फ़िलिस्तीनी कविताएँ हिंदी में : महमूद दरवेश (अनुवादक : अनिल जनविजय)

Palestinian Poetry in Hindi : Mahmoud Darwish


एक आदमी के बारे में

उन्होंने उसके मुँह पर ज़ंजीरें कस दीं मौत की चट्टान से बाँध दिया उसे और कहा — तुम हत्यारे हो उन्होंने उससे भोजन, कपड़े और अण्डे छीन लिए फेंक दिया उसे मृत्यु-कक्ष में और कहा — चोर हो तुम उसे हर जगह से भगाया उन्होंने प्यारी छोटी लड़की को छीन लिया और कहा — शरणार्थी हो तुम, शरणार्थी अपनी जलती आँखों और रक्तिम हाथों को बताओ रात जाएगी कोई क़ैद, कोई ज़ंजीर नहीं रहेगी नीरो मर गया था रोम नहीं वह लड़ा था अपनी आँखों से एक सूखी हुई गेहूँ की बाली के बीज़ भर देंगे खेतों को करोड़ों-करोड़ हरी बालियों से

गुस्सा

काले हो गए मेरे दिल के गुलाब मेरे होठों से निकलीं ज्वालाएँ वेगवती क्या जंगल,क्या नर्क क्या तुम आए हो तुम सब भूखे शैतान! हाथ मिलाए थे मैंने भूख और निर्वासन से मेरे हाथ क्रोधित हैं क्रोधित है मेरा चेहरा मेरी रगों में बहते ख़ून में गुस्सा है मुझे क़सम है अपने दुख की मुझ से मत चाहो मरमराते गीत फूल भी जंगली हो गए हैं इस पराजित जंगल में मुझे कहने हैं अपने थके हुए शब्द मेरे पुराने घावों को आराम चाहिए यही मेरी पीड़ा है एक अन्धा प्रहार रेत पर और दूसरा बादलों पर यही बहुत है कि अब मैं क्रोधित हूँ लेकिन कल आएगी क्रान्ति

आशा

बहुत थोड़ा-सा शहद बाक़ी है तुम्हारी तश्तरी में मक्खियों को दूर रखो और शहद को बचाओ तुम्हारे घर में अब भी है एक दरवाज़ा और एक चटाई दरवाज़ा बन्द कर दो अपने बच्चों से दूर रखो ठण्डी हवा यह हवा बेहद ठण्डी है पर बच्चों का सोना ज़रूरी है तुम्हारे पास शेष है अब भी आग जलाने के लिए कुछ लकड़ी कहवा और लपटॊं का एक गट्ठर

लोगों के लिए गीत

आओ ! दुख और ज़ंजीर के साथियों हम चलें कुछ भी न हारने के लिए कुछ भी न खोने के लिए सिवा अर्थियों के आकाश के लिए हम गाएँगे भेजेंगे अपनी आशाएँ कारखानों और खेतों और खदानों में हम गाएँगे और छोड़ देंगे अपने छिपने की जगह हम सामना करेंगे सूरज का हमारे दुश्मन गाते हैं — "वे अरब हैं... क्रूर हैं..." हाँ, हम अरब हैं हम निर्माण करना जानते हैं हम जानते हैं बनाना कारखाने अस्पताल और मकान विद्यालय, बम और मिसाईल हम जानते हैं कैसे लिखी जाती है सुन्दर कविता और संगीत... हम जानते हैं

जाँच-पड़ताल

लिखो — मैं एक अरब हूँ कार्ड नम्बर — पचास हज़ार आठ बच्चों का बाप हूँ नौवाँ अगली गर्मियों में आएगा क्या तुम नाराज़ हो? लिखो — एक अरब हूँ मैं पत्थर तोड़ता हूँ अपने साथी मज़दूरों के साथ हाँ, मैं तोड़ता हूँ पत्थर अपने बच्चों को देने के लिए एक टुकड़ा रोटी और एक क़िताब अपने आठ बच्चों के लिए मैं तुमसे भीख नहीं माँगता घिघियाता-रिरियाता नहीं तुम्हारे सामने तुम नाराज़ हो क्या? लिखो — अरब हूँ मैं एक उपाधि-रहित एक नाम इस उन्मत्त विश्व में अटल हूँ मेरी जड़ें गहरी हैं युगों के पार समय के पार तक मैं धरती का पुत्र हूँ विनीत किसानों में से एक सरकण्डे और मिट्टी के बने झोंपड़े में रहता हूँ बाल — काले हैं आँखे — भूरी मेरी अरबी पगड़ी जिसमें हाथ डालकर खुजलाता हूँ पसन्द करता हूँ सिर पर लगाना चूल्लू भर तेल इन सब बातों के ऊपर कृपा करके यह भी लिखो — मैं किसी से घृणा नहीं करता लूटता नहीं किसी को लेकिन जब भूखा होता हूँ मैं खाना चाहता हूँ गोश्त अपने लुटेरों का सावधान सावधान मेरी भूख से सावधान मेरे क्रोध से सावधान

मैं घोषणा करता हूँ

जब तक मेरी एक बालिश्त ज़मीन भी शेष है एक जैतून का पेड़ है मेरे पास एक नीम्बू का पेड़ एक कुआँ और एक कैक्टस का पौधा जब तक मेरे पास एक भी स्मृति शेष है पुस्तकालय है छोटा-सा दादा की तस्वीर है और एक दीवार जब तक उच्चरित होंगे अरबी शब्द गाए जाते रहेंगे लोकगीत पढ़ी जाती रहेंगी — कविता की पंक्तियाँ अनतार-अल-अब्से की कथाएँ फ़ारस और रोम के विरुद्ध लड़े गए युद्धों की वीर गाथाएँ जब तक मेरे अधिकार में हैं मेरी आँखें मेरे होंठ और मेरे हाथ मैं खुद हूँ जब तक मैं अपने शत्रु के समक्ष घोषित करूँगा — मुक्ति के लिए प्रबल संघर्ष स्वतन्त्र लोगों के नाम पर हर कहीं मज़दूरों, छात्रों और कवियों के नाम पर मैं घोषित करूँगा — खाने दो कलंकित रोटी कायरों को सूरज के दुश्मनों को मैं जब तक जीवित रहूँगा मेरे शब्द शेष रहेंगे — "रोटी और हथियार मुक्ति-योद्धाओं के लिए"

चुनौती

तुम मुझे चारों तरफ़ से बाँध दो छीन लो मेरी पुस्तकें और चुरूट मेरा मुँह धूल से भर दो कविता मेरे धड़कते हृदय का रक्त है मेरी रोटी का खारापन मेरी आँखों का तरलता यह लिखी जाएगी नाख़ूनों से आँखॊं के कोटरों से, छुरों से मैं इसे गाऊँगा अपनी क़ैद-कोठरी में, स्नानघर में अस्तबल में, चाबुक के नीचे हथकड़ियों के बीच, ज़ंजीरों में फँसा हुआ लाखों बुलबुलें मेरे भीतर हैं मैं गाऊँगा गाऊँगा मैं अपने संघर्ष के गीत

प्रतिध्वनि

जैतून की छाया में गूँज रहा है जीवन और मैं लटका हूँ अलाव के ऊपर ज़ंजीरों में जकड़ा हुआ जल्लाद खिलखिला रहे हैं हँस रहे हैं वहशी हँसी अपने लम्बे टेढ़े नाख़ूनों से छील रहे हैं मेरा हृदय और मैं बेतहाशा चीख़ रहा हूँ घोषणा कर रहा हूँ जीवन की — कि अभी जीवित हूँ मैं ऐ आसमान ! इन हिंसक तख़्तों पर प्रहार कर तू बुझा दे यह जालिम आग अपनी पवित्र बौछार से बदल दे इसे धुएँ में अदृश्य कर दे इसे और तब तब मैं इस धरती का बेटा उतरूँगा इस सलीब से और लौटूँगा अपनी मातृभूमि पर चलता हुआ नंगे पैर

माँ के लिए (एक)

शिकंजे में जकड़ा है मेरा हृदय जल रहा हूँ मैं फुँक रहा हूँ वियोग की आग में और धीरे-धीरे बढ़ रहा हूँ तेरी तरफ़ तेरे दुलार भरे हाथों की ओर उदासी सबसे बड़ा दुख है सबसे बड़ी मौत कैसे बचा जाए उससे भला, कहाँ छुपाया जाए अपनी आत्मा को पसलियों की पतली दीवार के पीछे सीने के पिंजरे में बन्द आत्मा भयभीत है अकेली और मैं घायल पड़ा हूँ इस पथरीली ख़ामोशी में किसी अबोध बच्चे की तरह अबोध मेरा हृदय जल रहा है निर्वासन की आग में आह दर्द ! कितना दर्द है वहाँ ... ओ माँ ! क्या करूँ मैं अचानक डूबते दिल के ऊपर फड़फड़ाने लगा एक सफ़ेद पंख आशीर्वाद माँ का

माँ के लिए (दो)

आकाश पर लुढ़क रहा है आँसू उदासी भरे तारों को बेधते हुए यदि लौट आऊँ, माँ ! तू अपनी आँखों के दुशाले से सेंकना मुझे मेरी ठिठुरती हड्डियों पर ढँकना तू नम धरती के पालने पर उगी और तेरे क़दमों से पवित्र हुई घास स्वतन्त्र, बिना ज़ंजीरों के लेटा हूँ मैं पड़ा हुआ हूँ तेरी चौखट पर रो मत माँ अपनी उदासी छुपा तू शुभ्र मुस्कान के पीछे सम्भव है जब तेरी आत्मा छू लूँगा मैं अपने धवल होंठों से तो बन जाऊँगा ईश्वर

माँ के लिए (तीन)

माँ ! यदि लौट आऊँ मैं तू झोंक देना मुझे चिता की आग में और ’उफ़्फ़’ तक न करना हवा चाकू की तरह चीर रही है मेरा दिल माँ ! यदि तेरी दुआएँ न होतीं मेरे साथ मेरी सूनी आँखों में होता अन्धेरा और उन अन्धेरी रातों में मुरझा जाती मेरी आत्मा सन की तरह सफ़ेद हो गए मेरे बाल मौत झेल रहा हूँ मैं रच रहा हूँ अन्तिम गीत अपनी बुलबुल के लिए ओ मेरे बचपन के सितारो ! लौट आओ और बुनो किसी डाल पर मेरे लिए भी एक घोंसला मैं भी रहना चाहता हूँ अपनी आशाओं के घोंसले में अपनी चिड़िया और चूजों के साथ जीना चाहता हूँ मैं उड़ान भरना चाहता हूँ आसमान में और लौटना चाहता हूँ साधिकार वापिस अपने घोंसले में

फ़िलिस्तीन के प्रेमी

ओ मेरी प्रिया ! दर्द भरी तेरी आँखें बेधती हैं मेरे हृदय को जब भी मैं याद करता हूँ उन्हें उनमें गरजती है बिजली दहकता है गुस्सा वियोग झलकता है उनमें और मैं सम्हाल कर रखता हूँ तेरा दर्द आकाश में चमक रहे हैं सहस्त्रों सितारे घायल है मेरा हृदय उस पर भी हैं हज़ारों घाव तेरा दर्द मेरे प्यार का विस्तार है एक पुल है वर्तमान और भावी दिनों के बीच भला, कैसे भूल सकता हूँ मैं तेरी आँखों में चमकते वे दिन बचपन के वे साल जब साथ-साथ बड़े हुए थे हम तब मुझे लगता था, मेरी प्रिया ! कि तेरी उन बड़ी-बड़ी आँखों में जल रही है आग और मैं गाने लगता था उनके बारे में नए-नए गीत पर आज निर्वासन की यह भयानक ठण्ड बरसा रही है आग मेरे होंठॊं को जला रही है भद्‍दे ढंग से, बेरहमी के साथ आज वीरान पड़े हैं वे मकान छोड़ने पड़े थे जो हमें पक्षी तक नहीं बैठते अब उनकी मुण्डेरों पर तड़कने लगे हैं आइने आज़ादी की मौत के इस जश्न पर और हम बीनते हुए लोकगीतों के टुकड़े आँक रहे हैं क़ीमत जन्मभूमि की नए-पुराने सुरीले गिटारों पर हम गाते हैं शब्द-शब्द अपने गीत और रचते हैं धुनें नई-नई रुदन करते अपने उन वीरान पड़े मकानों पर ओ जानम् ! हमारा प्यार जीवित है अब भी अब भी सुनती है तू मेरी आवाज़ बीते समय के साथ-साथ धीमी ज़रूर हो गई वो पर कमज़ोर नहीं हुई ओ युवा ग्वालन ! मैं देख रहा हूँ तुझे काँटों भरी राह पर दौड़ते हुए गायों और भेड़ों के रेवड़ के पीछे तू गुज़र रही है खण्डहर हुए एक घर के पास से जिसका प्रवेश-द्वार बदल गया है राख में मैं देख रहा हूँ तुझे मेरी प्रिया ! लाइन में लगे हुए सूख रहे एक कुएँ के पास ओ रात्रिकालीन होटलों में बरतन मलने वाली ! मैं देख रहा हूँ तुझे लेटे हुए चिथड़ा-चिथड़ा एक तम्बू में उन अलावों के पास जलाया है जिन्हें अनाथ बच्चों ने और याद कर रहे हैं जो घर के चूल्हे की आग मुझे विश्वास है, मेरी जान ! चाहे कुछ भी क्यों न करना पड़े तुझे कैसे भी क्यों न रहना पड़े चलना पड़े चाहे किसी भी राह पर निर्वासन की इस आग में, उदासी में बनी रहेगी तू वैसे ही जैसे बरकरार है सूरज समुद्र और हमारी शानदार यह धरती हज़ारों-हज़ार बरस से मुझे क़सम है, तेरे इस रुमाल की जो तूने उपहारित किया था मुझे विदा करते हुए मैं क़सम खाता हूँ, जानम् ! तेरी काली घनी बरौनियों की मुझे क़सम है तेरी, मेरी जान ! अमर रहेगा फ़िलिस्तीन हमारा भाग्य फ़िलिस्तीन चमकते सूरज के नीचे फ़िलिस्तीन मेरा है चमकते चान्द के नीचे फ़िलिस्तीन तेरा है फ़िलिस्तीन हमारा है, हमारा ही रहेगा अपने नए गीतों से हम बेध देंगे ठिठुरती इस हवा को सूखी धरती में डालेंगे नए बीज अपने ख़ून से सींचेंगे लुटे-पिटे खेतों की आत्मा और शरीर फिर गुज़र जाएँगे लम्बे वर्ष और उनमें पैदा होगी फ़सल घनी तेरा नाम — फ़िलिस्तीन तेरी दृष्टि — फ़िलिस्तीन तेरे नयन-नक़्श — फ़िलिस्तीन फ़िलिस्तीन — तेरी आशा फ़िलिस्तीन — तेरी आवाज़ फ़िलिस्तीन — महिलोचित गरिमा तेरी फ़िलिस्तीन जीएगी तू तू मरेगी फ़िलिस्तीन ओ मेरी प्रिया ! मेरी किताबों का सार और विचार है तू मेरे गीतों की आग है हर क्षण तूने सम्पूर्ण किया मेरा जीवन तेरे बिना होता ये बरबाद और बेरंग मेरे लिए एकमात्र सर्जक है तू एकात्म है तू मेरी मातृभूमि के साथ मेरे इस लबालब हृदय में

उन्होंने उससे पूछा

उन्होंने उससे पूछा — तुम क्यों गाते हो? उसने जवाब दिया — मैं गाने के लिए गाता हूँ। उन्होंने उसकी छाती टटोली पर वहाँ उसका दिल नहीं ढूँढ़ पाए उन्होंने उसका दिल टटोला पर उन्हें वहाँ नहीं मिले उसके लोग उन्होंने उसकी आवाज़ की तलाशी ली पर उन्हें वहाँ उसका दुख नहीं मिला उसके बाद उन्होंने उसके दुख की तलाशी ली और वहाँ उन्हें मिला उसका क़ैदख़ाना उन्होंने तलाशी ले डाली कैदख़ाने की लेकिन उन्हें दिखे वे सब सिर्फ़ बेड़ी-हथकड़ी में।

फ़िलिस्तीनी कविताएँ हिंदी में : महमूद दरवेश (अनुवादक : सुरेश सलिल)


टेक एक ज़िन्दगी की

अगर कोई मुझसे पूछता, ‘तुम्हें आज शाम को मरना है यहीं, लिहाजा दरमियानी वक़्त में तुम क्या करोगे ?’ मैं कहता, क़लाई घड़ी देखूँगा, एक गिलास जूस पियूँगा एक सेब चरचराऊँगा और फ़ासिले पर रेंगती उस चींटी को निहारूँगा जिसने दिन-भर की खुराक हासिल कर ली है । फिर क़लाई घड़ी देखूँगा अभी शेव और ग़ुसल का वक़्त है । एक ख़याल दिमाग़ में उभरेगा, कि लिखना शुरू करने से पहले किसी शख़्स को ख़ुशनुमाँ दिखना चाहिए लिहाज़ा नीले रंग की कोई पोशाक पहनूँगा और दोपहर तक डेस्क पर काम करूँगा, बग़ैर इसकी परवाह किए कि अल्फ़ाज़ की रंगत है सफ़ेद-यक्दम सफ़ेद । अपना आख़िरी खाना तैयार करूँगा दो गिलासों में शराब ढालूँगा : एक अपने लिए दूसरा किसी अचानक आ टपकने वाले मेहमान के लिए फिर दो ख़्वाबों के दरमियान एक झपकी लूँगा मगर मेरे खर्राटे की आवाज़ मुझे जगा देगी फिर क़लाई घड़ी देखूँगा : पढ़ने के लिए वक़्त अभी है दाँते का एक बाब1 और आधा मुअल्लक़ा2 पढूँगा और देखूँगा कि मेरी ज़िन्दगी कैसे अगलों में जाती है और क़त्तई हैरत नहीं होगी कि उसकी जगह कौन लेता है ‘ठीक ऐसे ही?’ ‘ठीक एसे ही...’ ‘फिर?’ ‘बालों में कँघी करूँगा और नज़्म फेंक दूँगा.... यह नज़्म कूड़ेदान में, इटली में ख़रीदी नई क़मीज़ पहनूँगा स्पानी वायलिनों के साज़ पर खुद को अलविदा कहूँगा फिर — चल पडूँगा क़ब्रिस्तान की जानिब...’ 1. दाँते का एक बाब=डिवाइन कॉमेडी का एक सर्ग। 2. मुअल्लक़ा=अरबी का एक संपादित क्लासिक।

शाल एक रेशमी

दरख़्त की शाख़ पर एक शॉल। लड़की कोई गुज़री होगी इधर से, या कि हवा, और टाँग गई शॉल अपना, दरख़्त पर । ये कोई ख़बर नहीं, आराम फ़रमाते एक शा’इर की नज़्म का मुखड़ा है । और वो अब इश्क़ में मुब्तला नहीं है, लिहाज़ा शुरू किया उसने उसे निहारना, थोड़े फ़ासले से, चरागाह के किसी ख़ूबसूरत नज़्ज़ारे के मानिन्द । समो लिया ख़ुद को उस नज़्ज़ारे में : क़द्दावर है भिंसा का दरख़्त, और शॉल रेशमी ! साफ़़ ज़ाहिर है कि लड़की गर्मी के महीनों में लड़के से मिला करती होगी, और वे यहाँ ख़ुश्क-ज़र्द घास पर बैठते होंगे। इसके ये भी मा’नी निकलते हैं कि वे ख़ुफ़िया शादी के लिए परिन्दों को फुसलाया करते होंगे, क्योंकि इस पहाड़ी पर सामने तना खुला आसमान परिन्दों के लिए लुभावना है लड़के ने लड़की से कहा होगा, ‘‘तुम मेरे पहलू में हो, तब भी मैं तुम्हारी हसरत से लबरेज हूँ, गोया तुम बहुत दूर हो मुझसे ।’’ और लड़की ने लड़के से कहा होगा, ‘‘मैं तुम्हें अपने आगोश में भींचे हूँ, जैसे मेरे उरोज, गो कि तुम बहुत दूर हो मुझसे ।’’ जवाब में लड़के ने लड़की से कहा होगा, ‘‘तुम्हारी नज़रों में पिघलकर मैं सरगम हो जाता हूँ ।’’ और लड़की ने लड़के से : ‘‘मेरे घुटने पर तुम्हारा हाथ वक़्त को पसीने में तब्दील कर देता है । लिहाज़ा मलो, इतना मलो कि मैं पिघल जाऊँ ।’’ शा’इर रेशमी शॉल का बयान करने में इस कदर डूब जाता है कि उसे इस हक़ीक़त का भी ख़याल नहीं आता, कि ये दरहक़ीक़त बादल हैं — सूरज डूबने के वक़्त दरख़्त की शाख़ों के बीच से होकर गुज़रत।

प्यास से मरती एक नदी

यहाँ एक नदी थी और उसके दो किनारे थे और एक आसमानी माँ जिसने बादलों से टपकते क़तरों से इसकी परवरिश् एक नन्हीं नदी आहिस्ता-आहिस्ता बढ़ती हुई पहाड़ की चोटियों से उतरती हुई गाँवों और ख़ेमों को किसी ख़ूबसूरत-ज़िन्दादिल मेहमान के मानिंद निहाल करती हुई घाटी को कड़ैंल और खजूर के दरख़्त बख़्शती हुई और साहिलों पर रात की मौजमस्ती में डूबे हुओं से अठखेलियाँ करती हुई ‘पियो बादलों का शीर ‘पिलाओ घोड़ों को पानी और उड़ जाओ येरूशलम, दमिश्क!’ कभी अगलों से मुख़ातिब बहादुराना अंदाज़ में गाती लहक-लहक यहाँ दो किनारों वाली एक नदी थी और एक आसमानी माँ, जिसने बादलों से टपकते क़तरों से इसकी परवरिश की, मगर उन्होंने इसकी माँ का अपहरण कर लिया लिहाजा, पानी की कमी से प्यास से छटपटाते दम तोड़ दी इसने आहिस्ता-आहिस्ता काश मैं एक पत्थर होता फ़क़त मैं किसी चीज़ के लिए नहीं ललकता न गुज़रते कल के लिए, न आने वाले कल के लिए और अपने वर्तमान में न आगे जाने के लिए, न पीछे लौटने के लिए कुछ भी नहीं हो रहा मुझमें! काश मैं एक पत्थर होता फ़क़त, मैंने कहा, आह, काश मैं कोई पत्थर होता फ़क़त, तो पानी मुझे सब्ज़ ज़र्द रंगत देता- बुत के मानिंद किसी कमरे में रखा जाता मुझे, या तराशा जाता बुत की शक्ल में, या किसी बुलंद मगर फालतू ढांचे में से कुछ ज़रूरी फोड़ निकालने के लिए मसाले के बतौर मेरा इस्तेमाल होता। काश मैं एक पत्थर होता फ़क़त ताकि किसी चीज़ के लिए ललकता! बुत का हाथ बुत का हाथ फैला हुआ, बुत किसी जण्डैल का या किसी फ़नकार का; धूप और बारिश की ख़ुश आमद में नहीं न बूढ़े फौजियों, ने नये ख़ैरख़्वाहों की बल्कि आतों-जातों से खैरात माँगते किसी खानदानी भिखमंगे के हाथ जैसा, इसलिए नहीं, कि फिर चल- फिर सके बल्कि इसलिए कि अज़ल से अबद तक के सफ़र ख़र्च की भरपाई हो सके। बेहतर होगा इस पथरीले हाथ के लिए कि किसी शख़्स से वो गुलदस्ता हासिल करे जो उसने, बुत के पास अकेला इंतिज़ार करते छोड़ गई औरत के लिए ख़रीदा था। आधे-अधूरे तुम टुकड़ों में बटे हुए हो तुम नहीं हो तुम या कोई और, कहाँ है समरूपता के अँधेरे में तुम्हारा मैं? जैसे मैं कोई जिन्न होऊँ किसी जिन्न की तरफ़ बढ़ता हुआ; जबकि मैं एक समूचा शख़्स हूँ जो जिन्न से आगे निकल आया है मैं अपनी पहली छाया से उभरा पछाड़ता हुआ जिन्न को, और बिला जाने के बाद वह चीख़ा ‘होशियार, मेरे अमले वजूद!’ जैसे वो कोई नग़्मा हो मानो मैं किसी ख़्वाब में होऊँ देखा मैंने तुम्हें भूरे-सुनहरे जिस्म में, जैसे, रंग को तुम अर्थाती हो। आ बैठी तुम मेरे जानूं पर, जैसे तुम तुम हो, जैसे मैं मैं होऊँ और हमारे सामने लाला से महमहाते बग़ीचे में चहलक़दमी के लिए रात हो, यहाँ है वो सब कुछ। सब कुछ हमारा। तुम मेरी मैं तुम्हारा और है छाया। तुम्हारी छाया_ नारंगी के माफि़क हँसती हुई। ख़्वाब ने अपना काम किया, और किसी चिट्ठीरसा के माफि़क किसी और जानिब लपक लिया लिहाज़ा इस शाम हमें समझदारी बरतनी होगी अपने ख़ुद की और उस दरिया की बाबत जो हमारे साथ रवाँ है और कि हम उसमें बहते हैं जैसे वो हममें बहता है। चील एक मँडराती ऐन हमारे सर पर कविता में के राहगीर ने कविता में के राहगीर से पूछाः ‘और अभी कितना आगे तुमको जाना है?’ ‘जिससे आगे राह न कोई।’ ‘तो फिर जाओ, जाओ मानो पहुँच गये हो, और न पहुँचे।’ ‘अगर न होते इतने रस्ते हुदहुद1 हो जाता दिल मेरा, और खोज लेता मैं रास्ता।’ ‘अगर तुम्हारा दिल हुदहुद हो जाता, तो मैं उसके पीछे-पीछे आता।’ ‘लेकिन तुम हो कौन? नाम तो बतलाओ अपना।’ ‘नाम नहीं दौरान सफ़र के मेरा कोई...’ ‘आगे भी क्या कहीं मिलोगे?’ ‘हाँ, हाँ बिल्कुल!... खाई के इस उस ओर हुआँते दो पर्वत शिखरों के ऊपर... वहीं मिलूँगा मैं तुमको...’ ‘कैसे कूदेंगे हम खाई हम तो नहीं परिंदे, भाई!’ ‘तो हम गायेंगेः हम न उसको देख सकते हैं, जो हमको देखता है देख पाता वो न हमको, हम कि जिसको देखते हैं।’ ‘फिर?’ ‘हम नहीं गायेंगे’ ‘फिर?’ ‘तुम मुझसे-मैं तुमसे पूछूँगाः और अभी कितना आगे तुमको जाना है?’ ‘जिससे आगे राह न कोई।’ ‘जिससे आगे राह न कोई काफ़ी है क्या राहगीर को तै करने को कोई मंज़िल?’ ‘नहीं, दरअसल दीख रही मँडराती ऐन हमारे सिर पर चील एक अतिविस्मयकारी!’ 1. हुदहुद=अरबी फ़ारसी की पुरानी शायरी में अकसर आने वाला एक पौराणिक पक्षी (गरुड़ के समतुल्य)

लड़की 1

साहिल पर एक लड़की है और लड़की के माँ-बाप हैं और माँ-बाप का एक घर है और घर में दो दरीचे व एक मुहार है और समंदर में एक जैसी जहाज़ है मौजमस्ती करता साहिल पर सरगश्ती करते हुओं का शिकार करताः चार पाँच सात ढेर हुए पड़े रेत पर लड़की फि़लहाल बची हुई किसी नज़र न आते ग़ैबी हाथ की सरपरस्ती में लिहाजा वो आवाज़ देती हैः ‘अब्बू! अब्बू! हमें घर लौटना चाहिए, समंदर हम जैसों के लिए नहीं’, बाप कोई जवाब नहीं देता, पसरा पड़ा हुआ सूर्यास्त की जानिब सरकती अपनी परछाईं पर ख़ून-ख़ून खजूर के दरख़्त, बादल ख़ून-ख़ून! लड़की की आवाज़ ऊँची और ऊँची होती साहिल से आगे तक जाती हुई रात में चीख़ उठती वो आहंग में कोई आहंग नहीं लिहाजा एक न ख़त्म होने वाली चीख़ ताज़ा ख़बर में जो क़त्तई नहीं रही ताज़ा ख़बर जब दो दरीचों और एक मुहार वाले घर पर बम गिराने के लिए हवाई जहाज़ लौटा।... 1. लड़की=इसका एक शीर्षक ‘चीख़’ भी दिया गया है।

नीरो

(नीरो=रोम का सम्राट (57-68ई.) बेविलोनिया का शासक (1797-60ई.पू.) लेबनान को जलता देखते क्या चल रहा है नीरो के दिमाग़ में? उसकी आँखें दीवानावार चमकती हुई और उसकी चाल, जैसे शादी के जश्न में कोई नाचता हुआ। यह दीवानगी मेरी दीवानगी है, मुझे बख़ूबी पता है, लिहाजा जलाने दो उन्हें उस सब कुछ को, जो हमारी पकड़ से परे है। और बच्चों को सीखनी होगी तमीज़, बंद करना होगा चीख़ना-चिल्लाना मेरी रियाज़ के दौरान। और इराक़ को जलता देखते क्या चल रहा है नीरो के दिमाग़ में? क्या वह ख़ुश है जंगल की तारीख में दबी यादों के उभरने से, जिसमें उसका नाम हम्मुराबी1 और गिलगमेश2 और अबू नुआस के दुश्मन के बतौर दर्ज़ है? मेरा कानूनो-काइदा सभी कानूनो-काइदा की माँ है। दाइमी ज़िन्दगी काफूल हमारे मैदानों मफेंलता है, और शाइरी-उसके क्या मानी? और फिलस्तीन को जलता देखते क्या चल रहा है नीरो के दिमाग़ में? क्या उसे इस बात की ख़ुशी है कि उसका नाम पैग़म्बरों की फि़हरिस्त में एक पैग़म्बर के बतौर दर्ज है, जिस पर पहले किसी ने यक़ीन नहीं किया, ख़ूनी पैग़म्बर के बतौर,जिसे ख़ुदा ने आसमानी किताबों में बेतादाद ग़लतियों को दुरुस्त करने के सथ तैनात कियाः मैं भी मुक़र्रिर हूँ ख़ुदा की तरफ़ से। और दुनिया को जलते देखते क्या चल रहा है नीरो के दिमाग़ में? मैं रोज़े-हश्र का मालिक हूँ। फिर वह हुक्त देता हैः कैमरा बंद करो! वह नहीं चाहता कि इस लम्बी अमरीकी मूवी के अख़ीर में, कोई देखे कि उसकी उँगलियाँ जलती हुई आग पर हैं। 1. हम्मुराबी=असीरियाई पौराणिकी का एक नायक, उरुक का शासक। 2. गिलगमेश=इस्लामी पौराणिकी के अनुसार रोज़े हश्र (हश्र के दिन) में सभी के कर्मों पर निर्णय सुनाया जाता है।

उदासीन

वह किसी बात की परवाह नहीं करता। अगर वे उसके घर का पानी का कनेक्शन काट देते हैं, तो वह कहता है, ‘कोई बात नहीं, जाड़ा आने वाला है।’ और अगर वे घंटे भर तक बिजली बंद रखते हैं, तो वो जम्हाई लेते हुए कहता है, ‘कोई बात नहीं, सूरज की रोशनी काफ़ी है।’ अगर वे उसकी तनख्वाह में कटौती की धमकी देते हैं, तो वो कहता है, ‘कोई बात नहीं, महीने भर तम्बाकू और शराब का इस्तेमान नहीं करूँगा।’ और अगर वे उसे पकड़ कर जेल में बाँध देते हैं, तो वो कहता है, ‘कोई बात नहीं, कुछ अरसा मैं अपने में अकेला रहूँगा, यादों के साथ।’ और अगर वे उसे जेल से वापस घर छोड़ जाते हैं, तो वो कहता है, ‘कोई बात नहीं, अपना ही तो घर है।’ एक दिन मैंने तैश में आकर कहा, ‘कल तुम्हारा गुज़ारा कैसे होगा?’ उसने कहा, ‘कल में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं। मैं ख़याली पुलाव नहीं पकाता। मैं जो हूँ वही हूँ। कोई चीज़ मुझे बदल नहीं सकती, जैसे मैं किसी चीज़ को बदल नहीं सकता। लिहाजा मैं अपने हाल में ख़ुश हूँ।’ मैंने उससे कहा, ‘न मैं सिकंदर महान हूँ, न दायोजेनस 1।’ उसने कहा, ‘मगर उदासीनता भी एक फलसफ़ा है... उम्मीद का एक पहलू।’ 1. दायोजेनस=चौथी सदी ई.पू. का एक सनकी ग्रीक दार्शनिक।

फ़िलिस्तीनी कविताएँ हिंदी में : महमूद दरवेश (अनुवादक : अपूर्वानन्द)


जब जंगी जहाज़ ओझल हो जाते हैं

जब जंगी जहाज़ ओझल हो जाते हैं, फ़ाख़्ता उड़ती हैं उजली, उजली आसमान के गालों को पोंछते हुए अपने आज़ाद डैनों से, वापस हासिल करते हुए वैभव और प्रभुसत्ता वायु और क्रीड़ा की. ऊँचे और ऊँचे फ़ाख़्ता उड़ती हैं, उजली, उजली । काश, कि आसमान असली होता (एक आदमी ने गुज़रते हुए दो बमों के बीच से मुझे कहा) .......... एक हत्यारे से : अगर तुमने शिकार के चेहरे पर ध्यान दिया होता और सोचा होता, तुम याद कर पाते गैस चैम्बर में अपनी माँ को , तुम ख़ुद को आज़ाद कर पाते राइफ़ल के विवेक से और बदल देते अपना विचार : यह वह तरीका नहीं जिससे पहचान वापस हासिल की जाती है ! ........... हमारे नुक़सानात : दो शहीदों से आठ हर रोज़, और दस ज़ख़्मी और बीस घर और पचास जैतून के दरख़्त, अलावा उस संरचनात्मक आघात के जो होगा कविता को, नाटक और अधबनी पेंटिंग को ............ एक औरत ने एक बादल से कहा : मेरे प्यारे को ढाँप लो क्योंकि मेरे कपड़े तर हैं उसके ख़ून से ! .......... अगर तुम एक बारिश नहीं बनोगे, मेरे प्यारे एक पेड़ हो जाओ उर्वरता से तर.. पेड़ हो जाओ एक और अगर तुम पेड़ नहीं बनोगे मेरे प्यारे एक शिला बन जाओ नमी से तर.. शिला बन जाओ एक और अगर तुम शिला भी नहीं बन सकते मेरे प्यारे एक चाँद बन जाओ आशिक की नींद में.. चाँद बन जाओ एक (ये वे बातें हैं वह जो एक औरत ने कहीं अपने बेटे को दफ़्न करते हुए )

वह शान्त है और मैं भी

वह शान्त है, और मैं भी वह नींबू वाली चाय पी रहा है, और मैं कॉफ़ी पी रहा हूँ, यही फ़र्क है हम दोनों के बीच । उसने पहन रखी है, जैसे मैंने, धारीदार बैगी शर्ट और मैं पढ़ रहा हूँ, जैसे कि वह, शाम का अखबार । वह मुझे नज़र चुरा कर देखते नहीं देखता मैं उसे नज़र चुरा कर देखते नहीं देखता, वह शान्त है, और मैं भी । वह वेटर से कुछ माँगता है, मैं वेटर से कुछ माँगता हूँ... एक काली बिल्ली हमारे बीच से गुजरती है, मैं उसके रोयें सहलाता हूँ और वह उसके रोयें सहलाता है.... मैं उसे नहीं कहता : आज आसमान साफ़ था और अधिक नीला वह मुझसे नहीं कहता : आसमान आज साफ़ था । वह दृश्य है और द्रष्टा मैं दृश्य हूँ और द्रष्टा मैं अपना बायाँ पैर हिलाता हूँ वह अपना दायाँ पैर हिलाता है मैं एक गीत की धुन गुनगुनाता हूँ वह उसी धुन का कोई गीत गुनगुनाता है । मैं सोचता हूँ : क्या वह आईना है जिसमें मैं ख़ुद को देखता हूँ ? तब मैं उसकी आँखों की ओर देखता हूँ, लेकिन मैं उसे नहीं देखता... मैं कैफ़े से निकल आता हूँ तेज़ी से . मैं सोचता हूँ, हो न हो वह एक हत्यारा है, या शायद वह एक राहगीर है जो सोचता हो कि मैं हत्यारा हूँ वह डरा हुआ है, और मैं भी !

होना

हम यहाँ खड़े हैं । बैठे हैं । यहाँ हैं । अनश्वर यहाँ । और हमारा बस एक ही मकसद है : होना । फिर हम हर चीज़ पर असहमत होंगे ; राष्ट्रध्वज के डिजाइन पर (बेहतर हो मेरे ज़िन्दा लोगो अगर तुम चुनो एक भोले गधे का प्रतीक) और हम नए राष्ट्रगान पर असहमत होंगे (बेहतर हो अगर तुम चुनो एक गाना कबूतरों के ब्याह का) और हम असहमत होंगे औरतों के कर्तव्य पर (बेहतर हो अगर तुम चुनो एक औरत को सुरक्षा-प्रमुख के रूप में) हम प्रतिशत पर असहमत होंगे, निजी पर और सार्वजनिक पर, हम हरेक चीज़ पर असहमत होंगे. और हमारा एक ही मकसद होगा : होना... उसके बाद मौक़ा मिलता है और मकसद चुनने का ।

एक मुल्क

एक मुल्क पौ फटने के कगार पर, कुछ ही पलों में ग्रह सो जाएँगे शायरी की जुबान में । कुछ ही पलों में हम इस लम्बे रास्ते को विदा कहेंगे और पूछेंगे : कहाँ से हम शुरूआत करें ? कुछ ही पलों में हम अपने ख़ूबसूरत पर्वत नार्सीसस को सावधान करेंगे अपने ही प्रतिबिम्ब से उसके मोह के खिलाफ; तुम अब और शायरी के काबिल नहीं, इसलिए देखो राहगीर की ओर

पहरेदार से

एक पहरेदार से : मैं तुम्हें सिखाऊँगा इन्तज़ार करना मेरी स्थगित मौत के दरवाज़े पर धीरज रखो, धीरज रखो हो सकता है तुम मुझसे थक जाओ और अपनी छाया मुझसे उठा लो और अपनी रात में प्रवेश करो बिना मेरे प्रेत के ! ....... एक दूसरे पहरेदार से : मैं तुम्हें सिखाऊँगा इन्तज़ार करना एक कॉफीघर के प्रवेश-द्वार पर कि तुम सुन सको अपने दिल की धड़कन को धीमा होते, तेज़ होते तुम शायद जान पाओ सिहरन जैसे कि मैं जानता हूँ धीरज रखो, और तुम शायद गुनगुना सको एक प्रवासी धुन अन्दालुसियायी तकलीफ में, और परिक्रमा में फारसी तब चमेली भी तकलीफ देती है तुम्हें और तुम चले जाते हो ....... एक तीसरे पहरेदार से : मैं तुम्हें इन्तज़ार करना सिखाऊँगा एक पत्थर की बेंच पर, शायद हम बताएँगे एक-दूसरे को अपने नाम. तुम शायद देख पाओ एक ज़रूरी मुस्कराहट हम दोनों के दरम्यान: तुम्हारी एक माँ है और मेरी एक माँ है और हमारी एक ही बारिश है और हमारा एक ही चाँद है और एक छोटी सी अनुपस्थिति खाने की मेज़ से.

शब्द

मेरे शब्द जब गेहूँ थे मैं था धरती । मेरे शब्द जब रोष थे मैं था तूफ़ान । मेरे शब्द जब चट्टान थे मैं था नदी । जब मेरे शब्द बन गए शहद मक्खियों ने मेरे होंठ ढँक लिए ।

चीज़ें और हम

हम चीज़ों के मेहमान थे, उनमें से ज़्यादातर को हमसे कम परवाह है जब हम उन्हें छोड़ते हैं एक मुसाफ़िर विलाप करता है,और नदी उस पर हँसती है गुज़र जाओ, क्योंकि कोई नदी तक़रीबन वैसी ही होती है आरंभ में जैसी वह अंत में होती है कुछ भी इंतज़ार नहीं करता, चीज़ें उदासीन हैं हमारे प्रति, हम उनका अभिनंदन करते हैं और उनके प्रति कृतज्ञ होते हैं लेकिन चूँकि हम उन्हें कहते हैं अपनी भावना हम नाम में यक़ीन करते हैं। क्या उनकी असलियत है उनके नाम में? हम चीज़ों के मेहमान हैं, हममें से अधिकतर अपनी शुरुआती भावनाएँ भूल जाते हैं, और उनसे इन्कार करते हैं।

धरती

उदास शाम एक उजड़े हुए गाँव में आँखें अधनींदी मैं याद करता हूँ तीस साल और पाँच युद्ध उम्मीद करता हूँ कि मुस्तकबिल रखेगा महफ़ूज़ मेरी मक्के की बालियाँ और गायक गुनगुनाएगा आग और कुछ अजनबियों के बारे में और शाम बस किसी और शाम की तरह होगी और गायक गुनगुनाएगा और उन्होंने उससे पूछा : तुम क्यों गाते हो और उसने जवाब दिया मैं गाता हूँ क्योंकि मैं गाता हूँ ... और उन्होंने उसका सीना टटोला लेकिन उसमें पा सके सिर्फ उसका दिल और उन्होंने उसका दिल टटोला लेकिन पा सके सिर्फ उसके लोग और उन्होंने उसका स्वर टटोला लेकिन पा सके सिर्फ उसकी वेदना और उन्होंने उसकी वेदना टटोली लेकिन पा सके सिर्फ उसकी जेल और उन्होंने उसकी जेल टटोली लेकिन देख सके वहाँ खुद को ही जंजीरों में बँधा हुआ

उदासीन बंदा

उसे किसी चीज़ से फ़र्क़ नहीं पड़ता। अगर वे उसके घर का पानी काट दें, वह कहेगा, “ कोई बात नहीं, जाड़ा क़रीब है।” और अगर वे घंटे भर के लिए बिजली रोक दें वह उबासी लेगा: “कोई बात नहीं, धूप काफ़ी है” अगर वे उसकी तनख़्वाह में कटौती की धमकी दें, वह कहेगा, “कोई बात नहीं! मैं महीने भर के लिए शराब और तमाखू छोड़ दूँगा।” और अगर वे उसे जेल ले जाएँ, वह कहेगा, “कोई बात नहीं, मैं कुछ देर अपने साथअकेले रह पाऊँगा, अपनी यादों के साथ।” और अगर उसे वे वापस घर छोड़ दें, वह कहेगा, “कोई बात नहीं, यही मेरा घर है।” मैंने एक बार ग़ुस्से में कहा उससे, कल कैसे रहोगे तुम?” उसने कहा, “कल की मुझे चिंता नहीं। यह एक ख़याल भर है जो मुझे लुभाता नहीं। मैं हूँ जो मैं हूँ: कुछ भी बदल नहीं सकता मुझे, जैसे कि मैं कुछ नहीं बदल सकता, इसलिए मेरी धूप न छेंको।” मैंने उससे कहा, “न तो मैं महान सिकंदर हूँ और न मैं (तुम?) डायोजिनिस” और उसने कहा, “लेकिन उदासीनता एक फ़लसफ़ा है यह उम्मीद का एक पहलू है।”

हम एक जन बन सकेंगे

हम एक जन हो सकेंगे, अगर हम चाहें, जब हम सीख लेंगे कि हम फ़रिश्ते नहीं, और शैतानियत सिर्फ़ दूसरों का विशेषाधिकार नहीं हम एक जन हो सकेंगे, जब हम हर उस वक़्त पवित्र राष्ट्र को शुक्राना देना बंद करेंगे जब भी एक ग़रीब शख़्स को रात की एक रोटी मिल जाए हम एक जन बन सकेंगे जब जब हम सुल्तान के चौकीदार और सुल्तान को बिना मुक़दमे के ही पहचान लेंगे हम एक जन बन सकेंगे जब एक शायर एक रक्कासा की नाभि का वर्णन कर सकेगा, हम एक जन बन सकेंगे जब हम भूल जाएँगे कि हमारे क़बीले ने क्या कहा है हमें, और जब वाहिद शख़्स छोटे ब्योरे की अहमियत भी पहचान सकेगा हम एक जन बन सकेंगे जब एक लेखक सितारों की ओर सर उठा कर देख सकेगा, बिना यह कहे कि हमारा देश अधिक महान है और अधिक सुंदर हम एक जन बन सकेंगे जब नैतिकता के पहरेदार सड़क पर एक तवायफ़ को हिफ़ाज़त दे पाएँगे पीटने वालों से हम एक जन बन पाएँगे जब फ़िलीस्तीनी अपने झंडे को सिर्फ़ फ़ुटबाल के मैदान में, ऊँट दौड़ में और नकबा के रोज़ याद करे हम एक जन बन सकेंगे अगर हम चाहें, जब गायक को एक दो माखन के लोगों की शादी के वलीमा पर सूरत अल रहमान पढ़ने की इजाज़त हो हम एक जन बन सकेंगे जब हमें तमीज हो सही और ग़लत की

मैं कुछ अधिक बात करता हूँ

कुछ अधिक बात करता हूँ औरतों और वृक्षों के बीच की बारीकी के बारे में, पृथ्वी के जादू के बारे में, ऐसे एक मुल्क के बारे में जिसके कोई पासपोर्ट की मुहर नहीं, मैं पूछता हूँ: क्या यह सच है भली देवियो और सज्जनो, कि यह जो इंसान की धरती है वह सारे मनुष्यों के लिए है जैसा आप कहते हैं? वैसी हालत में कहाँ है मेरी नन्हीं कुटिया और कहाँ हूँ मैं? कॉन्फ़रेंस के प्रतिभागी और तीन मिनट तालियाँ बजाते हैं मेरे लिए, तीन मिनट आज़ादी के और मान्यता के, कॉन्फ़रेंस हमारे लौटने के अधिकार को स्वीकार करती है , सारी मुर्ग़ियों और घोड़ों की तरह, पत्थर से बने सपने में। मैं उनसे हाथ मिलाता हूँ, एक एक करके। मैं सलाम करता हूँ उन्हें। और फिर मैं दूसरे मुल्क को अपना सफ़र जारी रखता हूँ और बात करता रहता हूँ मृगमरीचिका और बरसात के बीच के अंतर के बारे में। मैं पूछता हूँ: क्या यह सच है भली देवियो और सज्जनो, कि यह इंसान की धरती सभी मनुष्यों के लिए है?

फ़िलिस्तीनी कविताएँ हिंदी में : महमूद दरवेश (अनुवादक : रामकृष्ण पाण्डेय)


शोकगीत/हमारे देश में

हमारे देश में लोग दुखों की कहानी सुनाते हैं मेरे दोस्त की जो चला गया और फ़िर कभी नहीं लौटा उसका नाम... नहीं, उसका नाम मत लो उसे हमारे दिलों में ही रहने दो राख की तरह हवा उसे बिखेर न दे उसे हमारे दिलों में ही रहने दो यह एक ऐसा घाव है जो कभी भर नहीं सकता मेरे प्यारो, मेरे प्यारे यतीमों मुझे चिन्ता है कि कहीं उसका नाम हम भूल न जाएँ जाड़े की इस बरसात और आंधी में हमारे दिल के घाव कहीं सो न जाएँ मुझे भय है । उसकी उम्र… एक कली जिसे बरसात की याद तक नहीं चाँदनी रात में किसी महबूबा को प्रेम का गीत भी नहीं सुनाया अपनी प्रेमिका के इन्तज़ार में घड़ी की सुइयाँ तक नहीं रोकीं असफल रहे उसके हाथ दीवारों के पास उसके लिए उसकी आँखें उददाम इच्छाओं में कभी नहीं डूबीं वह कभी किसी लड़की को चूम नहीं पाया वह किसी के साथ नहीं कर पाया इश्क़बाजी अपने ज़िन्दगी में सिर्फ़ दो बार उसने आहें भरी एक लड़की के लिए पर उसने कभी कोई खास ध्यान ही नहीं दिया उस पर वह बहुत छोटा था उसने उसका रास्ता छोड़ दिया जैसे उम्मीद का हमारे देश में लोग उसकी कहानी सुनाते हैं जब वह दूर चला गया उसने माँ से विदा नहीं ली अपने दोस्तों से नहीं मिला किसी से कुछ कह नहीं गया एक शब्द तक नहीं बोल पाया ताकि कोई भयभीत न हो ताकि उसकी मुंतजिर माँ की लम्बी रातें कुछ आसान हो जाएँ जो आजकल आसमान से बातें करती रहती है और उसकी चीज़ों से उसके तकिये से, उसके सूटकेस से बेचैन हो-होकर वह कहती रहती है अरी ओ रात, ओ सितारों, ओ खुदा, ओ बादल क्या तुमने मेरी उड़ती चिड़िया को देखा है उसकी आंखें चमकते सितारों-सी है उसके हाथ फूलों की डाली की तरह है उसके दिल में चाँद और सितारे भरे हैं उसके बाल हवाओं और फूलों के झूले हैं क्या तुमने उस मुसाफ़िर को देखा है जो अभी सफ़र के लिए तैयार ही नहीं था वह अपना खाना लिए बगैर चला गया कौन खिलाएगा उसे जब उसे भूख लगेगी कौन उसका साथ देगा रास्ते में अजनबियों और खतरों के बीच मेरे लाल, मेरे लाल अरी ओ रात, ओ सितारे, ओ गलियों, ओ बादल कोई उसे कहो हमारे पास जवाब नहीं है बहुत बड़ा है यह घाव आँसुओं से, दुखों से और यातना से नहीं बर्दाश्त नहीं कर पाओगी तुम सच्चाई क्योंकि तुम्हारा बच्चा मर चुका है माँ, ऐसे आँसू मत बहाओ क्योंकि आँसुओं का एक स्रोत होता है उन्हें बचाकर रखो शाम के लिए जब सड़कों पर मौत ही मौत होगी जब ये भर जाएँगी तुम्हारे बेटे जैसे मुसाफ़िरों से तुम अपने आँसू पोंछ डालो और स्मृतिचिह्न की तरह सम्भालकर रखो कुछ आँसुओं को अपने उन प्रियजनों के स्मृतिचिह्न की तरह उन शरणार्थियों के स्मृतिचिह्न की तरह जो पहले ही मर चुके हैं माँ अपने आँसू मत बहाओ कुछ आँसू बचाकर रखो कल के लिए शायद उसके पिता के लिए शायद उसके भाई के लिए शायद मेरे लिए जो उसका दोस्त है आँसुओं की दो बूँदें बचाकर रखो कल के लिए हमारे लिए हमारे देश में लोग मेरे दोस्त के बारे में बहुत बातें करते हैं कैसे वह गया और फ़िर नहीं लौटा कैसे उसने अपनी जवानी खो दी गोलियों की बौछारों ने उसके चेहरे और छाती को बींध डाला बस और मत कहना मैंने उसका घाव देखा है मैंने उसका असर देखा है कितना बड़ा था वह घाव मैं हमारे दूसरे बच्चों के बारे में सोच रहा हूँ और हर उस औरत के बारे में जो बच्चा गाड़ी लेकर चल रही है दोस्तों, यह मत पूछो वह कब आएगा बस यही पूछो कि लोग कब उठेंगे

गाज़ा शहर

मैं उजास कमरे में बैठता हूं एक चौकी पर जिस पर एक भूरा कंबल बिछा होता है इंतजार करता हूं मुअज्जिन का कि खड़ा हो सकूं नमाज पढ़ने के लिए अजान की आवाज मेरी खिड़की से आती है और मैं उन सभी लोगों के बारे में सोचने लगता हूं जो नमाज में झुक रहे होंगे हर बार कम हो रहा होगा उनके मन का भय हर बार एक नई उदासी घर कर रही होगी उनकी आत्मा में क्योंकि उनके बच्चे गलियों में खड़े हैं पंक्तिबद्ध कैदियों की तरह मौत के शिविर के मैं अपनी टूटी हुई खिड़की की ओर बढ़ता हूं मेरा सिर थोड़ा झुकता है और एक झलक लेने की कोशिश करता है भूतों के इस शहर की जो मारे गये हैं अपनी कब्र के संकरे दरवाजे से आते-जाते हैं ठंडी दीवार से सटा है मेरे चेहरे का दाहिना हिस्सा और मेरा हाथ मैं छुप जाता हूं फूहड़ की तरह शर्मिंदा मैं अपने हल्के नीले चोगे का कालर इतनी जोर से खींचता हूं कि वह फट जाता है और एक ओर झूल जाता है जैसे हम सबकी जिंदगियां झूल रही हैं मेरे नाखून मेरे ही मांस में धंस जाते हैं और मैं अपने को ही भींच लेता हूं मेरी छाती पर नाखून के तीन निशान बन जाते हैं तीन बातें मेरे दिमाग में आती हैं मैं सोचता हूं कि क्या इस मलबे में खुदा दब गया है हर घर एक कैदखाना है और हर कमरा एक पिंजरा देबके अब जिन्दगी में शामिल नहीं है सिर्फ शवयात्राएं हैं गाजा यह नगरी गर्भवती है लोगों से और कोई उसके दर्द में मदद नहीं करता कहीं सड़क नहीं है अस्पताल नहीं है, स्कूल नहीं है हवाई अड्डा नहीं है सांस लेने को हवा तक नहीं है और मैं यहां एक कमरे में बंद हूं खिड़की पर खड़ा असहाय, अनुपयोगी अमेरिका में मैं टेलीविजन देख रहा होता सीएनएन को सुन रहा होता कि इजरायल मांग कर रहा है कि आतंकवाद खत्म होना चाहिए यहां मैं जो कुछ देख रहा हूं वह पीड़ा का आतंक है और बच्चे हैं जो नहीं जानते कि वे बच्चे हैं मिलोसेविच को कुचल दिया गया पर शैरोन का क्या होगा अंततः मैं कपड़े पहनकर तैयार होता हूं खिड़की के सामने तनकर खड़ा हो जाता हूं और गले में थूक अटकने लगता है जैसे ही गोली बारी शुरू होती है एफ-16 विमान रोज की तरह वहां से गुजरते हैं

फ़िलिस्तीनी कविताएँ हिंदी में : महमूद दरवेश (अनुवादक : यादवेन्द्र)



बहुत बोलता हूँ मैं

बहुत बोलता हूँ मैं स्त्रियों और वृक्षों के बीच के सूक्ष्म भेदों के बारे में धरती के सम्मोहन के बारे में और ऐसे देश के बारे में नहीं है जिसकी अपनी मोहर पासपोर्ट पर लगने को पूछता हूँ : भद्र जनों और देवियों! क्या यह सच है- जैसाकि आप कह रहे है- कि यह धरती है सम्पूर्ण मानव-जाति के लिए ? यदि सचमुच ऐसा है तो कहाँ है मेरा घर- मेहरबानी कर मुझे मेरा ठिकाना तो बता दें आप ! सम्मेलन में शामिल सब लोग अनवरत करतल-ध्वनि करते रहे अगले तीन मिनट तक- आज़ादी और पहचान के बहुमूल्य तीन मिनट! फिर सम्मेलन मुहर लगाता है लौट कर अपने घर जाने के हमारे अधिकार पर जैसे चूजों और घोड़ों का अधिकार है शिला से निर्मित स्वप्न में लौट जाने का। मैं वहाँ उपस्थित सभी लोगों से मिलाते हुए हाथ एक-एक करके झुक कर सलाम करते हुए सबको- फिर शुरु कर देता हूँ अपनी यात्रा जहाँ देना है नया व्याख्यान कि क्या होता है अंतर बरसात और मृग-मरीचिका के बीच वहाँ भी पूछता हूं : भद्र जनों और देवियों! क्या यह सच है- जैसा आप कह रहे हैं- कि यह धरती है सम्पूर्ण मानव-जाति के लिए ?

मरना

दोस्तो! आप उस तरह तो न मरिए जैसे मरते रहे हैं अब तक मेरी विनती है- अभी न मरें एक साल तो रुक जाएँ मेरे लिए एक साल केवल एक साल और- फिर हम साथ-साथ सड़क पर चलते हुए अपनी तमाम बातें करेगें एक दूसरे से समय और इश्तहारों की पहुँच से परे- कब्रें तलाशने और शोकगीत रचने के अलावा हमारे सामने अभी पड़े हुए हैं अन्य बहुतेरे काम।

शब्द

जब मेरे शब्द बने गेहूँ मैं बन गया धरती। जब मेरे शब्द बने क्रोध मैं बन गया बवंडर। जब मेरे शब्द बने चट्टान मैं बन गया नदी। जब मेरे शब्द बन गये शहद मक्खियों ने कब्जे मे ले लिए मेरे होंठ

फ़िलिस्तीनी कविताएँ हिंदी में : महमूद दरवेश (अनुवादक : अशोक पाण्डे)


रीटा और राइफ़ल

एक राइफ़ल होती है रीटा और मेरे दरम्यान और जो भी जानता है रीटा को झुकता है उसके सम्मुख और शहद की रंगत वाले उसके केशों की दिव्यता से खेलता है और मैंने रीटा को चूमा जब वह युवा थी और मुझे याद है किस तरह वह नज़दीक आई थी और कैसे मेरी बाँहें ढँके थीं उन प्यारी लटों को और मैं याद करता हूँ रीटा को जिस तरह एक गौरैय्या याद करती है अपनी धारा को उफ़ रीटा हम दोनों के दरम्यान लाखों गौरैयें और छवियाँ हैं और बहुत सारी मुलाक़ातें जिन्हें राइफ़ल से दाग़ा गया है रीटा का नाम मेरे मुँह ले लिए एक भोज था रीटा की देह मेरे रक्त का विवाह था और मैं दो बरस खोया रहा रीटा में और दो साल तक सोया की वह मेरी बाँहों में और हमने वायदे किए सुन्दरतम प्यालों के दौरान और हम अपने होठों की शराब में दहके और हमने दोबारा जन्म लिया उफ़ रीटा! इस राइफ़ल के सामने कौन सी चीज़ मेरी आँखों को तुमसे दूर हटा सकती थी सिवा एक छोटी सी नींद या शहद के रंग के बादलों के? एक दफ़ा उफ़, गोधूलि की ख़ामोशी सुबह मेरा चन्द्रमा किसी सुदूर जगह जा बसा उन शहद रंग की आँखों की तरफ़ और शहर ने बुहार दिया सारे गायकों को और रीटा को रीटा और मेरी आँखों के दरम्यान - एक राइफ़ल

मैं बहुत बोलता हूं

स्त्रियों और पेड़ों के मुतल्लिक छोटी से छॊटी बातों के बारे में बहुत बोलता हूं मैं धरती के तिलिस्म की बाबत, एक मुल्क के बारे में जहां पासपोर्ट पर मोहर नहीं लगती मैं पूछता हूं: क्या यह सच है भले स्त्री-पुरुषो, कि मनुष्य की धरती हर किसी के लिए है जैसा आप कहते हैं? अगर ऐसा है तो मेरी छोटी कॉटेज कहां है, और मैं कहां हूं? एकत्रित श्रोतागण अगले तीन मिनट तक मेरा उत्साह बढ़ाते हैं, पहचान और आज़ादी के तीन मिनट. श्रोतागण हमारी वापसी के अधिकार को सम्मति देते हैं सभी मुर्ग़ियों और घोड़ों की तरह, पत्थरों से बने एक सपने को. मैं उनसे हाथ मिलाता हूं, एक एक कर के. मैं उनके सम्मुख झुकता हूं. फिर निकल पड़ता हूं अपनी यात्रा पर एक दूसरे देश के लिए और बातें करता हूं मरीचिका और बरसात के बीच के फ़र्क़ की. मैं पूछता हूं : क्या यह सच है भले स्त्री-पुरुषो, कि मनुष्य की धरती हर किसी के लिए है?

मेरे गिटार का तार बन जाओ, पानी

मेरे गिटार का तार बन जाओ, पानी विजेता आते हैं, विजेता जाते हैं ... मुश्किल होता जा रहा है मेरे लिए आईनों में अपना चेहरा याद रखना मेरे लिए स्मृति बन जाओ ताकि मैं वह देख सकूं जिसे मैं खो चुका बहिर्गमन के इतने सारे रास्तों के बाद अब कौन हूं मैं? बर्बाद हो चुके एक दृश्य पर खड़ी एक ऊंची चट्टान पर एक पत्थर है मेरा जिस पर मेरा नाम खुदा हुआ है. सात सौ बरस मुझे अपने पहरे में ले जाते हैं शहर की दीवारों के पार. समय फ़िज़ूल घूमता जाता है मेरा बीता हुआ कल बचाने के वास्ते जो मुझ में और दूसरों में मेरे निर्वासन के इतिहास को जन्म देता है. मेरे गिटार का तार बन जाओ, पानी विजेता आते हैं, विजेता जाते हैं ... दक्षिण की तरफ़ जाते हुए जबकि परिवर्तन की खाद पर सड़ा करते हैं मुल्क. मैं जानता हूं कल मैं कौन था लेकिन कोलम्बस के अटलान्टिक झण्डों के तले कल कौन होऊंगा मैं? मेरे गिटार का तार बन जाओ, पानी, एक तार बन जाओ मिश्र में नहीं है कोई मिश्र. फ़ेज़ में फ़ेज़ नहीं, और सीरिया है बहुत दूर. मेरे जनों के झण्डे पर कोई बाज़ नहीं मंगोलों के तेज़ घोड़ों के रौंदे हुए खजूर के पेड़ों के पूरब से नहीं बहती कोई नदी. किस अन्दालूसिया में मेरि मुलाक़ात हुई अपने अन्त से? यहां, इस जगह? या वहां? मैं जानता हूं मैं मर चुका, छोड़कर जा चुका इस जगह पर जो सर्वोत्तम था मुझमें: मेरा अतीत मेरे पास मेरे गिटार के अलावा कुछ नहीं बचा है. मेरे गिटार का तार बन जाओ, पानी विजेता आते हैं, विजेता जाते हैं ... फ़ेज़ : एक पारम्परिक तुर्की टोपी

जब वह निकल पड़ता है

वह दुश्मन जो चाय पीता है हमारे बाड़े में उसके पास एक घोड़ा है धुंए में, एक बेटी घनी भवों वाली, भूरी उसकी आंखें और उसके कन्धों पर गुंथी हुईं चोटियां जैसे गीतों की एक रात. उसके पास अपनी बेटी की तस्वीर हमेशा हुआ करती है जब वह हमारी चाय पीने आता है लेकिन वह भूल जाता है हमें अपनी रात की गतिविधियों के बारे में बताना, पहाड़ी की चोटी पर छोड़ दिए गए पुरातन गीतों वाले एक घोड़े के बारे में. हमारे झोपड़े में दुश्मन अपनी राइफ़ल को टिकाता है मेरे दादाजी की कुर्सी से और हमारी डबलरोटी खाता है किसी भी मेहमान की तरह कुछ पल को झपकी लेता है आरामकुर्सी पर. फिर जब वह बाहर जाता हुआ झुककर हमारी बिल्ली को सहलाने को झुकता है वह कहता है: "जो शिकार हो गया उसे दोष मत दो" "और कौन हो सकता है वह?" हम पूछते हैं "ख़ून जो रात में नहीं सूखता." उसके कोट के बटन चमकते हैं जब वह बाहर जा रहा होता है. आप सब को शुभरात्रि! हमारे कुंएं को सलाम कहना! गूलर के हमारे पेड़ों को सलाम कहना! जौ के खेतों में हमारी छायाओं पर सम्हलकर चलना. हमारे ऊंचे चीड़ों का अभिवादन करना. लेकिन कृपा करके दरवाज़ा खुला रखना रात को और भूलना मत कि घोड़ों को हवाई जहाज़ों से डर लगता है. और वहां हमारा अभिवादन करना, अगर तुम्हारे पास समय हो तो. दरवाज़े पर दर असल हम यह कहना चाहते हैं. वह इसे साफ़ सुनता है मगर खांसता हुआ उसे अनसुना कर देता है परे हटाता हुआ. तो वह हर शाम क्यों आता है शिकार के पास हमारी कहावतों को कन्ठस्थ कर लेता है, जैसा हम करते हैं हमारी विशिष्ट जगहों और पवित्र स्थानों के बारे में हमारे गीत दोहराता है? अगर यह सब एक बन्दूक के लिए न होता तो हमारी बांसुरियों ने एक जुगलबन्दी बजाई होती. जब तक हमारे भीतर धरती घूम रही है अपने गिर्द युद्ध ख़त्म नहीं होगा तो भला बने रहा जाए. उसने हमसे कहा कि हम भले बने रहें जब तक यहां हैं वह आइरिश हवाबाज़ के बारे में लिखी येट्स की कविता सुनाता है: "वे जिनसे मैं लड़ता हूं, उनसे नफ़रत नहीं मुझे वे जिनकी रखवाली मैं करता हूं, उनसे प्यार नहीं मुझे." फिर वह हमारी जर्जर झोपड़ी से चला जाता है और चलता जाता है अस्सी मीटर तक मैदान के छोर पर पत्थर के हमारे पुराने घर तक. हमारे घर का अभिवादन करना ओ अजनबी. कॉफ़ी के प्याले वही हैं. क्या तुम अब भी उन पर हमारी उंगलियां सूंघ सकते हो? क्या तुम चोटियों और घनी भवों वाली अपनी बेटी को बता सकते हो कि उसका एक अनुपस्थित दोस्त है जो उस से मिलना चाहता है, उसके आईने में प्रवेश कर उसका रहस्य देखना चाहता है. इस जगह पर किस तरह खोज सकी वह उसकी उम्र? उससे नमस्ते कहना, अगर तुम्हारे पास समय हो तो. वह भली तरह सुनता है जो हम उसे बताना चाहते हैं लेकिन वह मगर खांसता हुआ उसे अनसुना कर देता है परे हटाता हुआ. उसके कोट के बटन चमकते हैं जब वह बाहर जा रहा होता है. विलियम बटलर येट्स : बीसवीं सदी के महान अंग्रेज़ी कवि.

वे चाहेंगे मुझे मरा हुआ देखना

वे चाहेंगे मुझे मरा हुआ देखना, कहने को : वह हमारा है, हमारा बीस सालों तक मैंने उनके कदमों की चाप सुनी है रात की दीवारों पर वे कोई दरवाज़ा नहीं खोलते, लेकिन फ़िलहाल वे यहां हैं. मुझे उनमें से तीन दिखाई पड़ते हैं: एक कवि, एक हत्यारा और किताबों का एक पाठक. क्या आप थोड़ी वाइन पिएंगे? मैंने पूछा. हां, उन्होंने जवाब दिया. आप मुझे गोली कब मारने की सोच रहे हैं? मैंने पूछा. इत्मीनान रखो, उन्होंने उत्तर दिया. उन्होंने अपने गिलासों को एक कतार में रखा और लोगों के लिए गाना शुरू किया. मैंने पूछा: आप मेरी हत्या कब शुरू करेंगे? वह तो हो चुकी, उन्होंने कहा ... तुमने अपनी आत्मा से पहले अपने जूते क्यों भेजे? ताकि वह धरती की सतह पर टहल सके, मैंने कहा धरती दुष्टता की हद तक काली है, तुम्हारी कविता इतनी सफ़ेद कैसे है? क्योंकि मेरे हृदय में तीस समुद्र उफन रहे हैं, मैंने जवाब दिया. उन्होंने पूछा : तुम फ़्रेंच वाइन को प्यार क्यों करते हो? क्योंकि मुझे सुन्दरतम स्त्रियों से प्यार करना होता है, मैंने जवाब दिया. उन्होंने पूछा: तुम किस तरह की मौत चाहोगे? नीली, जिस तरह तारे उड़ेले जाते हैं एक खिड़की से - क्या आप और वाइन पसन्द करेंगे? हां, हम पिएंगे, वे बोले. कृपया इत्मीनान से अपना समय लीजिये. मैं चाहता हूं आप मुझे धीरे धीरे कत्ल करें ताकि मैं अपनी प्यारी पत्नी के लिए अपनी आख़िरी कविता लिख सकूं. वे हंसे और उन्होंने छीन लिए मुझसे फ़क़त वे शब्द जो समर्पित थे मेरी प्यारी पत्नी को.

सहृदय ग्रामीण

मैं तब तक नहीं जानता था अपनी मां के जीवन के तौर तरीकों के बारे में न उसके परिवार के, जब समुद्र से जहाज़ आए थे. मुझे अपने दादाजी के लबादे और जब से मैं यहां पैदा हुआ, एक ही बार में, किसी घरेलू पशु की तरह मैंने कॉफ़ी की अनन्त महक को जान लिया था. धरती के चक्के से गिरने पर हम भी रोया करते हैं. तो भी हम पुराने मर्तबानों में नहीं सम्हालते अपनी आवाज़ें. हम पहाड़ी बकरी के सींग नहीं टांगते दीवारों पर और अपनी धूल को नहीं बनाते अपना साम्राज्य. हमारे सपने दूसरों की अंगूर की बेलों पर निगाह नहीं डालते. वे नियम नहीं तोड़ते. मेरे नाम में कोई पंख नहीं थे, सो मैं नहीं उड़ सकता था दोपहर से आगे. अप्रैल का ताप गुज़रते मुसाफ़िरों के बलालाइकों जैसा होता था वह हमें फ़ाख़्तों की तरह उड़ा दिया करता था. मेरा पहला भय: एक लड़की का आकर्षण जिसने रिझाया मुझे अपने घुटनों पर से दूध सूंघने को, लेकिन मैं उस डंक से भाग आया! हमारे पास भी अपना रहस्य होता है जब सूरज गिरता है सफ़ेद पॉपलरों पर. हम एक उद्दाम इच्छा से भर जाया करते कि उस के लिए रोएं जो बिना वजह मर गया और एक उत्सुकता से कि बेबीलोन देखने जाएं या दमिश्क की कोई मस्ज़िद. दर्द की अमर महागाथा में हम किसी फ़ाख़्ते की कोमल आवाज़ में आंसू की बूंद हैं हम सहृदय ग्रामीण हैं और हमें अपने शब्दों पर अफ़सोस नहीं होता. दिनों की तरह हमारे नाम भी समान हैं. हमारे नाम हमें प्रकट नहीं करते. हम अपने मेहमानों की बातों को जज़्ब कर लेते हैं. हनारे पास उस अजनबी औरत को उस देश के बारे में बताने को बातें होती हैं जिन्हें वह अपने स्कार्फ़ पर काढ़ रही होती है लौट रही अपनी गौरैयों के पंखों की किनारियों से. जब जहाज़ आए थे समुद्र से इस जगह को सिर्फ़ पेड़ थामे हुए थे. हम गायों को उनकी कोठरियों में भोजन दे रहे थे और अपने हाथों बनाई आल्मारियों में अपने दिनों को तरतीबवार लगा रहे थे. हम घोड़ों को तैयार कर रहे थे, और भटकते सितारे का स्वागत. हम भी सवार हुए जहाज़ों पर, रात में हमारे जैतून में जगमग करते पन्ने हमारा मनोरंजन करते थे, से आने वाली महक का पता था, और कुत्ते जो गिरजाघर की मीनार के ऊपर गतिमान चांद पर भौंक रहे थे हम निडर थे तब भी. क्योंकि हमारा बचपन नहीं चढ़ा था हमारे साथ. हम एक गीत भर से सन्तुष्ट थे जल्द ही हम अपने घर वापस चले जाएंगे जब जहाज़ उतारेंगे अपना अतिरिक्त बोझा. बलालाइका : एक पारम्परिक रूसी वाद्य यन्त्र

रख लो मेरा पासपोर्ट!

उन्होंने नहीं पहचाना मुझे मेरी परछाइयों में जो चूस लेती हैं इस पासपोर्ट से मेरा रंग और उनके लिए मेरा घाव प्रदर्शनी में धरी एक चीज़ था फ़ोटोग्राफ़ इकठ्ठा करने के शौकीन एक पर्यटक की तरह उन्होंने मुझे नहीं पहचाना, आह ... यहां से जाओ नहीं बिना सूरज की मेरी हथेली क्योंकि पेड़ मुझे पहचानते हैं मुझे यूं ज़र्द चन्द्रमा की तरह छोड़ कर मत जाओ! तमाम परिन्दे जिन्होंने पीछा किया मेरी हथेली का सुदूर हवाई अड्डे के दरवाज़े पर गेहूं के सारे खेत सारी कारागारें सारे सफ़ेद मकबरे कांटेदार बाड़ वाली सारी सरहदें लहराए जाते सारे रूमाल सारी आंखें सारे के सारे मेरे साथ थे, लेकिन वे अलग हो गए मेरे पासपोर्ट से. छिन गया मेरा नाम और मेरी पहचान? उस धरती पर जिसे मैंने अपने हाथों से पोसा था? हवा को भरता आज जॉब चिल्लाकर बोला: अब से मुझे किसी मिसाल की तरह मत बनाना ! अरे भले लोगो, फ़रिश्तो. पेड़ों से उनका नाम न पूछो घाटियों से मत पूछो उनकी मां कौन है मेरे माथे से फट पड़ता है रोशनी का एक चरागाह और मेरे हाथ से निकलता है एक नदी का जल दुनिया के सारे लोगों का हृदय है मेरी पहचान सो रख लो मेरा पासपोर्ट ! जॉब : हिब्रू गाथाओं के मुताबिक जॉब उज़ नामक स्थान का निवासी था. दुर्भाग्यवश शैतान ने जॉब से ऐसे प्रश्न पूछे जिन्होंने आगे जाकर पाप शब्द की व्याख्या में समाहित हो जाना था.

कामसूत्र से कुछ सबक

आसमानी प्याले के साथ उसका इन्तज़ार करो ख़ुशबूदार ग़ुलाबों के बीच वसन्त की शाम उसका इन्तज़ार करो पहाड़ चढ़ने का प्रशिक्षण पाए घोड़े के धैर्य के साथ उसका इन्तज़ार करो किसी शहज़ादे के सौन्दर्यबोध और खुसूसियत से भरी रुचि के साथ उसका इन्तज़ार करो बादल के सात तकियों के साथ उसका इन्तज़ार करो उड़ती हुई निस्वानी ख़ुशबू के रेशों के साथ उसका इन्तज़ार करो घोड़े की पीठ पर चन्दन की मर्दाना महक के साथ उसका इन्तज़ार करो उसका इन्तज़ार करो और तनिक भी हड़बड़ाओ मत अगर वह देर से आती है, उसका इन्तज़ार करो अगर वह जल्दी आती है, उसका इन्तज़ार करो उसकी लटों में गुँथी चिड़ियों को डराओ मत फूलों की लकदक के चरम पर उसके बैठने की प्रतीक्षा करो उसका इन्तज़ार करो ताकि वह इस हवा को सूंघ सके जो उसके हृदय के लिए इतनी अजनबी इन्तज़ार करो कि वह बादल-दर-बादल पैरों से अपना वस्त्र उठाए और उसका इन्तज़ार करो दूध में डूबते चन्द्रमा को दिखाने को उसे छज्जे पर लेकर जाओ उसका इन्तज़ार करो और शराब से पहले उसे पानी पेश करो उसके सीने पर सो रहे दो परिन्दों पर निगाह मत डालो इन्तज़ार करो और हौले से उसका हाथ छुओ जब वह संगेमरमर पर प्याला रखे इन्तज़ार करो जैसे कि तुम उस के वास्ते ओस ले कर आए हो उससे बातें करो जैसे कोई बांसुरी बातें करेगी किसी डरे हुए वायोलिन के डरे हुए तार से जैसे कि तुम्हें पता हो कल का दिन क्या लाने वाला है इन्तज़ार करो और अंगूठी-दर-अंगूठी उसके वास्ते रात को चमकाओ उसका इन्तज़ार करो जब तक कि रात तुम से इस तरह बातें न करने लगे: तुम दोनों के अलावा कोई भी जीवित नहीं है सो हौले हौले उसे ले जाओ उस मौत की तरफ़ जिसे तुम इस कदर चाहते हो और इन्तज़ार करो ।

एक फ़िलिस्तीनी घाव की डायरी

(फ़दवा तुक़ान (1917–2003) एक महत्वपूर्ण फ़िलिस्तीनी कवयित्री । अपनी विशिष्ट विद्रोही शैली के लिए समूचे अरब जगत में विख्यात) के लिए हमें याद दिलाने की ज़रूरत नहीं कि माउन्ट कारमेल (माउन्ट कारमेल उत्तरी इज़राइल में स्थित बहाई सम्प्रदाय का एक पवित्र पर्वत) हमारे भीतर है और गैलिलीगैलिली उत्तरी इज़राइल का एक बड़ा इलाक़ा जो देश के उत्तरी प्रशासकीय सूबे में पड़ता है की घास हमारी पलकों पर । ये मत कहना : अगर हम दौड़ पड़ते उस तक एक नदी की तरह । मत कहना: हम और हमारा देश एक ही माँस और अस्थियाँ हैं । ... जून से पहले हम नौसिखिये फ़ाख़्ते न थे सो हमारा प्रेम बन्धन के बावजूद बिखरा नहीं बहना, इन बीस बरसों में हमारा काम कविता लिखना नहीं लड़ना था । ००० वह छाया जो उतरती है तुम्हारी आँखों में -ईश्वर का एक दैत्य जो जून के महीने में बाहर आया हमारे सिरों को सूरज से लपेट देने को- शहादत है उसका रंग प्रार्थना का उसका स्वाद किस ख़ूबी से हत्या करता है वह, किस ख़ूबी से करता है उद्धार । ००० रात जो शुरू हुई थी तुम्हारी आँखों से - मेरी आत्मा के भीतर वह एक लम्बी रात का अन्त था: अकाल के युग से ही यहाँ और अब तक वापसी की राह में रहे हैं साथ-साथ ००० और हमने जाना किस से बनती है कोयल की आवाज़ आक्रान्ताओं के चेहरे पर लटकता एक चाकू हमने जाना कब्रिस्तान की शान्ति किस से बनती है एक त्यौहार से ... जीवन के बग़ीचे से ००० तुमने अपनी कविताएँ गाईं, मैंने छज्जों को छोड़ते हुए देखा अपनी दीवारों को शहर का चौक आधे पहाड़ तक फैल गया था: वह संगीत न था जो हमने सुना वह शब्दों का रंग न था जो हमने देखा कमरे के भीतर दस लाख नायक थे । ००० धरती सोख लेती है शहीदों की त्वचाओं को । यह धरती गेहूं और सितारों का वादा करती है । आराधना करो इसकी! हम इसके नमक और पानी हैं । हम इसके घाव हैं, लेकिन लड़ते रहने वाला घाव । ००० मेरी बहना, आंसू हैं मेरे गले में और मेरी आंखों में आग: मैं आज़ाद हूं मैं सुल्तान के प्रवेशद्वार पर अब नहीं करूंगा विरोध । वे जो सारे मर चुके, और वे जो मरेंगे दिवस के द्वार पर उन सब ने ले लिया है मुझे आग़ोश में, और बदल दिया है मुझे एक हथियार में । ००० उफ़, यह मेरा अड़ियल घाव! कोई सूटकेस नहीं है मेरा देश मैं कोई यात्री नहीं हूं मैं एक प्रेमी हूं और प्रेमिका के वतन से आया हूँ । ००० भूगर्भवेत्ता व्यस्त है पत्थरों का विश्लेषण करने में गाथाओं के मलबे में वह खुद अपनी आंखें तलाश रहा है यह दिखाने को कि मैं सड़क पर फिरता एक दृष्टिहीन आवारा हूँ जिसके पास सभ्यता का एक अक्षर तक नहीं । जबकि अपने ख़ुद के समय में मैं अपने पेड़ रोपता हूँ मैं गाता हूँ अपना प्रेम ००० समय आया है कि मैं मृतकों के बदले शब्द लूँ समय आया है कि मैं अपनी धरती और कोयल के वास्ते अपने प्रेम को साबित करूँ क्योंकि ऐसा यह समय है कि हथियार गिटार को लील जाता है और आईने में मैं लगातार लगातार धुंधलाता जा रहा हूँ जब से मेरी पीठ पर उगना शुरू किया है एक पेड़ ने ।

एक प्रार्थना

जिस दिन मेरे शब्द धरती थे ... मैं दोस्त था गेहूँ की बालियों का । जिस दिन मेरे शब्द क्रोध थे मैं दोस्त था बेड़ियों का । जिस दिन मेरे शब्द पत्थर थे मैं दोस्त था धाराओं का, जिस दिन मेरे शब्द एक क्रान्ति थे मैं दोस्त था भूकम्पों का । जिस दिन मेरे शब्द कड़वे सेब थे मैं दोस्त था एक आशावादी का । लेकिन जिस दिन मेरे शब्द शहद में बदले ... मधुमक्खियों ने ढँक लिया मेरे होठों को! ...

एक युवा कवि से

हमारी आकृतियों पर ध्यान न देना और शुरू करना हमेशा अपने ही शब्दों से जैसे कि तुम पहले ही हो कविता लिखने वाले और अन्तिम कवि । अगर तुम हमारी रचनाएँ पढ़ो, यूँ करना कि वे हमारी हवाओं का विस्तार न हों बल्कि यातना की पुस्तक में हमारे सुनने की काबिलियत को बेहतर बनाएँ किसी से मत पूछना : मैं कौन हूँ ? तुम जानते हो तुम्हारी माता कौन है जहाँ तक तुम्हारे पिता की बात है, वह तुम बन जाना । सत्य होता है सफ़ेद, उस पर लिखो एक कौवे की स्याही से सत्य काला होता है, उस पर लिखो किसी मरीचिका की रोशनी से । अगर तुम किसी उक़ाब से लड़ना चाहते हो तो उक़ाब के साथ उड़ो अगर तुम किसी स्त्री से प्रेम करने लगो उसे नहीं बल्कि तुम्हें बनना चाहिए उस इच्छा का अन्त करने वाला । जीवन उससे कम जीवन्त है जितना हम सोचते हैं लेकिन हम बहुत कम सोचते हैं उस बारे में कि कहीं हम अपनी भावनाओं को बीमार न बना लें अगर तुम एक ग़ुलाब के बारे में देर तक सोचोगे तुम किसी तूफ़ान में ज़रा भी हिल नहीं सकोगे तुम मेरी तरह हो, लेकिन मेरा पाताल स्पष्ट है और तुम्हारे पास सड़कें हैं जिनके रहस्य कभी ख़त्म नहीं होते वे उतरती हैं और चढ़ती हैं, उतरती हैं - चढ़ती हैं । तुम युवावस्था को कह सकते हो प्रतिभा की परिपक्वता या बुद्धिमानी । निस्संदेह यह बुद्धिमत्ता है, ठण्डी पद्यहीनता की बुद्धिमत्ता । हाथ में धरी हज़ार चिड़ियाँ उस चिड़िया की बराबरी नहीं कर सकतीं जो एक पेड़ पहने होती है मुश्किल समय में कविता किसी क़ब्रिस्तान में सुन्दर फूलों जैसी होती है आसान नहीं होता मिसालें ढूँढ़ना तो अनुगूँज की सरहद के पीछे हो जाओ, जो तुम हो और जो नहीं भी हो । भावनाओं की ऊष्मा की मियाद की एक तारीख़ होती है सो अपने दिल के वास्ते उसे भर लो भावनाओं से उसका पीछा करो जब तक कि तुम अपने रास्ते न पहुँच जाओ अपने प्रेमी से यह न कहो कि तुम वह हो और वह तुम, उसके उलट बोलो कि हम एक बड़े शरणार्थी बादल के मेहमान हैं । दूसरा रास्ता चुनो, अपनी पूरी ताक़त के साथ, दूर जाओ नियम से एक वाक्य में कभी जगह न दो दो सितारों को कम ज़रूरी चीज़ को रखो बेहद ज़रूरी चीज़ के साथ ताकि सम्पूर्ण बना सको उमड़ते हुए उल्लास को । हमारी हिदायतों की विशुद्धता पर कभी यक़ीन न करो बस, विश्वास रखो गुज़र गए कारवाँ के निशान पर नैतिकता कवि के हृदय में होती है गोली सरीखी एक घातक बुद्धिमत्ता । जब गुस्सा करो तो किसी साण्ड की तरह कमज़ोर हो तो बादाम की कोंपल जैसे जब प्यार करो तो कुछ नहीं, कुछ भी नहीं प्यार का गीत गाओ तो बन्द कमरे में रास्ता लम्बा है किसी पुरातन कवि की रात जैसा मैदान और पहाड़ियाँ, नदियाँ और घाटियाँ । अपने सपने के हिसाब से चलो : तुम्हारा पीछा या तो एक फूल करेगा या फाँसी का फ़न्दा । मुझे तुम्हारे उद्यमों को लेकर कोई चिन्ता नहीं मुझे तुम्हारी चिन्ता उन लोगों को लेकर होती है जो अपने बच्चों की क़ब्रों पर नाचते हैं । और गायकों की नाभियों में लगे छिपे कैमरों से जब तुम ख़ुद को मुझसे और दूसरों से अलग कर लेते हो तुम मुझे निराश नहीं करते । तुम्हारे भीतर जो भी मुझ-सा नहीं, वह अधिक सुन्दर होता है । आज के बाद से तुम्हारा इकलौता अभिभावक है उपेक्षित भविष्य जब तुम दुख में गल रहे हो मोममबत्ती के आँसुओं की मानिन्द सोचो मत या जब पीछा कर रहे हो अपनी अन्तर्चेतना की रोशनी का ख़ुद के लिए सोचो : क्या यही सारा मैं हूँ ? कविता हमेशा अधूरी होती है, तितलियाँ पूरा करती हैं उसे प्रेम में कोई सलाह नहीं. यह अनुभव की बात है कविता में कोई सलाह नहीं, यह प्रतिभा की बात है और हाँ, आख़िर में सब से ज़रूरी बात । सलाम !

फ़िलिस्तीनी कविताएँ हिंदी में : महमूद दरवेश (अनुवादक : मनोज पटेल)


एक कैफ़े और अख़बार के साथ आप

एक कैफ़े और बैठे हुए आप अख़बार के साथ। नहीं, अकेले नहीं हैं आप। आधा भरा हुआ कप है आपका, और बाक़ी का आधा भरा हुआ है धूप से... खिड़की से देख रहे हैं आप, जल्दबाज़ी में गुज़रते लोगों को, लेकिन आप नहीं दिख रहे किसी को। (यह एक खासियत है अदृश्य होने की : आप देख सकते हैं मगर देखे नहीं जा सकते।) कितने आज़ाद हैं आप कैफ़े में, एक विस्मृत शख़्स ! कोई देखने वाला नहीं कि वायलिन कैसे असर करती है आप पर. कोई नहीं ताकने वाला आपकी मौज़ूदगी या नामौज़ूदगी को, या आपके कुहासे में नहीं कोई घूरने वाला जब आप देखते हैं एक लड़की को और टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं उसके सामने। कितने आज़ाद हैं आप, अपने काम से काम रखते, इस भीड़ में, जब कोई नहीं है आपको देखने या ताड़ने वाला ! जो मन चाहे करो ख़ुद के साथ. कमीज़ उतार फेंको या जूते। अगर आप चाहें, आप भुलाए गए और आज़ाद हैं, अपने ख़यालों में. आपके चेहरे या आपके नाम पर कोई ज़रूरी काम नहीं यहाँ। आप जैसे हैं, वैसे हैं - न कोई दोस्त न दुश्मन आपकी यादों को सुनने-गुनने के लिए। दुआ करो उसके लिए जो छोड़ गया आपको इस कैफ़े में क्यूँकि आपने गौर नहीं किया उसके नए केशविन्यास पर, और उसकी कनपटी पर मंडराती तितलियों पर। दुआ करो उस शख़्स के लिए जो क़त्ल करना चाहता था आपको किसी रोज़, बेवज़ह, या इसलिए क्यूँकि आप नहीं मरे उस दिन जब एक सितारे से टकराए थे आप और लिखे थे अपने शुरूआती गीत उसकी रोशनाई से। एक कैफ़े और बैठे हुए आप अख़बार के साथ कोने में, विस्मृत. कोई नहीं खलल डालने वाला आपकी दिमागी शान्ति में और कोई नहीं चाहने वाला आपको क़त्ल करना। कितने विस्मृत हैं आप, कितने आज़ाद अपने खयालों में !

ढलान पर हिनहिनाना

ढलान पर हिनहिना रहे हैं घोड़े। नीचे या ऊपर की ओर। अपनी प्रेमिका के लिए बनाता हूँ अपनी तस्वीर किसी दीवार पर टाँगने की ख़ातिर, जब न रह जाऊँ इस दुनिया में। वह पूछती है : क्या दीवार है कहीं इसे टाँगने के लिए ? मैं कहता हूँ : हम एक कमरा बनाएँगे इसके लिए। कहाँ ? किसी भी घर में। ढलान पर हिनहिना रहे हैं घोड़े। नीचे या ऊपर की ओर। क्या तीस-एक साल की किसी स्त्री को एक मातृभूमि की ज़रूरत होगी सिर्फ़ इसलिए कि वह फ़्रेम में लगा सके एक तस्वीर ? क्या पहुँच सकता हूँ मैं चोटी पर, इस ऊबड़-खाबड़ पहाड़ी की ? या तो नरक है ढलान, या फिर पराधीन। बीच रास्ते बँट जाती है यह। कैसा सफ़र है ! शहीद क़त्ल कर रहे एक-दूसरे का। अपनी प्रेमिका के लिए बनाता हूँ अपनी तस्वीर। जब एक नया घोड़ा हिनहिनाए तुम्हारे भीतर, फाड़ डालना इसे। ढलान पर हिनहिना रहे हैं घोड़े। नीचे या ऊपर की ओर।

अगर ऐसी सड़क से गुज़रो

अगर तुम किसी ऐसी सड़क से गुज़रो जो नरक को न जा रही हो, कूड़ा बटोरने वाले से कहो, शुक्रिया! अगर ज़िंदा वापस आ जाओ घर, जैसे लौट आती है कविता, सकुशल, कहो अपने आप से, शुक्रिया ! अगर उम्मीद की थी तुमने किसी चीज की, और निराश किया हो तुम्हारे अंदाज़े ने, अगले दिन फिर से जाओ उस जगह, जहाँ थे तुम, और तितली से कहो, शुक्रिया! अगर चिल्लाए हो तुम पूरी ताक़त से, और जवाब दिया हो एक गूँज ने, कि कौन है ? पहचान से कहो, शुक्रिया! अगर किसी गुलाब को देखा हो तुमने, उससे कोई दुःख पहुँचे बग़ैर ख़ुद को, और ख़ुश हो गए हो तुम उससे, मन ही मन कहो, शुक्रिया! अगर जागो किसी सुबह और न पाओ अपने आस-पास किसी को मलने के लिए अपनी आँखें, उस दृश्य को कहो, शुक्रिया! अगर याद हो तुम्हें अपने नाम और अपने वतन के नाम का एक भी अक्षर, एक अच्छे बच्चे बनो! ताकि ख़ुदा तुमसे कहे, शुक्रिया!

एथेंस हवाई-अड्डा

एथेंस हवाई-अड्डा छिटकाता है हमें दूसरे हवाई-अड्डों की तरफ़ । कहाँ लड़ सकता हूँ मैं ? पूछता है लड़ाकू । कहाँ पैदा करूँ मैं तुम्हारा बच्चा ? चिल्लाती है एक गर्भवती स्त्री । कहाँ लगा सकता हूँ मैं अपना पैसा ? सवाल करता है अफसर । यह मेरा काम नहीं, कहता है बुद्धिजीवी । कहाँ से आ रहे हो तुम ? कस्टम अधिकारी पूछता है । और हम जवाब देते हैं : समुन्दर से ! कहाँ जा रहे हो तुम ? समुन्दर को, बताते हैं हम । तुम्हारा पता क्या है ? हमारी टोली की एक औरत बोलती है : मेरी पीठ पर लदी यह गठरी ही है मेरा गाँव । सालों-साल इंतज़ार करते रहें हैं हम एथेंस हवाई-अड्डे पर। एक नौजवान शादी करता है एक लड़की से, मगर उनके पास कोई जगह नहीं अपनी सुहागरात के लिए। पूछता है वह : कहाँ प्यार करूँ मैं उससे ? हँसते हुए हम कहते हैं : सही वक़्त नहीं है यह इस सवाल के लिए । विश्लेषक बताते हैं : वे मर गए ग़लती से साहित्यिक आदमी का कहना है : हमारा खेमा उखड़ जाएगा ज़रूर । आख़िर चाहते क्या हैं वे हमसे ? एथेंस हवाई-अड्डा स्वागत करता है मेहमानों का, हमेशा । फिर भी टर्मिनल की बेंचों की तरह हम इंतज़ार करते रहे हैं बेसब्री से समुन्दर का । अभी और कितने साल ? कुछ बताओ एथेंस हवाई-अड्डे !

कुछ छोटी कविताएँ

1. अगर लौट सकूँ शुरूआत तक कुछ कम अक्षर चुनूँगा अपने नाम के लिए 2. अगर जैतून के तेल जानते होते उन हाथों को जिन्होनें रोपा था उन्हें, आँसुओं में बदल गया होता उनका तेल 3. आसमान पीला क्यूँ पड़ जाता है शाम को ? क्यूँकि तुमने पानी नहीं दिया था फूलों में । 4. मैं भूल गया बड़ी घटनाएँ और एक विनाशकारी भूकंप याद है मुझे आलमारी में रखी अपने पिता की तम्बाकू । 5. इतना छोटा नहीं हूँ कि बहा ले जाएँ मुझे शब्द इतना छोटा नहीं हूँ कि पूरी कर सकूँ यह कविता ।

फ़िलिस्तीनी कविताएँ हिंदी में : महमूद दरवेश (अनुवादक : विनोद दास)


पीड़ित नम्बर 48

वह एक पत्थर पर मरा लेटा था उन्हें उसकी छाती में चाँद और गुलाबों से सजी लालटेन मिली उन्हें उनकी जेबों में कुछ सिक्के मिले मिली माचिस की एक डिबिया और सफ़र का परवाना उसके हाथों पर गुदा हुआ था गोदना उसकी माँ ने उसे चूमा और एक साल तक रोती-बिलखती रही उसकी आँखों में उलझन के काँटे झलकते रहे और वहाँ अन्धेरा बना रहा उसका भाई जब बड़ा हुआ और क़स्बे में काम की तलाश में गया उसे जेल में डाल दिया गया चूँकि उसके पास सफ़र करने का परवाना नहीं था वह एक कचरा पेटी और कुछ बक्से नीचे सड़क पर ले जा रहा था मेरे मुल्क के बच्चो ! इस तरह उस चाँद की मौत हुई

आदमी के लिए

उन्होंने उसका मुँह कपड़ा ठूँसकर बन्द कर दिया उसके हाथ मृतकों की चट्टान से बाँध दिए और कहा — हत्यारा उन्होंने उसका खाना, उसके कपड़े और झण्डे छीन लिए उसे मुज़रिमों वाली काल-कोठरी में डाल दिया और कहा — चोर उन्होंने हर एक बन्दरगाह से उसे खदेड़ दिया उसकी जवान महबूबा छीन ली फिर कहा — रिफ्यूजी हवालात हमेशा नहीं बने रहेंगें न ही ज़ंजीरों की कड़ियाँ नीरो मर गया, रोम आज भी बाक़ी है वह अपनी उदास आँखों से लड़ रहा है और गेहूँ की पकी बालियों से गिरे दानों से पूरी घाटी भर जाएगी

पासपोर्ट

वे मुझे पहचान न पाए पासपोर्ट के काले धब्बों ने मेरी तस्वीर की रंगत को उड़ा दिया था उन्होंने मेरे ज़ख़्मों को उन सैलानियों के सामने नुमाइश की जिन्हें तस्वीरें जमा करने का शौक़ था उन्होंने भी मुझे नहीं पहचाना मेरे हाथों से धूप को सरकने न दें चूँकि इन किरणों में दरख़्त मुझे पहचानते हैं बारिश के सभी गीत मुझे पहचानते हैं मुझे मटमैले चाँद की तरह मत छोड़ो, मेरे हाथ के पीछे-पीछे सभी परिन्दे सुदूर बने हवाईअड्डे की बाड़ तक आते हैं आते हैं गेहूँ के सारे खेत सभी क़ैदख़ाने सभी सफ़ेद क़ब्रें सभी सरहदें सभी हिलते रुमाल सभी काली आँखें सभी आँखें मेरे साथ थीं लेकिन उन्होंने पासपोर्ट से उन्हें निकाल दिया नाम और पहचान से मुझे उस मुल्क में महरूम कर दिया जिसकी देखभाल मैंने दोनों हाथों से की थी आज उस धीरज भरे आदमी की आवाज़ आसमान में गूँजती रही सुनो, पैगम्बर हुज़ूर ! दुबारा मेरी जाँच मत करो पेड़ों से उनके नाम मत पूछो घाटियों से उनकी माँ के बारे में मत पूछो मेरे चेहरे से निकल रही है तलवार की चमक और मेरी गदोलियों से फूट रहा है नदियों का सोता लोगों के दिलों में है मेरी राष्ट्रीयता मेरा पासपोर्ट तुम ले जाओ

भजन (एक)

जिस दिन मेरी कविताएँ मिट्टी से बनी थी मैं अनाज का दोस्त था जब मेरी कविताएँ शहद हो गईं मक्खियाँ मेरे होठों पर बैठने लगीं

भजन (दो)

मुझे लगता है कि मैं सूख गया हूँ जैसे किताबों से बाहर उगते हैं दरख़्त हवा एक महज़ गुजरती हुई शै है मुझे लड़ना होगा या नहीं सवाल यह नहीं है ज़रूरी है कि गला ताक़तवर हो काम करूँ या ना करूँ ज़रूरी है सप्ताह में आठ दिन आराम फिलिस्तीनी समय मेरा मुल्क शोकगीतों और क़त्लेआम में बदल रहा है मुझे बताओ किस चीज़ से मारा गया था क्या यह चाक़ू था या झूठ मेरे मुल्क शोकगीतों और क़त्लेआम में बदल रहा है एक हवाईअड्डे से दूसरे हवाईअड्डे तक मैं तुम्हें छिपाकर क्यों ले जाऊँ अफ़ीम की तरह अदृश्य स्याही की तरह रेडियो ट्राँसमीटर की तरह मैं तुम्हारा शक़्लो सूरत बनाना चाहता हूँ मगर तुम फ़ाइलों में छितरे हो और चौंकाते हो मैं तुम्हारा नाक़-नक़्श बनाना चाहता हूँ मगर तुम बम के टुकड़ों और परिन्दों के परों पर उड़ते हो मैं तुम्हारा शक़्लो सूरत बनाना चाहता हूँ लेकिन ऊपरवाला मेरा हाथ छीन लेता है मैं तुम्हारा नाक़-नक़्श बनाना चाहता हूँ मगर तुम चाक़ू और हवा के बीच में फँसे हुए हो तुममें अपना शक़्लो सूरत खोजने के लिए अमूर्त होने का कसूरवार बनने के लिए नक़ली दस्तावेज़ और फ़ोटो बनाने के लिए मैं तुम्हारा चेहरा बनाना चाहता हूँ मगर तुम चाक़ू और हवा के बीच फँसे हुए हो मेरा मुल्क शोकगीतों और क़त्लेआम में बदल रहा है मेरा रोमाँच छीनकर और मुझे पत्थर की तरह छोड़कर तुम कैसे हो सकते हो मेरा सपना शायद तुम सपने से भी ज़्यादा मीठे हो शायद उससे भी कुछ ज़्यादा मीठे अरब की तारीख़ में एक भी ऐसा शख़्स नहीं है जिससे मैंने तुम्हारी चोर खिड़की से घुस आने के लिए मदद न माँगी हो सभी कूटनाम वातानुकूलित भर्ती दफ़्तरों में रखे जाते हैं क्या आपको मेरा नाम मंजूर है मेरा सिर्फ़ एक ही कूटनाम है महमूद दरवेश पुलिस और फिलिस्तीनी पादरी की सज़ा से पीट-पीट कर उधेड़ दी गई है मेरे असली नाम की चमड़ी मेरा मुल्क शोकगीतों और क़त्लेआम में बदल रहा है मुझे बताओ किस चीज़ से मारा गया क्या यह चाक़ू था या झूठ

ज़मीन की कविता

एक पिछड़े गाँव में एक सुस्त शाम को अधखुली आँखों में उतर आते हैं तीस बरस और पाँच जंग मैं हलफ़ लेकर कहता हूँ कि मेरे अनाज की बाली आनेवाला समय रखेगा और गायक आग जो कुछ अजनबियों के बारे में गुनगुनाएगा और शाम फ़कत एक दूसरी शाम जैसी ही होगी और गायक गुनगुनाएगा । उन्होंने उससे पूछा — क्यों गाते हो तुम ? वह देता है जवाब — मैं गाता हूँ चूँकि गाता हूँ ...। उन्होंने उसकी छाती की तलाशी ली पर वहाँ मिला फ़कत उसका दिल उन्होंने उसके दिल की तलाशी ली लेकिन वहाँ मिले सिर्फ़ उसके लोग उन्होंने उसकी आवाज़ की तलाशी ली लेकिन वहाँ मिला केवल उसका दुख उन्होंने उसके दुख की तलाशी ली लेकिन वहाँ मिला उसका क़ैदख़ाना उन्होंने उसके क़ैदख़ाने की तलाशी ली लेकिन वहाँ वे सिर्फ़ ख़ुद थे ज़ंजीरों में बंधे हुए ।

हम हार गए लेकिन मोहब्बत को हासिल कुछ भी न हुआ

हम हार गए लेकिन मोहब्बत को हासिल कुछ भी न हुआ चूँकि तुम मोहब्बत ! एक बिगडैल बच्ची हो । तुमने आसमान का एकमात्र दरवाज़ा और हमारे अनकहे लफ्ज़ों को चकनाचूर कर दिया फिर गायब हो गईं आज हमने न जाने कितने गुलों को नहीं देखा न जाने कितनी राहों ने ज़ंजीरों में बन्धे आदमी के दिल के दुखों को दूर नहीं किया न जाने कितनी लड़कियों की उम्र हमसे आगे निकलकर उस जगह पहुँच गई जहाँ हम घोड़ों का हिनहिनाना नहीं देख सकते थे न जाने कितने गाने हमारे पास आए लेकिन हम सो रहे थे कितने सारे नए चाँद तकिये पर आराम करने के लिए उतर आए थे न जाने कितने चुम्बन हमारा दरवाज़ा खटखटाकर चले गए जब हम बाहर थे न जाने कितने सपने हमारी नींद में खो गए जब हम चट्टानों में रोटी की तलाश कर रहे थे न जाने कितने परिन्दे हमारी खिड़कियों के इर्द-गिर्द मण्डरा रहे थे जबकि हम एक स्थगित दिन में अपनी ज़ंजीरों के साथ खेल रहे थे हमने बहुत कुछ खोया लेकिन मोहब्बत को कुछ भी हासिल न हुआ चूँकि तुम मोहब्बत ! एक बिगडैल बच्ची हो ।

पहचानपत्र

लिख लो — मैं एक अरब हूँ और मेरे पहचानपत्र का नंबर है पचास हज़ार मेरी आठ औलादें हैं और गर्मियों के बाद नवीं आनेवाली है ...। क्या आपको गुस्सा आ रहा है ? लिख लो — मैं एक अरब हूँ एक खदान में अपने साथी मज़दूर के साथ काम करता हूँ मेरी आठ औलादें हैं मैं चट्टानों को तोड़कर उनके लिए रोटी लाता हूँ कपड़े-लत्ते और कॉपी-किताबें लाता हूँ तुम्हारी इमदाद के लिए मैं तुम्हारी जी हुज़ूरी नहीं करता न ही तुम्हारे कमरे के आगे अपने को छोटा महसूस करता हूँ ...। क्या आपको गुस्सा आ रहा है ? लिख लो — मैं एक अरब हूँ मेरे नाम के साथ कोई ख़िताब नहीं है इस मुल्क में सब्र पीता रहता हूँ जहाँ सब गुस्से से भरे रहते हैं मेरे जड़ें मेरी पैदाइश के पहले से मौजूद हैं सदियों के पहले से चीड़ और जैतून की आमद के पहले से घास के उगने के पहले से मेरे अब्बा हल जोतने वाले परिवार से आते हैं किसी बड़े घराने से नहीं और मेरे दादा जान एक खेतिहर थे वह न तो खाते-पीते परिवार से थे और न ही उनका लालन पालन अच्छे से हुआ था फिर भी ककहरा पढ़ाने के पहले उन्होंने सूरज की तरह फ़क्र करने की तालीम दी और टहनियों और बांसों से बना मेरा घर एक पहरेदार की झोपड़ी की तरह है क्या आप मेरी हैसियत से मुतमईन हैं वैसे मेरे नाम के साथ कोई ख़िताब नहीं है ...। लिख लो — मैं एक अरब हूँ तुमने हमारे पुरखों के फलों के बगीचे चुराए हैं वे खेत भी जिनपर मैं अपने बच्चों के साथ खेती करता था तुमने हमारे लिए कुछ भी नहीं छोड़ा इन चट्टानों के सिवा क्या सरकार इसे भी छीन लेगी जैसा कहा जा रहा है ऐसे में पहले पन्ने के सबसे ऊपर लिख लो मैं लोगों से न तो नफ़रत करता हूँ न ही मैं हथियाता हूँ ज़मीन मगर मुझे यदि भूख लगती है तो बेदख़ल करनेवालों का गोश्त मेरा खाना होगा मेरी भूख से होशियार रहिए मेरे गुस्से से बचिए ...।

लोग चिढ़ते हैं

लोग चिढ़ते हैं अगर दिन की रोशनी में हम टहलते हैं और मैं तुम्हारा मुँह हाथ में लेकर दीवाल के कोने में ले जाकर चूम लेता हूँ तुम्हारी आँखें मैं तुम्हारी सोती हुई आँखों को देखने का सपना देखता रहता हूँ तुम्हारे होंठ मैं चूमते समय तुम्हारे होंठों को देखने का सपना देखता रहता हूँ और किरनों से धुला हुआ तुम्हारा चेहरा मैंने देखा देखा संगमरी नावों से घिरी गजदंति नदी फिर मैं बचपन के स्तनपान के पास लौटूँगा दुखों के कुएँ से अपनी रगों में सुरा की तासीर लाने के लिए लोग चिढ़ते हैं अगर मैं सड़क पर तुम्हारे हाथों में अपना सिर रखता हूँ और तुम्हारी कमर को चिपटाकर चलता हूँ

कुछ भी मुझे प्रभावित नहीं करता

बस का एक मुसाफ़िर कहता है — कुछ भी मुझे प्रभावित नहीं करता न रेडियो और न ही सुबह का अख़बार पहाड़ियों पर बने किले भी नहीं मैं रोना चाहता हूँ बस ड्राईवर कहता है — बस अड्डे पहुँचने तक इन्तज़ार कीजिए फिर अकेले जितना हो सके रोइए एक मोहतरमा कहती हैं — मुझे भी कुछ प्रभावित नहीं करता मैंने अपने बेटे को बिगाड़कर अपनी क़ब्र ख़ोदी है वह मौज़ ले रहा है और सोते वक़्त सलाम भी नहीं करता विश्वविद्यालय का एक छात्र कहता है — मुझे भी कुछ ऐसा ही होता है कुछ भी मुझे प्रभावित नहीं करता मैं पुरातत्व विज्ञान पढ़ता हूँ और मुझे पत्थरों में कोई पहचान नही मिलती “क्या मैं सचमुच हूँ... ।" एक सैनिक कहता है — कुछ भी मुझे प्रभावित नहीं करता मैं एक प्रेत की रखवाली करता हूँ जो हमेशा पीछा करके मुझे तंग करता रहता है गुस्से से भरकर ड्राईवर ने जवाब दिया — हम आख़िरी पड़ाव पर पहुँचनेवाले हैं उतरने के लिए तैयार हो जाइए वे चिल्लाए — हम बस अड्डे से परे जाना चाहते हैं लिहाज़ा चलो जहाँ तक मेरा सवाल था, मैंने कहा — मुझे यहीं उतार दो मैं भी उन जैसा ही हूँ मुझे भी कुछ प्रभावित नहीं करता दरअसल मैं सफ़र करते-करते थक चुका हूँ ।

फ़िलिस्तीनी कविताएँ हिंदी में : महमूद दरवेश (अनुवादक : राजेश कुमार झा)


पहचान-पत्र

दर्ज़ करो! कि मैं एक अरब हूं और मेरी पहचान-पत्र संख्या है पचास हज़ार आठ बच्चे हैं मेरे और नवां आ रहा है – गरमियों के बाद। नाराज़ हो तुम? दर्ज़ करो! कि मैं एक अरब हूं काम करता हूं खदान में अपने साथी मज़दूरों के साथ आठ बच्चे हैं मेरे उनके लिए लाता हूं रोटियां, कपड़े और किताब चट्टानों से लड़ कर…. आता नहीं मैं तुम्हारे दर पर मांगने कुछ भी नहीं करता शर्मिंदा खु़द को तुम्हारी चैkखट पर नाराज़ हो तुम? दर्ज़ करो! कि मैं एक अरब हूं नाम है मेरा…मगर कोई पदवी नहीं धैर्य रखता हूं ऐसे मुल्क में जहां लोग हैं बेचैन मेरी जड़ें धंस चुकीं थीं ज़मीन में जब वक्त था अजन्मा बाकी था शुरू होना युगों का चीड़ और जैतून भी नहीं उगे थे न थी घास धरती पर। मेरे पिता संभ्रांत नहीं हलधर परिवार की संतति मैं और दादाजी महज एक खेतिहर न जन्म कुलीन न पालन पोषण। सीखी मैंने सूरज की अकड़ ककहरे के पहले। पहरेदार की झोंपड़ी है मेरा घर घासफूस, टहनियों से बना। मेरी हैसियत से संतुष्ट हैं आप? नाम है मेरा मगर पदवी नहीं। दर्ज़ करो! कि मैं एक अरब हूं चुराया है तूने मेरे पुरखों का बागीचा और मेरी उपजाऊ ज़मीन और मेरे बच्चे भी छोड़ा नहीं कुछ भी हमारे लिए- बस ये चट्टान … ले लेगी क्या इन्हें भी सरकार- जैसा सुना है मैंने। इसलिए पहले सफे के कपाल पर लिख दो- नफरत नहीं करता मैं लोगों से न ही ज़ोर-ज़बर्दस्ती लेकिन अगर भूख सताएगी मुझे- खा जाऊंगा मांस मुझे महरूम करने वाले का सावधान…. सावधान…. मेरी भूख से मेरी लाल लाल आंखों से।

पिस रही है धरती

धरती पिस रही है हमें, फंसा रही है हमें आखिरी पगडंडियों में, सिकोड़ कर अपना बदन, हम कर रहे है कोशिश निकल पाने की। धरती पिस रही है हमें, काश अगर होते हम इसके गेहूं, मरकर भी ज़िंदा रह पाते, अगर होती ये हमारी माँ शायद करती रहम हम पर, काश हम होते पत्थरों की तस्वीर, सपने में जो दिखती है आइने की तरह, चेहरे जो हैं अपनी रूह की आखिरी लड़ाई में मशरूफ, हममें से जो बचेंगे जिंदा उनका कर देंगे कत्ल, उनके बच्चों की दावत का हम मनाते हैं मातम, हमने देखे हैं उनके चेहरे जो फेक देते हैं हमारे बच्चे खिड़कियों से बाहर। एक सितारा चमकाएगा हमारा आइना, आखिरी सरहद के आगे कहां जाएंगे हम , कहां उड़ेगी चिड़िया आखिरी आसमान के पार, सोएंगे कहां पौधे हवा की आखिरी सांस के बाद? सुर्ख धुंध से लिखते हैं हम अपना नाम, अपने गोश्त से करते हैं आखिरी इबादत, हम यहीं मरेंगे, इन्हीं आखिरी पगडंडियों पर, यहां या वहां, हमारा लहू उगाएगा जैतून का पेड़।

घर की ओर

हम जाते हैं घर की ओर जो बना नहीं हमारी मांस-पेशियों से, इसके शहतूत नहीं बने हमारी हड्‍डियों से, चट्टान इसके नहीं मंत्रों की पहाड़ी बकरियों जैसे, आंख वाले पत्थर नहीं हैं नरगिस के फूल। हम जाते हैं घर की ओर, जो बनाती नहीं सूरज से हमारे सरों के गिर्द रोशनी का घेरा, कल्पना लोक की औरतें करती हैं हर्षध्वनि से स्वागत, एक समुद्र हमारे लिए, एक हमारे खिलाफ, जब पास न हों गेहूं और न पानी, खाओ हमारा प्यार, पियो हमारे आंसू, कवियों के लिए हाजिर है मातम का साफा, संगमरमर के बुतों का काफिला,ऊंची करेगा हमारी आवाज, वक्त की धूल को रखने आत्मा से मौजूद है अस्थि कलश, हमारे लिए गुलाब, हमारे खिलाफ गुलाब। आपकी महिमा आपकी, मेरा गौरव मेरा, अपने घरों का अनदेखा ही देखते हैं हम, यही है हमारी पहेली, महिमा है हमारी इन्हीं रास्तों से लहूलुहान नंगे पांव ढोकर लाए हम सिंहासन, जो जाती है हर कहीं सिवा हमारे घरों के। आत्मा को पहचानना होगा, अपनी ही आत्मा के भीतर, या फिर आए मौत यहीं।

फ़िलिस्तीनी कविताएँ हिंदी में : महमूद दरवेश (अनुवादक : सिद्धेश्वर सिंह)


दूसरों के बारे में सोचो

जब तुम तैयार कर रहे होते हो अपना नाश्ता दूसरों के बारे में सोचो (भूल मत जाना कबूतरों को दाने डालना) जब तुम लड़ रहे होते हो अपने युद्ध दूसरों के बारे में सोचो (मत भूलो उनके बारे में जो चाहते हैं शान्ति) जब तुम चुकता कर रहे होते हो पानी का बिल दूसरों के बारे में सोचो (उनके बारे में जो टकटकी लगाए ताक रहे हैं मेघों को) जब तुम जा रहे होते हो अपने घर की तरफ़ दूसरों के बारे में सोचो (उन्हें मत भूल जाओ जो तंबुओं-छोलदारियों में कर रहे हैं निवास) जब तुम सोते समय गिन रहे होते हो ग्रह-नक्षत्र-तारकदल दूसरों के बारे में सोचो (यहाँ वे भी हैं जिनके पास नहीं है सिर छिपाने की जगह) जब तुम रूपकों से स्वयं को कर रहे होते हो विमुक्त दूसरों के बारे में सोचो (उनके बारे में जिनसे छीन लिया गया है बोलने का अधिकार) जब तुम सोच रहे हो दूरस्थ दूसरों के बारे में अपने बारे में सोचो (कहो : मेरी ख़्वाहिश है कि मैं हो जाता अँधेरे में एक कंदील)

फ़िलिस्तीनी कविताएँ हिंदी में : महमूद दरवेश (अनुवादक : मौहम्मद अफ़ज़ल खान)


जैतून का दरख़्त

हमारी ज़मीन तंग होती जा रही है ज़मीन हमें धकेल रही है ऐसी गलियों में जहाँ दीवार से दीवार लगती है सो गुज़रने के लिए अब यही इक रास्ता है कि हम अपने अंगो को काटकर फेंक दे ज़मीं हमें भींच रही है काश ! हम ज़मीं पर उगी कोई फ़सल होते वहीं पर गिरते और वहीं पर उग आते काश ! ज़मीन हमारी माँ होती या माँ जैसी मेहरबाँ होती काश ! हमारे वजूद पत्थर होते उनसे आईने तराश कर हम अपने ख़्वाबों का अक्स बन जाते हमने देखा है उन लोगों का चेहरा जिन बच्चों का ख़ून अपनी आत्मा की रक्षा की अन्तिम लड़ाई में हमारे हाथों से होगा हम उनके बच्चो का भी मातम करते है हमने देखा है उन लोगों का चेहरा जो हमारे बच्चों को इस आख़िरी पनाहगाह से भी देशनिकाला देंगे आख़िरी सरहद के बाद भला कोई कहाँ जाए आख़िरी आकाश के बाद परिन्दे किस ओर उड़ान भरें ? हवा के आख़िरी झोंके के बाद फूल कहाँ जाकर सांस लें ? हम इक लहू रंग की चीख़ से दे देंगे अपने होने का सबूत हम अपने गीतों के हाथ काट देंगे लेकिन हमारा शरीर गाता रहेगा हमारा मरना यहीं पर होगा इसी आख़िरी जगह पर …. यही पर हमारा खून उगाएगा जैतून का दरख़्त

फ़िलिस्तीनी कविताएँ हिंदी में : महमूद दरवेश (अनुवादक : अंचित)


वायलिनें

वायलिनें अंदलूसिया जाते हुए जिप्सियों के साथ रोती हैं वायलिनें अंदलूसिया छोड़ते हुए अरबी लोगों के लिए रोती हैं वायलिनें उस खो गए दौर के लिए रोती हैं जो वापस नहीं आएगा वायलिनें उस खो गए वतन के लिए रोतीं हैं जिसे वापस पाया जा सकता था वायलिनें सुदूर अंधेरों के जंगल जला देतीं हैं. वे उफ़क को घायल कर देती हैं, और मेरी नसों में दौड़ते खून को सूंघती हैं. वायलिनें हैं प्रेतों के तारों पर घोड़ों की तरह, कराहता है पानी. वायलिनें आगे और पीछे झूलते लिली के फूलों का मैदान हैं, वायलिनें उन पशुओं की तरह हैं जिन्हें एक स्त्री अपने नाखूनों से यातना देती है – उनको छूती है फिर दूर चली जाती है. वायलिनें फ़ौज की तरह हैं, बना रही हैं संगमरमर और धुनों की क़ब्रें. वायलिनें दिलों में बसी हुई अराजकता है जिसको हवा उठा कर एक नर्तकी के पैरों पर छोड़ देती है. वायलिनें चिड़ियों के झुंड की तरह है जो अधूरे बने एक झंडे के नीचे पनाह माँगती हैं. वायलिनें एक जुनुनी रात को रेशमी सिलवटों की शिकायतें हैं वायलिनें पुरानी प्यास को मना कर दिया गया शराब का नशा हैं. वायलिनें यहाँ वहाँ मेरा पीछा करती हैं, मुझसे बदला लेना चाहती हैं, वायलिनें मैं जहाँ भी मिलूँ ,मुझे मारने के लिए मुझे खोज रही हैं मेरी वायलिनें अंदलूसिया छोड़ते हुए अरबी लोगों के लिए रोती हैं मेरी वायलिनें अंदलूसिया जाते हुए जिप्सियों के साथ रोती हैं.

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