खादी के फूल : सुमित्रानंदन पंत

Khadi Ke Phool Sumitranandan Pant

  • अंतर्धान हुआ फिर देव विचर धरती पर
  • हाय, हिमालय ही पल में हो गया तिरोहित
  • आज प्रार्थना से करते तृण तरु भर मर्मर
  • हाय, आँसुओं के आँचल से ढँक नत आनन
  • हिम किरीटिनी, मौन आज तुम शीश झुकाए
  • देख रहे क्या देव, खड़े स्वर्गोच्च शिखर पर
  • देख रहा हूँ, शुभ्र चाँदनी का सा निर्झर
  • देव पुत्र था निश्वय वह जन मोहन मोहन
  • देव, अवतरण करो धरा-मन में क्षण, अनुक्षण
  • दर्प दीप्त मनु पुत्र, देव, कहता तुमको युग मानव
  • प्रथम अहिंसक मानव बन तुम आये हिंस्र धरा पर
  • सूर्य किरण सतरंगों की श्री करतीं वर्षण
  • राजकीय गौरव से जाता आज तुम्हारा अस्थि फूल रथ
  • लो, झरता रक्त प्रकाश आज नीले बादल के अंचल से
  • बारबार अंतिम प्रणाम करता तुमको मन