Sabir Haka

सबीर हका

सबीर हका की कविताएं तडि़त-प्रहार की तरह हैं। सबीर का जन्‍म 1986 में ईरान के करमानशाह में हुआ। अब वह तेहरान में रहते हैं और इमारतों में निर्माण-कार्य के दौरान मज़दूरी करते हैं। उनके दो कविता-संग्रह प्रकाशित हैं और ईरान श्रमिक कविता स्‍पर्धा में प्रथम पुरस्‍कार पा चुके हैं। लेकिन कविता से पेट नहीं भरता। पैसे कमाने के लिए ईंट-रोड़ा ढोना पड़ता है। एक इंटरव्‍यू में सबीर ने कहा था, ''मैं थका हुआ हूं। बेहद थका हुआ। मैं पैदा होने से पहले से ही थका हुआ हूं। मेरी मां मुझे अपने गर्भ में पालते हुए मज़दूरी करती थी,मैं तब से ही एक मज़दूर हूं। मैं अपनी मां की थकान महसूस कर सकता हूं। उसकी थकान अब भी मेरे जिस्‍म में है।'' सबीर बताते हैं कि तेहरान में उनके पास सोने की जगह नहीं और कई-कई रातें वह सड़क पर भटकते हुए गुज़ार देते हैं। इसी कारण पिछले बारह साल से उन्‍हें इतनी तसल्‍ली नहीं मिल पाई है कि वह अपने उपन्‍यास को पूरा कर सकें। ईरान में सेसरशिप लागू है। कवियों-लेखकों के शब्‍द, सरकार सेंसर कर देती है, डिलीट कर देती है। तब वे आधे वाक्‍य बनकर रह जाते हैं। इन कविताओं में जिन शब्‍दों को कोष्‍ठक में दिया गया है, मूल फ़ारसी में ईरानी सरकार ने उन शब्‍दों को सेंसर कर दिया था। सबीर की कविताओं पर दुनिया की नज़र अभी-अभी गई है। उनकी कविताओं को कविता की विख्‍यात पत्रिका 'मॉडर्न पोएट्री इन ट्रांसलेशन' (Modern Poetry in Translation - MPT) ने अपने जनवरी2015 के अंक में स्‍थान दिया था। ये सारी कविताएं वहीं से ली गई हैं। ये अनुवाद,फ़ारसी से अंग्रेज़ी में नसरीन परवाज़ (Nasrin Parvaz) और ह्यूबर्ट मूर (Hubert Moore) द्वारा किए गए अनुवादों पर आधारित हैं। ये हिंदी अनुवाद हाल ही में विश्‍व कविता की हिंदी पत्रिका 'सदानीरा' के ताज़ा अंक में प्रकाशित हुए हैं। मैं इन पत्रिकाओं तथा अंग्रेज़ी अनुवादकों का आभार प्रकट करता हूं। - गीत चतुर्वेदी