ग़ज़लें : सरदारी लाल धवन 'कमल'

Ghazals : Sardari Lal Dhawan 'Kamal'


आपसे हम अगर दग़ा करते

2 1 2 2 1 2 1 2 2 2 आपसे हम अगर दग़ा करते शौक़ से आप फिर गिला1 करते । हम निभाते रहे सभी आदाब2 कोई रस्म आप भी अदा करते । मानते आपकी वफ़ादारी कोई वॉदा अगर वफ़ा3 करते । इश्क़ है ला-इलाज बीमारी कब तलक इसकी हम दवा करते ? कारगर4 जब कोई दवा न हुई करते क्या गर न हम दुआ करते ? आप फ़रमा के देखते तो सही फ़र्ज़ हम किस तरह अदा करते । प्यार जो आपने दिया होता हम 'कमल' जान भी फ़िदा5 करते । 1. शिकायत, 2. शिष्टाचार, 3. वचन-पालन, 4. प्रभावशाली, 5. क़ुर्बान

फूल गर प्यार से दिये होते

2 1 2 2 1 2 1 2 2 2 फूल गर प्यार से दिये होते चार दिन और हम जिये होते । और करते हम इंतिज़ार तिरा क़ौल1 तूने अगर किये होते । देखता मयफ़िशां नज़र से जो तू क्यों न हम मस्त बे-पिये होते ? दर्द आंखों से फिर उमड़ता क्यों ? ज़ख्म दिल के अगर सिये होते । बांटते दर्द जो हम औरों के वो भी अपने बना लिये होते । मेहरबां तू जो हम पे हो जाता तंग क्यों अपने क़ाफ़िये होते । जान जाते हक़ीक़तें तेरी हमने बदले जो ज़ाविये होते । तू न करता दग़ा तो हमने फिर ख़ून के अश्क क्यों पिये होते। प्यार मिलता 'कमल' अगर हमको फिर गिले-शिकवे क्यों किये होते ।

वक्त जो प्यार में गुज़रता है

2 1 2 2 1 2 1 2 2 2 वक्त जो प्यार में गुज़रता है रूह1 को खुशगवार करता है । ख़ुद को बांटो नहीं सनम, वरना जानलेवा मरज़ उभरता है । जिन्दगी तो फ़क़त है इक खाका3 हर कोई अपना रंग भरता है । हर किसी की पसन्द है अपनी जैसे लैला पे क़ैस मरता है । ख़ार पांवों में चुभ गया है तो क्यों तू राहों पे उज़्र1 करता है ? आरज़ू हो जिसे गुलाबों की तल्ख़ खारों से कब वो डरता है ! इश्क है वो नशा अजीब 'कमल' चढ़ के जो फिर नहीं उतरता है । 1. इतिराज

जहां आप हों बस वहीं तो खुशी है

1 2 2 1 2 2 1 2 2 1 2 2 जहां आप हों बस वहीं तो खुशी है बिना चांद के हां कहां चांदनी है। दरख्शां1 है सूरज फलक़2 पर क़मर3 भी न हो चश्म-ए- बीना4 तो क्या रोशनी है ? दवा तो बहुत दी, मरज़ बढ़ गया पर मसीहा ! बता क्या ये चारागरी5 है ? लगे चोट मुझको तो हो दर्द तुझको यही है महब्बत, यही आशिक़ी है । नहीं कोई मुझसे है कमतर, कहे तू बता ये तकब्बर6 है या आजिज़ी7 है। मुझे डगमगाते हुए थाम ले जो फरिश्ते से बेहतर वही आदमी है । जिसे छोड़ने को 'कमल' जी न चाहे यही वो जहां है, यही ज़िन्दगी है । 1चमकता, 2. गगन, 3. चांद, 4. देखने वाली आंख, 5. इलाज, 6. घमंड 7. नम्रता ।

तड़पने में तुम्हारे दम नहीं है

1 2 2 2 1 2 2 2 1 2 2 तड़पने में तुम्हारे दम नहीं है कोई भी आंख गर पुरनम नहीं है । तुम्हें तस्कीन1 कोई दे तो क्यों दे तुम्हारा ग़म किसी का ग़म नहीं है । पिघलता क्यों नहीं इनसे तिरा दिल ये मेरे अश्क हैं, शबनम नहीं है । सिला2 इख़लास का क्यों मांगते हो ? वफ़ादारी का अब मौसम नहीं है । सभी को फ़िक्र है अपने ग़मों की कोई हमदर्द या हमग़म नहीं है । रिवाजन3 लोग जुड़ते हैं ग़मी पर हक़ीक़त में उन्हें मातम नहीं है । ज़ुबां से नाम रटने में रखा क्या? तिरे दिल में अगर प्रीतम नहीं है । 1. तसल्ली, 2. बदला, 3. रिवाज के तौर पर,

ज़िन्दगी में गर मज़ा भी चाहिये

2 1 2 2 2 1 2 2 2 1 2 ज़िन्दगी में गर मज़ा भी चाहिये खेल में कुछ तो नया भी चाहिये । दिल धड़कना ही फ़क़त काफ़ी नहीं इसमें कुछ तो वलवला भी चाहिये । आशिक़ी की गर तमन्ना हो तुम्हें दिल-जिगर में हौसला भी चाहिये । रोज़ मिलने से नहीं रहती कशिश प्यार में कुछ फ़ासिला भी चाहिये । हुस्न को कह दो अदाएं ठीक हैं आंख में लेकिन हया भी चाहिये । हुस्न उनका है बहुत दिलकश मगर साथ में होनी वफ़ा भी चाहिये । चाहिये सबकी दुआ बीमार को कुछ 'कमल' लेकिन दवा भी चाहिये ।

  • मुख्य पृष्ठ : सरदारी लाल धवन 'कमल'
  • मुख्य पृष्ठ : हिन्दी कविता वेबसाइट (hindi-kavita.com)