मुहम्मद आसिफ़ अली की शायरी
Muhammad Asif Ali : Poetry in Hindi


गँवाई ज़िंदगी जाकर बचानी चाहिए थी

बहर - 1222 1222 1222 122 गँवाई ज़िंदगी जाकर बचानी चाहिए थी बुढ़ापे के लिए मुझको जवानी चाहिए थी समंदर भी यहाँ तूफ़ान से डरता नहीं अब फ़ज़ाओं में सताने को रवानी चाहिए थी नज़ाकत से नज़ाकत को हरा सकते नहीं हैं दिखावट भी दिखावे से दिखानी चाहिए थी बचाना था अगर ख़ुद को ज़माने की जज़ा से ख़ला में ज़िंदगी तुझको बितानी चाहिए थी लगा दो आग हाकिम को जला डालो ज़बाँ से यही आवाज़ पहले ही उठानी चाहिए थी हुकूमत चार दिन की है, अना किस काम की फिर तुझे 'आसिफ़' सख़ावत भी दिखानी चाहिए थी

हिदायत के लिए मैं कुछ बताना चाहता हूँ सुन

बहर - 1222 1222 1222 1222 हिदायत के लिए मैं कुछ बताना चाहता हूँ सुन निज़ामत के लिए मैं कुछ सुनाना चाहता हूँ सुन पड़ेगी ख़ाक मुँह पर और दामन चीख़ जाएगा नज़ाकत के लिए मैं कुछ दिखाना चाहता हूँ सुन सज़ा दौर-ए-फ़लक की झेलना बस में नहीं तेरे ख़यानत के लिए मैं कुछ जताना चाहता हूँ सुन ज़मीं का रंज भी बर्बाद करना जानता है अब 'अदावत के लिए मैं कुछ दयाना चाहता हूँ सुन निशाँ यूँ ज़ख़्म का दे दूँ भला कैसे तुझे मैं अब फ़ज़ाओं के लिए मैं कुछ ख़ज़ाना चाहता हूँ सुन सख़ावत भी दिखानी चाहिए 'आसिफ़' कभी तुझको ज़माने के लिए मैं कुछ ज़माना चाहता हूँ सुन

हवाओं की तरह तुझको चलना होगा

बहर - 122 212 222 222 हवाओं की तरह तुझको चलना होगा मुसीबत के तले तुझको पलना होगा हमारा घर सबा अँधेरे में हैं फिर चराग़ों की तरह तुझको जलना होगा हुकूमत ने दिया था जो, मरहम न था हमारा ज़ख़्म अब तुझको भरना होगा ख़िलाफ़त अब कहीं जाने न देनी है सख़ावत के लिए तुझको लड़ना होगा जलाने पर लगा है जो, उससे कह दो हमारी आग से तुझको बचना होगा आवारा जानवर गर हाकिम है तेरा फ़सादी शख़्स से तुझको डरना होगा

दिल के समंदर को उठाने का वक़्त आया है

बहर - 221 222 122 221 222 दिल के समंदर को उठाने का वक़्त आया है अपने मसाइल को बताने का वक़्त आया है हमको सिखाना है कि जब कू-ए-यार में हो तो फिर से मोहब्बत को लुटाने का वक़्त आया है ग़म जो तेरी चौखट तले जब आने लगेगा तो फिर से गरीबों को मनाने का वक़्त आया है जब दिल किसी साक़ी से उलझे तो समझ जाना शरबत फ़क़ीरों को पिलाने का वक़्त आया है चालान काटा साब ने कपड़ा देखकर तेरा तूफ़ान हाथों से उठाने का वक़्त आया है 'आसिफ़' कमाना सीख लो कोई साथ नहीं देगा मंज़िल गरीबों की गिराने का वक़्त आया है

उठाने के लिए तूफ़ाँ आया कहाँ से है

बहर - 1222 1222 22 1222 उठाने के लिए तूफ़ाँ आया कहाँ से है लुटाने के लिए रिश्वत लाया कहाँ से है तू घर उजाड़ता फिरता है आबिदों के सब जलाने के लिए बस्ती आया कहाँ से है नफ़ा' तुझको बता कितना अब चाहिए शौकत लुटाने के लिए नफरत आया कहाँ से है तेरा लालच मिटाने को क्या चाहिए आख़िर मचाने के लिए आफ़त आया कहाँ से है सर-ए-बाज़ार बच के जाना है तुझसे सुनाने के लिए मर्ज़ी आया कहाँ से है उजाड़े बाग़ जैसे दिल और उसमें आतिश लगाने के लिए माचिस लाया कहाँ से है

कहाँ इक झूठ से रियासत चलती है

बहर - 122 212 122 222 कहाँ इक झूठ से रियासत चलती है हसद की गार में सियासत पलती है जहाँ हाकिम चलाने लग जाए अपनी वहाँ फिर दर्द की तिजारत चलती है ज़माने ने अगर हुकूमत को रोका लताड़े से यहाँ फिर फ़िरासत चलती है

अगर है प्यार मुझसे तो बताना भी ज़रूरी है

बहर - 1222 1222 1222 1222 अगर है प्यार मुझसे तो बताना भी ज़रूरी है दिया है हुस्न मौला ने दिखाना भी ज़रूरी है इशारा तो करो मुझको कभी अपनी निगाहों से अगर है इश्क़ मुझसे तो जताना भी ज़रूरी है अगर कर ले सभी ये काम झगड़ा हो नहीं सकता ख़ता कोई नज़र आए छुपाना भी ज़रूरी है अगर टूटे कभी रिश्ता तुम्हारी हरकतों से जब पड़े कदमों में जाकर फिर मनाना भी ज़रूरी है कभी मज़लूम आ जाए तुम्हारे सामने तो फिर उसे अब पेट भर कर के खिलाना भी ज़रूरी है अगर रोता नज़र आए कभी मस्जिद या मंदिर में बड़े ही प्यार से उसको हँसाना भी ज़रूरी है

किसी का ग़म उठाना हाँ चुनौती है

बहर - 1222 1222 1222 किसी का ग़म उठाना हाँ चुनौती है किसी को अब हँसाना हाँ चुनौती है अड़ा है इस सज़ा के सामने सच भी मगर हरकत बताना हाँ चुनौती है तू ने बेची हज़ारों ज़िंदगी हो पर तुझे झूठा फँसाना हाँ चुनौती है सर-ए-बाज़ार तुझको मैं झुकाऊँगा यहाँ तुझको झुकाना हाँ चुनौती है नज़र से तो तेरी कोई बचा ही क्या यहाँ कुछ भी छिपाना हाँ चुनौती है अना तेरी यहाँ सब को सजा देगी तेरी आदत हटाना हाँ चुनौती है बता क्या क्या सभी को बोलना है अब वहाँ उनको बताना हाँ चुनौती है बुना है ख़ुद पिटारा साँप का उसने नशा उसका मिटाना हाँ चुनौती है कि तेरे सामने 'आसिफ़' ज़माना है यहाँ उसको सताना हाँ चुनौती है

हाल है दिल का जो क्या बताएँ तुझे

बहर - 212 212 212 212 हाल है दिल का जो क्या बताएँ तुझे शाम में भी फ़ना की तरह हम जिए आज रुख़्सत तिरे साथ की रात है चल पड़े आज तन्हा फ़ज़ा हम लिए दूर होने लगा ये नशा और भी चल पड़े आज ख़्वाब-ए-सहर हम लिए रास्ता हो यहाँ और साहिल वहाँ फिर चलेंगे रवा में असर हम लिए बात करने जहाँ आज 'आसिफ़' मिले हाल लेकर चले कुछ पहर हम लिए

फिर वही क़िस्सा सुनाना तो चाहिए

बहर - 2122 2122 2212 फिर वही क़िस्सा सुनाना तो चाहिए फिर वही सपना सजाना तो चाहिए यूँ मशक़्क़त इश्क़ में करनी चाहिए जाम नज़रों से पिलाना तो चाहिए अब ख़ता करने जहाँ जाना चाहिए अब पता उसका बताना तो चाहिए दिल जगाकर नींद में ख़्वाबों को सुला ये जहाँ अपना बनाना तो चाहिए दिन निकलते ही जगाते हो तुम किसे शाम को आ कर बताना तो चाहिए रोकती है गर नुमाइश थकने से तब इस अता से घर बनाना तो चाहिए आपबीती, आदतन या बीमार है दर्द कितना है बताना तो चाहिए आसमाँ से गुफ़्तुगू होती ही नहीं लड़ झगड़ने को ज़माना तो चाहिए

वफ़ा का बिल चुकाना भी नहीं आता

बहर - 1222 1222 1222 वफ़ा का बिल चुकाना भी नहीं आता ख़फ़ा से दिल लगाना भी नहीं आता दिया था घाव तूने ख़ास जिस दिल पर निशाँ उसका दिखाना भी नहीं आता मकाँ अच्छा नहीं था पर बना मेरा ज़माने को भगाना भी नहीं आता मिला कैसे तुझे हर फ़न बता मुझको मुझसे सुनना सुनाना भी नहीं आता ज़मीं पर बैठकर अच्छा हँसाते थे मगर अब ग़म उठाना भी नहीं आता बदलते आज की ख़ातिर बदलते हम सदी में सन बढ़ाना भी नहीं आता जिसे तुम क़त्ल करने रोज जाते हो हमें उसको बचाना भी नहीं आता ख़िज़ाँ के ज़ख़्म भरते भी नहीं जल्दी हमें मरहम लगाना भी नहीं आता किसे हमको बचाना है बता दो तुम दवा सबको खिलाना भी नहीं आता किनारे पे समंदर के रवाँ लहरें बिखरता दिल उठाना भी नहीं आता सदाएँ गूँजती आमान में तेरी हमें क़िस्सा सुनाना भी नहीं आता बता 'आसिफ़' हमारी शायरी का तुक लिखा मक़्ता' मिटाना भी नहीं आता

ज़िन्दगी से मुझे गिला ही नहीं

बहर – 2122 1212 22 (112) ज़िन्दगी से मुझे गिला ही नहीं रोग ऐसा लगा दवा ही नहीं क्या करूँ ज़िन्दगी का बिन तेरे साँस लेने में अब मज़ा ही नहीं दोष भँवरों पे सब लगाएंँगें फूल गुलशन में जब खिला ही नहीं कौन किसको मिले ख़ुदा जाने मेरा होकर भी तू मिला ही नहीं मेरी आँखों में एक दरिया था तेरे जाने पे वो रुका ही नहीं

सबकी रज़ा बता दे बताने वाले

बहर - 2212 1221 2222 सबकी रज़ा बता दे बताने वाले दिल मोम का बना दे बनाने वाले हम और कुछ नहीं चाहते हैं तुझसे आँखों चुना दिखा दे दिखाने वाले जो भी किया हमारे लिए तूने सब उसका निशाँ दिखा दे दिखाने वाले हसरत यही रहेगी सदा जीते जी अरमान सब जगा दे जगाने वाले हम कारवाँ बनाकर सफ़र भी करते सबकी रज़ा मिला दे मिलाने वाले छेड़े अगर तिरी शान को तो उसका नाम-ओ-निशाँ मिटा दे मिटाने वाले

जिंदा है दिल की बस्ती भरना है इसे

बहर - 221 222 222 212 जिंदा है दिल की बस्ती भरना है इसे माना के मरना है पर लड़ना है इसे

यूँ मोहब्बत में निखरता है कहाँ दीवाना

बहर - 2122 2122 2122 22 यूँ मोहब्बत में निखरता है कहाँ दीवाना शख़्स हर कोई वफ़ा पाकर बिखर जाता है

तुम आवाज़ हो मेरी इक संसार हो मेरा

बहर - 222 1222 222 1222 तुम आवाज़ हो मेरी इक संसार हो मेरा मैं भटका परिंदा हूँ तुम हंजार हो मेरा

दिल हमारा आपका जब हो गया

बहर - 2122 2122 212 दिल हमारा आपका जब हो गया कोना-कोना बाग सा तब हो गया पंछियों से दोस्ती होने लगी सोचते हैं, मन गगन कब हो गया

ख़्वाब को साथ मिलकर सजाने लगे

बहर - 212 212 212 212 ख़्वाब को साथ मिलकर सजाने लगे घर कहीं इस तरह हम बसाने लगे कर दिया है ख़फ़ा इस तरह से हमें मान हम थे गए फिर मनाने लगे

नज़्म – (मैं मुसलमान हूँ)

मैं एक फ़रमान हूँ तेरे लिए अहकाम हूँ तुझ से कैसे डरूँ तू बता मैं मुसलमान हूँ तेरी हसरत नहीं होगी पूरी तेरी तमन्ना रह जाएगी अधूरी मैं जोड़ता इसमें ईमान हूँ मैं मुसलमान हूँ वहाँ पे तू बे-ज़बान होगा बुरा तेरा अंजाम होगा चार दिन की हुकूमत पे इतना नशा मैं तो सदियों से सुल्तान हूँ मैं मुसलमान हूँ अपनी हरकत से किसी को न सता सच्चाई जा कर अपनी सबको बता बैठकर कुर्सी पे क्यों इतराता है तू मैं तो दोनों जहाँ की जान हूँ मैं मुसलमान हूँ तेरी अच्छाई जंग खाने लगी तेरी बुराई शर्माने लगी आजा लग जा तू मेरे गले मैं तेरा ईमान हूँ मैं मुसलमान हूँ तू न होगा कभी कामयाब बताएगा अगर ख़ुद को साहब आजा तू भी उसकी पनाह में जिसका मैं भी ग़ुलाम हूँ मैं मुसलमान हूँ तेरी सोच बिल्कुल छोटी है तेरे गुनाहों की पोटली मोटी है कर ले तू भी उस रब से तौबा जिसका मैं भी मेहमान हूँ मैं मुसलमान हूँ छोटों पर ज़ुल्म ढाता है तू बे-ईमानी की खाता है तू कर ले तू भी उससे मोहब्बत जिसके सदके मैं भी इंसान हूँ मैं मुसलमान हूँ