हिंदी शायरी/कविताएँ : सरवरिन्दर गोयल

Poetry in Hindi : Sarvarinder Goyal



1. ?

कामिल हो अगर तुम, तो मैं बे-मिसाल हूँ , ढूंढ़ना न मुझे, कि मैं सवाल हूँ ! हाज़िर हूँ हर जगह, तमाम शह मौजूद हूँ, ला-खौफ, ला-जिस्मी, ला-फानी, ला-ख़याल हूँ ! ढूंढ़ना न मुझे कि मैं सवाल हूँ-------- खाना-बदोश हूँ, कि ठिकाना नहीं मेरा, आब-ए-दरिया सा रवां-ए-चाल हूँ ! ढूंढ़ना न मुझे कि मैं सवाल हूँ-------- पर्दा-नशीन नहीं, न बे-पर्देदार हूँ, न सुन्नी न शिया न हराम न हलाल हूँ ! ढूंढ़ना न मुझे कि मैं सवाल हूँ-------- न दौलत-ओ-शौहरत, न खुशामद-ओ-रसूख से, न काबिल-ऐ-खरीद, न मुफ्त का माल हूँ ! ढूंढ़ना न मुझे कि मैं सवाल हूँ-------- न रंजिशमन्द, न दानिश, न यार-पसंद हूँ, न मुख़ालिफ़, न मुकाबिल, न मुहाल हूँ ! ढूंढ़ना न मुझे कि मैं सवाल हूँ-------- "सरकश" पाबंद नहीं हु मैं जामा-ऐ-पंचम का, न हरा सफेद केसरी न मैं लाल हूँ! ढूंढ़ना न मुझे कि मैं सवाल हूँ-------- (कामिल=पूर्ण, ला-खौफ=निडर, ला-जिस्मी=निरंकार, ला-फानी=अमर,अविनाशी, ला-ख़याल=सोच से परे, खाना-बदोश=जिसका कोई स्थाई घर या ठिकाना न हो, आब-ए-दरिया= दी का पानी, रवां-ए-चाल= लगातार चलने वाला, पर्दा-नशीन= पर्दे मे रहने वाले, न काबिल-ऐ-खरीद=जिसको खरीदा न जा सके, रंजिशमन्द=वैर रखने वाला, दानिश=दानी,दयालु, यार-पसंद=दोस्त बनाने वाला, मुख़ालिफ़=विरोधी, मुकाबिल=मुकाबला करने वाला, मुहाल=असम्भव, जामा-ऐ-परचम=झंडे का कपड़ा)

2. वसल

वसल-ए-महबूब से बस क़त्ल-ए-इंतज़ार हुआ, तपस-ओ-आतिश-ए-इश्क़ सर्द-यार हुआ ! मशरूफ-ए-जहाँ थे यादों में तन्हा भी, कसब-ए-इश्क़ था, अब देखो बे-रोज़गार हुआ ! वसल-ए-महबूब ---------------------- गुलस्तां उजड़ा नहीं था अभी, कि जाड़े आ गए, क़बल-अज़-वक़्त-ए-बहार रसन-ए-जरार हुआ ! वसल-ए-महबूब ---------------------- तस्कीन-ए-क़ल्ब थी इंतज़ार-ए-यार में, अब न इंतज़ार रहा, न रूह-ए-बहार हुआ ! वसल-ए-महबूब -------------------- कुछ करने का ज़ज़्बा रखता था इश्क़ में "सरकश" मुखलसी-ए-मोहब्बत में क़ैस सा बे-ज़ार हुआ ! वसल-ए-महबूब -------------------- (वसल-ए-महबूब=महबूब का मिलन, तपस-ओ-आतिश-ए-इश्क= प्यार की आग का ताप, सरद-यार=ठंडा-खून, कसब-ए-इश्क= इश्क की नौकरी, जाड़े=सर्दी का मौसम, क़बल-अज़-वक़्त-ए-बहार= बसंत समय से पहले आता है, रसन-ए-जरार=नुकसान का कारण, तस्कीन-ए-कलब = मन की संतुष्टि, रूह-ए-बहार=आत्मा का खिलना, मुखलसी-ए-मोहब्बत =मोहब्बत की वफ़ादारी, क़ैस=मजनू, बे-जार=निराश)

3. आशिकियाँ

काफ़र बोलिआं कोई न होये काफ़र, पाक बोलिआं कोई न पाक हुन्दा ! स्वाद चुरी दा जीभ न लगदा, मालक तख़्त दा कास्तों चाक हुन्दा ! पट्ट चीर के जे किते सर जांदा, क्यों सोहनी दे विजोग च फ़िराक़ हुन्दा ! आयी नींद तों घूक जे न सोंदा, मिर्ज़ा सालियाँ हथों न हलाक़ हुन्दा ! ला-ऐ-ला नु लैला जे न पढ़ दा , क़ैश ख़ाक नाल कदे न ख़ाक हुन्दा ! तेसी नाल पहाड दस कौण चीरे, जे इश्क़ न अंदर लोलाक हुन्दा ! कोई पैर थलां विच क्यों साडे, जे ऊठ ले के बलोच न डाक हुन्दा ! 'सरकश' गुरु सोई जो सच्चे वाक् बोले, आशिक़ सोई जो बेवाक हुन्दा ! (चाक=नौकर, पट्ट=झांघ, फ़िराक़=विरह, क़ैश=मजनूं, तेसी=हथोड़े सा औज़ार, बलोच=पुन्नु (सस्सी का आशिक़) डाक होना=दौड़ जाना, बेवाक=बे-परवाह निडर)

4. नूर-ऐ-नबी

कि बेहद मुश्किल है नूर-ऐ-नबी का रूबरू होना, चेहरे तो हैं मगर नामुमकिन है तेरे रुखसार सा हूबहू होना ! कि बेहद मुश्किल है नूर-ऐ-नबी का रूबरू होना............ इंतहा-ऐ-सादगी कि उमीदवार हैं दीदार के, यकीनन है सरेबाज़ार फ़क़ीरों का बेआबरू होना ! कि बेहद मुश्किल है नूर-ऐ-नबी का रूबरू होना.......... संगदिल ही नहीं तंग-दस्त भी है यह जहाँ सारा, मुफलिस है के यहाँ अदने की आरज़ू होना ! कि बेहद मुश्किल है नूर-ऐ-नबी का रूबरू होना.......... जिस्म-ओ-रूह सा रिस्ता है ख़ल्क़-ओ-ख़ालिक़ का, कि गैर मुमकिन है गुल से जुदा खुशबू होना ! कि बेहद मुश्किल है नूर-ऐ-नबी का रूबरू होना.......... परसतीश-ऐ-खुदी ने बे-दीन कर दिया “सरकश” मैं हूँ मैं से मुश्किल है तू ही तू होना ! कि बेहद मुश्किल है नूर-ऐ-नबी का रूबरू होना...........

5. जन्म-महल

मोहे अगर कोई आके पूछत, हैं राम कहाँ वसियन , कहाँ प्रभु को जनम हुआ, कहाँ रास रसाये रसियन, मोरे राम वस्त हैं कुटियन में, या वस्त तोहरे मन!---- न नगर न महल है भावत, मन -भावत है वण , न वहां कोई चोर चाकरी, न चुगली न हरण ! मोरे राम वस्त हैं कुटियन में, या वस्त तोहरे मन ---- वहां समय चले दिन रात से, न पहर चले न क्षण , भांत भांत के फूल खिलत, जी देखत हो प्रसन! मोरे राम वस्त हैं कुटियन में, या वस्त तोहरे मन ---- न वहां कोई वणज व्पारी, न दौलत न धन, न लगे कोई रोग बीमारी, न मन को भटकन! मोरे राम वस्त हैं कुटियन में, या वस्त तोहरे मन ---- न वहां कोई बिस्तर- वस्त्र, न मुकट-भूषण , न वहां कोई आर -सिंगार, न इत्र भीतर दूषण ! मोरे राम वस्त हैं कुटियन में, या वस्त तोहरे मन ---- न वहां कोई शाशक है, न कूटनीति शासन, न बनाये कोई मंदिर मोरा, न उगले विषयत भाषण ! मोरे राम वस्त हैं कुटियन में, या वस्त तोहरे मन ---- न कोई किसी को पूजत है, न करे दान - कृपण , प्रभु-प्रभु ही प्रभु है, बिन मांगे हो दर्शन ! मोरे राम वस्त हैं कुटियन में, या वस्त तोहरे मन ---- न वहां कोई भवन उसारे, न भूमि पूजन , राम जने इस माटी से, मोरे राम वसे कण कण, ईंट-पत्थर का मंदिर नाही, मोरा मंदिर मन !! मोरे राम वस्त हैं कुटियन में, या वस्त तोहरे मन ----

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