै ॥
स्त्रु अनेक चलावत घाव तऊ तन एक न लागन पावै ॥
राखत है अपनो कर दै कर पाप स्मबूह न भेटन पावै ॥
और की बात कहा कह तो सौं सु पेट ही के पट बीच बचावै ॥६॥२४८॥

28. ज्छ भुजंग सु दानव देव

ज्छ भुजंग सु दानव देव अभेव तुमै सभ ही कर धिआवै ॥
भूमि अकास पताल रसातल ज्छ भुजंग सभै सिर निआवै ॥
पाइ सकै नही पार प्रभा हू को नेत ही नेतह बेद बतावै ॥
खोज थके सभ ही खुजीआ सुर हार परे हरि हाथ न आवै ॥७॥२४९॥

29. नारद से चतुरानन से

नारद से चतुरानन से रुमनारिख से सभ हूं मिलि गाइओ ॥
बेद कतेब न भेद लखिओ सभ हार परे हरि हाथ न आइओ ॥
पाइ सकै नही पार उमापित सि्ध सनाथ सनंतन धिआइओ ॥
धिआन धरो तिह को मन मैं जिह को अमितोजि सभै जगु छाइओ ॥८॥२५०॥

30. बेद पुरान कतेब कुरान

बेद पुरान कतेब कुरान अभेद न्रिपान सभै पच हारे ॥
भेद न पाइ सकिओ अनभेद को खेदत है अनछेद पुकारे ॥
राग न रूप न रेख न रंग न साक न सोग न संगि तिहारे ॥
आदि अनादि अगाध अभेख अद्वैख जपिओ तिन ही कुल तारे ॥९॥२५१॥

31. तीरथ कोट कीए इसनान

तीरथ कोट कीए इसनान दीए बहु दान महा ब्रत धारे ॥
देस फिरिओ कर भेस तपोधन केस धरे न मिलै हरि पिआरे ॥
आसन कोट करे असटांग धरे बहु निआस करे मुख कारे ॥
दीन दइआल अकाल भजे बिनु अंत को अंत के धाम सिधारे ॥१०॥२५२॥

32. अत्र के चल्या छित छत्र के ध्रया

अत्र के चल्या छित छत्र के ध्रया छत्र धारीओं के छल्या महा सत्रन के साल हैं ॥
दान के दिवया महा मान के बढया अवसान के दिवया हैं कटया जाम जाल हैं ॥
जु्ध के जितया औ बिरु्ध के मिटया महां बु्धि के दिवया महां मानहूं के मान हैं ॥
गिआन हूं के गिआता महां बुधिता के दाता देव काल हूं के काल महा काल हूं के काल हैं ॥१॥२५३॥

33. पूरबी न पार पावैं

पूरबी न पार पावैं हिंगुला हिमालै धिआवैं गोरि गरदेजी गुन गावैं तेरे नाम हैं ॥
जोगी जोग साधै पउन साधना कितेक बाधै आरब के आरबी अराधैं तेरे नाम हैं ॥
फरा के फिरंगी मानैं कंधारी कुरैसी जानैं पछम के प्छमी पछानैं निज काम हैं ॥
मरहटा मघेले तेरी मन सों तपसिआ करै द्रिड़वै तिलंगी पहचानै धरम धाम हैं ॥२॥२५५॥

34. बंग के बंगाली

बंग के बंगाली फिरहंग के फिरंगावाली दिली के दिलवाली तेरी आगिआ मै चलत हैं ॥
रोह के रुहेले माघ देस के मघेले बीर बंग सी बुंदेले पाप पुंज को मलत हैं ॥
गोखा गुन गावै चीन मचीन के सीस नयावै ति्बती धिआइ दोख देह को दलत हैं ॥
जिनै तोहि धिआइओ तिनै पूरन प्रताप पाइओ सरब धन धाम फल फूल सों फलत हैं ॥३॥२५६॥

35. देव देवतान कौ सुरेस दानवान कौ

देव देवतान कौ सुरेस दानवान कौ महेस गंग धान कौ अभेस कहीअतु हैं ॥
रंग मैं रंगीन राग रूप मैं प्रबीन और काहू पै न दीन साध अधीन कहीअतु हैं ॥
पाईऐ न पार तेज पुंज मैं अपार सरब बिदिआ के उदार हैं अपार कहीअतु हैं ॥
हाथी की पुकार पल पाछै पहुंचत ताहि चीटी की चिंघार पहिले ही सुनीअतु हैं ॥४॥२५६॥

36. केते इंद्र दुआर केते

केते इंद्र दुआर केते ब्रहमा मुखचार केते क्रिसन अवतार केते राम कहीअतु हैं ॥
केते ससि रासी केते सूरज प्रकासी केते मुंडीआ उदासी जोग दुआर कहीअतु हैं ॥
केते महादीन केते बिआस से प्रबीन केते कुमेर कुलीन केते जछ कहीअतु हैं ॥
करते हैं बिचार पै न पूरन को पावै पार ताही ते अपार निराधार लहीअतु हैं ॥५॥२५७॥

37. पूरन अवतार निराधार है

पूरन अवतार निराधार है न पारावार पाईऐ न पार पै अपार कै बखानीऐ ॥
अद्वै अबिनासी परम पूरन प्रकासी महा रूप हूं के रासी हैं अनासी कै कै मानीऐ ॥
जंत्र हूं न जात जा की बाप हूं न माइ ता की पूरन प्रभा की सु छटा कै अनुमानीऐ ॥
तेज हूं को तंत्र हैं कि राजसी को जंत्र हैं कि मोहनी को मंत्र हैं निजंत्र कै कै जानीऐ ॥६॥२५८॥

38. तेज हूं को तरु हैं

तेज हूं को तरु हैं कि राजसी को सरु हैं कि सु्धता को घरु हैं कि सि्धता की सार हैं ॥
कामना की खान हैं कि साधना की सान हैं बिरकतता की बान हैं कि बु्धि को उदार हैं ॥
सुंदर सरूप हैं कि भूपन को भूप हैं कि रूप हूं को रूप हैं कुमति को प्रहारु हैं ॥
दीनन को दाता हैं गनीमन को गारक हैं साधन को ्रछक हैं गुनन को पहारु हैं ॥७॥२५९॥

39. सिधि को सरूप हैं

सिधि को सरूप हैं कि बुधि को बिभूति हैं कि क्रोध को अभूत हैं कि अछै अबिनासी हैं ॥
काम को कुनिंदा हैं कि खूबी को दिहंदा हैं गनीमन को गिरिंदा हैं कि तेज को प्रकासी हैं ॥
काल हूं को काल हैं कि सत्रन को साल हैं कि मित्रन को पोखत हैं कि ब्रिधता को बासी हैं ॥
जोग हूं को जंत्र हैं कि तेज हूं को तंत्र हैं कि मोहनी को मंत्र हैं कि पूरन प्रकासी हैं ॥८॥२६०॥

40. रूप को निवास हैं

रूप को निवास हैं कि बुधि को प्रकास हैं कि सि्धता को बास हैं कि बु्धि हूं को घरु हैं ॥
देवन को देव हैं निरंजन अभेव हैं अदेवन को देव हैं कि सु्धता को सरु हैं ॥
जान को बच्या हैं इमान को दिव्या हैं जम जाल को कट्या हैं कि कामना को करु हैं ॥
तेज को प्रचंड हैं अखंडण को खंड हैं महीपन को मंड हैं कि इसत्री हैं न नरु हैं ॥९॥२६१॥

41. बिस्व को भरन हैं

बिस्व को भरन हैं कि अपदा को हरन हैं कि सुख को करन हैं कि तेज को प्रकास हैं ॥
पाईऐ न पार पारावार हूं को पार जा को कीजत बिचार सुबिचार को निवास हैं ॥
हिंगुला हिमालै गावै अबसी हलबी धिआवै पूरबी न पार पावै आसा ते अनास हैं ॥
देवन को देव महादेव हूं के देव हैं निरंजन अभेव नाथ अद्वै अबिनासि हैं ॥१०॥२६२॥

42. अंजन बिहीन हैं

अंजन बिहीन हैं निरंजन प्रबीन हैं कि सेवक अधीन हैं कट्या जम जाल के ॥
देवन के देव महादेव हूं के देवनाथ भूम के भूजया हैं मुहया महा बाल के ॥
राजन के राजा महा साज हूं के साजा महा जोग हूं को जोग हैं धरया द्रम छाल के ॥
कामना के करु हैं कुबुधिता को हरु हैं कि सि्धता के साथी हैं कि काल हैं कुचाल के ॥११॥२६३॥

43. छीर कैसी छीरावध छाछ

छीर कैसी छीरावध छाछ कैसी छ्त्रानेर छपाकर कैसी छबि कालिंद्र के कूल कै ॥
हंसनी सी सीहारूम हीरा सी हुसैनाबाद गंगा कैसी धार चली सात सिंध रूल कै ॥
पारा सी पलाऊगढ रूपा कैसी रामपुर सोरा सी सुरंगाबाद नीकै रही झूल कै ॥
च्मपा सी चंदेरी कोट चांदनी सी चांदागड़ि्ह कीरति तिहारी रही मालती सी फूल कै ॥१२॥२६४॥

44. फटक सी कैलास कमांऊगड़्ह

फटक सी कैलास कमांऊगड़्ह कांसीपुर सीसा सी सुरंगाबादि नीकै सोहीअतु है ॥
हिमा सी हिमालै हर, हार सी ह्लबानेर हंस कैसी हाजीपुर देखे मोहीअतु है ॥
चंदन सी च्मपावती चंद्रमा सी चंद्रागिर चांदनी सी चांदगड़्ह जौन जोहीअतु है ॥
गंगा सम गंग धारि बकान सी बलिंदावाद कीरित तिहारी की उजिआरी सोहीअतु है ॥१३॥२६५॥

45. फरांसी फिरंगी फरांसीस के दुरंगी

फरांसी फिरंगी फरांसीस के दुरंगी मकरान के म्रिदंगी तेरे गीत गाईअतु है ॥
भखरी कंधारी गोर गखरी गरदेजा चारी पउन के अहारी तेरे नामु धिआईअतु है ॥
पूरब पलाऊं काम रूप औ कमाऊं सरब ठउर मै बिराजै जहां जहां जाईअतु है ॥
पूरन परतापी जंत्र मंत्र ते अतापी नाथ कीरित तिहारी को न पार पाईअतु है ॥१४॥२६६॥

46. सुन कै सद्दु माही दा मेहीं

सुन कै सद्दु माही दा मेहीं, पानी घाहु मुतो ने ॥
किसै नालि न रलिया काई, केहो शउक पयो ने ॥
गया फिराकु मिल्या मित माही, तांही शुकर कीतो ने ॥