शेर नौशाद अली हिंदी कविता
Sher Naushad Ali

आबादियों में दश्त का मंज़र भी आएगा
गुज़रोगे शहर से तो मिरा घर भी आएगा

इक बे-क़रार दिल से मुलाक़ात कीजिए
जब मिल गए हैं आप तो कुछ बात कीजिए

इस वास्ते उठाते हैं काँटों के नाज़ हम
इक दिन तो अपने हाथ गुल-ए-तर भी आएगा

करना है शाइरी अगर 'नौशाद'
'मीर' का कुल्लियात याद करो

ज़िंदगी मुख़्तसर मिली थी हमें
हसरतें बे-शुमार ले के चले

दर-ए-ग़ैर पर भीक माँगो न फ़न की
जब अपने ही घर में ख़ज़ाने बहुत हैं

ये दुनिया जब तलक क़ाएम है 'नौशाद'
हमारे गीत दोहराती रहेगी

सामने उस के एक भी न चली
दिल में बातें हज़ार ले के चले

हर-चंद समझता था झूटे हैं तिरे वादे
लेकिन तिरे वादों ने क्या राह दिखाई है