हिंदी कविता अल्लामा ताजवर नजीबाबादी
Poetry in Hindi Allama Tajvar Nazibabadi

1. बम चख़ है अपनी शाहे रईयत पनाह से

बम चख़ है अपनी शाहे रईयत पनाह से
इतनी सी बात पर कि 'उधर कल इधर है आज' ।
उनकी तरफ़ से दार-ओ-रसन, है इधर से बम
भारत में यह कशाकशे बाहम दिगर है आज ।
इस मुल्क में नहीं कोई रहरौ मगर हर एक
रहज़न बशाने राहबरी राहबर है आज ।
उनकी उधर ज़बींने-हकूमत पे है शिकन
अंजाम से निडर जिसे देखो इधर है आज ।

(२ मार्च १९३०-वीर भारत
(लाहौर से छपने वाला रोज़ाना अखबार)
(रईयत पनाह=जनता को शरण देने वाला,
दार-ओ-रसन=फांसी का फंदा, कशाकशे-
बाहम दिगर=आपसी खींचतान, रहरौ=रास्ते
का साथी, रहज़न=लुटेरा, ज़बींने=माथा,शिकन=
बल)

2. ऐ आरज़ू-ए-शौक़ तुझे कुछ ख़बर है आज

ऐ आरज़ू-ए-शौक़ तुझे कुछ ख़बर है आज
हुस्न-ए-नज़र-नवाज़ हरीफ़-ए-नज़र है आज

हर राज़दाँ है हैरती-ए-जलवा-हा-ए-राज़
जो बा-ख़बर है आज वही बे-ख़बर है आज

क्या देखिए कि देख ही सकते नहीं उसे
अपनी निगाह-ए-शौक़ हिजाब-ए-नज़र है आज

दिल भी नहीं है महरम-ए-असरार-ए-इश्क़ दोस्त
ये राज़दाँ भी हल्क़ा-ए-बैरून-ए-दर है आज

कल तक थी दिल में हसरत-ए-अज़ादी-ए-क़फ़स
आज़ाद आज हैं तो ग़म-ए-बाल-ओ-पर है आज

3. ग़म-ए-मोहब्बत में दिल के दाग़ों से रू-कश-ए-लाला-ज़ार हूँ मैं

ग़म-ए-मोहब्बत में दिल के दाग़ों से रू-कश-ए-लाला-ज़ार हूँ मैं
फ़ज़ा बहारीं है जिस के जल्वों से वो हरीफ़-ए-बहार हूँ मैं

खटक रहा हूँ हर इक की नज़रों में बच के चलती है मुझ से दुनिया
ज़हे गिराँ-बारी-ए-मोहब्बत कि दोश-हस्ती पे बार हूँ मैं

कहाँ है तू वादा-ए-वफ़ा कर के ओ मिरे भूल जाने वाले
मुझे बचा ले कि पाएमाल-ए-क़यामत-ए-इंतिज़ार हूँ मैं

तिरी मोहब्बत में मेरे चेहरे से है नुमायाँ जलाल तेरा
हूँ तेरे जल्वों में महव ऐसा कि तेरा आईना-दार हूँ मैं

वो हुस्न-ए-बे-इल्तिफ़ात ऐ 'ताजवर' हुआ इल्तिफ़ात-फ़रमा
तो ज़िंदगी अब सुना रही है कि उम्र-ए-बे-एतिबार हूँ मैं

4. मोहब्बत में ज़बाँ को मैं नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ कर लूँ

मोहब्बत में ज़बाँ को मैं नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ कर लूँ
शिकस्ता दिल की आहों को हरीफ़-ए-ना-तवाँ कर लूँ

न मैं बदला न वो बदले न दिल की आरज़ू बदली
मैं क्यूँ कर ए'तिबार-ए-इंक़लाब-ए-ना-तवाँ कर लूँ

न कर महव-ए-तमाशा ऐ तहय्युर इतनी मोहलत दे
मैं उन से दास्तान-ए-दर्द-ए-दिल को तो बयाँ कर लूँ

सबब हर एक मुझ से पूछता है मेरे होने का
इलाही सारी दुनिया को मैं क्यूँ कर राज़-दाँ कर लूँ

5. मोहब्बत में ज़ियाँ-कारी मुराद-ए-दिल न बन जाए

मोहब्बत में ज़ियाँ-कारी मुराद-ए-दिल न बन जाए
ये ला-हासिल ही उम्र-ए-इश्क़ का हासिल न बन जाए

मुझी पर पड़ रही है सारी महफ़िल में नज़र उन की
ये दिलदारी हिसाब-ए-दोस्ताँ दर-दिल न बन जाए

करूँगा उम्र भर तय राह-ए-बे-मंज़िल मोहब्बत की
अगर वो आस्ताँ इस राह की मंज़िल न बन जाए

तिरे अनवार से है नब्ज़-ए-हस्ती में तड़प पैदा
कहीं सारा निज़ाम-ए-काएनात इक दिल न बन जाए

कहीं रुस्वा न हो अब शान-ए-इस्तिग़ना मोहब्बत की
मिरी हालत तुम्हारे रहम के क़ाबिल न बन जाए

6. हश्र में फिर वही नक़्शा नज़र आता है मुझे

हश्र में फिर वही नक़्शा नज़र आता है मुझे
आज भी वादा-ए-फ़र्दा नज़र आता है मुझे

ख़लिश-ए-इश्क़ मिटेगी मिरे दिल से जब तक
दिल ही मिट जाएगा ऐसा नज़र आता है मुझे

रौनक़-ए-चश्म-ए-तमाशा है मिरी बज़्म-ए-ख़याल
इस में वो अंजुमन-आरा नज़र आता है मुझे

उन का मिलना है नज़र-बंदी-ए-तदबीर ऐ दिल
साफ़ तक़दीर का धोका नज़र आता है मुझे

तुझ से मैं क्या कहूँ ऐ सोख़्ता-ए-जल्वा-ए-तूर
दिल के आईने में क्या क्या नज़र आता है मुझे

दिल के पर्दों में छुपाया है तिरे इश्क़ का राज़
ख़ल्वत-ए-दिल में भी पर्दा नज़र आता है मुझे

इबरत-आमोज़ है बर्बादी-ए-दिल का नक़्शा
रंग-ए-नैरंगी-ए-दुनिया नज़र आता है मुझे

7. हुस्न-ए-शोख़-चश्म में नाम को वफ़ा नहीं

हुस्न-ए-शोख़-चश्म में नाम को वफ़ा नहीं
दर्द-आफ़रीं नज़र दर्द-आश्ना नहीं

नंग-ए-आशिक़ी है वो नंग-ए-ज़िंदगी है वो
जिस के दिल का आईना तेरा आईना नहीं

आह उस की बे-कसी तू न जिस के साथ हो
हाए उस की बंदगी जिस का तू ख़ुदा नहीं

हैफ़ वो अलम-नसीब जिस का दर्द तू न हो
उफ़ वो दर्द-ए-ज़िंदगी जिस की तू दवा नहीं

दोस्त या अज़ीज़ हैं ख़ुद-फ़रेबियों का नाम
आज आप के सिवा कोई आप का नहीं

अपने हुस्न को ज़रा तू मिरी नज़र से देख
दोस्त! शश-जहात में कुछ तिरे सिवा नहीं

बे-वफ़ा ख़ुदा से डर ताना-ए-वफ़ा न दे
'ताजवर' में और ऐब कुछ हों बे-वफ़ा नहीं