हिन्दी कविताएँ श्रीधर पाठक
Hindi Poetry Shridhar Pathak



भारत-धरनि

(1) बंदहुँ मातृ-भारत-धरनि सकल-जग-सुख-श्रैनि, सुखमा-सुमति-संपति-सरनि (2) ज्ञान-धन, विज्ञान-धन-निधि, प्रेम-निर्झर-झरनि त्रिजग-पावन-हृदय-भावन-भाव-जन-मन-भरनि बंदहुँ मातृ-भारत-धरनि (3) सेत हिमगिरि, सुपय सुरसरि, तेज-तप-मय तरनि सरित-वन-कृषि-भरित-भुवि-छवि-सरस-कवि-मति-हरनि बंदहुँ मातृ-भारत-धरनि (4) न्याय-मग-निर्धार-कारिनि, द्रोह-दुर्मति-दरनि सुभग-लच्छिनि, सुकृत-पच्छिनि, धर्म-रच्छन-करनि बंदहँ मातृ-भारत-धरनि

स्मरणीय भाव

वंदनीय वह देश, जहाँ के देशी निज-अभिमानी हों बांधवता में बँधे परस्पर, परता के अज्ञानी हों निंदनीय वह देश, जहाँ के देशी निज अज्ञानी हों सब प्रकार पर-तंत्र, पराई प्रभुता के अभिमानी हों

भारत-गगन

(1) निरखहु रैनि भारत-गगन दूरि दिवि द्युति पूरि राजत, भूरि भ्राजत-भगन (2) नखत-अवलि-प्रकाश पुरवत, दिव्य-सुरपुर-मगन सुमन खिलि मंदार महकत अमर-भौनन-अँगन निरखहु रैनि भारत-गगन (3) मिलन प्रिय अभिसारि सुर-तिय चलत चंचल पगन छिटकि छूटत तार किंकिनि, टूटि नूपुर-नगन निरखहु रैनि भारत-गगन (4) नेह-रत गंधर्व निरतत, उमग भरि अँग अँगन तहाँ हरि-पद-प्रेम पागी, लगी श्रीधर लगन निरखहु रैनि भारत-गगन

सुंदर भारत

(1) भारत हमारा कैसा सुंदर सुहा रहा है शुचि भाल पै हिमाचल, चरणों पै सिंधु-अंचल उर पर विशाल-सरिता-सित-हीर-हार-चंचल मणि-बद्धनील-नभ का विस्तीर्ण-पट अचंचल सारा सुदृश्य-वैभव मन को लुभा रहा है भारत हमारा कैसा सुंदर सुहा रहा है (2) उपवन-सघन-वनाली, सुखमा-सदन, सुख़ाली प्रावृट के सांद्र धन की शोभा निपट निराली कमनीय-दर्शनीया कृषि-कर्म की प्रणाली सुर-लोक की छटा को पृथिवी पे ला रहा है भारत हमारा कैसा सुंदर सुहा रहा है (3) सुर-लोक है यहीं पर, सुख-ओक है यहीं पर स्वाभाविकी सुजनता गत-शोक है यहीं पर शुचिता, स्वधर्म-जीवन, बेरोक है यहीं पर भव-मोक्ष का यहीं पर अनुभव भी आ रहा है भारत हमारा कैसा सुंदर सुहा रहा है (4) हे वंदनीय भारत, अभिनंदनीय भारत हे न्याय-बंधु, निर्भय, निबंधनीय भारत मम प्रेम-पाणि-पल्लव-अवलंबनीय भारत मेरा ममत्व सारा तुझमें समा रहा है भारत हमारा कैसा सुंदर सुहा रहा है

देश-गीत

1. जय जय प्यारा, जग से न्यारा शोभित सारा, देश हमारा, जगत-मुकुट, जगदीश दुलारा जग-सौभाग्य, सुदेश। जय जय प्यारा भारत देश। 2. प्यारा देश, जय देशेश, अजय अशेष, सदय विशेष, जहाँ न संभव अघ का लेश, संभव केवल पुण्य-प्रवेश। जय जय प्यारा भारत-देश। 3. स्वर्गिक शीश-फूल पृथिवी का, प्रेम-मूल, प्रिय लोकत्रयी का, सुललित प्रकृति-नटी का टीका, ज्यों निशि का राकेश। जय जय प्यारा भारत-देश। 4. जय जय शुभ्र हिमाचल-शृंगा, कल-रव-निरत कलोलिनि गंगा, भानु-प्रताप-समत्कृत अंगा, तेज-पुंज तप-वेश। जय जय प्यारा भारत-देश। 5. जग में कोटि-कोटि जुग जीवै, जीवन-सुलभ अमी-रस पीवै, सुखद वितान सुकृत का सीवै, रहै स्वतंत्र हमेश। जय जय प्यारा भारत-देश।

स्वराज-स्वागत-1

(भारत की ओर से) आऔ आऔ तात, अहो मम प्रान-पियारे सुमति मात के लाल, प्रकृति के राज-दुलारे इते दिननतें हती,तुम्हारी इतै अवाई आवत आवत अहो इति कित देर लगाई आऔ हे प्रिय, आज तुम्हें हिय हेरी लगाऊँ प्रेम-दृगन सों पोंछि पलक पाँवड़े बिछाऊँ हिय-सिंहासन सज्यौ यहाँ प्रिय आय विराजौ रंग-महल पग धारि सुमंगल-सोभा साजौ तहाँ तुम्हें नित पाय प्रेम-आरती उतारूँ सहित सबै परिवार प्रान धन तन मन वारूँ माथे दैउँ लगाय बड़ौ सौ स्याम दिठौना ओखी दीठि न परे, दोख कछु करै न टौना राखौ यहाँ निवास निरंतर ही अब प्यारे यातें हमहूँ तात अंत लों रहैं सुखारे

स्वदेश-विज्ञान

जब तक तुम प्रत्येक व्यक्ति निज सत्त्व-तत्त्व नहिं जानोगे त्यों नहिं अति पावन स्वदेश-रति का महत्त्व पहचानोगे जब तक इस प्यारे स्वदेश को अपना निज नहिं मानोगे त्यों अपना निज जान सतत-शुश्रूषा-व्रत नहिं ठानोगे प्रेम-सहित प्रत्येक वस्तु को जब तक नहिं अपनाओगे समता-युत सर्वत्र देश में ममता-मति न जगाओगे जब तक प्रिय स्वदेश को अपना इष्ट-देव न बनाओगे उसके धूलि-कणों में आत्मा को समूल न मिलाओगे पूत पवन जल भूमि व्योम पर प्रेम-दृष्टि नहिं डालोगे हो अनन्य-मन प्रेम-प्रतिज्ञा-पालन-व्रत नहिं पालोगे तन मन धन जन प्रान देश-जीवन के साथ न सानोगे स्वोपयुक्त विज्ञान ज्ञान का सुखद वितान न तानोगे तब तक क्योंकर देश तुम्हारा निज स्वदेश हो सकता है स्वत्व उसी का रह सकता है रख उसको जो सकता है

निज स्वदेश ही

निज स्वदेश ही एक सर्व-पर ब्रह्म-लोक है निज स्वदेश ही एक सर्व-पर अमर-ओक है निज स्वदेश विज्ञान-ज्ञान-आनंद-धाम है निज स्वदेश ही भुवि त्रिलोक-शोभाभिराम है सो निज स्वदेश का, सर्व विधि, प्रियवर, आराधन करो अविरत-सेवा-सन्नद्ध हो सब विधि सुख-साधन करो

बलि-बलि जाऊँ

1. भारत पै सैयाँ मैं बलि-बलि जाऊँ बलि-बलि जाऊँ हियरा लगाऊँ हरवा बनाऊँ घरवा सजाऊँ मेरे जियरवा का, तन का, जिगरवा का मन का, मँदिरवा का प्यारा बसैया मैं बलि-बलि जाऊँ भारत पै सैयाँ मैं बलि-बलि जाऊँ 2. भोली-भोली बतियाँ, साँवली सुरतिया काली-काली ज़ुल्फ़ोंवाली मोहनी मुरतिया मेरे नगरवा का, मेरे डगरवा का मेरे अँगनवा का, क्वारा कन्हैया मैं बलि-बलि जाऊँ भारत पै सैयाँ मैं बलि-बलि जाऊँ

हिंद-महिमा

जय, जयति–जयति प्राचीन हिंद जय नगर, ग्राम अभिराम हिंद जय, जयति-जयति सुख-धाम हिंद जय, सरसिज-मधुकर निकट हिंद जय जयति हिमालय-शिखर-हिंद जय जयति विंध्य-कन्दरा हिंद जय मलयज-मेरु-मंदरा हिंद जय शैल-सुता सुरसरी हिंद जय यमुना-गोदावरी हिंद जय जयति सदा स्वाधीन हिंद जय, जयति–जयति प्राचीन हिंद

भारत-श्री

जय जय जगमगित जोति, भारत भुवि श्री उदोति कोटि चंद मंद होत, जग-उजासिनी निरखत उपजत विनोद, उमगत आनँद-पयोद सज्जन-गन-मन-कमोद-वन-विकासिनी विद्याऽमृत मयूख, पीवत छकि जात भूख उलहत उर ज्ञान-रूख, सुख-प्रकासिनी करि करि भारत विहार, अद्भुत रंग रूपि धारि संपदा-अधार, अब युरूप-वासिनी स्फूर्जित नख-कांति-रेख, चरन-अरुनिमा विसेख झलकनि पलकनि निमेख, भानु-भासिनी अंचल चंचलित रंग, झलमल-झलमलित अंग सुखमा तरलित तरंग, चारु-हासिनी मंजुल-मनि-बंध-चोल, मौक्तिक लर हार लोल लटकत लोलक अमोल, काम-शासिनी उन्नत अति उरज-ऊप, बिलखत लखि विविध भूप रति-अवनति-कर-अनूप-रूप-रासिनी नंदन-नंदन-विलास, बरसत आनंद-रासि यूरप-त्रय-ताप-नासि-हिय-हुलासिनी भारत सहि चिर वियोग, आरत गत-राग-भोग श्रीधर सुधि भेजि तासु सोग-नासिनी