हिन्दी कविता उमेश दाधीच (2)
Hindi Poetry Umesh Dadhich (2)



1. एक तरफ तेरा मायूस चेहरा

एक तरफ तेरा मायूस चेहरा, एक तरफ मेरे मन की उदासी एक तरफ तेरे नैनो का सावन,एक तरफ मेरी नजरे है प्यासी । एक तरफ तेरा मायूस चेहरा.... एक तरफ कोई तस्वीर संभली,एक तरफ टूटी है और बिखरी एक तरफ तन्हाई भी है तन्हा,एक तरफ तन्हाई ही है साथी । एक तरफ तेरा मायूस चेहरा.... एक तरफ चांद को तुम देखो,एक तरफ चांद मे तुमको देखूं एक तरफ है अंधेरो का डेरा, एक तरफ जलता हूं संग बाती । एक तरफ तेरा मायूस चेहरा.... एक तरफ हर दुआ मे मै तेरी, एक तरफ नित है तेरी ही पूजा एक तरफ तेरे गीतो मे मै हूं, एक तरफ गज़ले तुमको है गाती । एक तरफ तेरा मायूस चेहरा, एक तरफ मेरे मन की उदासी ।।

2. आंख से एक नदियां बहती है

आंख से एक नदिया बहती है सुन! जाने क्या क्या कहती है उस तट पर तेरा घर है साजन इस तट पर मुझसे ये कहती है पावन निर्मल यादो का पानी आधा किस्सा अधुरी कहानी दर्द विरह का खुद ही समाए नित जाने क्या क्या सहती है आंख से एक नदिया.... विवश दो मन दोनो तट पर जैसे प्यासे कोई पनघट पर मिलन का एक स्वप्न थमाए पलक के घाट सजा रखती है आंख से एक नदिया.... दरिया की व्याकुलता सुनना शौर मचाये या चुप ही रहना गीत-लहर से एक सेतू बनाए दोनो छोर तक बहा करती है आंख से एक नदिया बहती है ।

3. एक अधुरी किताब फिर से लिख रहा हूं मैं

एक अधुरी किताब फिर से लिख रहा हूं मैं और वो कहते है कोई हुनर सीख रहा हूं मै आइने भी बेनकाब करते है आजकल मुझे बरसो बाद खुद को खुद सा दिख रहा हूं मैं भूल गया है खरीददार मेरा मुझे तराश कर कोई और दुकान पर बेमोल बिक रहा हूं मै परिंदो ने मर्जी से बदला है अपना आशियां फिर क्यूं बेगुनाह दरख्तो से जिद रहा हूं मैं चांद गुज़र गया,रात मातम भी ना कर पाई बस इसी अफसोस मे कबसे बीत रहा हूं मै ।

4. मेरे यार ने शराब छोड़ दी है

सही सुना है मेरे यार ने शराब छोड़ दी है लगता है मोहब्बत की जमात छोड़ दी है नये शौक आजमाने लगा है आजकल वो इसलिये आधी ही मेरी किताब छोड़ दी है रोशनी से मोहब्बत कर बैठे नादां परवाने चरागो से जल गये, अंधेरी रात छोड़ दी है मेरे नाम के एक शक्स का जिक्र क्या हुआ उसने करते-करते बीच मे बात छोड़ दी है चंद खुदगर्ज़ लोगो का शहर बसाते बसाते हर बार एक हसीं गांव ने सांस छोड़ दी है ।

5. गफलत सारी रात खा गयी

नींद ले कि ना ले , तेरी याद आ गयी यही गफलत मेरी सारी रात खा गयी चूम लिया तुमको कुछ इस तरह मैने सोते-सोते होठो पे तेरी बात आ गयी यही खौफ लिये नही कटते दिन मेरे फिर रोना है मुझे , फिर रात आ गयी इश्क़-मोहब्बत कागजी है जमाने मे हंगामा होगा अगर वो साथ आ गयी कच्चे घरो की बस इतनी सी कहानी कुछ आग मे जले,कभी बाढ़ खा गयी ।

6. हम ख्वाब तोड़ कर आये है

ख्वाइशो के घर हम ख्वाब तोड़ कर आये ले आये सब मगर खुद को छोड़ कर आये खुदरंग से बेहतर क्या रंग होता जमाने मे शहर मे रंग लेने क्यों गांव छोड़ कर आये गैर मकां देख, एक महल का ख्वाब लिये कोरी काया पर बहुत बोझ ओढ़ कर आये धुंधली मंजिलो के पत्थरीले सफर मे हम कैसे नादां हम जो नंगे पांव दौड़ कर आये तिनको से जोड़ा आशियां ही जन्नत है जां बशर्ते उड़े सब परिंदे शाम लौट कर आये ।

7. कोई हादसा होने दो

कतरा-कतरा बिखर जाने दो मुझे, कोई हादसा होने दो टुटकर बिछड़े तारे के गम मे ठहरी कोई रात सा होने दो बस एक ख्वाब मेरी आंखो का,एक गम लिये जिंदा है ये उसके लबो की चुप्पी पर बस उसी की आंख सा रोने दो कच्चा मकां बना बैठा हूं सुलगती उसकी पलको किनारे जरा धुआं-धुआं सा उड़ने दो,मुझे बुझी राख सा होने दो कितना बिन बोले सुना गया,कितना कहते-कहते रह गया रह गयी एक बात उन होठो पर बस उसी बात सा होने दो ।

8. रोने लगेंगे हम

तन्हा रात ऐसी गुजरनी है, अंधेरे पीने लगेंगे गम करवटे बदलने लगोगी तुम और सोने लगेंगे हम रास्ते सब गुज़र जाने है,ये मंजिले ठहर जानी है मिल जाना है तुम्हारा सब, बस खोने लगेंगे हम एक मुराद और मांग रब से,एक रोज़ा और रख तेरे होने को ही जिंदा है और तेरे होने लगेंगे हम किरदार पूछते है मेरे,क्या होगा तुम्हारे आने पर थमी ना सांसे गर तो हँसते-हंसते रोने लगेंगे हम ।

9. तेरे जाने का गम मनाते है

तेरे जाने का गम अब भी सारे नजारे मनाते है तारे जरा कम चमकते है,बादल चांद बुझाते है नींद मे थकी रात रोज़ वो ही गीत गुनगुनाती है उजाले दम तोड़ते है,अंधेरे वो कहानी सुनाते है चौखट पे आखिरी सांस ले दीया राह तकता है आंगन मे उदास दरख के पत्ते मेरा दर्द बताते है खामोशी से बहती हवाएं सारा गम ले बैठती है कमरो के सन्नाटे चीख-चीख कर तुझे बुलाते है भीगी तस्वीर और बिखरे पन्ने ये मातम मनाते है कि मेरी कहानी के किरदार खुद रोज़ मर जाते है

10. एक नज़र उतारी नही गई

एक नज़र लगाये बैठे है, एक नज़र हमसे उतारी नही गई तन्हा ही गुज़र गया था मैं,हमसे ये तन्हाई गुज़ारी नही गई चूम लिया था एक गीत को बहुत बरस पहले किसी लब ने अब तलक नशे मे है, अब तलक गीत की खुमारी नही गई सिकंदर लोग है जो मिल जाते है महबूब से सितारो के पार एक हमसे अपनी मोहब्बत इस जहां मे भी पुकारी नही गई एक अजीब कर्ज लिये बैठे है सांसो का सांसो पर हम दोनो तुमसे हिसाब मांगा नही गया और मुझसे ये उधारी नही गई बहुत कमाल की जिन्दगी जी रहे है अलग राह के हमसफर एक बिखरता रहा उम्रभर और एक से कभी संवारी नही गई ।

11. साकी जम कर जाम पिला

जाम पिला-ओ-जाम पिला, साकी जम कर जाम पिला पैमानो के बस का रोग नही, आंखे भर-भर जाम पिला गम ने पी लिये शहर के शहर,तू तो खुशी के नाम पिला रातो को पीता हूं अक्सर, अब तो सुबह-ओ-शाम पिला थक गया सांसे पी-पीकर,तेरी आगोश का आराम पिला जाम यहाँ सब मतलब के,तू तो बिना किसी काम पिला एक रंग के है मैं के महखाने,तू तेरे रंग सब तमाम पिला आगाज़ सा झलक जरा, होश ना रहे ऐसा अंजाम पिला ।

12. हम भी राहो मे खोये थे

भटकन मे हो अब तक तुम तो हम भी राहो मे खोये थे इतने बरसो से जागी हो तुम तो हम भी कहां पर सोये थे । उमर की गिनती बढती रही बस अटकी रही दो जवानी थी पीर दबा कर बैठी है घूंघट बन कभी चुनरी वो दीवानी थी विरह-फसल ही काटना था गर तो प्रेम के बीज़ क्यों बोये थे इतने बरसो से जागी हो तुम तो हम भी कहां पर सोये थे ।। भटकन मे हो अब तक तुम तो हम भी राहो मे खोये है इतने बरसो से जागी हो तुम तो हम भी कहां पर सोये है । शरद चांद से दरस का अमृत इस बार भी ना बरसा है ऐसी शाम ढली कि अब तक दिन उगने को तरसा है तेरी आंखो के बहे जो सपने गीतो मे हमने वही पिरोये है इतने बरसो से जागी हो तुम तो हम भी कहां पर सोये है ।। भटकन मे हो अब तक तुम तो हम भी राहो मे खोये है इतने बरसो से जागी हो तुम तो हम भी कहां पर सोये है । उदासी की छत के तले तुम तो हम तन्हाई के आंगन मे श्रिंगार तुम्हारा रुठा तुमसे जो बतियाते है हम टूटे दर्पण मे अनसुनी थी रातो की सिसक तो उजाले भी छुप कर रोए है । इतने बरसो से जागी हो तुम तो हम भी कहां पर सोये है ।।

13. धरा के पागलपन मे अम्बर दीवाना

उजाले थक कर दिनभर के अब कहीं सोने लगे है आंखो के खेतों मे खवाबों के हल फिर जोने लगे है दीवारो पर अटके तारो ने भी अपनी काया तोड़ी है चांद खड़ा है आंगन मे, कोई बात पुरानी छोड़ी है इन आस लगायी रातो का ये घर-बार विराना लगता है एक धरा के हर पागलपन को एक अम्बर दीवाना पढता है बारिश सालो की कर संचित नैना हर बार बरस पड़े पलको की दहरी पर दो सपन घर आने को तरस खड़े निर्वात मे जन्मे इन गीतो को गाने का अधिकार कहां प्रणय भाग्य मे था एकाकीपन तुम संग स्वीकार कहां शब्दो से रस-रस निकली पीर का हर घाव पुराना लगता है एक धरा के हर पागलपन को एक अम्बर दीवाना पढता है

14. ये शिकायत रही खुद की खुद से

ये शिकायत रही खुद की खुद से सदा संग जी ना सके और तन्हा मर ना सके हाथ की रेखाएं भाग्य बिन थी रही एक परछाई काया के बिन जी रही श्रापित रहा प्रेम इस जनम भी मेरा उसी श्राप मे एक लड़की है जी रही खाली तस्वीर सी थी वो एक जिंदगी रंग थे बहुत मगर हम ही भर ना सके ये शिकायत रही खुद की खुद से सदा संग जी ना सके और तन्हा मर ना सके रास्ते खुद चले हमसे विपरीत थे जो निभा ना सके तुम वही रीत थे लिखे थे बहुत पर जो सुना ना सके सबसे सुन्दर मेरा तुम वही गीत थे एक वचन जी रहे दो अलग प्राण हम बंधे भी नही,खुद को मुक्त कर ना सके ये शिकायत रही खुद की खुद से सदा संग जी ना सके और तन्हा मर ना सके जीना सांसो का आना-जाना न था बैरागी तन को कुछ भी पाना न था मन तुमसा होकर संग तुम्हारे चला मनाया बहुत मगर मन माना न था खोल कर हाथ हम तुमसे विदा ले रहे आंखे भरते रहे तुम,अंक में भर ना सके ये शिकायत रही खुद की खुद से सदा संग जी ना सके और तन्हा मर ना सके ।

15. ये अन्तिम मिलन नही था शुभे

शब्दो की मजबूरी समझो जो कंठों मे भरे रह गये आंसू की बूंदो से पूछो जो तेरे कन्धो पर धरे रह गये नयनो के मेघो को और कितना क्या-क्या समझाएं कितने बरसे फिर भी जाने क्यों ये भरे-भरे रह गये हर बार बरसना होगा ये अन्तिम सावन नही था शुभे प्रतीक्षा मे तुम रहना ये अन्तिम मिलन नही था शुभे संगम भाग्य है अपना ये अन्तिम जीवन नही था शुभे प्रतीक्षा मे तुम रहना ये अन्तिम मिलन नही था शुभे बेमौल मुद्रिका का ठहरना एक अंगुली की नियती हो एक अँजुरी को थाम ले दुसरी की बस यही विनती हो हूक भर कर चीखते मन को तुमने तो सुना होगा प्रिये नित मारकर कितना जीये, सांसो की कोई गिनती हो अंक मे भर कहना ये अंतिम आलिंगन नही था शुभे प्रतीक्षा मे तुम रहना ये अन्तिम मिलन नही था शुभे संगम भाग्य है अपना ये अन्तिम जीवन नही था शुभे प्रतीक्षा मे तुम रहना ये अन्तिम मिलन नही था शुभे अपनी राधा को मैं कहूं, तुम भी निज मोहन की सुनना प्रणय रहा जो अधूरा,तुम इन हाथो उसे इस बार बुनना भाग्य को भी भाग्य के चयन का बस ये अधिकार मिले धरा पर चुनता रहा मैं तुम्हे, तुम मुझे अम्बर पार चुनना अब और नही है गहना ये अंतिम ग्रहण ही था शुभे प्रतीक्षा मे तुम रहना ये अंतिम मिलन नही था शुभे संगम भाग्य था अपना ये अंतिम जीवन नही था शुभे प्रतीक्षा मे तुम रहना,ये अंतिम मिलन नही था शुभे

16. क्या-क्या है हम दोनो

कभी गाया किस्सा तो कभी भूली बात है हम दोनो दो अलग-अलग आंखो के अधुरे ख्वाब है हम दोनो हिज्र मे और कितने दिन काटने है इन दिनो को भी एक आवाज़ के इन्तजार मे अकेली रात है हम दोनो सदियां बीत गयी जुदाई मे,सदियो से पास है हम दोनो बहती नदिया के अलग दो किनारो से साथ है हम दोनो रोशन होती है रोज़ दोनो दिल की बस्तियां दीवाली सी दिल दहलीज़ पर जलते हर दीये की आस है हम दोनो कभी बिना हुई सुबह तो कभी ठहरी-ठहरी शाम है हम दोनो दो अलग-अलग लिखे गये प्रणय के एक ही नाम है हम दोनो मीरा और मोहन भी हम, कभी राधा और श्याम है हम दोनो हर जनम एक वनवास काटते जानकी और राम है हम दोनो कभी अनसुने जवाब तो कभी ना पुछे सवाल है हम दोनो जो सन्गीत मे ना ढल पायी वही बिखरी ताल है हम दोनो अब तलक हरे है दो दरख्त बरसो-बरस पतझड़ बाद भी मोहब्बत का कमाल था हवाओ में या कमाल है हम दोनो गुजरते-गजरते जो ना गुजरी वही जवानी है हम दोनो बहते-बहते रह गया पलको पर वही पानी है हम दोनो गीत-गज़ल-कविता,जाने क्या-क्या लिखा किरदारो पर लिखते-लिखते लिख ना पाए वही कहानी है हम दोनो

17. कैसे भाए राधा को वृदावन

नीर सुखाये नयनो की जमुना मन के घाट-घाट पर खालीपन रास पुकारे तुमको अब कान्हा कैसे भाये राधा को ये वृंदावन विरह के गीतो को गाती बांसुरी बरसो तरसी छनकने को पैँझण एक आस सहारे तुम्हारी मोहन भटक रही है किशोरी हर उपवन एक राग पुकारे तुम्हे अब कान्हा नित गाए राधा भर-भर दो नैनण सुनो मयूरो के मन की व्याकुलता सालो से बृज का तुम एकाकीपन बेरंग फाग खोजते तुम्हे साँवरिया बिन झूलो कहे पीड़ पुरानी सावन एक साथ पुकारे तुम्हे अब कान्हा कैसे निभाए राधा सारे झूठे बंधन सुध ले ओ-निर्मोही ओ-छलिया टूटी माला ले जपे एक अभागण जबसे द्वारिका तुम बसे-बिराजे हो गयी बृजरानी बरसाने जोगण हर सांस पुकारे तुम्हे अब कान्हा कैसे जीये राधा अब बिन प्रीतम नीर सुखाये नयनो की जमुना मन के घाट-घाट पर खालीपन रास पुकारे तुमको अब कान्हा कैसे भाये राधा को ये वृंदावन

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