मुकरियाँ : त्रिलोक सिंह ठकुरेला

Mukriyan : Trilok Singh Thakurela

जब देखूं तब मन हरसाये ।
मन को भावों से भर जाये ।
चूमूँ, कभी लगाऊँ छाती ।
क्या सखि साजन ? ना सखि पाती।। 1

रातों में सुख से भर देता ।
दिन में नहीं कभी सुधि लेता ।
फिर भी मुझे बहुत ही प्यारा ।
क्या सखि साजन ? ना सखि तारा । 2

मुझे देखकर लाड़ लड़ाये।
मेरी बातों को दोहराये।
मन में मीठे सपने बोता।
क्या सखि साजन ? ना सखि तोता । 3

सबके सन्मुख मान बढ़ाये।
गले लिपटकर सुख पंहुचाये।
मुझ पर जैसे जादू डाला ।
क्या सखि साजन ? ना सखि माला । 4

जब आये तब खुशियाँ लाता।
मुझको अपने पास बुलाता ।
लगती मधुर मिलन की बेला।
क्या सखि साजन ? ना सखि मेला। 5

पाकर उसे फिरूँ इतराती।
जो मन चाहे सो मैं पाती।
सहज नशा होता अलबत्ता ।
क्या सखि साजन ? ना सखि सत्ता । 6

मैं झूमूँ तो वह भी झूमे।
जब चाहे गालों को चूमे।
खुश होकर नाचूँ दे ठुमका।
क्या सखि साजन ? ना सखि झुमका। 7

वह सुख की डुगडुगी बजाये।
तरह तरह से मन बहलाये।
होती भीड़ इकट्ठी भारी ।
क्या सखि साजन ? नहीं, मदारी। 8

जब आये, रस-रंग बरसाये ।
बार बार मन को हरसाये ।
चलती रहती हँसी - ठिठोली।
क्या सखि साजन ? ना सखि, होली । 9

मेरी गति पर खुश हो घूमे ।
झूमे, जब जब लहँगा झूमे ।
मन को भाये, हाय , अनाड़ी ।
क्या सखि, साजन ? ना सखि साड़ी । 10

बिना बुलाये , घर आ जाता ।
अपनी धुन में गीत सुनाता ।
नहीं जानता ढाई अक्षर ।
क्या सखि, साजन ? ना सखि, मच्छर । 11

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