Hindi Poetry : Anushree Srivastava

हिंदी कविता : अनुश्री श्रीवास्तव


मर्यादा

अर्थार्थ गरिमा, शालीनता और शिष्टता या सीमा नियंत्रण और संचालन तीन अक्षर का शब्द, आभास नहीं कब, किसने, कहाँ, कितनी मर्तबा परिभाषित किया क्यूँ बदलता लिंग, समाज और आर्थिक व्यवस्था से कब एक महिला विवाह, गहने, पाक कला के परे व्यवसाय, संपत्ति और आजीविका का चयन करते मर्यादा लांघ जाती शायद वैसे ही जैसे पुरुष स्त्री के सपनों, घरेलू जिम्मेदारी और नारीवादी विचारों को अपनाते हुए कब तरूण मर्यादा विहीन हो जाता सपनों को साकार करते, रूढ़िवादी जंजीरों को तोड़ते और दायरों को बढ़ाते हुए शायद वैसे ही जैसे निम्न वर्ग आर्थिक तंगी की बेड़िया तोड़ते, असफलता की ताड़ना झेलते और सपनों की सीमा भेदते तीन अक्षर का शब्द, मालुम नहीं कब गैरों को हक मिला मर्यादा और मर्यादा विहीन का वियोजन करने का पाखंड, द्वेष और अहंकार का अनुचित मेल करता सपनों, चरित्र और आत्मविश्वास का क्षणभंगुर विनाश नवीन विचार और समाज अपनी मर्यादा स्वयं रचेगा और दूसरों को भी अवगत भी करायेगा ॥

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