हिन्दी ग़ज़लें : अनुपिन्द्र सिंह अनूप
Hindi Ghazals : Anupinder Singh Anup


जब वफ़ा के खेत बंजर हो गये

जब वफ़ा के खेत बंजर हो गये मोम जैसे लोग पत्थर हो गये । जब बुझा पाये न मेरी प्यास को शर्म से पानी समन्दर हो गये । आग जैसी धूप में जो चल पड़े वो निखर कर और सुन्दर हो गये । कीमती दौलत महक जब खो गई मोतियों से फूल कंकर हो गये । रोज आपस में लड़ायें बिल्लियां अब सियाने खूब बन्दर हो गये । अब ज़रूरत ही नहीं विषपान की नील मलकर लोग शंकर हो गये ।

जब मिला साथी पुराना धूप में

जब मिला साथी पुराना धूप में हो गया मौसम सुहाना धूप में । खून बन जाता पसीना दोस्तो है कठिन रोटी कमाना धूप में । आज फिर बरसी गगन से आग है आज फिर हमको नहाना धूप में । छाँव की आदत जिसे है पड़ चुकी वो न चाहे लौट जाना धूप में । मात कर देना सितारों की चमक रेत का भी चमचमाना धूप में । सीखिये इक ये हुनर भी दोस्तो फूल बनके मुस्कुराना धूप में ।

कुछ नहीं कीमत सरों की

कुछ नहीं कीमत सरों की आपकी सरकार में सरकटे ही सरकटे आते नज़र दरबार में । कुछ नया होता नहीं है अब हमारे देश में रोज़ ख़बरें तुम नई क्यों ढूँढते अख़बार में । धार अपनी से करे ज़ख़्मी महक जो फूल की ज़ोर इतना हो नहीं सकता किसी तलवार में । बन गई है जो दिलों में अब हमारे दोस्तो छेद करना है ज़रूरी अब उसी दीवार में । चाहते हो तुम अगर नज़दीक आयें तितलियां फूल जैसी कुछ महक पैदा करो किरदार में । फिर दवा भी हार अपनी मान लेगी एक दिन ठीक होने की अगर चाहत नहीं बीमार में । क्या नहीं तुम जानते , बिकते यहाँ बस कहकहे आँसुओं को बेचने क्यों आ गए बाज़ार में ।

ग़ज़ल अपनी तुमको सुनाने से पहले

ग़ज़ल अपनी तुमको सुनाने से पहले इजाज़त तो ले लूँ ज़माने से पहले । चलो ग़म के सारे लबादे उतारें खुशी की नदी में नहाने से पहले । बहुत याद आती है हमको वो दौलत लुटाई जो हमने कमाने से पहले । हुनर तैरने का नहीं उसने सीखा किसी डूबते को बचाने से पहले । उसे मैं मनाऊँ तो कैसे मनाऊँ जो खुद मान जाये मनाने से पहले । मुझे बोझ अपना घटाना पड़ेगा सनम तेरे नखरे उठाने से पहले । हवाओं का रुख जानना है ज़रूरी पतंगें गगन में उड़ाने से पहले । चलो खुद भी सीखें सबक कोई यारो सबक दूसरों को सिखाने से पहले ।

हो गया ये हादसा कब किस तरह

हो गया ये हादसा कब किस तरह लोग पत्थर हो गए सब किस तरह सच कहेंगे आप ये उम्मीद थी आपने भी सी लिए लब किस तरह साँस की डोरी से बांधी ख्वाइशें आप करते हो ये करतब किस तरह दिन तो रह पाता नहीं सूरज बिना खुश रहे सूरज बिना शब किस तरह बात मेरी में न कोई पेच था फिर गलत समझे वो मतलब किस तरह

सांवला आज कल गुलाबी है

सांवला आज कल गुलाबी है वक़्त में बस यही ख़राबी है ज़िन्दगी में तुझे पढूं कैसे इल्म हासिल मुझे किताबी है रोज़ ही लड़ता है अंधेरों से सोच जुगनू की इंकलाबी है रात के बाद दिन जो आया तो यूँ लगा आया ख़त जवाबी है टुकड़े टुकड़े हुआ मगर फिर भी चाल दिल की रही नवाबी है उसको सारे ख़राब लगते हैं बस यही उसमें इक ख़राबी है

सीधा सादा सच्चा बनना

सीधा सादा सच्चा बनना बहुत कठिन है अच्छा बनना मुश्किल है करना मज़दूरी आसां चोर उचक्का बनना कच्चे रिश्ते दुख देते हैं यार बनो तो पक्का बनना रिश्ते अगर निभाने हैं तो कानों का मत कच्चा बनना माँ की गोदी में जा बैठा जब भी चाहा बच्चा बनना मिट्टी को आकार जो देना फिर कुम्हार का चक्का बनना

टपके घर की छत अगर बरसात में

टपके घर की छत अगर बरसात में फिर कोई जाए किधर बरसात में दे उधारा छाता अपनी याद का तय हमें करना सफर बरसात में सर छिपाते हैं जो अम्बर के तले उनको तो लगता है डर बरसात में आ गए हैं लेके नावें काग़ज़ी हुक्मरां फिर से इधर बरसात में पत्थरों के दिल भी नम हो जाएंगे फिर उड़ी है ये ख़बर बरसात में

इक लरज़ता नीर था

इक लरज़ता नीर था वो मर के पत्थर हो गया दूसरा इस हादसे के डर से पत्थर हो गया तीसरा इस हादसे को चाहता करना बयां वो किसी पत्थर की घूरन देख पत्थर हो गया एक शायर बच गया था संवेदना से लरज़ता इतने पत्थर वो तो गिनती करके पत्थर हो गया सुरजीत पातर अनुवाद : अनुपिंदर सिंह अनूप