कह-मुकरियाँ अमीर खुसरो
Kah-Mukriyan Amir Khusro in Hindi

कह-मुकरियाँ

अति सुंदर जग चाहे जाको,
मैं भी देख भुलानी वाको,
देख रूप माया जो टोना ।
ऐ सखि साजन, ना सखि सोना ।।

अति सुरंग है रंग रंगीलो
है गुणवंत बहुत चटकीलो
राम भजन बिन कभी न सोता
ऐ सखि साजन ? ना सखि तोता ।।

अर्ध निशा वह आया भौन
सुंदरता बरने कवि कौन
निरखत ही मन भयो अनंद
ऐ सखि साजन ? ना सखि चंद ।।

अंगों मेरे लिपटा आवे,
वाके खेल मोरे मन भावे ।
कर गहि, कुच गहि, मोरि माला,
ऐ सखी साजन, ना सखि बाला ।।

अंगों मेरे लिपटा रहे,
रंग रूप का सब रस पिए,
मैं भर जनम न वाको छोड़ा,
ऐ सखि साजन, ना सखि चूड़ा।

आठ प्रहर मेरे संग रहे,
मीठी प्यारी बातें करे।
श्याम बरन और राती नैंना,
ऐ सखि साजन ? न सखि! मैंना।।

आधी रात आयो दइ मारो,
सब आभरन मेरे तन से उतारो ।
इतने में सखि हो गई भोर,
ऐ सखि साजन, ना सखि, चोर ।।

आँख चलावे मूंह मटकावे,
नाच कूद कर खेल खिलावे ।
मन में आवे ले जाऊं अंदर,
ऐ सखि साजन, न सखि बंदर ।।

आप हिले और मोहे हिलाए
वा का हिलना मोए मन भाए
हिल हिल के वो हुआ निसंखा
ऐ सखि साजन ? ना सखि पंखा ।।

उछल कूद कर जो वह आया,
धरा ढका सभी कुछ खाया ।
दौड़ झपट जा बैठा अन्दर,
ऐ सखि साजन, नासखि बंदर ।।

उमड़ घुमड़ कर वह जो आयो
अंदर मैंने पलंग बिछायो ।
मेरा वाका लागा नेह,
ऐ सखि साजन, ना सखि मेह।

ऊकडू बैठ के बनावत है,
सौ-सौ चक्कर देके घुमावत है।
तब वाके रस की क्या देत बहार,
ऐ सखि साजन, ना सखि कुम्हार।

ऊंची अटारी पलंग बिछायो
मैं सोई मेरे सिर पर आयो
खुल गई अंखियां भयी आनंद
ऐ सखि साजन ? ना सखि चांद ।।

एक तो वह देह का भारू
छोटे नैन सदा मत वारू।
वह पीउ मेरे सेज का साथी,
ऐ सखि साजन ना सखि हाथी ।।

एक सजन वह गहरा प्यारा,
जा से घर मेरा उजियारा ।
भोर भई तब विदा किया,
ऐ सखि साजन, ना सखि दिया ।।

एक साजन मोरे मन को भावे,
जासे मजलिस खड़ी सुहावे ।
सूत सुनूं उठ दौड़ जाग,
ऐ सखि साजन, ना सखि राग।

कसके छाती पकड़े रहे
मुंह से बोले न बात कहे ।
ऐसा है कामिनी का रंगिया,
ऐ सखि साजन, ना सखि अंगिया ।।

खा गया पी गया
दे गया बुत्ता
ऐ सखि साजन ?
ना सखि कुत्ता ।।

घर आवे मुख घेरे-फेरे,
दें दुहाई मन को हरें,
कभू करत है मीठे बैन,
कभी करत है रुखे नैंन।
ऐसा जग में कोऊ होता,
ऐ सखि साजन ? न सखि ! तोता।।

चढ़, छाती मोको लचकावत,
धोय हाथ मो पर चढ़ि आवत।
सरम लगत देखत सब नगरी,
ऐ सखि साजन, ना सखि गगरी ।।

छटे-छमासे मेरे घर आवे,
आप हिले और मोही हलावे।
नाम लेत मोय आवे संखा,
ऐ सखि साजन, ना सखि पंखा ।।

जब माँगू तब जल भरि लावे
मेरे मन की तपन बुझावे
मन का भारी तन का छोटा
ऐ सखि साजन ? ना सखि लोटा ।।

जब मोरे मंदिर में आवे,
सोते मुझ को आन जगावे ।
पढ़त फिरत वह विरह के अच्छर,
ऐ सखि साजन, ना सखि मच्छर ।।

जीवन सब जग जासों कहै
वा बिनु नेक न धीरज रहै
हरै छिनक में हिय की पीर
ऐ सखि साजन ? ना सखि नीर ।।

टट्टी तोड़ के घर में आया
अरतन बरतन सब सरकाया।
खा गया पी गया दे गया बुत्ता,
ऐ सखि साजन, ना सखि कुत्ता।

द्वारे मोरे अलख जगावे
भभूत विरह के अंग लगावे
सिंगी फूंकत फिरै वियोगी,
ऐ सखि साजन, ना सखि जोगी ।।

देखत के दो घड़ी उजियारी,
सब सागर से आती प्यारी ।
सगरी रैन मैं संग ले सोती,
ऐ सखि साजन, ना सखि मोती ।।

देखत में वह गाँठ गठीला,
चाखन में वह अधिक रसीला ।
मुख चूमूं तो रस का भाँडा,
ऐ सखि साजन, ना सखि गाँडा ।।

नंगे पाँव फिरन नहिं देत
पाँव से मिट्टी लगन नहिं देत
पाँव का चूमा लेत निपूता
ऐ सखि साजन ? ना सखि जूता ।।

नित मेरे घर आवत है,
रात गए फिर जावत है।
मानस फसत काऊ के फंदा,
ऐ सखि साजन ? न सखि ! चंदा।।

नीला कंठ और पहिरे हरा,
सीस मुकुट नीचे वह खड़ा।
देखत घटा अलापै जोर,
ऐ सखी साजन न सखी मोर।।

पड़ी थी मैं अचानक चढ़ आयो
जब उतरयो तो पसीनो आयो
सहम गई नहीं सकी पुकार
ऐ सखि साजन ? ना सखि बुखार ।।

बखत बखत मोए वा की आस
रात दिना ऊ रहत मो पास
मेरे मन को सब करत है काम
ऐ सखि साजन ? ना सखि राम ।।

बन ठन कर सिंगार करे
धरे मुंह पर मुंह प्यार करे,
प्यार से मौ पे देत है जान
ऐ सखि साजन, ना सखि पान ।।

बरसा-बरस वह देस में आवे,
मुँह से मुँह लाग रस प्यावे।
वा खातिर मैं खरचे दाम,
ऐ सखि साजन ? न सखि ! आम।।

बाट चलत मोरा अचरा गहे,
मेरी सुने न अपनी कहे।
ना कुछ मोसो झगड़ा-टांटा
ऐ सखि साजन, ना सखि कांटा ।।

बिन आये सबहीं सुख भूले
आये ते अँग-अँग सब फूले
सीरी भई लगावत छाती
ऐ सखि साजन ? ना सखि पाती ।।

बेर-बेर सोवतहिं जगावे
ना जागूँ तो काटे खावे
व्याकुल हुई मैं हक्की बक्की
ऐ सखि साजन ? ना सखि मक्खी ।।

भद ज़ोर हमें दिखावे
मुफ्त मेरी छाती चढ़ आवे ।
छूट गया अब पूजा-जाप,
ऐ सखि साजन, ना सखि ताप ।।

मुख मेरा चूमत दिन रात,
होठें लगत कहत नहीं बात ।
जासे मेरी जगत में पत,
ऐ सखि साजन, ना सखि नथ ।।

मेरा मुँह पूँछे मो को प्यार करे,
गरमी लगे तो बयार करे ।
ऐसा चाहत सुन यह हाल,
ऐ सखि साजन ना सखि रूमाल ।।

मेरा मों से सिंगार करावत,
आगे बैठ के मान बढ़ावत ।
वाते चिक्कन ना कोई दीसा,
ऐ सखि साजन, ना सखि, सीसा ।।

मेरे घर में दीनी सेंद
ढुलकत आवे जैसे गेंद
वाके आए पड़त है शोर
ऐ सखि साजन, ना सखि चोर ।।

मो खातिर बाजार से आवे,
करे सिंगार तब चूमा पावे।
मन बिगड़े नित राखत मान,
ऐ सखि साजन, ना सखि, पान ।।

रात दिना जाको है गौन,
खुले द्वार वह आवे मौन ।
वा को हर एक बतावे कौन,
ऐ सखि साजन, ना सखि पौन (पवन) ।।

राह चलत मोरा अंचरा गहे।
मेरी सुने न अपनी कहे
ना कुछ मोसे झगडा-टंटा
ऐ सखि साजन ? ना सखि कांटा ।।

रात समय वह मेरे आवे
भोर भये वह घर उठि जावे
यह अचरज है सबसे न्यारा
ऐ सखि साजन ? ना सखि तारा ।।

लिपट लिपट के वा के सोई
छाती से छाती लगा के रोई
दांत से दांत बजे तो ताड़ा
ऐ सखि साजन ? ना सखि जाड़ा ।।

लौंडी भेज उसे बुलवाया,
नंगी होकर मैं लगवाया ।
हमसे उससे हो गया मेल,
ऐ सखि साजन, ना सखि, तेल ।।

वक्‍त बेवक्त मोहे वाकी आस
रात दिन वह रहत मेरे पास ।
मेरे मन को करत सब काम,
ऐ सखि साजन ना सखि राम ।।

वाको रगड़ा नीको लावे,
चढ़े जोवन पर मज़ा दिखावे ।
उतरत मुंह का फीका रंग,
ऐ सखि साजन, ना सखि भंग ।।

वा बिन मो को चैन न आवे,
वह मेरी तिस आन बुझावे ।
है वह सब गुन बारह बानी,
ऐ सखि साजन, ना सखि, पानी ।।

वो आवै तो शादी होय
उस बिन दूजा और न कोय
मीठे लागें वा के बोल
ऐ सखि साजन ? ना सखि ढोल ।।

शोभा सदा बढ़ावन हारा
आँखिन से छिन होत न न्यारा
आठ पहर मेरो मनरंजन
ऐ सखि साजन ? ना सखि अंजन ।।

सगरी रैन छतियां पर राख
रूप रंग सब वा का चाख
भोर भई जब दिया उतार
ऐ सखि साजन ? ना सखि हार ।।

सगरी रैन मिही संग जागा
भोर भई तब बिछुड़न लागा
उसके बिछुड़त फाटे हिया,
ए सखि साजन ? ना, सखि ! दिया(दीपक) ।।

सब्ज रंग और मुख पे लाली,
उस पीतम गल कंठी काली ।
भाव सुभाव जंगल में होता,
ऐ सखि साजन, ना सखि, तोता ।।

सब्ज़ रंग महंदी पर आवे
कर छूवत नैन चढ़ आवे।
बैठत उठत मरोड़त अंग,
ऐ सखि साजन, ना सखि भंग ।।

सरब सलोना सब गुन नीका
वा बिन सब जग लागे फीका
वा के सर पर होवे कोन
ऐ सखि साजन ? ना सखि ! लोन(नमक) ।।

सेज पड़ी मोरे आंखों आए
डाल सेज मोहे मजा दिखाए
किस से कहूं अब मजा मैं अपना
ऐ सखि साजन ? ना सखि सपना ।।

सौलह मुहर या सेज पे लावे,
हड्डी से हड्डी खटकावे ।
खेलत खेल है बाजी बढ़कर,
ऐ सखि साजन, ना सखि, चोसर ।।

हरा रंग मोहि लागत नीको,
वा बिन जग लागत है फीको ।
उतरत चढ़त मरोरत अंग,
ऐ सखि साजन, ना सखि भंग ।।

हीलत झूमत नीको लागै,
अपने ऊपर मोहि चढ़ावै।
मैं वाकी वह मेरा साथी,
ऐ सखि साजन, ना सखि हाथी ।।

हुमक-हुमक पकड़े मोरी छाती,
हंस-हंस मैं वा खेल खिलाती।
चौंक पड़ी जो पायो खड़का,
ऐ सखि साजन, ना सखि लड़का ।।