हिन्दी कविताएँ : पंकज बिंदास

Hindi Poetry : Pankaj Bindas


चाहत (गीत)

तू ही तो है चाहत तू ही तो है राहत पंछी मैं तू, भोर की पहली किरन तुझे न देखूं तो दिल में उदासी जो देखूं तुझे दिल में आशा-किरन चेहरों में इक तेरा चेहरा सुहाना मिला है इन आंखों को ख़ुशी का खजाना नज़र चेहरे से कहती हैं कुछ तेरे जैसे हिमालय से कहे सूरज-किरन दिल कहना चाहे पर धक-धक करे अपना मोल अपने से कब तक करे चांद तकता चकोर सा दिल बेचारा इक तरफा इश्क नादां कब तक करे तू ही अब कह दे दिल से पागल हो गया जो इक दरिया पर पोखर मायल हो गया मगर दिल फिर भी तो आशिक दीवाना तुझ पे चाहता है खुद को मिटाना छाए हैं बादल मेरे इस दिल पर बरसो या आने दो दिल में किरन।

तेरी मर्जी (गीत)

मेरी ज़िन्दगी में तेरा रंग भरना तेरा रंग भरके बेरंग करना ढूंढ रहा हूं मौजूदगी को मेरी ज़िन्दगी में तेरी ज़िन्दगी को तूने किया है खुद से जुदा,मैं टूटा सा तारा खफा हूं खुदा से तेरी थी मर्जी तेरा ही बहाना किसी और का तेरे दिल में ठिकाना टूटा सा तारा मुझको बनाकर खुदको ही मांगा है मुझको मनाकर।

डर (गीत)

जंगल के रास्ते पर जानवर का होता डर झील के किनारों पर रहता मगर का डर जिंदा निगल लेगा सावधान!अज़गर का डर ओह मेरी नन्हीं परी तू क्यूँ सहमी डरी? क्या तुझे भी रास्ते पर जानवर का होता डर? घूर-घूरकर हमलावर दरिंदे-मगर का डर? सावधान तू इतनी क्यों? डर है निगलेगा अज़गर?

महादेव (वंदना)

गौरापति संकट हरें, मिटें वासना काम। कृपा करो मुझ दीन पर, कर्म करूं निष्काम।। योग साधना का मुझे, दीजे वर भगवान। योग साधना से मिले, ईश्वर अंतर धाम।। साजे मस्तक चंद्रमा, गंगा मैया साथ। विषधर विष है कंठ में, डमरू साजे हाथ।। ध्यान नेत्र है भाल पे, रुद्राक्ष माल गात। बाघाम्बर ओढ़े सदा, मेरे भोलेनाथ।।

पत्थर (कविता)

वो बड़ा पत्थर भारी पत्थर जिसे बड़ी मुश्किल से उठाकर रखा जाता है घास पर तो घास उजड़ जाती है घास की जड़े मर जाती हैं. रखा जाता है मिट्टी पर मिट्टी उड़ जाती है बची-खुची मिट्टी काँप जाती है और चिपक जाती है पत्थर पर वो बड़ा पत्थर भारी पत्थर जिसे बड़ी मुश्किल से उठाकर रखा जाता है दीवार के ऊपर तो दीवार थरथराती है- मानो कहती है - हटाओ ये पत्थर वरना दीवार ढह जाएगी वो बड़ा पत्थर भारी पत्थर जिसे बड़ी मुश्किल से उठाकर डाला जाता है पानी पर पानी का अस्तित्व हिल जाता है पानी कायरों की भांति घबराकर छोड़ देता अपना ही मुल्क और फिर उस मुल्क पर वो बड़ा पत्थर भारी पत्थर करता अनंत अतिक्रमण वो बड़ा पत्थर भारी पत्थर हाँ हाँ वही पत्थर बड़ी मुश्किल से उठाकर रखा है मैंने अपने दिल पर.

सावन गीत

सावन की रिमझिम बारिश में नाचे मेरा तन- मन- मोर। मेघ- वेग से नभ आच्छादित वन में बेमन डाल चकोर तभी अचानक मेघ गगन से छँटे सो विधु दिखा हँसे चकोर।। मरुत् नहाती युवती सम है जलकण शीतल लिए हुए, चहुंदिशि सुंदर धरा हरित है सुमन- उपेक्षित किए हुए आसमान है अहा आनंदित अट्टहास करता हुआ शोर सावन की रिमझिम बारिश में नाचे मेरा तन- मन- मोर। बिजली- गर्जन से धरती है लगती हँसती वधू समान स्वाभिमान है बिजली, गर्जन- मुखरित स्वर है गर्वित मान निर्झरिणी में श्वेतामृत है सरिता का नहीं दिखता छोर सावन की रिमझिम बारिश में नाचे मेरा तन- मन- मोर।

एक बार होता है

बार बार नही इजहार एक बार होता है ज़िंदगी मे भी बस प्यार एक बार होता है. कुछ लोग गिनाते अपनी ढेर सारी मुहब्बतें पर वो वाला प्यार यार एक बार होता है. आज हम दोनो को फुर्सत तू घड़ी मत देख एक हप्ते मे इतवार एक बार होता है. बिंदास ने जाना ये ठोकरें खा खाकर किसी शख्स पर एतबार एक बार होता है.

मेरा आज मेरा कल बनाएगा

मेरा आज मेरा कल बनाएगा इसीलिए पढ़ो इसीलिए गढ़ो इसीलिए उठो बीज सा फूटो जर्जर हो टूटो स्वयं से रूठो स्वयं से पूछो मेरा दिन आखिर कब आएगा मेरा आज मेरा कल बनाएगा। आग में तपो बीज सा दबो अन्न सा पको बर्फ सी गलो घड़ी सी चलो नदी सी बहो स्वयं से कहो मेरा दिन आखिर कब आएगा मेरा आज मेरा कल बनाएगा।

ग्यारह होना

दुःख मे एक-एक ग्यारह होना कभी न नौ दो ग्यारह होना। शून्य एक को लाख करे, तुम ग्यारह ग्यारह ग्यारह होना। ब्रह्मा, विष्णु, महेश एक हैं जैसे एक सौ ग्यारह होना। पसीना पीकर वेतन का है साढ़े दस से ग्यारह होना. कट्टर मानसिकता के हाथों हमले छब्बीस ग्यारह होना. बिंदास को दफ़्तर मे ही रात के साढ़े ग्यारह होना.

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