फ़िलिस्तीनी कविताएँ हिंदी में : कमाल नासिर (अनुवादक : राधारमण अग्रवाल)

Palestinian Poetry in Hindi : Kamal Nasser


आख़िरी बात

प्रिय, अपने पहले बच्चे को गोद में खिलाते हुए अगर ख़बर सुनना यह, मेरा इन्तज़ार करते हुए, मत रोना क्यों कि लौटना नहीं होगा मेरा फिर से जीना तकलीफ़ और मुसीबतों के बीच कुछ भी नहीं अगर पुकारता हो अपना वतन प्रिय, पढ़ो ये ख़बर, अगर मेरे साथियों की दहशत भरी आँखों में ख़ुदा के लिए उन्हें देना तसल्ली अपनी दिलकश मुस्कराहट से गोकि तब्दील हो गयी हैं मेरी बहारें सर्द जाड़ों में ताकि बरक़रार रहे तुम्हारी बहारें उन्हीं बहारों के नाम लिख देता हूँ साथियों के सपनों को हाँ, करता हूँ इसकी वसीयत खुदा को हाज़िर नाज़िर जान उन खुदाई नेमतों की क़सम जो सिखाती है मुहब्बत हर गुज़रते पल के साथ वही मुहब्बत जो छा गई है मेरी आत्मा, मेरे ख़ून में दोस्तों के लिए हमवतनों के लिए मैं मर ही नहीं सकता जिऊँगा ख़्वाबों में शान से तने सीनों में पैदा होऊँगा हमेशा हर नई बात के साथ प्रिय, सुनना यह ख़बर, अगर और काँप जाओ डर से पीला पड़ जाये चेहरा, अगर चाँद की रौशनी में मत बैठना ख़ामोश इजाज़त मत देना चाँद की रौशनी को कि समा जाय तुम्हारी आँखों की चमक में चाँद की रोशनी कम कर देगी मेरी जलन को बताना मेरे बच्चे को मेरी बेपनाह मुहब्बत की बाबत बताना उसे मैंने जी है मुहब्बत मेरा चाक सीना बाँट रहा था, सिफर्‍ मुहब्बत नहीं छोड़ जाऊँगा उसके लिए कुछ भी सिवा अपने गीतों के एक टुकड़े के और अपनी बाँसुरी अगर मातम करे कभी वह भरे दिल से मेरी क़ब्र पर कहना उससे शायद लौटूँ एक दिन एक पके फल की तलाश में

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