हिन्दी कविताएँ गुरमीत कड़ियालवी
Hindi Poetry : Gurmeet Karyalvi


पुस्तक बनूंगा मैं

तू समुद्र क्यों नहीं हो जाता? लहर-लहर होता नदियों को कलावे मैं भरता मुझे खारापन अच्छा नहीं लगता न जिंदगी में न रिश्तो में आकाश क्यों नहीं बन जाता? विशाल-असीम- अनंत पहुंच से पार मैं कहता अच्छी नहीं होती सवारी करनी अंह के घोड़े की ना अर्थहीन सपनों की तो पताल जैसे हो जाओ गहरे -गहरे मीलों में फैले मैं कहता पताल में तो गिठ मुठ के लोग रहते झुकी गर्दनों वाले क्या बनोगे? तुम्हारे मस्तिष्क पर प्रश्न चिह्न उखरा पुस्तक बनूंगा पढ़ोगी तो मचल पड़ेंगे तुम्हारे भीतर के जज़्बात हज़ारों- हज़ार तारे टिमटिमाएंगे तुम्हारी निद्रालु आंखों में लेटे-लेटे पढ़ोगी नींद के आगोश में आओगी तो पुस्तक फैल जाएगी तुम्हारे सारे वजूद पर कविता के अक्षरों जैसे सैकड़ों प्रशन तुम्हारे भीतर हलचल मचाएंगे तुम शब्दों से बातें करोगी भला क्या: धरती सब की मां होती है? हवा सबके लिए एक समान चलती है? सूर्य महलों -झुग्गियों में एक जैसा चमकता है? गेहूं सभी के लिए रोटी बनती है ? ऐसे सैकड़ों प्रश्न तुम्हारे मन मस्तिष्क का द्वार खटखटा एंगे इसीलिए कहता हूं पुस्तक बनूंगा पढ़ोगी तो मचल पड़ेंगे भीतर के जज़्बात

मेरे अंदर दिल है

मेरी दोस्त तुम कहती हो मैं बहुत छोटी- छोटी बातों पर मुस्कुरा देता हूँ मसलन: एक टहनी से दूसरी टहनी पर कूदती गिलहरी को देख एक फूल से दूसरे फूल पर उड़ती तितली को देख किसी प्रेमिल चिड़िया जोड़े को चोंच लड़ाते देख बया पंछी को घोंसला बनाते हुए कोयल की कू-कू को सुनते हुए मुर्गाबी को पानी पर तैरते हुए देख तुम कहती हो मेरी खुशी के कारण बहुत छोटे हैं मसलन: तुम खुश हो सकते हो झूमते पेड़ों को देख चाँद को बादलों के साथ आँख मिचौली खेलते देख सूरज की किरणों को ओंस की बूंदें चूमते देख रिमझिम-रिमझिम बारिश को बरसते देख आकाश में सतरंगी झूला देख तुम कहती हो मैं बहुत छोटी बातों पर हँसता हूँ मसलन: किसी छोटी बच्ची की कविता सुनते हुए दादी -नानी बनकर लाठी के सहारे चलते हुए या किसी अध्यापक की नकल उतारते हुए कागज़ पर चीच-बलोले खींचते हुए मम्मी पापा की मूर्त बनाते हुए बच्ची की ओर से आसमान में लटका चाँद खिलौना लेने की जिद्द करते हुए बारिश के पानी में कागज़ की किश्ती ठेल किलकारियां मारते बच्चों को देख दोस्त तुम्हारा कहना है मेरी खुशियां बहुत छोटी हैं मसलन: मैं कविता पढ़कर खुश हो सकता हूँ किसी चित्र को घण्टों भर निहारते हुए किसी महीन खूबसूरती को देख कुदरत का शुक्रिया करता हूँ संगीत सुनते हुए विस्माद से भर जाता हूँ मैं कहता हूँ तुम जिनको छोटी बातें समझती हो मैं उन में से बड़े अर्थ खोजता हूँ मेरी दोस्त ज़िन्दगी जीने केलिए आदमी के अंदर धड़कता दिल है (अनुवाद : सुरजीत सिरड़ी)

बा-मुलाहिज़ा-होशियार

जंगल की आग शहर तक आ गई है रोशनदानों से आग भीतर आ रही दरवाज़े खिड़कियाँ बेबस हो गए हैं ज़हरीली हवा साँस लेना दूभर कर रही है वक़्त ने शब्दों के अर्थ ही बदल दिए हैं घोड़ा अब सवार को कभी भी मार सकता है बाढ़ कभी भी खेत को खा सकती है नदी तुम्हें पी सकती है रास्ते निगल सकते हैं किस मौसम का इंतज़ार है बारिश तेज़ाब बन गई है बर्फ़ क़ब्रगाह हो रही है आस्मानी पेंग फंदे में बदली है गर्म लू बदन ही नहीं सपने भी जला रही है अब प्रमाणपत्रों का युग है तुम्हें जीवित होने का प्रमाण देना होगा थर्मामीटर देश भक्ति चैक करेंगे ख़ून शुद्ध है या अशुद्ध लैबोरेटरी परखेंगीं कुछ भी ग़ैरक़ानूनी नहीं होना सब क़ानूनी मंदिर की स्वीकृति से ही होगा रंगमंच तैयार है कथा पटकथा और संवाद लिखे जा चुके हैं वर्दियों-बावर्दियों को भूमिकाएँ बाँटी जा चुकी हैं नायक खलनायक तय कर दिए गए हैं मर्सियों का चुनाव हो गया है निर्देशक ओट में खड़ा हुआ रूमाल हिला रहा है बा-मुलाहिज़ा-होशियार रंगमंच पर पेश हो रहे आग के दृश्य आप का घर जला सकते हैं ।

दुआ करना

दुआ करना... मुहब्बत न मिले मुहब्बत डरपोक बना देती है। नफ़रत कहीं अच्छी है अन्दर आग दौड़ाती रहती है सुलगने लगता हूं मेरे शब्दों में रोष भरता है। दुआ करना... जीत न मिले मुझे रुक जाता हूं निस्तेज पड़ जाते हैं अंग। हार का स्वाद ही कुछ और है कुलांचें भरने लगती है बार बार लड़ने की इच्छा परख लेता हूं स्वयं को। मंजिल ...। गंवा देती है सांझ रास्तों से। भटकन में है आनन्द ही आनन्द मिल जाते हैं नए रास्ते मिल जाते हैं नए राही मन करता है चलते जाने को। दुआ करना... कि कबूल हो दुआ आपकी। (हिंदी अनुवाद : गुरमान सैनी)

चुप की चीख

गर तुम्हें हमारा बोलना खतरनाक लगता है तो जी भरकर सुना दे हमारे बोलों को देशद्रोही होने की सजा मगर ये तो उतर ही जाएंगे लोगों के सीने में। गर तुम्हें बहुत ही डर है मेरे शब्दों से तो बेशक.... चौराहे पर लटका दें मगर ये मिटेंगे नहीं ये और गहरे खुद जाएंगे वक्त के पन्नों पर। गर तुम्हें पसंद नहीं, मेरी पसंद के रंग तो बेशक.... झुलसा दें सभी रंगों के फूल और कलियां मगर.... महक तो बिखर ही जाएगी दीवारों की हदों के पार। गर तुम्हें अच्छे नहीं लगते मेरी उंगलियों से निकले स्वर तो खुशी खुशी जलावतन कर दे सभी साजों को मगर ये तो फिर भी गूंज पड़ेंगे हवा की लहरियों के संग। गर तुम्हें मेरी खामोशी डराती है तो तुम्हारा डर वाजिब है तुम्हें जरूर डरना चाहिए क्योंकि... चीख मारने से पहले भींचना भी तो पड़ता है होंठों को। (हिन्दी अनुवाद : गुरमान सैनी)