काल का अंग : संत दादू दयाल जी

Kaal Ka Ang : Sant Dadu Dayal Ji

दादू नमो नमो निरंजनं, नमस्कार गुरु देवत:।
वन्दनं सर्व साधावा, प्रणामं पारंगत:।1।
काल न सूझे कंधा पर, मन चितवे बहु आश।
दादू जीव जाणे नहीं, कठिन काल की पास।2।
काल हमारे कंधा चढ, सदा बजावै तूर।
काल हरण करता पुरुष, क्यौं न सँभालै शूर।3।
जहँ-जहँ दादू पग धारे, तहाँ काल का फंधा।
शिर ऊपर साँधो खड़ा, अजहुँ न चेते अंधा।4।
दादू काल गिरासन का कहे, काल रहित कह सोय।
काल रहित सुमिरण सदा, बिना गिरासन होय।5।
दादू मरिये राम बिन, जीजे राम सँभाल।
अमृत पीवे आतमा, यों साधु बंचे काल।6।
दादू यहु घट काचा जल भरया, विनशत नाहीं बार।
यहु घट फूटा जल गया, समझत नहीं गँवार।7।
फूटी काया जाजरी, नव ठाहर कांणी।
ता में दादू क्यों रहै, जीव सरीखा पाणी।8।
बाव भरी इस खाल का, झूठा गर्व गुमान।
दादू विनशे देखतां, तिसका क्या अभिमान।9।
दादू हम तो मूये माँहि हैं, जीवण का रु भरंम।
झूठे का क्या गर्वबा, पाया मुझे मरंम।10।

यहु वन हरिया देखकर, फूल्यो फिरे गँवार।
दादू यहु मन मिरगला, काल अहेड़ी लार।11।
सब ही दीसै काल मुख, आपै गह कर दीन्ह।
विनशे घट आकार का, दादू जे कुछ कीन्ह।12।
काल कीट तन काठ को, जरा जन्म को खाय।
दादू दिन-दिन जीव की, आयू घटती जाय।13।
काल गिरासे जीव कूं, पल-पल श्वासें श्वास।
पग-पग माँहीं दिन घड़ी दादू लखे न तास।14।
पग पलक की सुधि नहीं, श्वास शब्द क्या होय।
कर मुख माँहीं मेल्हतां, दादू लखे न कोय।15।
दादू काया कारवी, देखत ही चल जाय।
जब लग श्वास शरीर में, राम नाम ल्यौ लाय।16।
दादू काया कारवी, मोहि भरोसा नाँहिं।
आसरण कुंजर शिर, छत्रा, विनश जाहि क्षण माँहिं।17।
दादू काया कारवी, पड़त न लागे बार।
बोलणहारा महल में, सो भी चालणहार।18।
दादू काया कारवी, कदे न चाले संग।
कोटि वर्ष जे जीवणा, तऊ होइला भंग।19।
कहतां सुणतां देखतां, लेतां देतां प्राण।
दादू सो कतहूँ गया, माटी धारी मसाण।20।

सींगी नाद न बाज ही, कित गये सो जोगी।
दादू रहते मढी में, करते रस भोगी।21।
दादू जियरा जायगा, यहु तन माटी होय।
जे उपज्या सो विनश है, अमर नहीं कलि कोय।22।
दादू देही देखतां, सब किस ही की जाय।
जब लग श्वास शरीर में, गोविंद के गुण गाय।23।
दादू देही पाहुणी, हंस बटाऊ माँहिं।
का जाणूं कब चालसी, मोहि भरोसा नाँहिं।24।
दादू सब को पाहुणा, दिवस चार संसार।
अवसर-अवसर सब चल, हम भी इहै विचार।25।
सबको बैठे पंथ शिर, रहे बटाऊ होय।
जे आये ते जाहिंगे, इस मारग सब कोय।26।
वेग बटाऊ पंथ शिर, अब विलंब न कीजे।
दादू बैठा क्या करे, राम जप लीजे।27।
संझ्या चले उतावला, बटाऊ वन खंड माँहिं।
बरियाँ नाँहीं ढील की, दाद बेगि घर जाँहिं।28।
दादू करह पलाण कर, को चेतन चढ जाय।
मिल साहिब दिल देखतां, साँझ पड़े जनि आय।29।
पंथ दुहेला दूर घर, संग न साथी कोय।
उस मारग हम जाहिंगे, दादू क्यों सुख सोय।30।

लंघण के लकु घाणा, कपर चाटू डीन्ह।
अल्लह पांधी पंधा में, बिहंदा आहीन।31।
दादू हँसतां-रोतां पाहुणा, काहू छाड न जाय।
काल खड़ा शिर ऊपरै, आवणहारा आय।32।
दादू जोरा वैरी काल है, सो जीव न जाणै।
सब जग सूता नींदड़ी, इस ताणै बाणै।33।
दादू करणी काल की, सब जग परलै होय।
राम विमुख सब मर गये, चेत न देखे कोय।34।
साहिब को सुमिरे नहीं, बहुत उठावे भार।
दादू करणी काल की, सब परलै संसार।35।
सूता काल जगाइ कर, सब पैसें मुख माँहिं।
दादू अचरज देखिया, कोई चेते नाँहिं।36।
सब जीव विसाहैं काल को, कर-कर कोटि उपाय।
साहिब को समझै नहीं, यों परलै ह्नै जाय।37।
दादू कारण काल के, सकल सँवारै आप।
मीच बिसाहै मरण को, दादू शोक संताप।38।
दादू अमृत छाड़ कर, विषय हलाहल खाय।
जीव बिसाहै काल को, मूढा मर-मर जाय।39।
निर्मल नाम विसार कर, दादू जीव जंजाल।
नहीं नहां तै कर लिया, मनसा माँहीं काल।40।

सब जग छेली काल कसाई, कर्द लिये कंठ काटे।
पंच तत्तव की पंच पँखुरी, खंड-खंड कर बाँटे।41।
काल झाल में जग जले, भाज न निकसे कोय।
दादू शरणैं साँच के, अभय अमर पद होय।42।
सब जग सूता नींद भर, जागे नाहीं कोय।
आगे-पीछे देखिए, प्रत्यक्ष परलै होय।43।
ये सज्जन दुर्जन भये, अन्त काल की बार।
दादू इन में को नहीं, विपद बटावणहार।44।
संगी सज्जण आपणा, साथी सिरजनहार।
दादू दूजा को नहीं, इहिं कलि इहिं संसार।45।
ए दिन बीते चल गये, वे दिन आये धाय।
राम नाम बिन जीव को, काल गरासे जाय।46।
जे उपज्या सो विनश है जे दीसे सो जाय।
दादू निर्गुण राम जप, निश्चल चित्ता लगाय।47।
जे उपज्या सो विनश है, कोइ थिर न रहाय।
दादू बारी आपणी, जे दीसे सो जाय।48।
दादू सब जग मर-मर जात है, अमर उपावणहार।
रहता रमता राम है, बहता सब संसार।49।
दादू कोई थिर नहीं, यहु सब आवे-जाय।
अमर पुरुष आपै रहै, कै साधु ल्यौ लाय।50।

यहु जग जाता देखकर, दादू करी पुकार।
घड़ी महूरत चालणा, राखे सिरजनहार।51।
दादू विषय सुख माँहीं खेलतां, काल पहुँच्या आय।
उपजे बिनसे देखतां, यहु जग यों ही जाय।52।
राम नाम बिन जीव जे, केते मुये अकाल।
मीच बिना जे मरत हैं, ता मैं दादू साल।53।
सर्प सिंह हस्ती घणा, राक्षस भूत-परेत।
तिस वन में दादू पड़या, चेते नहीं अचेत।54।
पूत पिता मैं बीछुटया, भूल पड़या किस ठौर।
मरे नहीं उर फाट कर, दादू बड़ा कठोर।55।
जे दिन जाइ सो बहुर न आवे, आयु घटे तन छीजे।
अन्त काल दिन आइ पहुँचा, दादू ढील न कीजे।56।
दादू अवसर चल गया, बरियाँ गई बिहाइ।
कर छिटके कहँ पाइये, जन्म अमोलक जाइ।57।
दादू गाफिल ह्नै रह्या, गहिला हुआ गँवार।
सो दिन चित्ता न आवही, सोवे पाँव पसार।58।
दादू काल हमारे कर गहै, दिन-दिन खैंचत जाय।
अजहुँ जीव जागे नहीं, सोवत गई बिहाय।59।
सूता आवे सूता जाइ, सूता खेले सूता खाइ।
सूता लेवे सूता देवे, दादू सूता जाइ।60।

दादू देखत ही भये, श्याम वर्ण मैं श्वेत।
तन-मन यौवन सब गया, अजहुँ न हरिसों हेत।61।
दादू झूठे के घर देख कर, झूठे पूछे जाय।
झूठे झूठा बोलते, रहे मसाणों आय।62।
दादू प्राण पयाना कर गया, माटी धारी मसाण।
जालणहारे देखकर, चेतै नहीं अजाण।63।
केई जाले केई जालिये, केई जालण जाँहिं।
केई जालण की करैं, दादू जीवण नाँहिं।64।
केई गाडे केइ गाडिये, केई गाडण जाँहिं।
केई गाडण की करैं, दादू जीवण नाँहिं।65।
दादू कहैµऊठरे प्राणी जाग जीव, अपणा सजण सँभाल।
गाफिल नींद न कीजिए, आइ पहुँचा काल।66।
समरथ का शरणा तजे, गहै आन की ओट।
दादू बलवंत काल की, क्यों कर बंचे चोट।67।
अविनाशी के आसरे, अजरावर की ओट।
दादू शरणे साँच के, कदे न लागे चोट।68।
मूसा भागा मरण तैं, जहाँ जाय तहँ गोर।
दादू स्वर्ग पयाल सब, कठिन काल का शोर।69।
सब मुख माँहीं काल के, मांडया माया जाल।
दादू गोर मसाण में, झंखें स्वर्ग पयाल।70।

दादू मड़ा मसाण का, केता करे डफान।
मृतक मुरदा गोर का, बहुत करे अभिमान।71।
राजा राणा राव मैं, मैं खानों शिर खान।
माया मोह पसारे एता, सब धारती असमान।72।
पंच तत्तव का पूतला, यहु पिंड सँवारा।
मंदिर माटी मांस का, विनशत नहिं वारा।73।
हाड चाम का पींजरा, बिच बोलणहारा।
दादू ता में पैस कर, बहु किया पसारा।74।
बहुत पसारा कर गया, कुछ हाथ न आया।
दादू हरि की भक्ति बिन, प्राणी पछताया।75।
माणस जल का बुद्बुदा, पाणी का पोटा।
दादू काया कोट में, मेवासी मोटा।76।
बाहर गढ निर्भय करे, जीवे के तांई।
दादू माँहीं काल है, सो जाणे नाँहीं।77।
दादू साँचे मत साहिब मिले, कपट मिलेगा काल।
साँच परम पद पाइये, कपट काया में साल।78।
मन ही माँहीं मीच है, सारों के सिर साल।
जे कुछ व्यापे राम बिन, दादू सोई काल।79।
दादू जेती लहर विकार की, काल कवल में सोय।
प्रेम लहर सो पीव की, भिन्न-भिन्न यों होय।80।

दादू काल रूप माँहीं बसे, कोइ न जाणे ताहि।
यह कूड़ी करणी काल है, सब काहू को खाइ।81।
दादू विष अमृत घट में बसे, दोन्यों एकै ठाँव।
माया विषय विकार सब, अमृत हरि का नाँव।82।
दादू कहाँ मुहम्मद मीर था, सब नबियों शिरताज।
सो भी मर माटी हुआ, अमर अलह का राज।83।
केते मर माटी भये, बहुत बड़े बलवंत।
दादू केते ह्नै गये, दाना देव अनंत।84।
दादू धारती करते एक डग, दरिया, करते फाल।
हाकों पर्वत फाड़ते, सो भी खाये काल।85।
दादू सब जग कंपे काल तैं, ब्रह्मा विष्णु महेश।
सुर नर मुनिजन लोक सब, स्वर्ग रसातल शेष।86।
चंद-सूर धार पवन जल, ब्रह्मंड खंड परवेश।
सो काल डरे करतार तैं, जै-जै तुम आदेश।87।
पवना पाणी धारती अंबर, विनशे रवि शशि तारा।
पंच तत्तव सब माया विनशे, मानुष कहा विचारा।88।
दादू विनशे तेज के, माटी के किस माँहिं।
अमर उपावणहार है, दूजा कोई नाँहिं।89।
प्राण पवन ज्यों पतला, काया करैं कमाइ ।
दादू सब संसार में, क्यों हि गह्या न जाइ ।90।

नूर तेज ज्यों जोति है, प्राण पिंड यों होइ ।
दृष्टि मुष्टि आवै नहीं, साहिब के वश सोइ ।91।
मन ही मांही ह्वै मरै, जीवै मन ही मांहि ।
साहिब साक्षीभूत है, दादू दूषण नांहि ।92।
आपै मारै आपको, आप आप को खाइ ।
आपै अपना काल है, दादू कहि समझाइ ।93।
आपै मारै आपको, यहु जीव विचारा ।
साहिब राखणहारा है, सो हितू हमारा ।94।
अग्नि रूप पुरुष इक कहहिं, संगति देह सहज ही दहहिं ।
दीसे माणस प्रत्यक्ष काल, ज्यों कर त्यों कर दादू टाल।95।

।इति काल का अंग सम्पूर्ण।

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