हिंदी कविताएँ : कर्नल प्रवीण त्रिपाठी

Hindi Poetry : Col. Pravin Tripathi



1. हमारे सैन्यबल

बाँध पाया कौन अब तक सिंधु के उद्गार को। कौन बैरी सह सका है सैन्य शक्ति प्रहार को।1 तोड़ डालें सर्व बंधन रिपु करे गुस्ताखियाँ। सह नहैं सकता पड़ोसी शूरता के ज्वार को।2 कांपता अंतःकरण पर वह बघारे शेखियाँ। दम निकलता है युद्ध की सुन कर तनिक हुंकार को।3 मानसिकता में कलुष जब छल प्रपंचों में जुटे। कूटनीतिक योग्यता से अवसर न दें संसार को।4 शत्रु ने खोली हुई आतंक की जो फैक्ट्रियां। सर्जिकल स्ट्राइक से फौजें खड़ी संहार को।5 देश ने है ली शपथ हम आक्रमण न करें कभी। पर सजग सैनिक खड़े हैं राष्ट्र के विस्तार को।6 जान देकर हिन्द की रक्षा करे जो रात दिन। देश कैसे भूल पाये फौज़ के उपकार को।7

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