Piyush Pachak
पीयूष पाचक

पीयूष पाचक की कविताएँ

1. संसद

संसद हमारी अपनी
एक ट्रांसपोर्ट कंपनी,
जिसमें बड़ा कारोबार
होता है,
कोई पाता है
कोई खोता है,
हँसने सी बात नहीं
मंत्रीपदों का
यातायात होता है,

2. प्रवृत्ति

महंगाई कितनी ही
बढ़ जाए,
दिखावे की बेड़ियाँ
नहीं तोड़तें हैं,
नमक का भाव
आसमान चढ़ जाए पर
दूसरों के जली पर
छिड़कना नहीं
छोड़ते हैं।

3. रावण के राज में

मेरी नन्ही-सी
बिटिया मुनमुन,
अक्सर विचारों को
लेती है बुन,
मैंने उसे रावण का
पुतला दिखाया,
देखते ही उसने
प्रश्न दनदनाया,
"पापा, रावण अंकल के
दस सीस,
आँखें बीस,
सुबह उठकर अपनी
कौन-सी आँखें
धोते होंगे,
बेचारे बीस-बीस
आँखों से
कैसे रोते होंगे?
मैंने कहा, "बेटी,
तू नाहक विचारों में
खोती है,
रावण के राज में
रावण नहीं
प्रजा रोती है।"

4. साइज़

हीरोइन का पारा चढ़ा,
जूतेवाला घबराकर
कोने में खड़ा,
मॅडम को जूता
चाहिए था,
बाहर से छोटा
अन्दर से बड़ा।

5. औरतें

खुद शराब हैं
मगर पीने से
डरती है

मुहब्बत में
मर जायें
सौ-सौ बार
मगर बुड्ढी होकर
जीने से डरती है।

6. औरतें कुछ परिभाषाएँ

लुगाई का लोग
कर्मों का भोग
लोग की लुगाई
समझो मुसीबत आई,

पति की पत्नी
पर कतरनी,
पत्नी का पति
मारी गई मति

हजबैंड की वाइफ
टेंशन में लाइफ़
वाइफ का हज़बैण्ड,
बेलन से बाजे बैंड,

सजनी का साजन
बना कोपभाजन,
साजन की सजनी
मनभर वजनी

गुलाम की जोरू
बड़ी कानफोडू
जोरू का गुलाम
समझो काम तमाम

कविता खतम
राम-राम।

7. प्रमुख चरण

लगाएँ सत्य पर ग्रहण
करें झूठ का वरण
सरकारी खज़ाने का चीर हरण
चुनाव हारें तो मरण,
जीते तो कुंभकरण
यही दो है देश के
नेताओं के जीवन के
प्रमुख चरण

8. राजनीति

1. राजनीति

राजनीति की गलियाँ
बड़ी संकरी हो गई है,
आम जनता खूँटे से बँधी
बकरी हो गई है,
चुनाव के त्यौहार तक
मतदान के वार तक
खिला-पिलाकर
लाल करते हैं,
वायदों की छुरी से
हलाल करते हैं।

2. राजनीति

त्याग नहीं
सुविधा है
मूर्ख बनाने की
विधा है।

9. महंगाई पे हास्य

घनघोर महंगाई का दौर
चलते हैं सब्ज़ीमंडी की ओर
फ़िल्मी दुनिया-सी
महंगी नज़र आती है,
आलू डैनी की तरह
आँखें दिखाता है,
गोभी भिंडी
ऐश्वर्या की तरह
कजरारे-कजरारे गाती है,
लेने जाओगे
दूर खिसक जाएगी,
आप कोई अभिषेक बच्चन
नहीं हो जो आपके पास आएगी।

10. सस्ताई पे व्यंग्य

जान की कीमत चंद नोट
नोटों से बिकते हैं अनमोल वोट
रद्दी के भाव, शहीदों की तस्वीरें
नैतिक मूल- औंधे मुँह गिरे
कोई लेने वाला नहीं ईमान को
ईमानदारी फोकट
सड़ रही है,
फिर कौन कहता है,
महंगाई बढ़ रही है।

11. कारनामें

आतंकवादी कारनामें
रोज़ सैंकड़ों लाशों के
पंचनामे,
भूख व्याकुल करे
या दंगों में गरीब मरे,
किस्मत में मरना ही
लिखा है तो
बेचारी सरकार क्या करे,
ये उपाय तो
जनसंख्या नियंत्रण के
तौर है
सचमुच हमारे देश में
विकास का दौर है।

12. चार फुलझड़ियाँ

रूप

सफ़ेद खादी में
लक्ष्मी का रंग काला
उनकी दीवाली में
देश का दीवाला

किस्मत

दीवाली में
फाकाकशी का
दौर चल रहा है
दिया किस्मत वाला है
जो घी से
जल रहा है

नेता

देश के लिए
भारी है
इच्छाधारी है

नसीब

डेयरी के मज़दूर का
कैस नसीब है
पाँचों उँगलियाँ
घी में
फिर भी गरीब है।

13. चिकने घड़े

गरीबों के घड़े
सूखे पड़े हैं,
हम उन्हें मितव्ययी
बनाने पर अड़े हैं,
कौन पचड़े में पड़े
नेता सारे
चिकने घड़े हैं।

14. बस चल रही है

सब तरफ घपले-घोटाले,
टेलीफोन से लेकर
चारे तक हर आइटम खाले,
गरीबों की भैंस पानी में
अमीरों की दाल गल रही है,
सरकारें चलती नहीं
बस चल रही है!

15. सुपर भ्रष्ट मेल

राजनीति की रेल,
नाम सुपर भ्रष्ट मेल
रूट संसद से जेल,
सुरक्षित बिलकुल,
तभी तो हाउस फुल।

16. आरोप

नेताजी अक्ल के
कच्चे,
घर में जन्में
जुड़वाँ बच्चे,
एक पत्रकार ने कहा,
सब ईश्वर की लीला
प्रभु की करामात है।
नेताजी बोले, "ज़रूर
विपक्ष का हाथ है।"

17. राज़ की बात

शेर सिंह मोटा ताज़ा
पूरे जंगल का राजा,
वेजीटेरियन हो गया
पशुओं के प्रेम में खो गया
नज़ारा इतना विचित्र
हो गया
शिकार था जो पहले
अब वो मित्र
हो गया
दुश्मनों में प्यार उमड़
आया था,
पता है! जंगल में
चुनाव आया था।

18. प्रश्नवाचक चिह्न

प्रश्नवाचक चिह्न
नेता हो गए
माफिया डॉन,
धन्ना सेठ
चुकते हैं लॉन,
रिश्वत के आगे
पगारे गौण
फिर भी चुप्पी
सन्नाटा, मौन,
बेटा बाप से पूछे
हम आपके कौन,
वीरप्पन बना जिन्न
नेता करे ताक धिनाधिन्न,
स्पेशल टास्क फोर्स
छिन्न भिन्न,
राजनीति से आने
लगी घिन्न,
इमानदार का मन
खिन्न
यथार्थ आदर्शों से
स्पर्धा भिन्न,
लोकतंत्र के सामने? प्रश्न वाचक चिह्न

19. प्रेम-व्यथा

रंगीन मुलाकातें
रोज़ होती थी,
पच्चीस बरस तक
हम दोनों
पति-पत्नी की
बड़ी मौज होती थी,
फिर खुशियाँ
ऐसी रूठी
कि आधी हो गई,
क्या बताए
२६ वें बरस
हमारी शादी हो गई।

20. फ्रंटपेज पर

आतंकवादी आए
घबराये-से
सब चिल्लाए,
अचानक बम
विस्फोट
गरीबों पर चोंट,
सब दुम दबाकर
भागे,
नेताजी सबसे
आगे,
जलते अंगारों पे
रोटियाँ सेंकने लगे
हालातों को
शिकारी निगाहों से
देखने लगे,
दूसरे ही दिन
मखमली सेज पर थे,
घड़ियाली आँसू
फ्रंट पेज पर थे।

21. महान भारत

महान भारत में
कलयुग की
महाभारत में,
नेता के हाथ में तीर
कमान जनता है,
दुर्योधन और दु:शासन
नेता ही बनता है,
द्रौपदी कौन?
आम जनता है,
पाण्डवों पर आज भी
कौरव भारी है,
द्रौपदी का चीरहरण
अनवरत जारी है।

22. वायदों की छुरी

राजनीति की गलियाँ
संकरी हो गई हैं,
आम जनता
खूँटे से बँधी
बकरी हो गई है,
चुनाव के त्यौहार तक
मतदान के वार तक,
खिला-पिलाकर
लाल करते हैं,
वायदों की छुरी से
हलाल करते हैं।

23. संयुक्त परिवार

कलयुग के वन में
घर-परिवार के
संसद सदन में,
रीति रिवाज
बकवास-बंडल,
परिजन मंत्रिमण्डल,
सास के आगे बहू
दोनों की क्या कहूँ
गृह कार्य में दक्ष हैं,
सशक्त विपक्ष हैं,
उखड़े-उखड़े मन,
बाहर से समर्थन
हरकतें ठीक
वैसी की वैसी,
'लोकतंत्र'
ऐसी की तैसी
रसोइयाँ दल-बदल
रही हैं,
आधुनिकता छाती पर
मूँग दल रही है,
संयुक्त परिवार
एक सरकार,
सरकार, बस
चल रही है।