हिन्दी कविताएँ : शकुंतला अग्रवाल 'शकुन'

Hindi Poetry : Shakuntala Agrwal Shakun


सीख

!!मनहरण घनाक्षरी!! गुरु की बातें गुन लो,मात-पिता की सुन लो, स्वप्न जीत के बुन लो,चलो सद्-राह पे। धर्म-पथ पर चले,फिर चाहे पाँव जले, जिंदगी का पुष्प खिले,लगाम हो डाह पे। यहाँ कोई नहीं सगा,घावों पे सीवन लगा, सोयी किस्मत तू जगा,अंकुश हो चाह पे। मद से रहना दूर ,सुख होंगे भरपूर, मत करना गुरूर,झूठी वाह - वाह पे।

आशा

शबरी जैसी हो प्रीत,मीराँ-सा हो प्रेम-गीत, शिव - सा हो मनमीत,महकेगी जिंदगी। रख मृदु- व्यवहार,यह सुख का आधार, धर मन में संस्कार,आएगी संजीदगी। ले आशा मधुपान की,लगा दे बाजी जान की, करले भगवान की,प्रतिदिन बंदगी। मंजिल के पग चूम,खुशियाँ जाएँगी लूम, जिंदगी जाएगी झूम, रहे दुनिया ठगी।

अल-मस्त

देखो पीकर पराग,गए भूल अनुराग, कली पे लगाके दाग,भौंरे अल-मस्त हैं । टूटी है आशा की डोर, महकती कैसे भोर? छूमंतर हुआ चोर,सपने भी पस्त हैं। बोलो कैसा है दुर्योग? समझ न पाएँ लोग, विरहा की पीड़ा भोग, कलियाँ भी त्रस्त हैं। मधु पल में पी गये,घाव अपने सी गये | देखो,सदियाँ जी गये,अलि, सिद्ध-हस्त हैं।

सौगात

गीता से लेता जो ज्ञान, करता है सुधा-पान, हर लेते भगवान,दामन से शूल भी। सत्कर्मों की ही ठाँव, देती है शीतल-छाँव, मंजिल को चूमे पाँव, खिल जाते फूल भी। जिस मन में हैं धर्म,जिन आँखों में है शर्म, जीवन में वो सत्कर्म, देता है वो तूल भी। जहाँ सत्य की हो ढाल,रहे जग खुशहाल, सुख से हो मालामाल,दुख जाता भूल भी।

भ्रष्टाचार

संसद बहाए नीर, बनी द्रोपदी शरीर, खींच रहे दुष्ट चीर, प्रभु झट आइए। ठग, चोर दगाबाज,देख रहे राज-काज, कैसे आएगा सुराज,आप ही बताइए। चारों ओर भ्रष्टाचार, जनता भी गई हार, आकर तारणहार, राह तो सुझाइए। मंदमति हमें जान, दे कर प्रभु जी!ज्ञान, भारत की आन-बान, आप ही बचाइए।

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