हिंदी कविताएँ : सरिता सिंह

Hindi Poetry : Sarita Singh


सिस्टम करे गुमान है

सिस्टम करे गुमान है, कुर्सी में ही जान है l जो बोले सच की बोली कहते सभी नादान है। सड़क गली सुनसान हैं, नदियों में तूफान है। अन्तर्मन में लालच बैठा, सबको प्यारी जान है। वादों में जुमलेबाज़ी, होठों पर अरमान है। जेब भरी तो बल्ले बल्ले, वरना बस अपमान है। रूठी हुई मचान है टूटा हुआ मकान है। खाने को रोटी नहीं जीवन भी हलकान है सत्ता का फरमान है। जरूरी बस मतदान है पूरे हुए नहीं वादे जनता का नुकसान है।

नेवले और साँप की यारी चल रही है

नेवले और साँप की यारी चल रही है, बड़ी साजिश की तैयारी चल रही है। जाति-धर्म के नाम पे सौदेबाज़ी, कुर्सी की मारामारी चल रही है। कल जो कहते थे हम दोस्त हैं तुम्हारे दोस्तो के दिलो पर आरी चल रही है गठबंधन का गणित बड़ा उलझा हुआ है, कभी इधर , कभी उधर सवारी चल रही है। जनता देती है वोट खोखले वादों पर, नेताओं की झूठ मक्कारी चल रही है। सत्ता की कुर्सी ही लक्ष्य बन गई अब, संविधान पर बहस उधारी चल रही है। सरिता बरसों का इतिहास उठाकर देखो, सिर्फ सत्ता की ही खरीदारी चल रही है।

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