हिन्दी कविताएँ : अनुभूति गुप्ता

Hindi Poetry : Anubhuti Gupta


ज़िद्दी लड़की

यह सिर्फ़ कहा सुना नहीं अमृता के प्रेम सा पवित्र है जहां साहिर का एक दौर इंतजार का और : इमरोज़ के भीतर का गहराता सुर्ख़ इश्क़ हो ज़िद्दी लड़की, ख़ुद में ख़ामोश, बेसब्र और एक तिहाई बेबाक है ज़िद्दी लड़की होना कितना अच्छा है न जो भरता है निगाह को दरिया सा और उगता है मन पर तिश्नगी लिए हुए सख़्त निगाह पर चढ़ी धूप को कोई पढ़ नहीं पाया कब तन्हा लौटी और गुफ़ा में सुराख में ठहर सी गई सांसें ढल गई तो भी भीतर एक शोर नहीं, गहराती ख़ामोशी है ज़िद्दी लड़की, और : मौलिक संवेदनाओं में तुम हो।

तुम मुझसे मिलते हो हर रोज़

तुम मुझसे मिलते हो हर रोज़ भोर की लालिमा में चिड़ियों की चहचहाहट से दुपहरी की धूप की सुनहरी किरण से सांझ की केसरी ओढ़नी के तन से और रात्रि में चांदनी के कोमल मन से तुमसे हर रोज़ मिलना सुखद है क्योंकि तुम मेरी छाती पर उगते हो, सबसे आधुनिक पुष्प से तुमसे मिलते रहना है जैसे बगीचे में मिलते खिलते हैं कई अनगिनत फूल एक दूजे से, बरस और बरस मुझे तुमसे मिलना है और दरख़्त बनना है जहां हो, डालियों का इठलाना पत्तों का लहराना वहां जहां भरी हो, सांझ की मांग सिंदूरी।

मुझे लाल इश्क़ लोकप्रिय लगा

मुझे लाल इश्क़ लोकप्रिय लगा देह से विपरीत है विचारणीय लगा इश्क़ खूबसूरत है व्यवहारिक है दिलचस्प है आध्यात्मिक है और कभी कभार प्राकृतिक भी तुम इश्क़ की अनुभूतियों से बच नहीं सकते क्योंकि दरख़्त पर पुष्प से हो सजते इसलिए : मुझे लाल इश्क़ लोकप्रिय लगा जहां हथेली पर बोया हुआ घर था, इच्छाओं का जश्न तुम्हारे इश्क़ के सभी रंग अनूठे हैं गले लगने से चुम्बन तक का सफ़र लोकप्रिय है उज्ज्वलता से ओत प्रोत सभी इश्क़ की महज़ बातें नहीं बैचेनी और उलझन की रातें हैं मुझे इश्क़ सबसे लोकप्रिय शब्द लगा मन भावुक हुआ जब तुमको इश्क़ कहा।

तुम्हारे इश्क़ का रंग स्याह है

तुम्हारे इश्क़ का रंग स्याह है जहां रात्रि लाती हैं धवल चांदनी का तन सितारों का उज्ज्वल सा मन लताओं का मदमस्त इठलाना चिड़ियों का चहचहाना पत्तों का झूमना नीर का धरा को चूमना बादलों का बरसना पंछियों का उड़ना हवाओं की सांय सांय तुम्हारे इश्क़ के हर अक्षर का अर्थ गुलाबी है जहां मिलते है दो अलग मन और होते हैं एक तुम इश्क़ की हर सरहद को जानते हो कहां खोता है मन कहां ढलता है तन फिर भी इश्क़ में डूबे हो एक सीप की तरह और बहते हो निर्झर कल कल।

इश्क़ की कितनी कहानियाँ

इश्क़ की कितनी कहानियाँ उजली हैं जहां दिनकर का इंतजार है जहां हर पहर त्योहार है जहां मिलन उपहार है जहां बिछड़न में आभार है इश्क़ की तमाम परिभाषाएं गर्मजोशी से मिलती हैं इश्क़ फिज़ा में घुला करती है इश्क़ पाना आसान था मगर निभाना ठूठ सा मुश्किल प्रेमी/प्रेमिका के सोहबत की तासीर ताजातरीन है जहां आग के साथ आब का खेल है इश्क़ के लौटने का वक्त है जहां उमंगों का जश्न है रेशमी ऊन से बुने जाते हैं सिरहाने कुछ ख़्वाब कई चिराग़ अरमानों के जलते हैं लिए कुछ तलाश इश्क़ : भला इश्क़ कहा जब तक अधूरा नहीं जो पूरा हुआ, इश्क़ का अंदाज़ नहीं।

तुम सागर की

तुम सागर की अदभुत गहराई हो, मैं खेत में जैसे सरसों लहराई हो, तुम मेघों के जमघट से हाथ लहराते हो, मुझसे धवल चांदनी से मिलने आते हो, तुम भोर के सूरज और प्रकाश हो, मेरे लिए तुम मेरा स्वतंत्र आकाश हो, तुम बसंत का सावन हो, मन को लगते मनभावन हो, तुम सुरमई अंखियों का सपना हो, मेरे लिए स्नेहिल कोई अपना हो, तुम अनुभूति के भूति हो, ईश्वर की मनोरम स्तुति हो...!

प्रेम में धारणाएं

प्रेम में धारणाएं तोड़ना आसान नहीं रहा जितना प्रेम बढ़ा, उतना आकर्षण कम हुआ तुमसे प्रेम में, सौ बार पड़ना था तुमसे दैहिक आकर्षण से ऊपर उठकर मिलना था तुम सागर से अतृप्त मुझमें लहरों का भ्रमण बनते गए तुम बगीचे में उगते पुष्प की सुगंध जैसे मुझमें रहते गए क्या प्रेम की कसौटी पर खरा उतरना आसान रहा? प्रेम में तुम और तुम में प्रेम के सहज दर्शन मिलते गए प्रभुत्व की ओर कदम बढ़ते गए प्रेम में सारे वचन निभते गए तुम प्रेम में, सकेड़ों नदियों का स्रोत बनते गए।

सुनो ! तुम बनारस जाना

सुनो ! तुम बनारस जाना तो थोड़ा अपने आप को लेते आना तुम्हारी मौलिक अभिव्यक्ति का हिस्सा होना है नित ऊर्जा से भरा एक कोना है तुम बनारस जाना तो मुझे घूंट घूंट भरना अपनी हथेलियों को कलश-सा गढ़ना मेरे हृदय के उद्गार पढ़ना सुना है बनारस में शिव बसते हैं नए अंदाज़ रचते हैं तुम मेरे लिए, खुद में शिव को लाना और, मुझमें अपनी पार्वती को पाना सुनो ! तुम बनारस जाना तो थोड़ा अपने आप को लेते आना

सुनो !

सुनो ! प्रेम की तमाम कहानियां तुम्हारे ज़िक्र के साथ शुरू हुईं और फ़िक्र पर ख़त्म तमाम किस्से और कहावतें अब फीके नहीं हैं वहां जहां किसान की लहराती फ़सल सा नयापन है अमरूद की मिठास है सेब की कोमलता है संतरे सी खट्टास है और जामुन सा घुलना है प्रेम की परिभाषाएं हैं और उन परिभाषाओं में महकता सावन दहकता बदन है पपीहे की पीहू पीहू है जुगनू की रोशनी है प्रेम की अनुभूति में है उलझनों का आदान प्रदान और सरलता, सहजता और भावुकता।

नदी का बहाव

नदी का बहाव अपने भीतर लिए हैं जीवन की कविताएं जो श्वास लेती हैं और जीती पूरा एक युग। नदी की कल कल ध्वनि में हैं युद्ध के शिकार हुए लोग और वह शोर जो बढ़ता रहता है प्रतिदिन प्रतिपल। नदी की कोमलता में हैं मां का हृदय और पिता के संरक्षण का भाव जो भरता है एक शिशु को समृद्ध जीवन से। नदी की दृष्टि में है सृष्टि और कल्पनाओं का आकाश।

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