कैदी कविराय की कुण्डलियाँ : अटल बिहारी वाजपेयी (हिन्दी कविता)

Kaidi Kavirai Ki Kundliyan : Atal Bihari Vajpeyi

1. विश्व हिन्दी सम्मेलन

पोर्ट लुई के घाट पर,
नवपंडों की भीर;
रोली, अक्षत, नारियल,
सुरसरिता का नीर;
सुरसरिता का नीर,
लगा चन्दन का घिस्सा;
भैया जी ने औरों
का भी हड़पा, हिस्सा;
कह कैदी कविराय,
जयतु जय शिवसागर जी;
जय भगवती जागरण,
निरावरण जय नागर जी ।

2. अस्पताल की याद रहेगी

योग, प्रयोग, नियोग
की चर्चा सुनी अपार;
रोग सदा पल्ले पड़ा,
खुला जेल का द्वार;
खुला जेल का द्वार,
किया ऐसा शीर्षासन;
दुनिया उलटी हुई,
डोल उट्ठा सिंहासन;
कह कैदी कविराय,
मुफ्त की मालिश महंगी;
बंगलौर के अस्पताल
की याद रहेगी।

3. धरे गए बंगलौर में

धरे गए बंगलौर में,
अडवानी के संग;
दिन-भर थाने में रहे,
हो गई हुलिया तंग;
हो गई हुलिया तंग,
श्याम बाबू भन्नाए;
'प्रात: पकड़े गए,
न अब तक जेल पठाए ?'
कह कैदी कविराय,
पुराने मंत्री ठहरे;
हम तट पर ही रहे,
मिश्र जी उतरे गहरे।

4. पाप का घड़ा भरा है

जन्म जहाँ श्रीकृष्ण का,
वहां मिला है ठौर;
पहरा आठों याम का,
जुल्म-सितम का दौर;
जुल्म-सितम का दौर;
पाप का घड़ा भरा है;
अत्याचारी यहां
कंस की मौत मरा है;
कह कैदी कविराय,
धर्म ग़ारत होता है;
भारत में तब सदा,
महाभारत होता है।

5. बजेगी रण की भेरी

दिल्ली के दरबार में,
कौरव का है ज़ोर;
लोक्तंत्र की द्रौपदी,
रोती नयन निचोर;
रोती नयन निचोर
नहीं कोई रखवाला;
नए भीष्म, द्रोणों ने
मुख पर ताला डाला;
कह कैदी कविराय,
बजेगी रण की भेरी;
कोटि-कोटि जनता
न रहेगी बनकर चेरी।

6. अनुशासन पर्व

अनुशासन का पर्व है,
बाबा का उपदेश;
हवालात की हवा भी
देती यह सन्देश:
देती यह सन्देश,
राज डण्डे से चलता;
जब हज करने जाएँ,
रोज़, कानून बदलता;
कह कैदी कविराय,
शोर है अनुशासन का;
लेकिन ज़ोर दिखाई
देता दु:शासन का।

7. जेल की सुविधाएँ

डाक्टरान दे रहे दवाई,
पुलिस दे रही पहरा;
बिना ब्लेड के हुआ खुरदरा,
चिकना-चुपड़ा चेहरा;
चिकना-चुपड़ा चेहरा,
साबुन, तेल नदारत;
मिले नहीं अखबार,
पढ़ेंगे नई इबारत;
कह कैदी कविराय,
कहां से लाएँ कपड़े;
अस्पताल की चादर,
छुपा रही सब लफड़े।

8. अंधेरा कब जाएगा

दर्द कमर का तेज,
रात भर लगीं न पलकें,
सहलाते रहे बस,
एमरजैंसी की अलकें,
नर्स नींद में चूर,
ऊंघते रहे सभी सिपाही,
कंठ सूखता, पर
उठने की सख़्त मनाही,
कह कैदी कविराय,
सवेरा कब आएगा,
दम घुटने लग गया,
अंधेरा कब जाएगा।

9. नहीं पुलिस का पीछा छूटा

घर पहुंचे हम बाद में,
पहले पुलिस तैयार;
रोम-रोम गद्गद हुआ,
लखि सवागत-सत्कार;
लखि स्वागत-सत्कार,
पराये अपने घर में;
कुत्ते का भी नाम
लिख लिया रजिस्टर में;
कह कैदी कविराय,
शास्त्री कसें लंगोटा;
जनसंघ छूटा, नहीं पुलिस
का पीछा छूटा।

10. सूखती रजनीगन्धा

कहु सजनी ! रजनी कहाँ ?
अँधियारे में चूर;
एक बरस में ढर गया,
चेहरे पर से नूर;
चेहरे पर से नूर;
दूर दिल्ली दिखती है;
नियति निगोड़ी कभी
कथा उलटी लिखती है;
कह कैदी कविराय,
सूखती रजनीगन्धा;
राजनीति का पड़ता है,
जब उलटा फन्दा।

11. गूंजी हिन्दी विश्व में

गूंजी हिन्दी विश्व में,
स्वप्न हुआ साकार;
राष्ट्र संघ के मंच से,
हिन्दी का जयकार;
हिन्दी का जयकार,
हिन्दी हिन्दी में बोला;
देख स्वभाषा-प्रेम,
विश्व अचरज से डोला;
कह कैदी कविराय,
मेम की माया टूटी;
भारत माता धन्य,
स्नेह की सरिता फूटी!

12. घर में दासी

बनने चली विश्व भाषा जो,
अपने घर में दासी;
सिंहासन पर अंगरेज़ी है,
लखकर दुनिया हाँसी;
लखकर दुनिया हाँसी,
हिन्दीदां बनते चपरासी;
अफसर सारे अंगरेज़ीमय,
अवधी हों, मद्रासी;
कह कैदी कविराय,
विश्व की चिन्ता छोड़ो;
पहले घर में
अंगरेज़ी के गढ़ को तोड़ो!

13. कार्ड महिमा

पोस्ट कार्ड में गुण बहुत,
सदा डालिए कार्ड;
कीमत कम, सेंसर सरल,
वक्त बड़ा है हार्ड;
वक्त बड़ा है हार्ड,
सम्हल कर चलना भैया;
बड़े-बड़ों की फूंक सरकती,
देख सिपहिया;
कह कैदी कविराय,
कार्ड की महिमा पूरी;
राशन, शासन, शादी-
व्याधी, कार्ड जरूरी.

14. मंत्रिपद तभी सफल है

बस का परमिट मांग रहे हैं,
भैया के दामाद;
पेट्रोल का पंप दिला दो,
दूजे की फरियाद;
दूजे की फरियाद,
सिफारिश काम बनाती;
परिचय की परची,
किस्मत के द्वार खुलाती;
कह कैदी कविराय,
भतीजावाद प्रबल है;
अपनों को रेवड़ी,
मंत्रिपद तभी सफल है!

15. बेचैनी की रात

बेचैनी की रात,
प्रात भी नहीं सुहाता;
घिरी घटा घनघोर,
न कोई पंछी गाता;
तन भारी, मन खिन्न,
जागता दर्द पुराना;
सब अपने में मस्त,
पराया कष्ट न जाना;
कह कैदी कविराय,
बुरे दिन आने वाले;
रह लेंगे जैसा,
रखेगा ऊपर वाले!

16. पद ने जकड़ा

पहले पहरेदार थे,
अब भी पहरेदार;
तब थे तेवर तानते,
अब झुकते हर बार;
अब झुकते हर बार,
वक्त की है बलिहारी;
नजर चढ़ाने वालों ने ही,
नजर उतारी;
कह कैदी कविराय,
पुनः बंधन ने जकड़ा;
पहले मद ने और आजकल,
पद ने जकड़ा.

17. न्यूयॉर्क

मायानगरी देख ली,
इन्द्रजाल की रात;
आसमान को चूमती,
धरती की बारात;
धरती की बारात,
रूप का रंग निखरता;
रस का पारावार,
डूबता हृदय उबरता;
कह कैदी कविराय,
बिकाऊ यहां जिंदगी;
चमक-दमक में छिपी,
गरीबी और गन्दगी!

18. धधकता गंगाजल है

जे. पी. डारे जेल में,
ताको यह परिणाम,
पटना में परलै भई,
डूबे धरती धाम।
डूबे धरती धाम
मच्यो कोहराम चतुर्दिक,
शासन के पापन को
परजा ढोवे धिक-धिक।
कह कैदी कविराय
प्रकृति का कोप प्रबल है,
जयप्रकाश के लिए
धधकता गंगाजल है।

19. अनुशासन के नाम पर

अनुशासन के नाम पर
अनुशासन का खून
भंग कर दिया संघ को
कैसा चढ़ा जुनून
कैसा चढ़ा जुनून
मातृ-पूजा प्रतिबंधित
कुलटा करती केशव-कुल की
कीर्ति कलंकित
कह कैदी कविराय,
तोड़ कानूनी कारा
गूंजेगा भारत माता की
जय का नारा।

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