हिन्दी हाइकु : त्रिलोक सिंह ठकुरेला

Hindi Haiku : Trilok Singh Thakurela


हाइकु

1. कोसते रहे समूची सभ्यता को बेचारे भ्रूण । 2. दौड़ाती रही आशाओं की कस्तूरी जीवन भर । 3. नयी भोर ने फडफढ़ाये पंख जागीं आशाएं । 4. प्रेम देकर उसने पिला दिए अमृत घूँट । 5. थका किसान उतर आई साँझ सहारा देने । 6. किसे पुकारें मायावी जगत में बौराये लोग । 7. बनाता रहा बहुत सी दीवारें वैरी समाज । 8. दम्भी आंधियां गिरा गयीं दरख़्त घास को नहीं । 9. ढूँढते मोती किनारे बैठ कर सहमे लोग । 10. इन्द्रधनुष सुसज्जित गगन मोहित धरा । 11. सुबह आई कलियों ने खोल दीं बंद पलकें । 12. खोल घूँघट सहसा मुस्करायी प्रकृति वधु । 13. लुटाने लगे मतवाले भ्रमर प्रेम- पयोधि । 14. उतरी धूप खुशियाँ बिखराते खिला आँगन । 15. सजने लगे ऊँची टहनी पर अनेक स्वप्न । 16. तितली उड़ी बालमन में सजे सपने कई । 17. नहीं टूटते अपनत्व के तार आखिर यूँ ही । 18. कटे जब से हरे भरे जंगल उगीं बाधाएँ । 19. मुस्कानें कहाँ शहरों के अंदर कोलाहल है । 20. नहीं लौटता उन्हीं लकीरों पर समय-रथ ।

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