लोक गीत भोजपुरी Lok Geet Bhojpuri



1. धोबी के गीत

झिलमिल पनिया कि कवना पोखरवा सेवार, कवना पोखरवा में चेल्हवा मछरिया कि केहो बिगे महाजाल। राम पोखरवा में झिलमिल पनिया कि लछुमन पोखरवा सेवार, सीता पोखरवा में चेल्हवा मछरिया कि रावन फेंके महाजाल। लाल घोड़वा पर लाल चढ़ि अइले कि उजर घोड़वा भगवान, सोने पलकिया में सीता चढ़ि अइली कि चँवर डोलावे हनुमान।

2. मजूरी कई के

मजूरी कइ के हम मजूरी कइ के... जी हजूरी कइ के... अपने सइयाँ के... अपने बलमाँ के पढ़ाइब हम मजूरी कइ के... जी हजूरी कइ के... रात-दिन खटिबे काम सब करिबे कुल-कानि लइ के भला का करिबे तन अंगूरी कइ के मन सिन्दूरी कइ के सिच्छा पूरी हम कराइब अपने राजा के... अपने बाबू के... अपने राजा के पढ़ाइब हम मजूरी कइ के... जी हजूरी कइ के... हम मजूरी कइ के...

3. बारहमासा

शुभ कातिक सिर विचारी, तजो वनवारी। जेठ मास तन तप्त अंग भावे नहीं सारी, तजो वनवारी। बाढ़े विरह अषाढ़ देत अद्रा झंकारी, तजो वनवारी। सावन सेज भयावन लागतऽ, पिरतम बिनु बुन्द कटारी, तजो वनवारी। भादो गगन गंभीर पीर अति हृदय मंझारी, करि के क्वार करार सौत संग फंसे मुरारी, तजो वनवारी। कातिव रास रचे मनमोहन, द्विज पाव में पायल भारी, तजो वनवारी। अगहन अपित अनेक विकल वृषभानु दुलारी, पूस लगे तन जाड़ देत कुबजा को गारी। आवत माघ बसंत जनावत, झूमर चौतार झमारी, तजो वनवारी। फागुन उड़त गुलाब अर्गला कुमकुम जारी, नहिं भावत बिनु कंत चैत विरहा जल जारी, दिन छुटकन वैसाख जनावत, ऐसे काम न करहु विहारी, तजो वनवारी।

4. रक्षा बंधन के गीत

माइ तलवा कुहकइ मोर। माई जेठरा भइअवा जिनि होइहैं सावन नीअर। माई सार बहनोइया एकै होइहैं सावन नीअर। माई बभना का पूत जिनि पठये सावन नीअर। माई पोथिया बांचन लगिहें सावन नीअर।। माई लहुरा भइयवा पठये सावन नीअर। माई रोइ-गाइ बिदवा करइहैं सावन नीअर।।

5. फागुन के आइल बहार हो बलमुआ

फागुन के आइल बहार हो बलमुआ छोड़ द नोकरिया घरे आव, आहे घरे आव ।।टेक ।। घरहिं खिअइबो तोहे पूरी मिठइया ऊपर से तोहके सेजिया सूताइब हींक भरि जिअब लहालोट हो , बलमुआ- छोड़ द नोकरिया घरे आव,आहे घरे आव ।।टेक ।।

6. पहिले पहिले फगुवा खेलै रामलाल

पहिले पहिले फगुवा खेलै रामलाल ससुरारी चललैं रुपया प‍इसा कपड़ा लत्ता कै के खूब तैयारी चललैं लेहलैं नया सरौता, बटुआ, कत्था, खड़ी सोपारी लेहलैं मेहर खातिर साबुन, पौडर, साया, ब्लाउज, सारी लेहलैं अपने खातिर लुंगी, जूता, बीड़ी अउर सलाई लेहलैं कई दुकानी चीख-चीख के आधा किलो मिठाई लेहलैं हाथ गाल पर फेरै लगलन सोचै अ‍उर विचारै लगलन आस पास सैलून कहाँ हौ चारो ओर निहारै लगलन बनल ठनल एक औरत ल‍उकल खोंखैं अ‍उर खंखारै लगलन इसकूटर पर ममा देख‍इलन बढ़के ममा पुकारै लगलन नाहीं सुनलैं ममा भीड़ में नाहीं त बतियवले होतन पुछले होतन हाल घरे क आपन हाल बतवले होतन नाँहीं-नाँहीं लाख कहित हम तब्बौ चाह पियवले होतन अपने इसकूटर पर हम्मैं बस अड्डा पहुँचवले होतन सुनले हई शहर में मम्मा मामी नई लियायल ह‍उअन बड़की मामी गांव रहैले ओकरे पर गुस्सायल ह‍उअन रामलाल अब सरसमान कुल झोरा में सरियावै लगलन साबुन पौडर लुंगी जूता खोंसै अ‍उर दबावै लगलन बस से चली कि रेकसै अच्छा जोड़ै अ‍उर दहावै लगलन सोझैं खाली रेकसा ल‍उकल ’हे रेकसा’ गोहरावै लगलन बस से जाये क मतलब हौ पैदल ढेर चलै के होई रेकसा से सीधे दुआर पर कत्तौं ना उतरै के होई का हो रेकसा पूरे चलबा सोचा मत बस बोला जनला रेकसोवाला हँस के कहलस लेला उड़नखटोला जनला एतना जल्दी तोहके पूरे अब क‍इसे पहुँचाई हम हमहूँ हई अदमिये मालिक गरुड़ देवता नहीं हम ज‍इसे त‍इसे घंटा भर में रेकसा पार शहर के निकलल चारों ओरी जाम बेचारा चढ़ के कहीं उतर के निकलल मुँह पर डूबत बेर देख के रामलाल घबराये लगलन रेकसावाले पर रह रह के पिन्नाये भन्नाये लगलन एसे तेज चली ना हमसे जल्दी हो त खुदै चलावा आजिज आ के रामलाल तब कहलन अच्छा ब‍इठा आवा बारी-बारी दूनों जाने बइठै अ‍उर चलावै लगलन एतना गड़बड़ रस्ता सरवा रामलाल गरियावै लगलन पाहुन अ‍इलैं पाहुन अ‍इलैं घर द‍उरल अगवानी खातिर केहू तोसक तकिया खातिर केहू मीठा पानी खातिर रामलाल क मेहर अपने भ‍उजी से बतियावत ह‍उवै पैदल त ई चलै न जानै अस सुकुआर बतावत ह‍उवै रेकसावाला मुसकियात हौ रामलाल त हाँफत ह‍उवैं गौर से उनके सब देखत हौ ऊहो सब के भाँपत ह‍उवैं हँस के बोलल चाहत हउवन लेकिन हँसी न आवत ह‍उवै अ‍इसैं मिलै सवारी मालिक रेकसावान मनावत ह‍उवै घर में चाह पियै के खातिर रामलाल बलवावल गइलन निखरहरै खटिया पर बिच्चे अंगना में बईठावल ग‍इलन भरमूंहे सब रंग लगवलस जमके भूत बनावल ग‍इलन साली करै चिकारी सटके सरहज गावै गारी बबुआ बबुई त ससुरारी ग‍इलिन तू अ‍इला ससुरारी बबुआ रामलाल निखरहरै खटिया फोंय फोंय फुफ्कारै लगलन हमरे नियर चलावा रेकसा सपनै में ललकारै लगलन॥ संकलन : गोलेन्द्र पटेल