हिंदी कविता अमिताभ भट्ट अरविन्द
Hindi Poetry Amitabh Bhatt Arvind

1. खुली हवा में रखा हुआ पेट्रोल

खुली हवा में रखा हुआ पेट्रोल
जैसे उड़ने के बाद भी
छोड़ जाता है अपनी खुशबू
दिलाता है याद अपने होने की
वैसे ही
तुम भी छोड़ जाना
अपना एक हिस्सा मेरे भीतर
पिघलाना मुझे अंदर से
निकलकर बाहर आना
आँसुओं के साथ
दिलाना याद अपने होने की
छोड़ जाना अपनी खुशबू
अखबार के पन्नों में
सुबह की चाय में
घर की दीवारों में
और मुझमें

2. मेरी सदियों की निराशा तोड़ डाली

मेरी सदियों की निराशा तोड़ डाली
मैं अकेला था मिला संसार मुझको

जिन दिशाओं में तुझे मैं ढूंढता था
आज उनमें कुछ अलग सा हो रहा है
झूम कर इतरा रहे हैं सारे तारे
चाँद बादल के पलंग पर सो रहा है
क्या बताऊँ क्या अजब सा था हुआ जब
तूने हाथों से परोसा प्यार मुझको
मेरी सदियों की निराशा तोड़ डाली
मैं अकेला था मिला संसार मुझको

3. रुकना राही का काम नहीं

रुकना राही का काम नहीं
चलो ! अभी विश्राम नहीं

मंजिल अब खड़ी पुकार रही
बढ़ते जाओ, वह दूर सही
जीवन है पग पग चलने में
गिरने में और संभलने में
जो भाग गया रणभूमि से
अर्जुन फिर उसका नाम नहीं
चलो ! अभी विश्राम नहीं

घर से आए तुम दूर निकल
लेकर पैरों मे गति प्रबल
हारा जो राहों से लड़कर
मरकर वह राही रहा अमर
तुम हार मान क्यों बैठ गए
यह तो जीवन की शाम नहीं
चलो ! अभी विश्राम नहीं