हिंदी कविताएँ : स्वागता बसु

Hindi Poetry : Swagata Basu

1. सरस्वती वंदना

भाल हो ऊँचा सदा और श्रीचरणों में स्थान दो
वाग वागेश्वरी देवी, बस इतना सा वरदान दो।।

मातृभूमि सबल रहे, देशभक्ति प्रबल रहे
शब्दों में श्रृंखला रहे, प्यार भी पला रहे
कर्म का आदर रहे और लेखनी को मान दो
हे श्वेत वस्त्राभृता देवी, बस इतना सा वरदान दो।।

देशद्रोहियों पर वार हो, जातियों में प्यार हो
दुःशासनो का संहार हो, सुरों का विस्तार हो
आशीष की वर्षा रहे और काव्य को सम्मान दो
है वीणावादिनी माँ, बस इतना सा वरदान दो।।

लेखनी में धार हो, वाणी में संस्कार हो
गीत हो मुखरित सदा, छंदों की बौछार हो
मानव की गरिमा रहे और संस्कृति का ज्ञान दो
हे माँ विद्यादायिनी, बस इतना सा वरदान दो।।

2. वसंत को आने दो

न रोको मैन के तारों को
बावरे मन को गाने दो
आज फिर चटकी हैं कलियाँ
आज वसंत को आने दो।।

आज फिर हर्षित मन जागा
भ्रमर फूल की ओर फिर भागा
नई खुशी में नए रंग में
मन को फिर हर्षाने दो।।

मन मौन रहा सकुचाई भाषा
अंधकार ओर घोर निराशा
अब तो इस बंधन की काटो
मैन में उमंग समाने दो।।

विषाद वेदना जीवन जे साथी
उन्हें बनाकर दिया और बाती
दुख की गकनी को पिघलाकर
जीवन में प्रकाश भर जाने दो।।

3. वसन्त

आज वसंत है ना श्याम
पीले गेंदे की पंखुड़ियों में
हल्की सी सरसराहट है आज
हवा में
एक ख़ुशबू है, न. . .
आज
हवा का रंग स्वेत है
वाग्देवी की अलंकारों की तरह
ये, तुमसे गुज़र कर आई हैं
तभी तो
मुझे छूकर
मेरी रूह को उजाला दे गई
कभी, जब बेखयाल हो
और गुलाबी हवा
तुम्हारे बालों को सहलाये
तुम भी छू लेने उसे
अपनी सांसो से
वो मेरे दिल को छूकर
मेरा अहसास लाई है
मैं भी महसूस करूँगी
तुम्हारी यादों की सरगोशियों को।।

4. होली (१)

इस बार नही कपोलें फूटी
न मौसम में रंगोली है
जाने कैसा फागुन आया है
जाने कैसी होली है

ओ पलाश! क्यों रंग फीका है?
क्या शहर तुझे नही भाया
क्या इसी लिए मंजरी से मिलने
मकरंद अभी तक नही आया?

क्या धूल, धुँए, और भाग-दौड़ में
दिलों के रंग भी निखरेंगे?
इस चौखट से उस चौखट तक
अबीर गुलाल फिर बिखरेंगे?

क्या फुरसत के पल फिर होंगे
फिर दिसत गले लग जाएंगे
क्या ढोलक की थापों पर सब
फिर से झूमें गाएंगे?

क्या कहते हो! गाँव चलें फिर
वहाँ हंसी ठिठोली है
वहाँ दिलों पर रंग चढ़ेगा
वहीं असल मे होली है।।

5. होली (२)

जूही, गेंदा, गुलाब, चमेली
बागों में रंगोली है
ढोलक की थापों पर गाती
सब मस्तों की टोली है
गालों पर है हाय की लाली
मस्तक पर रंगोली है
चलो आज गुलाल उड़ायें
बुरा न मानो होली है

गिरगिट से सौ रंग बदलते
झूठी कसमें कहते हैं
इनके रंग हैं बड़े निराले
देख दंग रह जाते हैं
नेताओं पर करती भरोसा
जनता कितनी भोली है
देशभक्ति में इनको रंग दो
बुरा न मानो होली है।।

सीमा पर जिसने ख़ून बहाए
सारे जवान हमारे हैं
सीमा की रक्षा करने की ख़ातिर
अपने तन मन वारे हैं
इसबार की होली उनकी जिसने
सीने ओर खाई गोली है
खून से "जय हिंद" लिखकर कह गये
बुरा न मनो होली है।।

अपने देश के भीतर लेकिन
छुपे हुए गद्दार हैं
भारत देश के वासी हैं पर
करते दुश्मन से प्यार हैं
इन सबकी होलिका जलाओ
जो गद्दारों की टोली है
देश में फिर खुशियाँ बिखराओ
बुरा न मानो होली है।।

6. यादें

जाने कितनी शामें गुज़री
जाने कितनी रात ढली
ढलती किरणों के संग सपने
किसको ढूंढे गली-गली

सन्नाटों ने दस्तक दी है
किन कदमों की आहट है
कौन है वो जो मुझतक आया
दिल को कितनी राहत है।।

घर का चौखट, वो चौबारे
वो आंगन, वो नीम की छाँव
यहीं से खुशियां चलकर आई
मेरे घर तक नंगे पाँव।।

जितनी थी खुशियाँ सँजोई
धीरे धीरे रीत गया
दिल से पतझड़ जाते जाते
मेरा सावन बीत गया।।

7. वो बोल रहा है

वो बोल रहा है, वो बोल रहा है

सबके मन की सुनता है वो
सबकी नब्ज़ टटोल रहा है।
वो बोल रहा है, वो बोल रहा है।।

दिल की बातें कैसे सुन ली
भेद दिलों के खोल रहा है।
वो बोल रहा है, वो बोल रहा है।।

कहना सुनना सोच समझकर
वो शब्दों को तोल रहा है।
वो बोल रहा है, वो बोल रहा है।।

अंतर्मन का वासी है वो
मन में मिश्री घोल रहा है।
वो बोल रहा है, वो बोल रहा है।।

रहबर है वो उसकी सुन लो
बंद द्वार वो खोल रहा है।
वो बोल रहा है, वो बोल रहा है।।

हम उसके हैं, मेरा है वो
रिश्ता ये अनमोल रहा है।
वो बोल रहा है, वो बोल रहा है।।

8. चलो इज़हार कर लें

दिन ये कैसा ढला-ढला है
पिघल रहा है मोम बनकर
आंसुओं में धूल धूल सा
बेकरार है, मचल रहा है
इस शाम को अपनी झोली में भर लें
चलो आज एक इज़हार कर लें।

वो कौन बैठा है झाड़ियों में
दुबक - दुबक कर सिसक रहा है
कभी इधर से, कभी उधर से
खून से कुछ टपक रहा है
पिलपिला से हुआ पड़ा है
बूढ़ी आंखें सहम गईं हैं
प्यार से बात दो-चार कर लें?
वो जिसने हमको बड़ा किया है
चलो, उसे फिर प्यार कर लें।।

9. चलो प्यार कर लें

वो किधर है?
वो कहाँ है?
वो इधर है
वो यहाँ है
वो एक बूंद है
जो बदलि बन के छाई है
एक कतरा है
जो लहरों में समाई है
वो छलकती है
कभी जाम बनकर
छा जाती है
रूमानी शाम बनकर
ये है मोतियों की माला
टूट कर जब बिखरती है
और भी निखरती है
लबों पर अब निखार भर लें?
चलो हँसी से प्यार कर लें।।

10. कोई ऐसा कहाँ

जो नग्मों को तहरीर दी, मुझमें है वो बात कहाँ
बड़ी कहानी गढ़ने की, मुझमें है औकात कहाँ
हाँ, जो अंधेरों को चीर, वो नन्हा सा दिया हूँ मैं
जो मुझको अँधियारा कर दे, ऐसी कोई रात कहाँ।।

सन्नाटे जब पहन के घुँघरू, मन में उधम मचाते हैं
अँधियारे के ओट में जब तारे टूट खो जाते हैं
जब अपनों के ताने आकर दिल में आग लगते हैं
तब दिल के आंगन पर बरसे, ऐसी कोई बरसात कहाँ।।

रोटी के एक टुकड़े को जब बच्चा बिलख के रोता है
तेजाब के छींटों से जब चमन फूल को खोता है
छोटा सा एक घाव कभी जब, एक नासूर बन जाता है
तब ज़ख़्मो पर मरहम रख दे, ऐसा कोई हाथ कहाँ।।

इश्क ओ वफ़ा के सारे क़िस्से, जब यूँ ही झूठे लगते हैं
अपने ही अपनो से जब, रूठे रूठे लगते है
तब उनसे मिलने की सारी हसरत पिघल सी जाती है
सपनो की ताबीर बने जो, तब ऐसे जज़्बात कहाँ।।

11. बिखरे सपने

ख़्वाब टूटा है, घर उजड़ा है
तुम कहते, बस रात हुई है
दिल की बस्ती सूख रही है
तुम कहते बरसात हुई है
फूक फूक कर पग धरते हो
दिल की ख़ाक उड़ाओ तो
पीले पत्तों के मौसम में
एक फूल खिलाओ तो जाने

ज़र्द चहरे हैं, आँखे नाम हैं
मन का चमन वीरान हुआ है
धूल धुँए से बोझिल मौसम
सूरज भी कुछ म्लान हुआ है
डगर कठिन है पथ पथरीला
पाँव के छाले कहते हैं
इन पथरीली राहों में
कुछ दूब उगाओ तो जाने।।

12. मुझको जीना है

व्यथा विष के हलाहल को
मान कर मदिरा पीना है।
जब तक आस की किरण रहेगी
तब तक मुझको जीना है।।

अभी तो हमने पर खोल है
यही तो उड़ना बाक़ी है
अभी तो दूर नभ के आंगन से
जाकर जुड़ना बाकी है
अभी तो विपदा के घावों को
अपनी हिम्मत से सीना है
जब तक पीर की बदली होगी
तब तक मुझको जीना होगा

अभी तो हमको संबंधों की
परिभाषाएँ गढ़नी है
हर विवश आंखों में हमको
नई आशाएँ गढ़नी है
आँसू के हलाहल की भी हमको
साथ तुम्हारे पीना है
जब तक तुम्हारा हृदय व्यथित है
तब तक हमको जीना है।।

13. विश्वास मत छीनो

विश्वास मेरा मत छीनो कान्हा
यह मेरे जीवन की रेखा है
जब जब हृदय में साँझ ढली है
सूरज को उगते देखा है

विश्वास अडिग है आओगे तुम
अधरों पर अमित मुस्कान लिये
व्यथा का चिर मौन हरण कर
हृदय में प्रीति सम्मान लिए
कान्हा, मैं मीरा हूँ तेरी
इस प्रेम को किसने रोका है
जब जब हृदय में साँझ ढली है
सूरज को उगते देखा है

हर विवश अश्रु की धारा
मुझसे प्रतिपल यह कहती है
जगति के उस पर सजन रे
प्रीत की गंगा बहती है
नैनो के क्षितिज पर मिल न सको तो
हृदय भी एक झरोखा है
विश्वास मेरा मत छीनो कान्हा
यह मेरे जीवन की रेखा है

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