फ़िलिस्तीनी कविताएँ हिंदी में : फ़दवा तूकान (अनुवादक : राधारमण अग्रवाल)

Palestinian Poetry in Hindi : Fadwa Tuqan


रात दिन की दहशत

(अपनी दोस्त रोज़मैरी के लिये) मुर्दे टहलते हैं अपनी गलियों में जिन्न, मिल जाते हैं काली दीवारों के साथ आर पार दिखते हड्डियों के ढाँचे बहन, उढ़ा दो कफ़न मुर्दा जिस्मों को शर्म, शर्म करो, बहन है मेरी बिना कपड़ों के पड़ोसी भी हैं बिना कपड़ों के कुछ नहीं बचा हमारे पास ढँक पायें शर्म जिससे, अपनी नंगे पेड़ हिल रहे पागलों की तरह उड़ गये हैं चिड़ियों के पर, उन पर से होती है दस्तक दरवाज़े पर, अचानक सिपाही हैं शायद मेरी बहन चक्कर लगाती इधर से उधर उधर से इधर, जुनून में सिपाही, और ज़्यादा सिपाही मैं भी घूमता हूँ इधर उधर फिर, घूम पड़ता हूँ पीछे चारदीवारी के पार से आती है आवाज़ इश्क़ के मारे आशिक़ की आवाज़ महबूबा हो चुकी किसी ग़ैर की रह गया मैं, एक नामुराद आशिक़ बोलो, कुछ तो बोलो जानेमन मैं रहा हूँ क़रीबी तुम्हारा रौशनी तुम्हारी आँखों की क़सम ख़ुदा, तुम्हीं हो मेरी आँख और निगाह महबूबा, डूब जाने दो मुझे अपनी आँखों की गहराई में मत ढकेलो परे तोड़ देते हैं दरवाज़ा कम्बख़्त सिपाही या ख़ुदा, रहम कर जानेमन, उदास हो? ले लो मेरे दिल का ख़ूनी लाल गुलाब रख लो इसे अपने दिल में, धड़कनों के पास दरवाज़े पर हैं सिपाही, या रब, छोड़ दिया है ख़ुदा ने भी मेरा साथ ढँक लो अपना चेहरा अपनों ने ही भोंक दिया ख़ंजर पीठ में क़हर की रात दरवाज़ा खोल बदज़ात दरवाज़ा खोल, हरामी की औलाद लगता है, दुनिया की हर ज़बान में गाली दे रहे सिपाही महबूबा मेरी, जाग उठा हूँ बिना सपनों वाली नींद से कॉफी पीने से शायद हो जाये भारीपन ग़ायब ख़ामोशी कभी न ख़त्म होने वाली ख़ामोशी उदासी और गुज़रे दर्द पर डालता हूँ निगाह कौन सा रास्ता रह गया है चुनने को ख़ामोशी, सिफर्‍ ख़ामोशी या ख़ुदा, आख़िर क्यों एलकोड के अख़बारों में रोज़ छपती हैं ख़बरें- ‘‘बेथेलहम! खेरबत बेत सकारिया के इलाक़े में किसानों ने कार आसियों की तरफ़ से बढ़ते बुलडोज़रों को देखा है। बताया जाता है कि इन बुलडोज़रों ने खेतों और फ़सलों का भारी नुक़सान किया है।’’ एक शिकायती ख़त जो किसी इब्राहीम अताउल्ला, बमुक़ाम बेत सकारिया, कार आसियों के मग़रिब में, ज़िला बेथेलहम द्वारा, लड़ाई के महकमे को लिखा गया-

मेरे खेतों को हथिया लेने के बाबत

(जनाब, आपको इत्तिला हो कि जिस ज़मीन के बारे में आपको लिखा जा रहा है वो हमारे दाना-पानी का अकेला सहारा है। इससे इक्कीस लोगों की परवरिश होती है। इनकी ज़िम्मेदारी पूरी तरह से मेरे ऊपर है। परसों, बुलडोज़रों ने पूरी फ़सल तबाह कर दी जिससे हमारा साल भर का गुज़ारा होता। आपसे भूखे बाल बच्चों के नाम पर दरख़्वास्त है कि, बराये मेहरबानी, मेरी ज़मीन लौटवाने में मदद करें। ज़मीन के एवज़ में मुझे कोई पैसा या दूसरी ज़मीन नहीं चाहिये। -बक़हीम अताउल्ला) बार-बार वही बासी ख़बरें कुछ भी नहीं जो हो क़ाबिले ग़ौर या नया फँसता मालूम पड़ता है गला रेशमी कीड़े, चूस लोगे तुम मेरे ख़ून की एक एक बूँद क्या रह पायेगी ज़िन्दगी भला उसके बाद या ख़ुदा, क्या हो रहा है टूटती नहीं ख़ामोशी घुमाता हूँ रेडियो की सुई क्या हो रहा है दुनिया-जहान में अँधा जिन्न, लीले जा रहा है आदमी पर आदमी बेलफास्ट भी नहीं है अछूता सुनहरे फूलों का सर काट दिया गया हो किसी टाइम बम से यही है हश्र वियतनाम का उदासी रोज़ जज़्ब होती है वियतनाम की मिट्टी में खाद है नेपाम बमों की नोंच रहे गिद्ध अधमरे ज़िस्मों को फैल गये ख़ूनी पंजे दहशत दे रही मौत का पैग़ाम किसने फैलायी ये ख़ौफ़नाक़ दहशत हमारे जहान में? किसने उढ़ा दिया है खौफ़ का कफ़न ऐ ख़ुदा मुहब्बत है कहीं बाक़ी या हो गई फ़ना? टूटती है ख़ामोशी आख़िर किसी जानवर की दर्दनाक आवाज़ से दूर जंगल में ठहाके लगा रहा है ख़ुदा तूफ़ानी बादलों की ओट से

फ़िलिस्तीनी कविताएँ हिंदी में : फ़दवा तूकान (अनुवादक : अनिल जनविजय)


सदा रहे फ़िलिस्तीन

महान महान देश चक्की का पाट घूम सकता है बदल सकता है संघर्ष की धुंधली रातों में पर वे नहीं बदल सकते बहुत कमज़ोर हैं वे तुम्हारी रोशनी ख़त्म करने के लिए तुम्हारी आशाओं में से फाँसी पर लटके विकास में से चोरी गई शुभ्र मुस्कानों में से खिलखिलाते हैं तुम्हारे बच्चे तुम्हारी बर्बादी में से घोर यंत्रणा में से जीवन के स्पन्दन और मृत्यु के कम्पन में से उदित होगा एक नया जीवन ओ महान देश ओ गम्भीर ज़ख़्म ओ मेरे आत्मीय स्नेह

तूफ़ान और पेड़

जब खूँखार तूफ़ान ने सब तहस-नहस कर दिया था काले समुद्र ने कै की थी बर्बर समुद्र-तट से सुन्दर हरित मैदान के ऊपर हवा में गरजा था पिशाच पेड़ गिरने लगे थे पेड़ गिर गए पेड़ों के भव्य तने तूफ़ान से ध्वस्त हो गए और पेड़ निर्जीव हो गए पेड़ ! पेड़ ! क्या तुम मर सकते हो? सुर्ख़ नदियों ने पूछा प्यारे पेड़ तुम्हारी जड़ें लबालब भरी हुई हैं युवा अवयवों से तैयार गहरी लाल शराब से प्यारे पेड़ अरबी जड़ें कभी नहीं सूखतीं वे फैलती हैं नितल गहराइयों में चट्टानों के पार तक धरती के भीतर अपना रास्ता ढूँढ़ती हुईं पेड़ ! पेड़ ! तुम उगोगे सूर्य के संरक्षण में फूटेंगे कल्ले ताज़ा और सब्ज़ हरे पत्तों के बीच गूँज़ेगी हँसी धूप पर चढ़कर लौटेंगे पक्षी घर की ओर, घर की ओर, घर की ओर

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