हिन्दी कविता किशन नेगी 'एकांत'
Hindi Poetry Kishan Negi Ekant

सावन की आयी है बौछार

दूधिया चांदनी रात में
बादल के नयनों से
झर रहे हैं श्वेत मोती
धरा ने समेट लिया है इनको
अपने पारदर्षी आँचल में
अमलतास की टहनियों पर
झूल रहे नन्हे मोतियों के कण
झिलमिल सितारे
उतर आये हैं जमीन पर
गुलाब की पंखुड़ियों ने
केसरिया घूंघट खोला
बरसात की रिमझिम बूंदें
हैं बेताब गिरने को
उनके गुलाबी अधरों पर
कितनी प्रफुल्लित
कितन उल्लसित हैं कलियाँ
झूम रही हैं हवा के कपोलों पर
गुनगुनाती हैं ये गीत
सावन की आयी है बौछार

आषाढ़ में कालिदास का पैगाम

खिड़की से इक विरहन
निहारती थी टुकुर-टुकुर
उमड़ते-घुमड़ते आवारा मेघों को
अचानक उसकी नज़रें रुक गयी
बादल के एक टुकड़े पर
जमीन पर उतरा है जो अभी-अभी
शोख चंचल अंदाज़ उसका
बदन से टिप-टिप गिरता पानी
किस प्रयोजन से आया है
किससे मिलने आया है
क्या अपने दिल को ढूंढने आया है
या फिर मेघदूत बनकर
बादल का वह टुकड़ा
विरहन के कानों में
उड़ गया कुछ बुदबुदाकर
विरहन का चेहरा खिल उठा
घूंघट में मल्लिका बन शर्माने लगी
कपोलों पर गुलाबी रंग की लहरें
अधरों से जैसे मधुरस टपकने लगा
शायद बादल का वह टुकड़ा
आषाढ़ में उसके दिलवर
कालिदास का पैगाम लाया था