हिंदी कविता हरजीत सिंह “तुकतुक” Hindi Poetry Harjeet Singh Tuktuk



चुप बे

रात के बारह बजे थे। हम गली के नुक्कड़ पर खड़े थे। चारों तरफ सन्नाटा था। हमारे हाथ में आटा था। डर के मारे, हमारी जान निकली जा रही थी। गली में रहने वाले कुत्ते की, स्पेसीफिकेशन याद आ रही थी। गली में मिल जाये, नुक्कड़ तक दौड़ाता था। कभी कभी तो, बोटी भी नोच खाता था। हमनें गली में झांक कर, गौर से गली का मुआयना किया। फिर सावधानी पूर्वक, गली में प्रवेश किया। आधे रास्ते में पंहुच कर, हमें वो महाकाल नज़र आया। हमें देखते ही, ज़ोर से गुर्राया। हम जहां खड़े थे वहीं थम गये । हमारे पांचों तंत्र एक साथ जम गये। हमारी हालत देख कर वो हौले से मुस्कराया। फिर हमारे पास तक आया । बोला अबे यार क्या करता है। आदमी होकर कुत्ते से डरता है। जा निकल जा नहीं काटूंगा। सच्ची बोलता हूं पैर भी नहीं चाटूंगा। हमने कहा, कुत्ता जी, आप तो शक्ल से ही जैन्टलमैन नज़र आते हैं। लोग बेकार में आपके बारे में उल्टी सीधी उड़ाते हैं। और आपका नेचर तो इतना आला है। वो बोला, चुप बे ! इलेक्शन आने वाला है। 

तिरंगा

सात साल का, छोटा बच्चा, बिना शर्ट के, फटी पैंट में, ज़ोर ज़ोर से, चीख चीख के, बेच रहा था, एक तिरंगा। मुझ से बोला, ले लो बाबू, इस से सस्ता, नहीं मिलेगा, कहीं मिलेगा, सच कहता हूँ, एक रुपए में, एक तिरंगा। रफ़ कॉपी के ईक पन्ने पर, हरा रंग था एक तरफ़। और एक तरफ़, केसरिया था । उन दोनो के बीच में बहता, श्वेत रंग का दरिया था। चक्र था मानो नियत कर रहा, दूरी उनके बीच की । इक डंडी से जोड़ के उनको, तस्वीर देश की खींच दी। पत्नी बोली, मिस्टर ढ़पोरशंख, वो सब तो ठीक है। पर झंडा ख़रीदा या नहीं। हमने कहा, देवी बात यह नहीं है। कि हमने झंडा ख़रीदा या नहीं। बात यह है, कि यह बात, ग़लत है या सही। हम अपने भविष्य की ट्रेनिंग, ठीक से नहीं कर पा रहे हैं। हम बचपन से ही उसे, तिरंगा बेचना सिखा रहे हैं। 

कोविड

हमारा तो निकल गया रोना। जब पता चला कि पड़ोसी को हो गया है कोरोना। रात के अंधेरे में, सुबह और सवेरे में। हम भी आ गए, शक के घेरे में। हमने सबको यक़ीन दिलाया। कि हम हैं सोबर और सुशील। फिर भी करम जलों ने। कर दिया हमारा घर सील। हम इस बात से थे दुखी। तभी पत्नी पास आके रुकी। बोली घर में खतम हो गया हैं राशन। हमने कहा देवी बंद करो यह भाषण। पत्नी को नहीं पसंद आया हमारा टोन। उठा के तोड़ दिया हमारा मोबाइल फ़ोन। ग़ुस्से में उसका चेहरा हो गया लाल पीला। पता नहीं, ग़रीबी में ही क्यों होता है आटा गीला। अब हमें पत्नी के हुक्म का पालन करना था। घर के लिए राशन का इंतज़ाम करना था। हमने अपनी इज्जत खूँटी पे टांगी। खिड़की से चिल्ला चिल्ला के सबसे मदद माँगी। कोई नहीं आया। जो भी कहते थे कि हम भगवान के दूत हैं। बिना देखे ऐसे निकल गए जैसे हम कोई भूत हैं। आख़िर एक बूढ़ा चौक़ीदार आया। उसने घर के बाहर एक बोर्ड लगाया। बोर्ड पे लिखा था, साहब वैसे तो जेंटल हैं। लॉकडाउन में हो गए मेंटल हैं। इफ़ यू हीयर शोर,प्लीज़ इग्नोर। हमने कहा, भैया, आ रहा है मज़ा। दूसरे के कर्मों की हमको दे के सजा। वो बोला बाबूजी, लाखों रोज़गार छोड़ कर चले गए घर। हज़ारों बिना इलाज के कर रहे हैं suffer। सैकड़ों रोज़ करते हैं भूख से लड़ाई। वो सब भी इसी बात की दे रहे हैं दुहाई। आख़िर किसकी गलती की सजा हमने है पाई। बुरा मत मानिएगा, बात सच्ची है, कड़वी लग सकती है। पर किसी की गलती की सजा किसी को भी मिल सकती है। वैसे आपकी बताने आया था विद स्माइल। आपके पड़ोसी की बदल गयी थी फ़ाइल। हमने भगवान को लाख लाख धन्यवाद दिया। और कविता का अंत कुछ इस तरह से किया। पड़ोसी तो लग के आ गया हॉस्पिटल की लाइन में। हम अभी भी चल रहे हैं क्वॉरंटाइन में।

दास बाबू

हमारे एक मित्र थे बहुत ख़ास। नाम था राम इक़बाल दास। यूँ तो पढ़े लिखे थे, MA पास थे, स्कूल में पढ़ाते थे। परंतु अक्सर ही हमें, विचित्र से हालत में नज़र आते थे। एक दिन तो बिना वजह ऐंठ गए। जा के भूख हड़ताल पर बैठ गए। कहने लगे इराक़ में रहने वाली बकरियों को बचाएँ। कोई अमरीकियों से कहिए, कि इराक़ पर बम न बरसाएँ। इस केस में हो गयी थी जेल। हम ही कर के लाए थे उनकी बेल। जानवरों से करते थे इतना प्यार, कि मुसीबत में फँसते थे हर बार। हाल ही में, कुत्ते का पिल्ला गोद में उठाए भौंक रहे थे। हर आने जाने वाले का रास्ता रोक रहे थे। एक अजनबी से कहने लगे, ख़ुदा का ख़ौफ़ खाओ। भगवान के लिए, इसे अपने घर ले जाओ। वो बोला, मिस्टर यह क्या सिलसिला है। दास बाबू बोले, यह कुत्ते का बच्चा हमें सड़क पे मिला है। वो बोला, ले तो जाऊँगा। पर यह तो बताओ, इसे खाना कहाँ से खिलाऊँगा। महंगाई ने ऐसे तोड़ी है कमर। बड़ी मुश्किल से चलता है घर। मित्र व्यर्थ तुम्हारी यह क्रीड़ा है। यहाँ नहीं समझता कोई तुम्हारी पीड़ा है। अगर लोग इतने ही संवेदनशील होते। तो कुत्ते छोड़ो, इंसान के बच्चे फुटपाथ पे नहीं सोते। तभी कुत्ते की माँ पिक्चर में आई। उसने दास बाबू से नज़र मिलाई। इसके बाद का मुश्किल देना है डाटा। कि मैडम ने सर को कहाँ कहाँ काटा। पर दास बाबू ना सुधरे हैं ना सुधरेंगे। एक दिन कुछ तो अच्छा कर गुजरेंगे 

दास बाबू का लव लेटर

सूरज दिन में चमक रहा है। तू कहती है नाइट। सही ग़लत मैं किसको पड़ना। यू आर ऑल्वेज़ राइट। तेरे स्विमिंग पूल से नैना। हमको बस इनमे ही रहना। डूब ना जाएँ, इसीलिए क्या, कम रखी है हाइट। सही ग़लत मैं किसको पड़ना। यू आर ऑल्वेज़ राइट। चिड़िया जितना पेट तेरा। मोबाइल से कम वेट तेरा। इसी लिए क्या कर रखी है, फ़ास्ट फ़ूड से फ़ाइट। सही ग़लत मैं किसको पड़ना। यू आर ऑल्वेज़ राइट। 

भड़ाम रस

राक़ेट से बोला यह बम, आग लगते ही हो जाते हो सरगम। एक बार ट्राई करो, लीग से हटो। कभी तो मर्दों की तरह, ज़ोर से फटो। राक़ेट बोला यह तेरे पिछले कर्मों की सजा है। कि आग लगाते ही भाड़ से फट जाता है। बेटा फटने से कहीं ज़्यादा मज़ा उड़ने में आता है। इस डिस्कशन ने पकड़ा ज़ोर ढेर सारे पटाखे इकट्ठे हो गए चहुं ओर। बम बोला मेरी आवाज़ से जग हिलता है। राक़ेट बोला मेरी आभा से नभ खिलता है। इतने में ही वहाँ एक फुलझड़ी आई। उसने दोनो की पूँछ में आग लगाई। दो ही पल में, सारा डिस्कशन सिमट गया। एक बेचारा आसमान में उड़ गया। दूसरा वहीं पड़ा पड़ा फट गया। कविता का सार फुलझड़ियों से बच के रहना। यह ऐन वक्त पे दग़ा देती हैं। कभी तो बम में लगा देती हैं आग। कभी राक़ेट सा हवा में उड़ा देती हैं। 

श्रृंगार रस

एक़ बार हम मन्च पर खडे कविता सुना रहे थे। श्रोता श्रृंगार रस में डूबे जा रहे थे। हमारे कंठ से कविता कामिनी बही जा रही थी। परन्तु हमारी नज़र पहली पंक्ति से आगे नहीं बढ़ पा रही थी। क्योंकि पहली पंक्ति में बैठी एक बाला बार बार हमें देख कर मुस्करा रही थी। और लगातार अपनी सैंडल सहला रही थी। जब काफी देर तक यह प्रक्रिया नहीं रूकने पाई। तब हमारी अन्तरात्मा ज़ोर से चिल्लाई। हमने कहा हे देवी, क्यों सेन्टर की पालिसी अपना रही हो। ऊपर से मुस्करा रही हो । नीचे से चप्पल दिखा रही हो। अरे अगर खुन्दक आ रही है तो खुन्दक उतारो। चप्पल उतारो और दे मारो। वो बोली कविवर आप व्यर्थ ही घबरा रहे हैं। शायद मेरा व्यवहार समझ नहीं पा रहे हैं। आप के श्रृंगार रस में गोते लगा रही हूं। इस लिए बार बार मुस्करा रही हूं। और मेरे पति कहीं गोते ना लगाने लगें। इस लिए यह सैंडल सहला रही हूं। 

खून नहीं था

खून नहीं था। बेच दिया था सारा। भूख लगी थी। खून नहीं था। पानी जैसा कुछ था। खौलता न था। खून नहीं था। अपना वह तभी। काम आया। खून नहीं था। किसी जगह पर। सौ मरे तो थे। खून नहीं था। खटमल हैरान थे। नेताओं में भी। खून नहीं था। उतरा किसी आंख। गैर थी न वो। खून नहीं था। इबादत थी मेरी। बकरीद थी।

पानी कम है

पानी कम है। चलो फूलों से खेलें। होली मिल के। पानी कम है। चाय में उनकी भी। नेता जी हैं न। पानी कम है। कुओं, नदी, तालों में। पेड़ काटे होंगे। पानी कम है। पर दिल बड़ा है। तुम भी पियो। पानी कम है। बाढ नहीं है यह। फ़र्ज़ी न्यूज़ है। पानी कम है। रात अभी बाक़ी है। नीट पीते हैं। पानी कम है। आग नहीं बुझेगी। लगाई क्यों थी?

सावन

लो फिर आ गया सावन। अब छाता ख़रीदना पड़ेगा। पर छाता किस काम आएगा। केवल सर को भीगने से बचाएगा। पत्नी बोली, जेब से थोड़े से पैसे और निकालो। इस बार रेनकोट ख़रीद ही डालो। हमने कहा, देवी, रेनकोट से नहीं हल होगी परेशानी। समझो, सावन में, नालों से सड़कों पर उतर आता है पानी। शहर की सारी गंदगी, आँखों के सामने नज़र आती है। आके सीधे, हमारे पैरों से लिपट जाती है। मानो कह रही हो। प्रगति के नाम पर, पर्यावरण की जान मत निकालो। अपने काम करने के, तरीक़ों को बदल डालो। सतत विकास नहीं करोगे। तो कोई काग़ज़ की कश्ती नहीं चलाएगा। सावन के नाम पे, सिर्फ़ कचरा याद आएगा। पत्नी बोली, रेनकोट नहीं लाना, तो मत लाओ। पर सावन को अंतर्रष्ट्रीय मुद्दा मत बनाओ। ख़रीद लो बस एक बढ़िया सी गाड़ी। फिर गंदगी नहीं लिपटेगी मेरे अनाड़ी। हमने कहा, क्या कहने का कर रही हो प्रयास। गाड़ी से प्रदूषण बढ़ेगा, तो कैसे होगा सतत विकास। पत्नी बोली, साइकिल ख़रीदने को बोल रही हूँ। भोले भंडारी। पच्चीस साल से, पत्नी हूँ तुम्हारी। तुमसे ज़्यादा पर्यावरण की चिंता करती हूँ। सूखा और गीला कचरा अलग पैक करती हूँ। सारी दुनिया को सुधारने मत जाओ। तुम अगर सिर्फ़ खुद सुधर जाओ। पर्यावरण, खुद ब खुद ठीक हो जाएगा। सावन भी, वही पुरानी मिट्टी की ख़ुशबू याद दिलाएगा। 

पालक

हमारे ऑफ़िस का, सबसे तेज वाहन चालक। पिज़्ज़ा पास्ता खाने वाला बालक। हमने देखा, घर से डिब्बा ला रहा है। पिछले पाँच दिन से पालक खा रहा है। हमने पूछा, क्या हुआ मेरे क्रिस गेल। क्यों रवि शास्त्री की तरह रहा है खेल। वो बोला, हो गयी है शादी। पर आप इतने अचरज में क्यों भा जी। आपको भी तो बुलाया था। और सारा रायता, आप ही ने तो फैलाया था। हमने कहा, बालक, तेरा तात्पर्य, हमें समझ नहीं आया। तब उसने हमें समझाया। वो बोला, आपने ही, शुरू किया था बवाल। जब मेरी बीवी को कहा था। कि बालक का रखना ख़याल। वो रख रही है। इतना तो मुझे मेरी माँ ने नहीं सताया। मुँह सूंघ कर चेक करती है, कि पिज़्ज़ा तो नहीं खाया। हमने कहा, निरीह बालक, पर रोज़ पालक। वो बोला, पिछले हफ़्ते उसने कहा था। थोड़ा धनिया ले आना। मैं धनिये की, ले गया पाँच पत्ती। उसने लगा दी मेरी बत्ती। कहने लगी, धिक्कार है तुम्हारी सोच पर। बेकार तुम्हारी जवानी है। धनिये से, सर्जिकल स्ट्राइक नहीं करनी है। चटनी बनानी है। मैंने डिसाइड किया। कि गलती नहीं दोहराऊँगा। थोड़ा बोलेगी तो भी ज़्यादा लाऊँगा। पिछले हफ़्ते, उसने मंगाई थी पालक। पाँच किलो ले आया आपका बालक। बस उसी जुर्म की सजा पा रहा है। पिछले पाँच दिन से, सुबह शाम पालक खा रहा है। 

स्मार्ट लुक

क्रोध से धरती फटी। काँप उठी हर चीज़। जब हमने अलमारी खोली। ग़ायब थी हमारी फ़ेवरेट क़मीज़। यहाँ देखा, वहाँ देखा। छान मारा घर का हर एक कोना। और तो और, सोशल मीडिया पर ट्रेंड करना लगा, हमारी क़मीज़ का खोना। पत्नी बोली, क्यों इस बात को इतना उछाल रहे हो। बिना मतलब आग में घी डाल रहे हो। हमने कहा, ये हमारे आत्म सम्मान पर आघात है। ये राष्ट्रीय सुरक्षा की बात है। हम क़सम खाते हैं कि हालात सुधारेंगे। घुसपैठियों को घर में घुस के मारेंगे। हमारा बी॰पी॰ हो गया हाई। पत्नी ने सर पे बर्फ़ लगाई। पत्नी बोली, ऐसी बातें मत करो अवोभूत। तुम्हारी शर्ट पहन के गया है, तुम्हारा अपना सपूत। ग़ुस्से का करो द एंड। जब बाप का जूता, बेटे को आने लगे, तो बेटा बन जाता है फ़्रेंड। हमने कहा, देवी, ग़ुस्सा नहीं है। हो रही है चिंता। हमें अपने गिने चुने कपड़ों का स्टॉक, दिख रहा है छिनता। पत्नी बोली, ओ मेरी चिंता की दुकान। बिना मतलब के हो रहे हो हैरान। डोंट हिट द बॉल, वेन बॉल इज वाइड। ऑल्वेज़ लुक ऐट, द पॉज़िटिव साइड। तुम्हारा शर्ट उसको आ रहा है। तो उसका शर्ट तुमको भी आयेगा। आज तुम्हारे कपड़ों पे हाथ मारा है। कल वो तुमसे अपने कपड़े बचाएगा। हमने अपनी पत्नी का, आइडिया किया लाइक। और बेटे के कपड़ों पे, कर दी सर्जिकल स्ट्राइक। हमारा बेटा अब तक, इस शॉक से उबर नहीं पाया है। कि उसके बाप ने, उसके कपड़ों पे क़ब्ज़ा जमाया है। और यही कारण है, कि हम लग रहे स्मार्ट बड़े हैं। क्योंकि हम आज, बेटे के कपड़े पहन के खड़े हैं।