हिन्दी कविताएँ : पूजा चक्रवर्ती
Hindi Poetry : Pooja Chakravarti


दस्तक

दरवाजे पर हर दस्तक, मेरे दिल को धड़काती है, तू आएगा दहलीज़ पर, आँखें ये आस लगाती हैं, ये गुमनाम हवाएँ मेरे, कानों में ये कह जाती हैं, मैं छू कर उसको आई हूँ, जिसकी यादें तुझे सताती हैं, जब होती हूँ रूबरू आईने से, आईना मुझसे कहता है, कैसे दिखाऊँ तुझे वो चेहरा, जो तेरे दिल में रहता है, ये घनघोर बादल मुझसे, गरज-गरज कर कहते हैं, तू भी हम जैसी हो गयी है, जिसके ख्वाब आँसू बन बहते हैं

एक तरफ़ा

जब दिन के उजाले में बात न बनी, तो उसने रात का सहारा लिया जो जख्मों को खुरचे अंदर तक, उसने हर उस बात का सहारा लिया हमने जब-जब जतायी मोहब्बत अपनी, उसने हर बार आशिकी से नाकारा किया हम निभाते रहे अपनी मोहब्बत हर दफा, पर उसने हर बार खुद को किनारा किया हमें हर जगह-हर हक से बेदखल कर, उसने हसीं यादों का भी बटवारा किया हमने चाँद किया ज़िन्दगी में उसको, उसने हमें लाखों की भीड़ का सितारा किया हम देते रहे गुलाब ज़िन्दगी भर उसको, और उसने हर एक काँटा उसका हमारा किया ना जाने कहां से लाता इतनी नफरत वो शख्स, हमने तो जब देखा, प्यार से इशारा किया

अनकही आरज़ू

वो भी तो याद करे जिस तरह हम करते हैं, नदिया ही हर बार सागर से मिले, यह सही नहीं दिल उनका भी मचले जैसे हम मचलते हैं, घायल ही तड़पे हर बार, यह ज़रूरी तो नहीं मसला प्यास का ही है तो उन्हें भी लगे, जग में एक सिर्फ प्यासे, हम ही तो नहीं यूँ तो लगता है कभी, वो भी ऐसे हैं, कमबख्त ये खयाली पुलाव, पकते भी नहीं दिल हर वक़्त उन्हें ही ढूंढता है हर जगह, बदनसीबी के सिवा उनके और कोई है भी नहीं जाने कैसी उलझन-ओ-उल्फत में फंसे हैं, रास्ता, मुसाफिर, ठोकर, पत्थर, मंज़िल कहीं नहीं

जी हुजूरी हो गए

दिल की हर बात तुमपर आकर रुके, तुम तो इसकी जी हुजूरी हो गए किस्से तो बहुत हैं सोचने को, तुम क्यों किस्सा ज़रूरी हो गए यहाँ भी तुम, वहाँ भी तुम, क्यों तुम दिल की मजबूरी हो गए दस्तक तो बहुतों ने दी दिल में, पर तुम तो इसकी मंजूरी हो गए राज़ की बात है तुम्हें बता रही हूँ, इतना जो गुमान आया मुझ हिरनी को तुम जो इसकी कस्तूरी हो गए

इतना आसान नहीं होता

इतना आसान नहीं होता आशिक़ बन जाना... इतना आसान नहीं होता यह दिल लगाना, चाहत हो फूल की, और काँटों से ज़िन्दगी सजाना प्यार तो आसानी से हो जाता है, मुश्किल होता है किस्मत के फैसले अपनाना इतना आसान नहीं होता इश्क़ मुक़म्मल हो जाना, मखमली राहों को छोड़, आग के दरिया पर जाना हम सह तो लेते हैं हर ग़म ज़िन्दगी का, मुश्किल होता है मोहब्बत में जुदाई सह पाना इतना आसान नहीं होता आशिक़ बन जाना, दिल में गहरा दर्द छिपाए, भीड़ में मुस्काना आशिक़ तो हर कोई कह देता खुदको इश्क़ में, मुश्किल होता है शिद्दत से आशिकी निभाना

कोई बताये मुझे

कोई बताये मुझे कि एक उम्र से बिछड़ा यार, इत्तेफ़ाक़न मिले तो क्या कहते हैं, हम तो जिसे छू नहीं सकते उसे ख़ुदा कहते हैं...

तेरे इश्क़ का असर

तेरे इश्क़ का असर ,मुझपर हुआ इस क़दर, तू दिखे हर जगह, हुए बावरी नज़र तू है जबसे मिला, न किसी की फिकर, तेरे बारे में ही सोचे, ये दिल आठों पहर छूने तितलियों को, जो फिरती थीं दरबदर, आज तुझको छूने को, दिल ने किया इक सफ़र आंखों में बसाए, तेरी वो पहली झलक, मैं ढूंढ़ने निकली हूं, अपने प्यार का फ़लक सर चढ़कर बोल रहा, तेरे इश्क का फितूर, धड़कने अब तेज हैं, तू नहीं है ज्यादा दूर अब बहुत जल्दी मेरे दिल को, करार आएगा, जब इन आंखों को, तेरा दीदार हो जाएगा

ऐ मेरे ख़ुदा

ऐ मेरे ख़ुदा ! मुझसे हुई है एक खता, जिसको चाहा उमर भर, उसे खुद से किया जुदा जो मेरी हर एक अदा पे, कल तक था फिदा, आज उसके ही लिए उसे, कह दिया अलविदा करती है उसकी नम आँखें शिकायतें बयाँ मेरी मोहब्बत का तूने, ये कैसा सिला दिया सुन मेरे ख़ुदा, तू तो सब है जानता, मेरी सारी मजबूरियाँ, जाकर दे उसे बता बता दे उसे कि, मैं उसकी ही दीवानी हूँ, जो उस बिन अधूरी है, मैं वही कहानी हूँ नज़रों के माफ़ी-नामे को, उस तक दे पहुँचा, नफरत न कर मुझसे, चाहे दे कोई सजा ऐ मेरे ख़ुदा, मुझसे हुई है एक खता, जिसको चाहा उमर भर, उसे खुद से किया जुदा

ज़ख़्मी दिल

टूटने लगी है अब मेरी साँसों की डोर, इन आखरी लम्हों में दिल आना चाहता है तेरी और आज मत बांधो खुदको कसमों और वादों से, ज़ख़्मी है ये दिल दुनियां की रस्मों रिवाजों से मेरे इश्क़ का ज़ख़्म अब धीरे-धीरे नासूर हो गया है, इस दर्द से निजात दिलाने आज ख़ुदा भी मजबूर हो गया है सुना है सजा-ऐ-मौत संगीन गुनाहों में मिलती है, तुम आकर देख लो असलियत, ये इश्क़ की राहों में मिलती है

गुज़ारिश

आओ मिलकर ढूँढ़ लें वजह, फिर से एक हो जाने की, करें कोशिश एक दूसरे को, समझने और समझाने की कुछ तुम भूलो मेरी गलतियों को, कुछ मैं कोशिश करूँ भुलाने की, जो रिश्ता हम अधूरा छोड़ आये थे, उसे फिर से निभाने की बहुत सुलग लिए हम एहसासों की आग में, आओ मिलकर झूम जायें मोहब्बत के राग में आ भी जाओ अब सनम, कि ये आलम दोबारा न आयेगा, हालातों की ज़ंजीरों में वक़्त, मोहब्बत कैद कर ले जायेगा फिर यूँ ही सुलगते रह जायेंगे, दो दिलों में चाहत के अंगारे, न कोई सुनने वाला होगा, न मुक़म्मल होंगे ख्वाब हमारे

दास्तान-ए-मोहब्बत मेरी

कुछ ऐसे ही आया था वो, मेरी ज़िन्दगी में अजनबी बनकर, मेरे हर मुश्किल वक़्त में, साथ निभाया था सरज़मीं बनकर वो इंसानियत का, हर रिश्ता निभाता गया, मेरे दिल में एक, अजीब सा एहसास जगाता गया एक वक़्त जब मैंने, इस एहसास को पहचान लिया, मुझे मोहब्बत हो गयी थी उस से, ये जान लिया दिल की बात काग़ज़ पर लिख, मैंने एक फर्रा बनाया था, सात समंदर पार जायेगा ज़िन्दगी बनाने, खा कर ये कसम वो आया था उसकी आँखों में सपने देख, नहीं किया अपने प्यार का इज़हार, उस दिन समझ में आया, क्या होता सच्चा प्यार कभी पहुँचे तुम तक ये 'दास्तान-ए-मोहब्बत', तो समझ जाना आज भी है इस दिल को तुम्हारा इंतज़ार

और कैसे मनाऊँ तुम्हें

और कैसे मनाऊँ तुम्हें बता दो मुझे, क्यों रूठे हुए हो मुझसे वजह दो मुझे हुई हो कोई खता तो सजा दो मुझे, अगर तुमसे प्यार कर गुनाह किया तो भुला दो मुझे जो तुम किसी और के साथ रहकर जलाते हो मुझे, बदला ही लेना है तो रुला दो मुझे बे-इन्तेहाँ मोहब्बत करती हूँ तुमसे, ये और किन लफ़्ज़ों में कहूँ समझा दो मुझे और कैसे मनाऊँ तुम्हें बता दो मुझे, क्यों रूठे हुए हो मुझसे वजह दो मुझे

जो तुम साथ होते

जो तुम साथ होते हर ग़म भुला देती, ज़िन्दगी के साथ क़दम से क़दम मिला लेती लोगों के फेंके हर पत्थर का ताज बना, मैं अपने ही सर पर सजा लेती लोग सोचते हैं अकेली हूँ मैं, महफूज़ नहीं हूँ, मैं तुमसे हूँ तुम मुझसे हो मैं तुम में हूँ तुम मुझमें हो, जो तुम साथ होते तो लोगों को ये बता देती उलझे हुए हैं कई मुसाफिर इस मोहब्बत के शब्द में, हर कोई बयां करता है इसे अलग-अलग लफ्ज़ में क्या होती मोहब्बत ये मैं भी दिखा देती, जो तुम साथ होते तो ज़माने को इश्क़ सिखा देती

यह फर्क क्यों

वो नज़रों से क़तल करके कातिल हो गए, हम गुनाह करके गुनहगार हुए तो हर्ज़ क्यों ख़ुदा अदा करता है बराबरी से सबको, यकीनन, फिर रिश्ते में हम ही अदा करें सारे फ़र्ज़ क्यों सबकी तकलीफ का मरहम अलग, जायज़, पर हमारी सारी तकलीफों का वोह एक मर्ज़ क्यों दिल जुड़े तो दो जुड़े, टूटे तो भी दो, उनकी रवानगी जायज़ है, फिर हमें इतना दर्द क्यों मोहब्बत की कमाल की बवाल की, मसला तो बराबरी का है, जज़्बातों में फिर फर्क क्यों

खाली दिमाग

.खाली दिमाग, शैतान का घर नहीं, खाली दिमाग, तुम्हारी यादों का घर, तुम्हारे एहसासों का घर, कानो में गूंजती तुम्हारी आवाज़ का घर, तुम्हारी ढेर सारी बातों का घर, खाली दिमाग, मेरे लिए, तुम्हारा घर

वो समन्दर

वो समन्दर सूख कर कुएँ सा हो गया, पानी जिसमें बे-मिसाल था न पूछो कितने रंग थे बिखरे, दिखता कितना कमाल था न जाने किसकी नज़र लगी, क्या कुछ हुआ बवाल था शायद उसके दिल में था कुछ, मेरे भी मन में सवाल था न बोला जाये न पूछा जाये, तब हाल बड़ा बे-हाल था चलते चलते कब मुड़ गया वो, न कह पाने का मुझे मलाल था सोचती हूँ वो ही कुछ कह जाता, जाने से पहले कि उसका मेरे साथ चलने का ख़याल था, वो समन्दर सूख कर कुएँ सा हो गया पानी जिसमें बे-मिसाल था

इतना मजबूर

इतना मजबूर..... कभी महसूस नहीं किया ख़ुदको, कि सामने भी हो अगर तू तुझे प्यार से पुकार नहीं पाऊँगी, मैं जानती हूँ कि मैं कभी तेरा नाम काग़ज़ पर उतार नही पाऊँगी

कुछ हुआ

कुछ हुआ, बहुत बुरा हुआ, शायद इश्क़ हुआ, अधूरा हुआ ला-इलाज थी बीमारी उनकी, रूह को सुकून तभी मिला जब अंतिम संस्कार पूरा हुआ, सौंप आए उनके महबूब को उन्हें उनकी इच्छा अनुसार, घड़े में इधर-उधर से उन्हें जैसे - तैसे बटोरा हुआ देख इस हालत में संभाल न पाएं वह खुदको, अस्थिओं में दिल था उसका उसी के हाथों से खुदरा हुआ