हिंदी कविताएँ : अनिता सुधीर आख्या
Hindi Poetry : Anita Sudhir Akhya


1. नवगीत : हिंदी

राजभाषा ले लकुटिया पग धरे हर द्वार तक राह में अवरोध अनगिन हीनता का दंश दें स्वामिनी का भाव झूठा मान का कुछ अंश दें ये दिवस की बेड़ियां भी कब लड़ें प्रतिकार तक।। हूक हिय में नित उठे जो सौत डेरा डालती छीन कर अधिकार वो फिर बैर मन में पालती कष्ट का हँसता अँधेरा बादलों के पार तक।। अब घुटन जो बढ़ रही है कंठ का फन्दा कसा खोल उर के पट सभी अब धड़कनों में फिर बसा अब अतिथि की वेशभूषा छल रही श्रृंगार तक।।

2. नदी (उल्लाला छंद)

भूतल पर जलधार का,स्त्रोत झील हिमनद रहे। सरिता तटिनी शैलजा,नदी नद्य इसको कहे।। नदियाँ जीवन दायिनी,जल जीवन आधार है। मातु सरिस सब पूजते,ये संस्कृति का सार है।। कहीं जन्म ले बह चली,नीर जलधि में भर रही। विकसित होती सभ्यता,लालन पालन कर रही।।I रूप सदानीरा रहे,या बरसाती रूप हो। अविरल अविरामी चलें,भरा धरा का कूप हो।।

*उत्तर प्रदेश की नदी*

धार्मिक महत्व को रखें,उत्तर प्रदेश की नदी। ग्रंथों में गाथा लिखे ,बीत गयी कितनी सदी।। गंगा यमुना गोमती,नदी प्रमुख है शारदा । चम्बल वरुणा घाघरा,सभी मिटातीं आपदा।।

*गंगा*

प्रमुख नदी है देश की,गोमुख उद्गम जानिए। पंच प्रयागों से बनीं,पावन गंगा मानिए।। आकर फिर ऋषिकेश में,चलतीं हरि के द्वार अब। गढ़मुक्तेश्वर कानपुर,चलीं इलाहाबाद तब।। यमुना से संगम किये,स्वागत काशी घाट में। मिले मोक्ष का द्वार फिर,भव बंधन की काट में।। खाड़ी है बंगाल की,सुंदरवन डेल्टा रहा। कपिल संत का धाम है,तीर्थ गंग सागर कहा।। देवनदी शुभ गंग को,रखें स्वच्छ हम आप सब। औषधि गुण भंडार से,करना है उपचार अब।।

*यमुना*

नदी सहायक गंग की,व्रज की यमुना जानिए। उद्गम यमुनोत्री रहा, संगम गंगा मानिए । सूर्य देव की नंदिनी,मृत्यु देव् यम भ्रात हैं। कालिंदी तन मन बसीं ,व्रजवासी की मातु हैं।। दिल्ली मथुरा आगरा,नगरों को पावन किया । क्षेत्र इटावा कालपी,जल जीवन इनको दिया।। नहीं प्रदूषित कीजिये,ये कृषि का आधार है। विकसित जल परियोजना,औद्योगिक विस्तार है।। वल्लभ मार्गी लिख रहे,यमुना के गुणगान अब । घर घर गूँजे कृष्ण फिर, गाथा नदी महान अब।।

*गोमती*

वशिष्ठ महर्षि की सुता, वेद पुराणों ने कहा। पापनाशिनी गोमती,मूल तत्व आस्था रहा।। उद्गम पीलीभीत में,कैथी में गंगा मिली। कितने कंटक मार्ग में,अविरल अविरामी चली।। रावण वध का पाप था,स्नान किये प्रभु राम तब। मुक्ति मिली थी पाप से,धनुष किये थे शुद्ध जब।। मान *धोपाप* का बड़ा ,गंग दशहरा जानिए। स्न्नान ध्यान करिये यहाँ,शुभ फलदायक मानिए।।

*रामगंगा*

नदी सहायक गंग की,नाम रामगंगा कहे। गैरसैण तहसील में,दूधातोली से बहे।। चली कुमायूँ क्षेत्र से,दक्षिण पश्चिम ओर अब। खड़ोगार आकर मिली,दूनागिरि के छोर तब।। देवगाड़ से नीर ले,जिम कार्बट उद्यान में। जिला बिजनौर से चली,पहुँची फिर मैदान में।। बाँध नदी पर बन गया,पनबिजली उत्पाद है। खोह नदी संगम हुआ,जिला मुरादाबाद है।। आकर के कन्नौज में,नदी गंग से आ मिली। जलविद्युत परियोजना,से सिंचाई कर चली।।

*शारदा*

नदी महाकाली कहें,मैदानों में शारदा। कालापानी स्थान से,चली मिटाने आपदा।। मंदिर काली मातु का,लिपू लीख दर्रा रहा। देवि नाम पर नाम रख,फिर काली गंगा कहा।। हिन्द और नेपाल की,सीमा चिन्हित कर रही। बाँध टनकपुर योजना,जल सिंचाई भर रही।। नया नाम सरयू पड़ा,बहराइच में लोग अब । बलिया में गंगा मिली,उत्तम फल का भोग अब।। बहराइच में नाम अब ,सरिता सरयू जानते। बलिया में गंगा मिली,द्वार मोक्ष का मानते ।।

*सरयू*

वेदों में उल्लेख है,नदिया ये प्राचीन है। नगर प्रभो का है बसा,सभी भक्ति में लीन हैं।। बहराइच से नाम ले,रामप्रिया सरयू कहे । मोक्षदायिनी ये नदी,नगर अयोध्या में बहे।। पतित पावनी घाघरा,इसका दूजा नाम है। प्रभो विष्णु के नेत्र से,निकला पावन धाम है।। पाप मिटाती ये नदी,ऐसा कहते लोग हैं। स्नान दान जप तप करें,उत्तम जीवन भोग है।। प्रमुख सहायक रापती,गोरखपुर तक बह चली। संगम गंडक से हुआ ,छपरा में गंगा मिली।।

*चंबल नदी*

बारहमासी शैलजा,उद्गम जानापाव है। चम्बल नदिया बह चली,यमुना इसका ठाव है।। कोटा राजस्थान से,मन्दसौर रतलाम को। भिंड मुरैना को चली,पाँच नदी के धाम को।। जलप्रपात चूलिया बना,तीन प्रदेशों से बहे। गाँधी सागर बाँध है,कामधेनु इसको कहे।। चम्बल मामा शकुनि का,खेल यहाँ चौसर हुआ। प्रथम नदी शापित रही,इसे न कोई फिर छुआ।। नीर स्वच्छ बीहड़ नदी,जनसंख्या कम है यहाँ। मुक्त प्रदूषण से रही,इतिहास अद्भुत वहाँ।।

*प्रदूषण*

नदी प्रदूषित मत करें,यह जीवन आधार है। धोते हैं क्यों पाप सब,स्वच्छ नीर अधिकार है।। माटी को बाँधे जड़ें, रोके मृदा कटाव को। स्वच्छ नदी की तलहटी,रोके बाढ़ बहाव को ।। बाढ़ और सूखा बने ,जीवन में अभिशाप जब। कहे नदी की धार फिर ,जतन करो मिल आप सब।। करें समापन लेख का,उत्तम अनुभव ये रहा। जीवटता संदेश दे,गति को ही जीवन कहा ।।

महापर्व शिवरात्रि

महापर्व शिवरात्रि में,मिलन शक्ति-अध्यात्म का। कृष्ण चतुर्दश फाल्गुनी, प्रकृति-पुरुष एकात्म का।। पंच तत्त्व का संतुलन,यह शिवत्व आधार है। वैरागी को साधना, ही जीवन का सार है।। प्रकटोसव शिवरात्रि में, ऊर्जा का संचार है। द्वादश ज्योतिर्लिंग में, निराकार साकार है।। शिव गौरा के ब्याह की, आज मनोरम रात में। आराधन में लीन हो, भीगें भक्ति-प्रपात में।। सृष्टि रचयिता रुद्र का, तीन लोक अधिपत्य है। महाकाल हैं काल के, शिवं सुंदरं सत्य है।। औगढ़ योगीराज का, आदि अंत अज्ञात है। तांडव नृत्य त्रिनेत्र का, सकल अर्थ विख्यात है।। आत्मजागरण पर्व की, महिमा अपरंपार है। नीलकंठ के अर्थ में, जगत श्रेष्ठ व्यवहार है।। शंकर-गौरा साथ में, और भाव वैराग्य भी। गुण विरोध में संतुलन, यही मनुज सौभाग्य भी।। नाड़ी तीन प्रतीक हैं, शंकर हस्त त्रिशूल के। दैहिक भौतिक ताप हर, निष्कंटक जग मूल में।। राख चिता की गात जो,भस्म जीव का साथ है। भाव शुद्धता का लिए, बाबा भोलेनाथ हैं।। बिल्वपत्र अक्षत चढ़ा,करिए व्रत उपवास सब। कैलाशी को पूज कर, जीवन करें प्रभास सब।।

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