Pradeep Singh
प्रदीप सिंह
प्रदीप सिंह (अगस्त 31, 1988-) का जन्म हरियाणा के हिसार जिले में हुआ ।
औपचारिक शिक्षा हो ही नहीं पाई,
क्योंकि सेरेब्रल पाल्सी से ग्रस्त होने के कारण किसी भी विद्यालय तक जाने की स्थिति बनी ही नहीं। घर मे
माँ-दादी और टेलीविजन से ही अक्षर ज्ञान प्राप्त किया। धीरे-धीरे साहित्य की ओर अग्रसर हुए। बहुत सी कवितायें
लिखीं । उनका कविता-संग्रह 'थकान से आगे' (2015, बोधि प्रकाशन, जयपुर) बहुत लोक-प्रिय व बहु प्रशंसित कृति है।
2020 में प्रदीप सिंह की डायरी 'वरक़-दर-वरक़' का प्रकाशन मनोज छाबड़ा के सम्पादन में हुआ। जिसमें उनकी
व्यक्तिगत आत्मस्वीकृतियाँ, जीवन के संघर्ष, आशा-निराशा का बहुत बारीक विश्लेषण दीख पड़ता है।
अक्षमताओं से
उतपन्न ढेरों निराशाओं के बावजूद उनके हाथ से आशा का सूत्र नहीं छूटता।
वे जानते हैं कि दुनिया मे हर आदमी की
कुछ न कुछ सीमाएं ज़रूर हैं, उनकी सीमाएं थोड़ी अलग हैं, इसलिए वे थोड़े विशेष भी हैं।
100% विकलांगता के
बावजूद प्रदीप सिंह युवाओं के लिए प्रेरणा-स्रोत हैं। उनकी डायरी निराश पड़े मनुष्य में जीवन के प्रति प्रेम जगाती है।