निन्दा का अंग : संत दादू दयाल जी

Ninda Ka Ang : Sant Dadu Dayal Ji

दादू नमो नमो निरंजनं, नमस्कार गुरु देवत:।
वन्दनं सर्व साधावा, प्रणामं पारंगत:।1।
साधु निर्मल मल नहीं, राम रमै सम भाय।
दादू अवगुण काढ कर, जीव रसातल जाय।2।
दादू जब ही साधु सताइये, तब ही ऊँधा पलट।
आकाश धाँसे धारती खिसे, तीनों लोक गरक।3।
दादू जिहिं घर निन्दा साधु की, सो घर गये समूल।
तिन की नींव न पाइये, नाम न ठाँव न धूल।4।
दादू निन्दा नाम न लीजिए, स्वप्ने ही जिन होइ।
न हम कहैं न तुम सुणो, हम जिन भाखे कोइ।5।
दादू निन्दा किये नरक है, कीट पड़े मुख माँहिं।
राम विमुख जामै मरै, भग मुख आवे जाँहिं।6।
दादू निन्दक बपुरा जनि मरे, पर उपकारी सोय।
हम को करता ऊजला, आपण मैला होय।7।
दादू जिहिं विधि आतम उध्दरे, परसे प्रीतम प्राण।
साधु शब्द को निन्दणा, समझैं चतुर सुजाण।8।
अनदेख्या अनरथ कहैं, कलि पृथ्वी का पाप।
धारती-अम्बर जब लगै, तब लग करै कलाप।9।
अणदेख्या अनरथ कहैं, अपराधी संसार।
जद तद लेखा लेइगा, समर्थ सिरजनहार।10।

दादू डरिये लोक तै, कैसी धारहि उठाइ।
अनदेखी अजगैब की, ऐसी कहै बणाइ।11।
दादू अमृत को विष विष को अमृत, फेरि धारै सब नाम।
निर्मल मैला मैला निर्मल, जाहिंगे किस ठाम।12।
दादू साँचे को झूठा कहै, झूठे को साँचा।
राम दुहाई काढिये, कंठ तैं वाँचा।13।
झूठ न कहिए साँच को, साँच न कहिए झूठ।
दादू साहिब माने नहीं, लागे पाप अखूट।14।
दादू झूठ दिखावै साँच को, भयानक भयभीत।
साँचा राता साँच सौं, झूठ न आनै चीत।15।
साँचे को झूठा कहै, झूठा साँच समान।
दादू अचरज देखिया, यहु लोगों का ज्ञान।16।
ज्यों-ज्यों निन्दै लोग विचारा, त्यों-त्यों छीजे रोग हमारा।17।

।इति निन्दा का अंग सम्पूर्ण।

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