हिंदी कविताएँ : के.एम. रेनू

Hindi Poetry : K. M. Renu



1. भेंट

लौटी थी वो बड़े दिनों के बाद इंतजार में टूट गयी थी मेरी और भी आशाएँ उम्मीद के सामने खड़ी थी लंबी दीवार जिसे तोड़कर जाना था हमें उस पार देखनी थी मुझे उसकी हर अदाएँ दूर करनी थी मन की आशकाएँ चमक उसकी दिखी मेरे आइनें में गले हम कैसे उसे लगाएँ आँखों में भर आयी थी समन्दर की धाराएँ उस दर्द मेंआयी हजारों बाधाएँ जब टूटकर मोतियों की तरह बिखर गयी तब फिर पास आयी मेरी प्रेमिकाएँ

2. पुरूषों के रंग

पुरूष पहले माँ के शब्दों में हीरा बनकर जनम लेता है उनकी खबर दूर तक इतनी तेजी से पहुँचती है जितनी तेजी से हवा भी नहीं चलती गीत गाये जाते हैं शोहर होती है हीरा वह कुछ दिन में बेटा हो जाता है उसका नाम पड़ता हैं संसार में इकलौता होता है कहते हैं वंश है मेरा घर है मेरा देश की शान है और मेरी जान है जिस बेटे को इस प्यार भरे सागर से माँ कभी निकलने नहीं देती इतना सँवारकर जब देश की शान अपनी आन पर आता है तो कितनों की जान लेते हुए चला जाता है जो अब तक अमृत बनकर पल रहा था आज जहरीला साँप बनकर डस रहा है जिस माँ की कोख से पैदा हुआ उसे पहले ही शैतान बना दिया अपना रंग हर पल बदलता रहा पहले प्रेम का पाठ पढाता रहा झूठी आँसुओं की बरसात करता रहा याद करके अपनी हाजिरी लगाता है अपने विष को छिपाकर मीठे शब्दों की जाल में फँसाता रहा फँसी मीन को वैसे ही तड़पाता रहा जब तक वह सहती रही लड़ती रही उसी जाल को अपना घर समझती रही तब तक देखता रहा जाल से निकलने के सपने भी देखी तो बस उसकी हत्या करता रहा सच कहूँ तो वह मछलियाँ नहीं सैकड़ों स्त्रियाँ थी जिन्हे मौत के मुँह में ढ़केलता रहा इंसान और बोलने के लिये थे वो देश की शान

3. चिट्ठी आयी थी

एक दिन चाँदनी रात की श्वेत चमक निहार रही थी और बैठी बैठी सोच रही थी कोई पेंसिल से पन्ने पर खींच देता एक लकीर और पास आकर कहता देखो ये है तुम्हारी तस्वीर वह हकीकत किसी जन्नत से कम नहीं होती मेरी निगाहों में प्रेम की बरसात होती और उसकी हर बूँद वो गिन लेते भर लेते किसी घड़े में और मेरी हर भंगिमाओं को काश उस लकीर में कैद करते और कहते सुनों मेरी खींची एक लकीर तुम्हारी तस्वीर के साथ ही एक राग है जिसे मैं संगीत की तरह गुनगुनाता हूँ महसूस करता हूँ लकीर के रूप में तुम्हारी हर आकृति अपने भीतर समेटता हूँ समा जाता हूँ और चाँदनी जब डूब जाती है मेरी आँखे उससे दूर जाती है तब पता चलता है जो अब तक हकीकत की दुनियाँ में तैर रही थी वह एक चिट्ठी भर थी और शब्दों में बँधकर रह गयी थी मेरी हकीकत पन्ने और स्याही के बीच सिमटकर रह गयी थी

4. मुबारक हो

तोड़ लाती वो फूल जो बचपन में आपने देखा था मगर वो फूल नहीं दर्पण में उसकी परछायी आपने देखा था सच नहीं था वह कल्पना थी आपकी आधी रात में एक सपना थी आपकी मै और मेरी अधूरी कहानी आपकी राहों में सूल बनकर चूभती रही आप दर्द उठाते रहे मैं बस लाल रंग देखती रही जो खून की बूँद नहीं दिल की आग बनकर जलती रही निगलती रही शब्दों में भरे जहर की विष हमें बीच से चिरती रही एक दिन वही विष अमृत बन गयी मेरी जिंदगी में फिर से वो कली खिल गयी जिस फूल की छाया आपने सपने में देखी थी वह आप जैसे काँच के सामने खड़ी रही दर्पण आप थे और परछायी मेरी थी मुबारक हो आज आपको जो बिन माँगे खुशी मिल गयी

5. वेदना

दीन हीन मलीन स्त्री के वेदना की गहराई के आँकड़े पर विचार किया है कभी तुमने समाज में अछूत होने के दर्जे को अपने ऊपर लगे रंगो की कालिख को स्त्री झेलती रही उसकी प्रताड़ना सदियों से जिस पर्दे के पीछे ढ़की रही उसे हटाने की कोशिश किया है कभी तुमने समाज में इज्जत के लिये तड़प रही उस बेटी को बलात्कार ही तो मिला तुम्हारे हाँथो से उसकी गर्दन पर चली तलवार से खून का बौछार ही तो निकला उस पर और कितने अत्याचार करते जाओगे बेदर्द हाँथों से स्त्रियों की गुलामी को अपनी आजादी मानकर कब तक खुद को वीर बनाओगे इस समाज से उसका हक छीनकर तुम कब तक राज करोगे बेटियों की बलि पर तुम कब तक दीप जलाओगे संवेदना मर गयी है तुम्हारी जगाने की कोशिश करो उसे कब तक जलती उसकी चिता में झूठी आँसुओ की नदी बहाओगे

6. विज्ञान और आज की बेटियाँ

तकनीकी और विज्ञान की दुनियाँ ने हमें इस कदर आगे बढ़ाया कि मेरा कल जो आया मेरे देश की बेटियाँ ही सुलाया अब तलक जिसकी रौनक से प्रकाश था छाया कल वहीं घना अंधकार लेकर आया उसका हत्यारा हमें बनाया हमने स्वार्थ के मद में अपनी हर इंसानियत खुद ही गँवाया पीढ़ियों को मैंने सबसे तोड़वाया उसकी आत्मा से नहीं अपने भीतर के जानवरों को मैंने स्वयं ही जगाया हर सड़क चौराहे पर उसका बलात्कार करवाया हबस को अपनी आधुनिकता बताया सोया हुआ हर व्यक्ति के भीतर की आग उसने ही जलाया उसके हर अंगों को एक निर्जिव वस्तु समझकर खेलता ऱह गया अपनी ताकत के बल से उसकी गर्दन घूमाता रह गया उसकी रसना पर चाकू की धार अजमाता रह गया कटकर अलग हो गयी मेरे देश की वो सुन्दर बेटियाँ जिस माँ की गोंद खाली कराया उसके आँगन की रोशनी तुमने ही बुझाया मेरे देश के भविष्य में संकट जो लाया ऐसा विज्ञान तू क्यों है आया ?

7. वक्त का पहिया

एक दिन जो रात में बदली मैं तो बस उसके रंग को समझी उस काले सफेद रंगों के बीच की हर कड़ी मेरे वक्त और जिंदगी कों यूँ ही बदल दी राहों में जिस मोड़ पर घूमती रही वक्त के पहिये से चलती रही बदलते चक्र में कामयाबी की हर मंजिल को पाने की कोशिश करती रही उसे यूँ ही स्पर्श कर पाने की चाहत ने वो सुगंध मेरे भीतर फूलों की महक बनकर समा गयी कदम कदम बढ़ती मेरी जिंदगी अपनी मंजिल पार कर गयी वक्त की घड़ी घूमते घूमते फिर से वहीं आ गयी चक्र की तिलियाँ घड़ी की सूईयाँ मिलकर पहिये की दरिया पार कर गयी

8. नशा

तुम कहते हो नशा मत करो मदिरा नशीला है उस नशे से एक दिन तुम्हारी मौत हो सकती है हम कहते हैं नशा उस हर चीज में है जो हर वक्त लाखों की जान गँवाई है और तुमने तो बस उसकी ही कमायी खायी है रकम की लालच में उसका घर तोड़ दिये अपने स्वार्थ के खातिर उसकी हत़्या कर दिये कैसी साजिश रची होगी तुमने कि तिम उसे बर्बाद कर दिये और उसी का सहारा लिये खुद आबाद हो गये खुश है वो तब भी और तुम शायद उस वक्त के दायरे को तोड़कर आज उसी से अपनी हार स्वीकार कर लिये वो मर्जी नहीं बेबसी रही होगी तुम्हारी

9. भ्रूणहत्या

एक स्त्री जिसकी कोख में पल रही कल की रोशनी चाँदनी रात सी चमकती रमणीय आँखों वाली मृगनयनी उसकी हत्या की गयी खून की धार नदी बन गयी और स्त्री की परछाईं अपशगुन बन गयी उसी पर जबरन उसकी सौत बियाह कर लायी गयी वंश की दुहाई उन मनुष्यों ने सुनायी जिनकी देह की उपज उसी स्त्री की देह से हुयी गर्त में गिरती उन दीवारों को रोक लो वरना अन्त तुम्हारे करीब आ चुका है छूने भर की देरी रह गयी है पलकों के झपकने का इंतजार मत करो वरना वो बन्द की बन्द रह जाएगी

10. अहसास

अँधेरे का छोर चाँद का डूबता चेहरा चन्द सितारों की गिनती सब कुछ तो था वहाँ खुशबू के भींगेपन ने सरोबार कर दिया था हमें तुम्हें याद हैं....? आज कौन सी तारीख है मैं कही थी तुमसे तुम्हारे जेहन में नम आँखों से मुस्कुराती दूर दूर तक उसकी बस्ती न थी मेरे लिए सब कुछ था अहसास, तनहाई, आँसू और तुम्हारी याद.. तुम्हारे लिये मैं होकर भी नहीं थी

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